ईराक के पूर्व राष्ट्रपति और क्रूर तानाशाह के रूप में बदनाम सद्दाम हुसैन, जीवन में जितने उतार-चढ़ाव से गुजरे होंगे शायद ही कोई तानाशाह, शासक या नेता गुजरा होगा. सद्दाम के जीवन को देखकर कई बार लगता है कि भला कोई व्यक्ति लगबग गर्त में पहुंचकर वापस शीर्ष तक कैसे आ सकता है? युवा सद्दाम को तो देश तक छोड़कर भागना पड़ा था. जेल गए. लेकिन आगे चलकर वही सद्दाम पहले अपने रिश्तेदार जनरल अहमद हसन अल बक्र के साथ मिलकर ईराकी सत्ता पर काबिज होकर उप राष्ट्रपति बनते हैं और बाद में बक्र को अपदस्थ कर समूचे ईराक को मुट्ठी में जकड़ लेते हैं.
शायद यही वजह है कि 2003 में जब बग़दाद में अमेरिकी सेना का नियंत्रण हो गया, तिरकित के मामूली फ़ार्म हाउस में शरण लेने वाले सद्दाम को पूरा भरोसा था कि वह एक बार फिर लोगों को एकजुट कर सत्ता पर नियंत्रण पा लेंगे. जवानी के दिनों में उन्होंने जनरल बक्र के साथ लगभग ऐसे ही हालात से गुजर कर सत्ता हासिल की थी. सद्दाम के दुर्भाग्य से मौका ही नहीं आया. इस दुर्भाग्य में सद्दाम को अपने दोनों बेटों, और नाबालिग पोते को भी गंवाना पड़ा.
ईराक के मानवीय इतिहास में सबसे क्रूरतम अपराधों के लिए 5 नवंबर के ही दिन सद्दाम को दोषी ठहराया गया था और 30 दिसंबर 2006 को उन्हें फांसी दी गई थी. सद्दाम की मौत के कुछ साल बाद यानी 2008 में बीबीसी और HBO ने मिलकर हाउस ऑफ़ सद्दाम के रूप में चार एपिसोड की एक मिनी सीरिज बनाई. सीरीज में पर्याप्त नाटकीय घटनाओं के साथ सद्दाम के पारिवारिक जीवन और राजनीतिक उतार चढ़ाव को दिखाया गया है. राष्ट्रपति के रूप में सद्दाम की ताजपोशी से लेकर सुरंग में उसके पकड़े जाने तक की घटनाएं सिलसिलेवार हैं. सद्दाम और उसके बेटे उदय की क्रूरताओं का पूरा लेखा-जोखा है. खाड़ी युद्ध, अरब देशों में अंतरराष्ट्रीय राजनीति, उनकी गुत्थी और सद्दाम से जुड़े तमाम पहलुओं को समझने के लिए यह सीरीज कई मायनों में ख़ास बन जाती है. इस लिहाज से भी यह विशेष है कि एक कहानी और उसका अंजाम जिसे आप सालों से जानते हैं, बावजूद चिपककर अंत तक देखते रहते हैं.
ईराक के पूर्व राष्ट्रपति और क्रूर तानाशाह के रूप में बदनाम सद्दाम हुसैन, जीवन में जितने उतार-चढ़ाव से गुजरे होंगे शायद ही कोई तानाशाह, शासक या नेता गुजरा होगा. सद्दाम के जीवन को देखकर कई बार लगता है कि भला कोई व्यक्ति लगबग गर्त में पहुंचकर वापस शीर्ष तक कैसे आ सकता है? युवा सद्दाम को तो देश तक छोड़कर भागना पड़ा था. जेल गए. लेकिन आगे चलकर वही सद्दाम पहले अपने रिश्तेदार जनरल अहमद हसन अल बक्र के साथ मिलकर ईराकी सत्ता पर काबिज होकर उप राष्ट्रपति बनते हैं और बाद में बक्र को अपदस्थ कर समूचे ईराक को मुट्ठी में जकड़ लेते हैं.
शायद यही वजह है कि 2003 में जब बग़दाद में अमेरिकी सेना का नियंत्रण हो गया, तिरकित के मामूली फ़ार्म हाउस में शरण लेने वाले सद्दाम को पूरा भरोसा था कि वह एक बार फिर लोगों को एकजुट कर सत्ता पर नियंत्रण पा लेंगे. जवानी के दिनों में उन्होंने जनरल बक्र के साथ लगभग ऐसे ही हालात से गुजर कर सत्ता हासिल की थी. सद्दाम के दुर्भाग्य से मौका ही नहीं आया. इस दुर्भाग्य में सद्दाम को अपने दोनों बेटों, और नाबालिग पोते को भी गंवाना पड़ा.
ईराक के मानवीय इतिहास में सबसे क्रूरतम अपराधों के लिए 5 नवंबर के ही दिन सद्दाम को दोषी ठहराया गया था और 30 दिसंबर 2006 को उन्हें फांसी दी गई थी. सद्दाम की मौत के कुछ साल बाद यानी 2008 में बीबीसी और HBO ने मिलकर हाउस ऑफ़ सद्दाम के रूप में चार एपिसोड की एक मिनी सीरिज बनाई. सीरीज में पर्याप्त नाटकीय घटनाओं के साथ सद्दाम के पारिवारिक जीवन और राजनीतिक उतार चढ़ाव को दिखाया गया है. राष्ट्रपति के रूप में सद्दाम की ताजपोशी से लेकर सुरंग में उसके पकड़े जाने तक की घटनाएं सिलसिलेवार हैं. सद्दाम और उसके बेटे उदय की क्रूरताओं का पूरा लेखा-जोखा है. खाड़ी युद्ध, अरब देशों में अंतरराष्ट्रीय राजनीति, उनकी गुत्थी और सद्दाम से जुड़े तमाम पहलुओं को समझने के लिए यह सीरीज कई मायनों में ख़ास बन जाती है. इस लिहाज से भी यह विशेष है कि एक कहानी और उसका अंजाम जिसे आप सालों से जानते हैं, बावजूद चिपककर अंत तक देखते रहते हैं.
सद्दाम अपने लोगों के लिए हीरो थे. मानवीय भी रहे होंगे. मगर शियाओं के लिए नफ़रत की कोई इंतेहा नहीं थी. गद्दारों के लिए उनके दिल में कोई रहम नहीं था. भले ही वो उसके कितने ही वफादार और सगे संबंधी रहे हों. उन्होंने विरोधियों को क्रूरता की हद तक जाकर कुचला. वह लाशों के ढेर से गुजरकर ही राष्ट्रपति बने थे भला यह तथ्य कैसे बदला जा सकता है. मगर राजनीति को लेकर इतिहास लाशों से गुजरकर सत्ता हासिल करने को भी जायज औ नाजायज मानने की पर्याप्त छूट दे देता है. सद्दाम किसी दूसरे की पत्नी पर बलात नियंत्रण कर शादी करते हैं. अपने रिश्तेदारों तक को नहीं छोड़ा.
अपने सबसे अहम सहयोगी साले की हत्या करवा दी. ईराक छोड़कर भाग चुके दामाद को भी धोखे से वापस लौटने पर मजबूर किया और अंत में उसे भी बुरी मौत दी. उन्होंने बड़े पैमाने पर शिया मुसलमानों की सामूहिक हत्याएं तो करवाई ही थीं. उस पर नाजियों की तरह जैविक हथियारों तक के इस्तेमाल के आरोप लगाए गए. हालांकि ऐसे लोगों की कमी नहीं जो इसे सद्दाम के खिलाफ अमेरिकी प्रोपगेंडा का हिस्सा मानते हैं.
हाउस ऑफ़ सद्दाम में तानाशाह के विरोधी और समर्थक- दोनों के नजरिए को ऐतिहासिक तथ्यों में करेक्ट करने की कोशिश नजर आती है. मसलन अरबी समाजवाद के नारे पर राजनीति शुरू करने वाला चौतरफा घिरने के बाद जिहाद का राग अलापते दिखता है. हाउस ऑफ़ सद्दाम में पूर्व ईराकी तानाशाह के कई रूप दिखते हैं. बहादुर, बुद्धिमान, रणनीतिकार, अच्छा पिता, बेटा, पति, दिलफेंक आशिक. लेकिन सद्दाम कहीं अच्छा दोस्त नजर नहीं आता.
सद्दाम अपनी तमाम कमियों के बावजूद ईराक के एक व्यापक समूह के लिए हीरो और बहुत बड़ा राष्ट्रवादी था. हालांकि सद्दाम के ईराकी राष्ट्रवाद की परिभाषा निजी नजर आती है जिसमें शियाओं या दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों के लिए जगह ही नहीं है. लेकिन जिनके लिए जगह है, वह उनपर भरोसा करता है.
मिनी सीरीज के आख़िरी कुछ एपिसोड्स में ऐसे दिलचस्प पहलुओं को दिखाया गया है. बगदाद छोड़ने के बाद सद्दाम ने तिकरित के बाहरी इलाके में टिगरिस नदी के किनारे बने साधारण फ़ार्म हाउस की झोपड़ी में शरण ली थी. यहां उसने आपातकालीन स्थिति में छिपने के लिए एक छोटी भूमिगत सुरंग बनवाई थी. उसके साथ तीन वफादार भी थे. जिसमें एक सेवादार, एक अंगरक्षक और एक सूचनाओं, खाने-पीने की रसद लाने ले जाने वाला सेवादार शामिल था.
टिगरिस के फ़ार्म हाउस में सद्दाम, रोजाना मछलियां मारकर और खाना पकाकर बहुत साधारण तरीके से दिन बिता रहा था. 'अमेरिकी कब्जे' के बाद यहीं से वो ईराकी राष्ट्रवाद को फिर से उफान पर लाने के लिए टेप्स बनाकर जारी करता था. उसके ऊपर अमेरिका ने लाखों डॉलर का ईनाम रखा था. लेकिन सद्दाम को भरोसा था कि लोग उसे इतना प्यार करते हैं कि मोटी रकम के लिए कोई मुखबिरी नहीं करेगा.
टिगरिस नदी के किनारे अपने ही समुदाय के एक लड़के से बातचीत में सद्दाम के प्रति उसके अपने लोगों का बेशुमार प्यार देखने को मिलता है. हालांकि बहुत दिनों तक सद्दाम बचा नहीं रह पाता और अमेरिकी सेनाएं उस तक पहुंच जाती है. हाउस ऑफ़ सद्दाम की इस बात के लिए खूब आलोचना हो चुकी है कि इसमें तानाशाह के मानवीय पक्षों को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है. लेकिन इस बात को इनकार नहीं किया जा सकता कि दुनिया के एक बड़े समूह के लिए वह भले क्रूर तानाशाह रहे हो, मगर हीरो मानने वालों की भी कमी नहीं है. ऐसे लोग भी हैं जो ईराकी तानाशाह को जज तो नहीं करना चाहते, पर उन्हें लगता है कि गिरफ्तारी और एग्जीक्यूशन की प्रक्रिया में सद्दाम की गरिमा को ठेस पहुंचाई गई और जिसके ईराकी तानाशाह हकदार नहीं थे.
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