'अपनों का सच कभी-कभी पराया लगता है'...ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज़्नी प्लस हॉटस्टार (Disney+ Hotstar) पर रिलीज हुई वेब सीरीज 'ग्रहण' (Grahan) का ये डायलॉग उसकी मुकम्मल कहानी बयां करता है. वेब सीरीज में एक ऐसे सच की तलाश होती है, जिसने ऋषि (अंशुमान पुष्कर) को गुरुसेवक (पवन मल्होत्रा) बना दिया, चुन्नु को संजय सिंह (टीकम जोशी) बना दिया और अमृता सिंह (जोया हुसैन) की पूरी जिंदगी को झूठा बनाकर रख दिया. इस सच पर लगे झूठ के 'ग्रहण' के पीछे दिल झकझोर देने वाली एक ऐसी मासूम मोहब्बत भी दिखाई गई है, जो इश्क के सागर में गोते लगाने के लिए मजबूर करती है. ऊपर से मनोहारी संगीत ने तो मन मोह लिया है.
लेखक सत्य व्यास (Satya Vyas) का उपन्यास 'चौरासी' (Chaurasi) पंजाब में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगों पर लिखा गया था. वेब सीरीज 'ग्रहण' की कहानी भी 'चौरासी' पर आधारित है. इसमें कोई दो राय नहीं कि सत्य व्यास ने उपन्यास बेहतरीन लिखा है, लेकिन 'ग्रहण' के पटकथा लेखकों अनु सिंह चौधरी, नवजोत गुलाटी, विभा सिंह और प्रतीक पयोधी ने अपनी मेहनत से इसमें चार चांद लगा दिया है. सियासी दांव-पेंच और सिख विरोधी दंगों की जांच के बीच दो अलग-अलग समयावधियों की निच्छल प्रेम कहानी को इस तरह दिखाया गया है कि पूरी वेब सीरीज में प्रेम रस प्रधान लगने लगता है.
कहानी
वेब सीरीज के केंद्र में एक महिला पुलिस अफसर आईपीएस अमृता सिंह (जोया हुसैन) और उसके पिता गुरसेवक (पवन राज मल्होत्रा) है. इन दोनों के किरदारों के आसपास ही पूरी कहानी बुनी गई है. शुरुआत बहुत रोचक और रहस्यमयी तरीके से होती है. एक टीवी चैनल के संवाद सूत्र की हत्या हो जाती है. इस मर्डर केस की जांच कर रही रांची की एसपी सिटी अमृता सिंह हत्यारों को गिरफ्तार कर लेती है, लेकिन राजनीतिक दबाव में डीआईजी लॉकअप में बंद दोषियों को रिहा करा देता है. ईमानदार और अपने काम के प्रति समर्पित दबंग अफसर अमृता स्याह सियासत और करप्ट सिस्टम से निराश होकर अपनी नौकरी से...
'अपनों का सच कभी-कभी पराया लगता है'...ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज़्नी प्लस हॉटस्टार (Disney+ Hotstar) पर रिलीज हुई वेब सीरीज 'ग्रहण' (Grahan) का ये डायलॉग उसकी मुकम्मल कहानी बयां करता है. वेब सीरीज में एक ऐसे सच की तलाश होती है, जिसने ऋषि (अंशुमान पुष्कर) को गुरुसेवक (पवन मल्होत्रा) बना दिया, चुन्नु को संजय सिंह (टीकम जोशी) बना दिया और अमृता सिंह (जोया हुसैन) की पूरी जिंदगी को झूठा बनाकर रख दिया. इस सच पर लगे झूठ के 'ग्रहण' के पीछे दिल झकझोर देने वाली एक ऐसी मासूम मोहब्बत भी दिखाई गई है, जो इश्क के सागर में गोते लगाने के लिए मजबूर करती है. ऊपर से मनोहारी संगीत ने तो मन मोह लिया है.
लेखक सत्य व्यास (Satya Vyas) का उपन्यास 'चौरासी' (Chaurasi) पंजाब में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगों पर लिखा गया था. वेब सीरीज 'ग्रहण' की कहानी भी 'चौरासी' पर आधारित है. इसमें कोई दो राय नहीं कि सत्य व्यास ने उपन्यास बेहतरीन लिखा है, लेकिन 'ग्रहण' के पटकथा लेखकों अनु सिंह चौधरी, नवजोत गुलाटी, विभा सिंह और प्रतीक पयोधी ने अपनी मेहनत से इसमें चार चांद लगा दिया है. सियासी दांव-पेंच और सिख विरोधी दंगों की जांच के बीच दो अलग-अलग समयावधियों की निच्छल प्रेम कहानी को इस तरह दिखाया गया है कि पूरी वेब सीरीज में प्रेम रस प्रधान लगने लगता है.
कहानी
वेब सीरीज के केंद्र में एक महिला पुलिस अफसर आईपीएस अमृता सिंह (जोया हुसैन) और उसके पिता गुरसेवक (पवन राज मल्होत्रा) है. इन दोनों के किरदारों के आसपास ही पूरी कहानी बुनी गई है. शुरुआत बहुत रोचक और रहस्यमयी तरीके से होती है. एक टीवी चैनल के संवाद सूत्र की हत्या हो जाती है. इस मर्डर केस की जांच कर रही रांची की एसपी सिटी अमृता सिंह हत्यारों को गिरफ्तार कर लेती है, लेकिन राजनीतिक दबाव में डीआईजी लॉकअप में बंद दोषियों को रिहा करा देता है. ईमानदार और अपने काम के प्रति समर्पित दबंग अफसर अमृता स्याह सियासत और करप्ट सिस्टम से निराश होकर अपनी नौकरी से इस्तीफा दे देती है. लेकिन डीआईजी उसे समझाते हैं. 1984 सिख विरोधी दंगों की जांच कर रही एसआईटी का इंचार्ज बना देते हैं. झारखंड में चुनाव होने वाले हैं और विपक्षी नेता संजय सिंह से परेशान होकर सियासी अखाड़े के माहिर खिलाड़ी सूबे के सीएम उन्हें घेरने के लिए इस केस की फाइल दोबारा खुलवाते हैं. पुलिस पर संजय के खिलाफ सबूत लाने के लिए दबाव बनाते हैं.
दंगों की जांच कर रही टीम में अमृता सिंह को असिस्ट कर रहे डीएसपी विकास मंडल (सहीदुर रहमान) को एक तेज-तर्रार अफसर के रूप में दिखाया गया है, जिसके नाम हर जांच को अंजाम तक पहुंचाने का अनोखा रिकॉर्ड है. डीएसपी विकास के हाथ एक दंगाई की तस्वीर लग जाती, जिसे वो अमृता को भेजता है. अमृता जैसे ही उस तस्वीर को देखती है, उसके पैरों तले जमीन खिसक जाती है. वो तस्वीर किसी और कि नहीं बल्कि उसके पिता गुरसेवक की होती है. इसके बाद अमृता को अपना बचपन याद आ जाता है. उसको याद आता है कि उसके पिता अपनी जवानी के दिनों में फिल्मी हीरो की तरह हेयर स्टाइल रखते थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपना लुक ही पूरी तरह बदल दिया था. अमृता अपने पिता के पास जाकर उनका सच जानना चाहती है, लेकिन गुरसेवक लाख कोशिशों के बावजूद कुछ भी बताने से इंकार कर देते हैं.
गुरसेवक को अपनी जवानी के दिन याद आ जाते हैं, जब वो एक फैक्ट्री में काम किया करते थे, तब उनकी पहचान ऋषि रंजन नाम से हुआ करती थी. एक दिन उनकी मुलाकात एक सिख लड़की मनु (वमिका गब्बी) से होती है, जिसे देखते ही वो अपना दिल दे बैठते हैं. मनु का प्यार पाने के लिए उसके घर में किराएदार बनकर रहने लगते हैं. इसी बीच उनकी फैक्ट्री का यूनियन लीडर चुन्नु तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सभी को सिखों के खिलाफ भड़काता है. उनको दंगों के लिए उकसाता है. इसके बाद ऋषि को आग लगाते और सिखों की हत्या करते हुए दिखाया जाता है, लेकिन क्या आंखों देखी ये घटना सच है? ऐसा कौन सा राज है जिसे सीने में छिपाए पिता अपनी बेटी से सच नहीं बता पा रहा? इन सवालों के जवाब जानने के लिए आपको ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज़्नी प्लस हॉटस्टार वेब सीरीज देखनी होगी.
समीक्षा
'ग्रहण' की कहानी भले ही साल 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों पर आधारित है, लेकिन प्रेम कथा इसका प्राण है. दो अलग-अलग समयावधियों में दो अलग प्रेमी कहानी दिखाई गई है. साल 1984 में ऋषि और मनु जैसे प्रेमी-प्रेमिका की कहानी, तो साल 2016 में अमृता और गुरसेवक जैसे बाप-बेटी की प्रेम कहानी. दोनों ही प्रेम कहानियों में जो मासूमियत, कोमलता और निच्छलता दिखाई गई है, उसे देखने के बाद रोम-रोम प्रेम रस में डूब जाता है. एक प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए किस हद तक गुजर जाता है और एक अफसर बेटी अपने दंगों के दोषी बुजुर्ग पिता के लिए क्या कुछ कर जाती है, इसे बहुत ही बेहतरीन तरीके से निर्देशन रंजन चंदेल ने पेश किया है.
संगीत
मासूम मोहब्बत के साथ सुरमयी संगीत ने समां बांध दिया है. वरुण ग्रोवर के शब्दों को अमित त्रिवेदी ने सुरों से सजाया है, जिसे अपनी आवाज में असीस कौर और शहीद माल्या ने गाया है, जिसकी गूंज दिल तक सुनाई देती है. 'ओ जोगिया मिलन की राह कटीली'...रोमांचित करते ऋषि और मनु के रोमांस दृश्यों के साथ बैकग्राउंड में जब ये गाना गूंजता है, तो पूछिए मत, दिल में आग लग जाती है. ऐसा लगता है कि कोई बहुत ही मासूमियत से मन के तार छेड़ रहा है. इसमें एक बेहतरीन गाना और भी है, मैं हूं तेरी परछाईं...जिसे स्वानंद किरकिरे ने लिखा और गाया है. ऋषि-मनु का प्रेम प्रेसंग इस वेब सीरीज की सबसे अद्भुत रचना कही जा सकती है. इसके साथ ही कलाकारों का चयन और उनके किरदारों का प्रभावशाली चित्रण भी बखूबी किया गया है.
अदाकारी
नवोदित अभिनेता अंशुमन पुष्कर के सहज अभिनय ने ऋषि रंजन के किरदार को जीवंत कर दिया है. ऐसा लगता है कि उनका किरदार सिर्फ उन्हीं के लिए गढ़ा गया है. पिछले साल नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई वेब सीरीज 'जामताड़ा' में रॉकी के किरदार से सुर्खियों में आए अंशुमन ने इसी साल SonyLIV की वेब सीरीज 'काठमांडू कनेक्शन' में अपनी नेचुरल एक्टिंग से यह साबित कर दिया कि वो लंबी रेस के घोड़े हैं. 'काठमांडू कनेक्शन' में उनका किरदार सन्नी शर्मा एक गैंगस्टर होते हुए भी प्रेमी के रूप में इतना सहज, सरल और सुंदर हैं, जिस पर कोई भी लड़की मर-मिटे. 'ग्रहण' में भी उनका किरदार इतना जोरदार है कि भविष्य में भी उनके लिए असरदार रहेगा.
महिला आईपीएस अफसर अमृता सिंह के किरदार में अभिनेत्री ज़ोया हुसैन बहुत दमदार लगी हैं. एक सख्त पुलिस अफसर, पिता को प्यार करने वाली बेटी और एक प्रेमिका के अलग-अलग जीवन में जोया असरदार लगी हैं. वेब सीरीज में उन्हें अपनी अभिनय क्षमता दिखाने के कई बेहतरीन मौके मिले हैं, जिसे ज़ोया ने जाया नहीं किया है. इससे पहले वो फिल्म 'मुक्काबाज' और 'लाल कप्तान' में भी नजर आ चुकी हैं. 'ब्लैक फ्राइडे' और 'सलीम लंगड़े पे मत रो' जैसी फिल्मों में अपनी दमदार अदाकारी दिखा चुके अभिनेता पवन मल्होत्रा वेब सीरीज में गुरसेवक के किरदार में कमाल के लगे हैं. उनकी खामोशी भी बहुत कुछ कहने में सफल होती है.
निर्देशन
इसके साथ ही सीएम केदार भगत के किरदार में सत्यकाम आनंद खूब जंचे हैं. ऋषि रंजन की प्रेमिका मनजीत छाबड़ा ऊर्फ मनु के किरदार में वमिका गब्बी, फैक्ट्री के यूनियन लीडर संजय सिंह उर्फ चुन्नु के किरदार में टीकम जोशी, डीएसपी विकास मंडल के किरदार में सहीदुर रहमान और सीएम केदार भगत के रोल में सत्यकाम आनंद ने भी शानदार अभिनय किया है. हर कलाकार ने अपने किरदार में बिहार/झारखंड वाला एक्सेंट और मैनरिज्म भी अच्छा पकड़ा है. वैसे इस बेहतरीन वेब सीरीज के लिए तारीफ के असली हकदार इसके निर्देशक रंजन चंदेल है, क्योंकि बिना कुशल निर्देशन के बड़े-बड़े हीरो को भी जीरो होते देखा गया है. उन्होंने दो टाइमजोन की कहानी को बहुत ही सहज और खूबसूरती से पेश किया है. हालांकि, पिछले साल Zee5 पर रिलीज हुई फिल्म 'बमफाड़' में रंजन बहुत प्रभाव नहीं छोड़ पाए थे, लेकिन इस वेब सीरीज में उन्होंने रही सही कसर पूरी कर दी है. कुल मिलाकर 1984 के सिख विरोधी दंगों की जांच के साये और स्याह सियासत के सियासी नफरत के बीच मासूम मोहब्बत के एहसास के लिए वेब सीरीज को जरूर देखा जाना चाहिए.
iChowk रेटिंग:- 5 में से 3.5 स्टार
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.