गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा!
गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम:!!
''गुरु ही ब्रह्मा हैं. गुरु ही विष्णु हैं. गुरु ही शंकर हैं. गुरु ही साक्षात परब्रह्म है. ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं''...जीवन में गुरु का महत्व वो होता है कि यदि किसी व्यक्ति को सही गुरु मिल जाए, तो वो बिना कोई ग्रंथ पढ़े ही ज्ञानवान हो सकता है. बच्चा जब जन्म लेता है, तो प्रथम गुरु उसके माता-पिता होते हैं. उसके बाद बड़ा होकर वो स्कूल और कॉलेज में जाता है. वहां अलग-अलग कई तरह के शिक्षक मिलते हैं. लेकिन हर शिक्षक गुरु नहीं हो सकता. गुरु वही होता है, जो सही रास्ता दिखाए. जीवन में सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे. उसकी सलाह जीवन में आने वाली कठिनाईयों से लड़ने और जीतने की वजह बन सके.
गीता में कहा गया है कि जीवन को सुंदर बनाना, निष्काम और निर्दोष करना ही सबसे बड़ी विद्या है. इस विद्या को सिखाने वाला ही गुरु कहलाता है. ऐसे ही गुरु के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए एक दिन पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है. इसे गुरु पूर्णिमा कहते हैं. इस साल 13 जुलाई को गुरु पूर्णिमा मनाया जा रहा है. समाज की तरह सिनेमा में भी गुरुओं को अहम स्थान दिया गया है. कई हिंदी फिल्मों में ऐसे गुरु दिखाए गए हैं, जिनकी प्रेरणा से फिल्म के मुख्य किरदार अपने जीवन में कुछ हासिल करता है. ऐसी फिल्मों की फेहरिस्त में तारे जमीन पर, पाठशाला, ब्लैक, चक दे इंडिया और इकबाल का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है.
इन चार फिल्मों को देखकर आप फिल्मी गुरुओं से ज्ञान ग्रहण कर सकते हैं...
1. इकबाल
गुरु का किरदार- मोहित
कलाकार- नसीरुद्दीन शाह
ज्ञान क्या मिलता है- सच्चे गुरु...
गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा!
गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम:!!
''गुरु ही ब्रह्मा हैं. गुरु ही विष्णु हैं. गुरु ही शंकर हैं. गुरु ही साक्षात परब्रह्म है. ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं''...जीवन में गुरु का महत्व वो होता है कि यदि किसी व्यक्ति को सही गुरु मिल जाए, तो वो बिना कोई ग्रंथ पढ़े ही ज्ञानवान हो सकता है. बच्चा जब जन्म लेता है, तो प्रथम गुरु उसके माता-पिता होते हैं. उसके बाद बड़ा होकर वो स्कूल और कॉलेज में जाता है. वहां अलग-अलग कई तरह के शिक्षक मिलते हैं. लेकिन हर शिक्षक गुरु नहीं हो सकता. गुरु वही होता है, जो सही रास्ता दिखाए. जीवन में सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे. उसकी सलाह जीवन में आने वाली कठिनाईयों से लड़ने और जीतने की वजह बन सके.
गीता में कहा गया है कि जीवन को सुंदर बनाना, निष्काम और निर्दोष करना ही सबसे बड़ी विद्या है. इस विद्या को सिखाने वाला ही गुरु कहलाता है. ऐसे ही गुरु के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए एक दिन पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है. इसे गुरु पूर्णिमा कहते हैं. इस साल 13 जुलाई को गुरु पूर्णिमा मनाया जा रहा है. समाज की तरह सिनेमा में भी गुरुओं को अहम स्थान दिया गया है. कई हिंदी फिल्मों में ऐसे गुरु दिखाए गए हैं, जिनकी प्रेरणा से फिल्म के मुख्य किरदार अपने जीवन में कुछ हासिल करता है. ऐसी फिल्मों की फेहरिस्त में तारे जमीन पर, पाठशाला, ब्लैक, चक दे इंडिया और इकबाल का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है.
इन चार फिल्मों को देखकर आप फिल्मी गुरुओं से ज्ञान ग्रहण कर सकते हैं...
1. इकबाल
गुरु का किरदार- मोहित
कलाकार- नसीरुद्दीन शाह
ज्ञान क्या मिलता है- सच्चे गुरु का मार्गदर्शन और मन में कभी हार न मानने का जज्बा हो तो बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती है.
साल 2005 में रिलीज हुई स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म इकबाल का निर्देशन और लेखन नागेश कुकुनूर ने किया है. सुभाष घई द्वारा निर्मित इस फिल्म में श्रेयस तलपड़े, नसीरुद्दीन शाह, गिरीश करनाड और श्वेता बासु प्रसाद लीड रोल में हैं. इस फिल्म में जन्म से गूंग और बहरे एक ऐसे लड़के की कहानी दिखाई गई है, जो इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने के सपने देखता है. उसके पिता उसकी शारीरिक स्थिति को देखते हुए उसे हमेशा हतोत्साहित करते रहते हैं, लेकिन बड़ी बहन के पहल पर उसे एक एकेडमी में जगह मिल जाती है. वहां उसके खेल को देखने के बाद कोच गुरु जी (गिरीश करनाड) उसे बाहर का रास्ता दिखा देता है, ताकि उसकी जगह एक अमीर बच्चे को मौका मिल सके. लेकिन इकबाल (श्रेयस तलपड़े) हार नहीं मानता. वो एक पूर्व क्रिकेटर मोहित (नसीरुद्दीन शाह) को ट्रेनिंग देने के लिए राजी करता है. उसके कुशल मार्गदर्शन में पहले रणजी फिर इंटरनेशनल क्रिकेट खेलता है. इस फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष इसके नायक के हार ना मानने का जज्बा है. दूसरा एक सच्चे गुरु का मिलना भी है, जो निस्वार्थ शिष्य को ट्रेंनिंग देता है.
2. चक दे इंडिया
गुरु का किरदार- कबीर खान
कलाकार- शाहरुख खान
ज्ञान क्या मिलता है- कई बार शिक्षा देने के लिए गुरु को सख्त होना पड़ता है. उस वक्त तो बुरा लगता है, लेकिन परिणाम आने पर उसकी कीमत पता चलती है.
साल 2007 में रिलीज हुई स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म 'चक दे इंडिया' का निर्देशन शिमित अमीन ने किया है. यशराज फिल्म्स के बैनर तले बनी इस फिल्म में अभिनेता शाहरुख खान भारतीय महिला हॉकी टीम के कोच की भूमिका में हैं. फिल्म की कहानी हॉकी के पूर्व राष्ट्रीय कोच मीर रंजन नेगी के जीवन पर आधारित है. मीर रंजन नेगी की भूमिका कबीर खान के किरदार में शाहरुख खान ने निभाई है. मीर रंजन नेगी पर पाकिस्तान के साथ हुए एक मैच में जानबूझकर हराने का आरोप लगाते हुए गद्दार घोषित कर दिया गया था. अपने दामन पर लगे इस दाग को छुड़ाने के लिए उन्होंने महिला क्रिकेट टीम के कोच का काम संभाला. अपने अथक प्रयासों और लंबे संघर्ष के बाद टीम को इस काबिल बनाया कि वो इंटरनेशनल मैच जीत सके. उनकी मेहनत का नतीजा रहा कि महिला क्रिकेट टीम हॉकी का वर्ल्ड कप जीतने में कामयाब हो जाती है.
3. ब्लैक
गुरु का किरदार- देबराज साहनी
कलाकार- अमिताभ बच्चन
ज्ञान क्या मिलता है- गुरु हमें कठिन परिस्थितियों से भी बाहर निकालकर सफल बना सकता है.
साल 2005 में रिलीज ड्रामा फिल्म 'ब्लैक' का निर्देशन संजय लीला भंसाली ने किया है. इस फिल्म में रानी मुखर्जी और अमिताभ बच्चन मुख्य भूमिका में हैं. यह फिल्म एक अंधी लड़की और उसके टीचर के रिश्ते को दर्शाती है. रानी मुखर्जी ने एक अंधी लड़की मिशेल, जबकि अमिताभ बच्चन ने एक शराबी टीचर देबराज साहनी की भूमिका निभाई है. मिशेल अंधी होने के साथ ही मेंटली चैलेंज भी होती है. उसे सीखाने की हर संभव कोशिश की जाती है, लेकिन सफलता नहीं मिलती. इसी बीच उसकी जिंदगी में देबराज साहनी की एंट्री होती है. देबराज के लिए मिशेल को ट्रेंनिंग दे पाना कठिन होता है, लेकिन वो हार नहीं मानते. अंतत: मिशेल को वो सारी उपलब्धियां हासिल होती हैं, जो उसके माता-पिता, गुरु चाहते हैं.
4. तारे जमीन पर
गुरु का किरदार- राम शंकर निकुंभ
कलाकार- आमिर खान
ज्ञान क्या मिलता है- कई बार गुरु माता-पिता से आगे बढ़कर बच्चों के मन की बात समझ लेते हैं.
साल 2007 में रिलीज हुई 'तारे ज़मीन पर' एक ऐसी फिल्म है जो न केवल मनोरंजन करती है बल्कि जागरूक भी करती है. माता-पिता का अपने बच्चों के प्रति जो नजरिया है, जो उम्मीदें हैं और जो रवैय्या है उसमें होने वाली कमियों पर इस फिल्म के द्वारा प्रकाश डाला गया है. फिल्म में एक टीचर राम शंकर निकुंभ की भूमिका में आमिर खान हैं, जबकि दर्शील सफारी एक छात्र ईशान अवस्थी के रोल में हैं. ईशान स्पेशल चाइल्ड है. उसके माता-पिता जबरन उसे पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन निकुंभ सर समझ ताजे हैं कि ईशान आर्ट्स बनाना चाहता है. उसके अंदर ये कला कूट-कूट कर भरी है. उसके टैलेंट के हिसाब से वो उसे आर्ट्स में भी आगे ले जाते हैं. इस तरह ईशान कई प्रतियोगिता को भी जीतता है.
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