Hasmukh review : लॉकडाउन (lockdown) के इस दौर में मनोरंजन ही तनाव दूर करने का एक माध्यम है. अब जब थियेटर बंद हों तो इंटरनेट ही एक बड़ी राहत और उसपर नेटफ्लिक्स (Netflix) इन दिनों डूबते को तिनके का सहारा है. नेटफ्लिक्स की एक से एक अच्छी सीरीज के बीच हसमुख भी रिलीज हुई है. कॉमेडी के तड़के के कारण जैसा रिस्पॉन्स हसमुख (Hasmukh) को मिल रहा है उससे इतना तो साफ हो गया है कि दर्शकों को परिवार के साथ देखने वाली कॉमेडी चाहिए जिसे हासिल करने में वो लंबे वक्त से नाकाम थे. हसमुख के जरिये लंबे समय बाद पर्दे पर वापसी करने वाले वीर दास (Vir Das) इस सीरीज की रीढ़ हैं. तो वहीं रणवीर शौरी (Ranvir Shorey) ने भी अपनी एक्टिंग के जरिये बता दिया है कि जब बात कैरेक्टर से इंसाफ की आती है तो वो भी किसी से पीछे नहीं हैं. 10 एपिसोड वाली इस सीरीज का निर्देशन निखिल गोंसाल्विस ने किया है और हसमुख देखने के बाद इतना तो तय है कि बहुत दिन बाद ऐसा कुछ आया है जो हंसी के अलावा कुछ ज़रूरी सवालों के जवाब भी देगा.
सीरीज की प्रष्ठभूमि उत्तर प्रदेश का सहारनपुर है जहां रहने वाले हसमुख (वीर दास) का सपना ख़ुद को एक स्टैंड अप कॉमेडियन के रूप में खुद को स्टेज पर देखना है. हसमुख चाहता है कि लोग उसके काम को जानें उसकी सराहना करें. अब जैसा कि कहा गया है सफलता का कोई शार्ट कट नहीं होता वैसा ही कुछ इस मामले में भी है. हसमुख के सामने एक बड़ी चुनैती गुलाटी (मनोज पाहवा) है जो कि एक स्थापित कॉमेडियन है और जो बिना पकोड़े खाए कॉमेडी नहीं कर सकता.
हसमुख के बारे में दिलचस्प बात ये है कि हिट होने से पहले तक सब उसपर हंसते हैं और इस हंसने की वजह उसकी कॉमेडी बिल्कुल नहीं है. लोग मानते हैं कि हसमुख नकारा है और अपनी नाकामी छुपाने...
Hasmukh review : लॉकडाउन (lockdown) के इस दौर में मनोरंजन ही तनाव दूर करने का एक माध्यम है. अब जब थियेटर बंद हों तो इंटरनेट ही एक बड़ी राहत और उसपर नेटफ्लिक्स (Netflix) इन दिनों डूबते को तिनके का सहारा है. नेटफ्लिक्स की एक से एक अच्छी सीरीज के बीच हसमुख भी रिलीज हुई है. कॉमेडी के तड़के के कारण जैसा रिस्पॉन्स हसमुख (Hasmukh) को मिल रहा है उससे इतना तो साफ हो गया है कि दर्शकों को परिवार के साथ देखने वाली कॉमेडी चाहिए जिसे हासिल करने में वो लंबे वक्त से नाकाम थे. हसमुख के जरिये लंबे समय बाद पर्दे पर वापसी करने वाले वीर दास (Vir Das) इस सीरीज की रीढ़ हैं. तो वहीं रणवीर शौरी (Ranvir Shorey) ने भी अपनी एक्टिंग के जरिये बता दिया है कि जब बात कैरेक्टर से इंसाफ की आती है तो वो भी किसी से पीछे नहीं हैं. 10 एपिसोड वाली इस सीरीज का निर्देशन निखिल गोंसाल्विस ने किया है और हसमुख देखने के बाद इतना तो तय है कि बहुत दिन बाद ऐसा कुछ आया है जो हंसी के अलावा कुछ ज़रूरी सवालों के जवाब भी देगा.
सीरीज की प्रष्ठभूमि उत्तर प्रदेश का सहारनपुर है जहां रहने वाले हसमुख (वीर दास) का सपना ख़ुद को एक स्टैंड अप कॉमेडियन के रूप में खुद को स्टेज पर देखना है. हसमुख चाहता है कि लोग उसके काम को जानें उसकी सराहना करें. अब जैसा कि कहा गया है सफलता का कोई शार्ट कट नहीं होता वैसा ही कुछ इस मामले में भी है. हसमुख के सामने एक बड़ी चुनैती गुलाटी (मनोज पाहवा) है जो कि एक स्थापित कॉमेडियन है और जो बिना पकोड़े खाए कॉमेडी नहीं कर सकता.
हसमुख के बारे में दिलचस्प बात ये है कि हिट होने से पहले तक सब उसपर हंसते हैं और इस हंसने की वजह उसकी कॉमेडी बिल्कुल नहीं है. लोग मानते हैं कि हसमुख नकारा है और अपनी नाकामी छुपाने के लिए कॉमेडी का सहारा ले रहा है. हसमुख, गुलाटी को अपना गुरु मानता है और बिल्कुल उसके जैसा बनना चाहता है. एक दिन किसी बात को लेकर गुरु और चेले में बहस होती है. बहस लड़ाई का रूप लेती है और हसमुख (वीर दास) गुरु गुलाटी ( मनोज पाहवा) को चाकू मारकर उसकी हत्या कर देता है. इसके बाद वो पहली बार स्टेज पर आता है और लोगों को हंसाने वाला अपना काम शुरू कर देता है. यहीं उसकी मुलाकात जिम्मी से होती है जिसकी जिम्मेदारी हसमुख के लिए शो की व्यवस्था कराना है.
सीरीज में एक बिल्कुल नई चीज दिखाई गई है. हसमुख तब तक कॉमेडी नहीं कर सकता जब तक वो किसी की हत्या न कर ले इसकी भी जिम्मेदारी जिम्मी की है. जिम्मी उसे हत्या करने के लिए लोग देता है जिनको मारने के बाद ही हसमुख की कॉमेडी में निखार आता है. कॉमेडी करते करते हसमुख का एक वीडियो वायरल होता है जो उसे मुंबई पहुंचाता है और साथ ही पुलिस भी उसके पीछे पड़ जाती है.
हसमुख के सामने चुनौती दोहरी है एक तरफ उसके सामने लोगों को हंसाना है तो वहीं दूसरी तरफ़ उसे अपने को पुलिस से बचाना भी है. हसमुख बने वीर दास कैसे चीजें मैनेज करते हैं यही इस पूरी सीरीज की कहानी है. सीरीज का टेम्परामेंट बिल्कुल जुदा है. इसमें ड्रामा, थ्रिल और कॉमेडी को एक साथ मौका दिया गया है.
इस सीरीज की यूएसपी इसमें कलाकारों का चयन है. चाहे वो वीर दास रहे हों या फिर जिम्मी बने रणवीर शौरी और गुलाटी मनोज पाहवा सभी ने अपना बेस्ट दिया है. सीरीज में एक अच्छी बात ये है कि इसे इस ढंग से बनाया गया है कि दर्शक ये जानने के लिए कि आगे क्या हुआ अगला एपिसोड ज़रूर देखेगा.
जरूरी नहीं कि हर चीज में परफेक्शन हो इस सीरीज के साथ भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला है. अगर कुछ ज़रूरी बातों का ध्यान प्रोड्यूसर और डायरेक्टर रखते तो ये सीरीज जो शुरू में मनोरंजक लगी है और बाद में बोझिल हुई है और बेहतर होती. कह सकते हैं कि अच्छे एक्टर होने के बावजूद इस सीरीज में चूक इसलिए भी रह गयी क्योंकि इसकी कहानी कमज़ोर थी. चूंकि यहां ड्रामा और कॉमेडी एक साथ है इसलिए कुछ हद तक निर्देशक भी स्क्रिप्ट के साथ इंसाफ करने में नाकाम रहे.
बहरहाल बात अगर देखने या न देखने की हो तो हंसमुख इसलिए भी देखी जा सकती है कि भले ही कहानी अच्छी न हुई हो मगर जितने भी एक्टर थे उन्होंने अपना पक्ष मजबूती से रखा और रोल के साथ न्याय किया.
सीरीज को जनता पसंद करती है. उन्हें एंटरटेन करने में कामयाब होती है. इसका फैसला इसकी रेटिंग करेंगी मगर सीरीज देखकर इतना तो कहा जा सकता है कि इसमें म्हणत की गुंजाइश थी यदि प्रोडूसर डायरेक्टर थोड़ी म्हणत करते तो कुछ और अच्छा निकल कर हमारे सामने आता.
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