देश भावना को देशभक्ति गीतों में एक ज़ुबान मिल जाती है. कहना होगा कि हिन्दी फिल्म में इस जुनून के गीतों की कमी नहीं है. हालांकि इन गीतों के गीतकारों पर श्रोताओं का उतना ध्यान नहीं जाता. यदि आप तलाश करेंगे तो राष्ट्रीय भावनाओं के यह गीत आपको कई फनकारों तक ले जाएंगे. राजेंद्र कृष्ण जैसे समर्थवान गीतकार की तरफ़ जाएंगे. सितारों की भीड़ में वो एक ध्रुवतारा थे. फिल्मी दुनिया में रहकर धारा से अलग होकर चलने का फन उनमें था. एक अनबुझ पहेली की तरह सर झुका कर शानदार काम करते रहे.
आपके समय के बहुत से समकालीन राजेंद्र को जानते भी ना होंगे. आज उनको गुज़रे अरसा हुआ लेकिन फनकारी की विरासत कभी ना फना होगी शायद. ताज्जुब नहीं कि हिन्दी सिनेमा के पांच सर्वकालिक गीतकारों में आपका भी शुमार होता है. चालिस से साठ दशक के दरम्यान राजेंद्र कृष्ण को पूरा फिल्म जगत दीवानों की तरह तलाश करता था. बेहतरीन कलाकार को बार-बार पाना एक वाजिब चाहत थी.
दिल्ली है दिल हिन्दुस्तान का
यह तीरथ है जहान का
कहने को छोटा सा नाम है यह
सोचों तो इसके मतलब हज़ार
बिखरा है इतिहास गलियों में इसकी
सदियों के बाकी यहां पर निशान
फिल्म पतंग का यह गीत राजधानी दिल्ली पर सरसरी नज़र रखने में बेहद कामयाब मालूम पडता है. सदियों से यह शहर अपने में बेशुमार भूली बिसरी दास्तानों को समेट कर चल रहा है. यहां के हरेक पडाव पर एक इतिहास आपका इंतज़ार करता है. अतीत की कहानियों के साथ जीना यहां एक चलन है. फिर भी दिल्ली रह-रह कर खतरनाक क्यों हो जाती है? राजेन्द्र जी एक गाना 'इक तहज़ीबों का संगम है' भी याद आता है. देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब को समर्पित यह गीत एकता की मिसाल था. यह गीत गौरव गान की तरह लिखा गया था. हमें स्वयं के भीतर...
देश भावना को देशभक्ति गीतों में एक ज़ुबान मिल जाती है. कहना होगा कि हिन्दी फिल्म में इस जुनून के गीतों की कमी नहीं है. हालांकि इन गीतों के गीतकारों पर श्रोताओं का उतना ध्यान नहीं जाता. यदि आप तलाश करेंगे तो राष्ट्रीय भावनाओं के यह गीत आपको कई फनकारों तक ले जाएंगे. राजेंद्र कृष्ण जैसे समर्थवान गीतकार की तरफ़ जाएंगे. सितारों की भीड़ में वो एक ध्रुवतारा थे. फिल्मी दुनिया में रहकर धारा से अलग होकर चलने का फन उनमें था. एक अनबुझ पहेली की तरह सर झुका कर शानदार काम करते रहे.
आपके समय के बहुत से समकालीन राजेंद्र को जानते भी ना होंगे. आज उनको गुज़रे अरसा हुआ लेकिन फनकारी की विरासत कभी ना फना होगी शायद. ताज्जुब नहीं कि हिन्दी सिनेमा के पांच सर्वकालिक गीतकारों में आपका भी शुमार होता है. चालिस से साठ दशक के दरम्यान राजेंद्र कृष्ण को पूरा फिल्म जगत दीवानों की तरह तलाश करता था. बेहतरीन कलाकार को बार-बार पाना एक वाजिब चाहत थी.
दिल्ली है दिल हिन्दुस्तान का
यह तीरथ है जहान का
कहने को छोटा सा नाम है यह
सोचों तो इसके मतलब हज़ार
बिखरा है इतिहास गलियों में इसकी
सदियों के बाकी यहां पर निशान
फिल्म पतंग का यह गीत राजधानी दिल्ली पर सरसरी नज़र रखने में बेहद कामयाब मालूम पडता है. सदियों से यह शहर अपने में बेशुमार भूली बिसरी दास्तानों को समेट कर चल रहा है. यहां के हरेक पडाव पर एक इतिहास आपका इंतज़ार करता है. अतीत की कहानियों के साथ जीना यहां एक चलन है. फिर भी दिल्ली रह-रह कर खतरनाक क्यों हो जाती है? राजेन्द्र जी एक गाना 'इक तहज़ीबों का संगम है' भी याद आता है. देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब को समर्पित यह गीत एकता की मिसाल था. यह गीत गौरव गान की तरह लिखा गया था. हमें स्वयं के भीतर भारतीय को तलाश करने की ज़रूरत है. तालाश उसकी जो हमारे भीतर है.
इक तहज़ीबों का संगम है
जिसे दुनिया भारत कहती है
तुलसी के दोहों के संग
गालिब की गज़ल भी रहती है
देशभक्ति गानों के लिए मशहूर कवि प्रदीप को देश का सिनेमा याद करता है. जिस किसी ने 'ऐ मेरे वतन के लोगों' को सुना वो प्रदीप को भी जानता होगा. चालीस के दशक में फिल्मों से हुआ रिश्ता लंबे समय तक कायम रहा. प्रदीप की शख्सियत को उनकी रचनाओं के बहाने याद करना मुल्क की इबादत से कम नहीं है. प्रदीप जी ने गीत व कविताएं गाकर सुनाने का रास्ता अपनाया, अपने बहुत से फिल्मी गीतों को आवाज़ देने का अवसर नसीब हुआ था.
आपको मालूम होगा कि पहली ही फिल्म में लेखन के साथ गायन का काम मिला था. गायक का फर्ज़ 'जागृति' से निखर कर आया. फिल्म का गीत 'साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल' याद आता है. हिन्दुस्तान की जानी मानी ऑडियो कंपनी एचएमवी ने प्रदीप के लिखे व गाए गानों का एल्बम जारी किया था. कवि प्रदीप भारत के मुस्तकबिल की बड़ी ज़िम्मेदारी लेकर चल रहे थे. उन्होंने इंसानियत को बचाने की फिक्र में गाना लिखा 'कितना बदल गया इंसान'.
दुनिया के दांव पेंच से रखना ना वास्ता
मंज़िल तुम्हारी दूर है रास्ता
भटका ना दे कोई तुम्हें धोखे में डाल के
इस देश को रखना संभाल के…
प्रेम धवन ने चालिस दशक में आज़ादी के आसपास फिल्मों में कदम रखा. फिल्म के लिए संगीत रचकर गीत लेखन का रास्ता भी अपनाया. देव आनंद की एक फिल्म में किशोर कुमार के साथ कामयाब गाने दिए. गर आप उनकी गीतों का जायज़ा लें तो महान गीतकारों का ख्याल होगा. कहा जा सकता है कि हिन्दी सिनेमा के दिग्गज गीतकारों में प्रेम धवन को जगह मिलनी चाहिए. सिनेमा में उनका नज़रिया ज़िक्र का हकदार होकर भी उससे बाहर रहा. धवन ने देश भावना को गीतों के ज़रिए खास जुनून दिया. उनके लिखे गाने सुनने वालों में वतन का जज़्बा तराश कर लाते हैं. यह गीत इंसानी भलमनसाहत का एहसास कराते हैं. संपन्न लोगों को, हाशिए पर पड़े लोगों की इस भावना का ख्याल करके इनकी सहायता में वाजिब कदम उठाने चाहिए. जिन लोगों का इनसे मोहभंग हुआ, हक के लिए उठ खड़े हुए.
जलते भी गए कहते भी गए, आज़ादी के परवाने
जीना तो उसी का जीना है जो मरना वतन पे जाने
अए वतन अए वतन हमको तेरी कसम
तेरी राहों में जान तक लुटा जाएंगे
फिल्मी गीतों को सरल सुगम बनाने में दीनानाथ मढोक जैसे गीतकारों का सराहनीय योगदान था. चालीस दशक की बहुत सी हिट फिल्मों में दीनानाथ की लेखन काबलियत उभरकर आई . उस वक्त की फिल्मों में तानसेन,रतन एवं भक्त सूरदास के गीत काफी सराहे गए. कलकत्ता के न्यु थियेटर्स से फिल्मों में आने वाले दीनानाथ ने पहले पहल बतौर हीरो काम किया. लेकिन उन्हें बहुत जल्द ही समझ आया कि यह वो मंज़िल नहीं जिसकी उनको जुस्तजू थी. वो समझ गए कि लेखन को उनकी ज़्यादा ज़रूरत है. चालीस के दशक की बहुत सारी हिट फिल्मों का अहम हिस्सा रहे दीनानाथ के देशभक्ति स्वर के गाने का अंदाज़ काबिले तारीफ था. वतन से अलग हमारी पहचान नहीं हो सकती.
वतन की मिट्टी हाथ में लेकर माथे तिलक लगा लो
जिस माटी ने जन्म दिया उस माटी के गुन गा लो
अमृतसर के एक पंजाबी परिवार से ताल्लुक रखने वाले ओमप्रकाश उर्फ कमर जलालाबादी को बचपन से शायरी में दिलचस्पी थी. इस शौक की वजह जल्द ही शायरी लिखना-पढ़ना सीख लिया था. स्कूल की पढ़ाई पूरी होने तक अखबारों में लिखने का फन हासिल कर लिया था. चालिस के दशक में फिल्मों की कशिश कमर को बॉम्बे ले आई. ज़्यादातर कहानी व सीन की डिमांड पर लिखने वाले इस गीतकार की संजीदा शख्सियत गानों में बखूबी महसूस की जा सकती है. वतनपरस्ती के जुनून में डूबे गीत कमर जलालाबादी को एक और पहचान देते हैं. शहीदों तुमको मेरा सलाम,फांसी के तख्ते पर चढ़कर लिया वतन का नाम’ को सुने. आप उनका यह गीत देखें.
सिकंदर भी आए कलंदर भी आए
ना कोई रहा है न कोई रहेगा
मेरा देश आज़ाद होके रहेगा
गीतकारों में शौकत परदेसी का नाम एक बहुत जाना पहचाना नाम नहीं. हिन्दी संगीत की बड़ी विरासत में आज यह एक भूला-बिसरा नाम है. इस गीतकार ने वतन की इबादत में एक खूबसुरत फिल्मी गीत लिखा था. जिसके बोल सराहनीय कहे जा सकते हैं. परदेसी का यह बोल एकता का महत्त्व बता गए. शोषण की शक्तियों का खात्मा अब भी नहीं हुआ है, वो आज भी हमारे दुखों का कारण हैं.
आकाश के आंचल में सितारा ही रहेगा
यह देश हमारा, हमारा ही रहेगा
तूफान का अंजाम किनारा ही रहेगा
आपको सत्तर दशक के गीतकार वर्मा मलिक का नाम याद होगा. हिंदी सिनेमा में परिवर्तन का समय लेकर आया. इस युग में रूमानियत और प्रतिशोध की धाराएं हिन्दी सिनेमा को एक खास सांचे में ढाल रहा था. पचास व साठ दशक के बड़े नाम उभरते सितारों के कारवां से अलग होकर खुद में एक नयी शख्सियत देख रहे थे. रूमानियत से आगे के समय पर सोचकर सलीम-जावेद ने ‘प्रतिशोध’ थीम वाली कहानियों को लिखा. परदे की ‘एंग्री इमेज’ ने रूमानी कहानियों से हमारा ध्यान हटा दिया. वर्मा मलिक के गीतों ने इस समय को गीतों की ज़ुबान देने की अच्छी कोशिश की. उनकी देशभावना गीत हुकूमत को सड़क के आदमी की ताकत बताने में कामयाब रहे थे. इन पंक्तियों का तेवर महसूस करें…
मज़लूम किसी कौम के जब ख्वाब जागते हैं
तो देश में हज़ारों इंकलाब जागते हैं
यही हम यही इरादा, यही फैसला करना है
हमें देश की खातिर जीना और मरना है
वर्मा मलिक के समकालीन संतोष आनंद भी याद आते हैं. मनोज कुमार अपनी फिल्मों में संतोष आनंद एवं वर्मा मलिक जैसे गीतकारों को लेकर आए. संतोष जी के गीतों में देशभक्ति-रिश्तों की झनक-मानवीयता विषयों का दिलचस्प मेल देखने को मिलता है. मनोज कुमार एवं राजकपूर की फिल्मों के गीत लिखते हुए एहसास के ज्यादातर पहलुओं को देखा था आपने. मनोज कुमार सिनेमा में अगली पारी का तेवर लेकर मुल्क से ताल्लुक रखने वाले विषयों पर फिल्म बना रहे थे. संतोष आनंद का लिखा यह गीत यह कह गया कि राष्ट्रहित में मेहनतकश हमेशा सजग रहते हैं.
दुनिया की सारी दौलत से इज्ज़त हमको प्यारी
मुट्ठी में किस्मत अपनी, हमको मेहनत प्यारी
देश का हर दीवाना बोला, मेरा रंग दे बसंती चोला
इंदीवर को भी इस पावन बेला पर याद किया जा सकता है. हिन्दी फिल्मों के लिए एक से एक सुंदर गीत लिखने वाले इंदीवर रूमानियत से रूबरू होकर जीवन के सत्य से अलग नहीं थे. उनकी यह सोंच 'जिंदगी का सफर, यह कैसा सफर' फिर 'नदिया चले रे धारा तुझको चलना होगा' में देखी जा सकती है. मौत से मुहब्बत निभाने का वादा सिखाने वाले इंदीवर का यह गीत याद आता है.
दुनिया में कितने वतन
दुनिया में कितने वतन कितनी जुबानें
प्यार का बस एक वतन दिल
एक जुबान सब जानें
नब्बे दशक ने भी हिन्दी सिनेमा को उम्दा गीतकार दिए. पी के मिश्रा महबूब सरीखे लोग आज भी याद आते हैं. मणि रत्नम की फिल्मों से लेखन की शुरुआत करने वाले महबूब का यह गीत हर भारतीय के दिल में बसा होगा. इस गाने पर भारतबला ने ए आर रहमान को लेकर काफी उम्दा विडियो भी बनाया था. रहमान का 'मां तुझे सलाम' आप ने पिछली बार कब सुना. महबूब को एक मायने में बहुत ज़्यादा मिस करता हूं.
महबूब के समकालीन पी के मिश्रा का लिखा 'भारत हमको जान से प्यारा' मणि रत्नम की फिल्म को पूरा करता है. नब्बे के दशक में तमिल व हिन्दी फिल्मों का एक दिलचस्प रिश्ता बना. इस वक्त में बहुत सी तमिल फिल्मों का या तो रिमेक हुआ या फिर डबिंग करके रिली़ज हुई. इस सिलसिले मे रोज़ा याद आती है. इस समय में राजस्थान से ताल्लुक रखने वाले पीके मिश्रा ने भी फिल्मों के लिए गीत लिखने शुरू किए संगीतकार रहमान के साथ महबूब व पीके मिश्रा का तालमेल सिनेमा को बेहतरीन उपहार दे गया. सांप्रदायिक हवाओं के खिलाफ लिखा यह गीत इंसानियत के नज़रिए से सोचने को कहता है. पीडित की मदद करते वक्त उसकी जाति का पता कभी नहीं करना चाहिए.
भारत हमको जान से प्यारा है
सबसे न्यारा गुलिस्तां हमारा है
मंदिर यहां, मस्जिद वहां, हिन्दू यहां, मुस्लिम यहां
मिलते रहें हम प्यार से,
हिन्दुस्तान नाम हमारा है, सबसे प्यारा देश हमारा है
एड गुरु पीयूष पांडे की रचनात्मक दुनिया मनोरंजक विज्ञापनों के दायरे बाहर भी सांस लेती है. आप ने कभी सोचा कि ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ पीयूष पांडे ने लिखा है! लोक सेवा संचार परिषद ने पीयूष के लिखे गीत का वीडियो बनाकर पहली बार राष्ट्रीय नेटवर्क पर प्रसारित किया था. नए युग के देशभावना गीतों में यह बेहद मकबूल हुआ. इसे सुनकर बार-बार सुनने से खुद को रोक पाना मुश्किल है.
मिले सुर मेरा तुम्हारा
तो सुर बने हमारा
सुर की नदिया हर दिशा से
बहके सागर में मिले
बादलों का रुप लेकर
बरसे हलके हलके
मिले सुर मेरा तुम्हारा…
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.