26/11 को गए अभी 3 दिन ही गुजरे हैं. और ये दिन जब भी आता है अपने साथ बीते अतीत की वो यादें लेकर आता है जो सिर्फ आंसू देती हैं. लेकिन इस साल इस तारीख से जुड़े गम और हरे हो गए. क्योंकि नवंबर 2008 में मुंबई के ताज होटल में हुए आतंकी हमले (Mumbai Terror Attack) को एक बार फिर एक फिल्म 'होटल मुंबई' (Hotel Mumbai) के जरिए पर्दे पर लाया गया है.
इस हमले में होटल के मेहमान, स्टाफ और मुंबई पुलिस ने अपनी जाने गंवाई थीं. इस हादसे से जुड़ी पल-पलकी जानकारी हम टीवी पर देख रहे थे. किस किस तरह हमला हुआ, कैसे पुलिस ने लोगों को होटल से बाहर निकाला. लेकिन इस हमले का एक पक्ष किसी ने नहीं दिखाया, और वो था उन लोगों का पक्ष जो उस वक्त होटल में फंसे थे. होटल मुंबई खासकर इन्हीं लोगों पर आधारित है जो तब होटल में थे. ये फिल्म दिखाती है कि किस तरह उन्होंने एक दूसरे की मदद की और साहसका परिचय देते हुए लोगों की बचाया.
इसके साथ ही इस फिल्म में 26 नवंबर के ही दिन हुई छत्रपति शिवाजी स्टेशन और लियोपोल्ड कैफे में हुए आतंकी हमले को भी कुछ हद तक दिखाया गया है.
हकीकत के काफी करीब है ये फिल्म
एक ऐसी फिल्म जिसके हर सीन पर आप कुछ गलत होने की आशंका करते हैं, जिसमें दहशत भी है और घबराहट भी, ऐसी फिल्म को डायरेक्ट करना भी एक बड़ी बात थी. इसके डायरेक्टर भारतीय नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलियन हैं. नाम है एंथनी मरास, जिनकी बतौर डायरेक्टर ये पहली फिल्म है. फिल्में में निर्देशन, एडिटिंग, सिनेमैटोग्राफी बेजोड़ है और साउंड डिजाइन और बैकग्राउंड स्कोर ने कुछ ऐसा समां बांधा कि यूं लगा जैसे सबकुछ आंखों के सामने असल में चल रहा हो. इसे और भी वास्तविक बनाने के लिए...
26/11 को गए अभी 3 दिन ही गुजरे हैं. और ये दिन जब भी आता है अपने साथ बीते अतीत की वो यादें लेकर आता है जो सिर्फ आंसू देती हैं. लेकिन इस साल इस तारीख से जुड़े गम और हरे हो गए. क्योंकि नवंबर 2008 में मुंबई के ताज होटल में हुए आतंकी हमले (Mumbai Terror Attack) को एक बार फिर एक फिल्म 'होटल मुंबई' (Hotel Mumbai) के जरिए पर्दे पर लाया गया है.
इस हमले में होटल के मेहमान, स्टाफ और मुंबई पुलिस ने अपनी जाने गंवाई थीं. इस हादसे से जुड़ी पल-पलकी जानकारी हम टीवी पर देख रहे थे. किस किस तरह हमला हुआ, कैसे पुलिस ने लोगों को होटल से बाहर निकाला. लेकिन इस हमले का एक पक्ष किसी ने नहीं दिखाया, और वो था उन लोगों का पक्ष जो उस वक्त होटल में फंसे थे. होटल मुंबई खासकर इन्हीं लोगों पर आधारित है जो तब होटल में थे. ये फिल्म दिखाती है कि किस तरह उन्होंने एक दूसरे की मदद की और साहसका परिचय देते हुए लोगों की बचाया.
इसके साथ ही इस फिल्म में 26 नवंबर के ही दिन हुई छत्रपति शिवाजी स्टेशन और लियोपोल्ड कैफे में हुए आतंकी हमले को भी कुछ हद तक दिखाया गया है.
हकीकत के काफी करीब है ये फिल्म
एक ऐसी फिल्म जिसके हर सीन पर आप कुछ गलत होने की आशंका करते हैं, जिसमें दहशत भी है और घबराहट भी, ऐसी फिल्म को डायरेक्ट करना भी एक बड़ी बात थी. इसके डायरेक्टर भारतीय नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलियन हैं. नाम है एंथनी मरास, जिनकी बतौर डायरेक्टर ये पहली फिल्म है. फिल्में में निर्देशन, एडिटिंग, सिनेमैटोग्राफी बेजोड़ है और साउंड डिजाइन और बैकग्राउंड स्कोर ने कुछ ऐसा समां बांधा कि यूं लगा जैसे सबकुछ आंखों के सामने असल में चल रहा हो. इसे और भी वास्तविक बनाने के लिए डायरेक्टर एंथनी मारस ने पाकिस्तानी आतकंवादी आमिर अजमल कसाब के कबूलनामे का वास्तविक फुटेज इस्तेमाल किया है. पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने इस फिल्म के लिए घटना की जानकारी, इंटरव्यू और कसाब के कबूलनामे के वास्तविक फुटेज उपलब्ध करवाया था. कोर्ट में पेश किए गए टेप भी मारस और उनके सह-लेखक जॉन कोली को उपलब्ध कराए गए थे. यानी कल्पना और हकीकत को इस तरह जोड़ा गया कि सबकुछ हकीकत लगने लगा.
फिल्म देखना जरूरी है
ऐसी फिल्म दिल दहला देती हैं. हम ये नहीं कहते कि ये फिल्म इंटरटेनिंग है, क्योंकि ये सब देखते हुए दुख होता है. लेकिन इसे देखना जरूरी है क्योंकि ये दर्दनाक घटना अगर भुलाए जाने लायक नहीं है तो आखिर क्यों? और जवाब ये फिल्म देती है.
फिल्म के किरदार काल्पनिक हैं, उन्हें असल जीवन से प्रेरित होकर गढ़ा गया है. लेकिन होटल के हेड शेफ हंमंत ओबराय का किरदगार असली है जिसे अनुपम खेर ने निभाया है. फिल्म के सभी एक्टर्स देव पटेल, अनुपम खेर, आर्मी हैमर, नाजनीन बोनैदी, टिल्डा कोहम-हार्वी और जेकब आईजैक ने शानदार परफॉर्मेंस दी है.
इस फिल्म को पहले ही दुनिया भर से तारीफें मिल चुकी हैं, अवार्ड्स भी मिल चुके हैं. लेकिन जब इसे मुंबई के लोगों ने देखा तो वो कड़वी यादें उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर कीं. और अगर कोई फिल्म ऐसा करने के लिए मजबूर कर दे तो वो फिल्म दिल को छुई जरूर होगी.
फिल्म देखकर ही ये पता चला कि होटल में काम करने वालों ने कितने साहस के साथ इस हमले का सामना किया था.
फिल्म को अब तक जिसने भी देखा वो इसे एक बार जरूर देखने की अपील कर रहा है.
जाहिर है कि ये फिल्म देखना इतना आसान नहीं रहा होगा. यूंतो 26/11 हमले पर पहले भी फिल्म बनी, डॉक्यूमेंट्री बनीं, लेकिन इस फिल्म के लिए इतना ही कहा जा सकता है कि कुछ फिल्में कभी-कभी ही बनती हैं. देशभक्ति की तमाम फिल्में देखकर आप देश पर फख्र कर सकते हैं, भारतीय होने के लिए 'भारत माता की जय' के नारे लगा सकते हैं, लेकिन इस फिल्म को देखकर आपको देशभक्ति के सही मायने पता चलेंगे. आप ये जानेंगे कि जो लोग देशभक्ति जाहिर नहीं करते वो भी देश के लिए मिटते हैं.
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