IBM और नई दिल्ली स्थित एक इंस्टिट्यूट ने बॉलीवुड को लेकर एक दिलचस्प स्टडी की है. इस स्टडी का नाम है एनालाइजिंग जेंडर स्टीरियोटाइपिंग इन बॉलीवुड मूवीज. खास बात ये है कि इस स्टडी में पूरी 4000 बॉलीवुड फिल्मों को देखा गया और उसपर बाकायदा चर्चा और शोध भी किया गया. इतना ही नहीं पूरा फ्लोचार्ट बनाकर दिखाया भी गया. ये स्टडी बताती है कि आखिर कैसे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के किरदार के साथ अन्याय किया जाता है.
1. एक एवरेज हिंदी फिल्म में मेल कैरेक्टर का प्लॉट फीमेल कैरेक्टर के मुकाबले दुगना होता है. ये निष्कर्श इस आधार पर निकाला गया है कि विकीपीडिया पर किसी मेल कैरेक्टर का विवरण अगर 30 बार दिया गया है तो फीमेल का 15 बार ही है. ये 1970 से चला आ रहा है.
2. हिंदी फिल्मों में कैरेक्टर हमेशा टाइपकास्ट (एक ही जैसे) होते हैं. जैसे पुरुष कैरेक्टर अधिकतर अमीर, ताकतवर और कामयाब दिखाए जाते हैं और यहीं फीमेल कैरेक्टर के लिए हमेशा आकर्षक और खूबसूरत होना जरूरी होता है. इसी को उसकी खूबी बताया जाता है.
3. हीरो और हीरोइन के काम भी बहुत अलग-अलग होते हैं. अगर क्रिया की बात करें तो हमेशा फीमेल कैरेक्टर के पास, रोमांट, शादी, प्रपोज आदि काम होता है और मेल कैरेक्टर के पास मारना, पीटना, गोली चलाना, धमकी देना जैसे काम भी होते हैं.
4. इंट्रोडक्शन के दौरान भी हिंदी...
IBM और नई दिल्ली स्थित एक इंस्टिट्यूट ने बॉलीवुड को लेकर एक दिलचस्प स्टडी की है. इस स्टडी का नाम है एनालाइजिंग जेंडर स्टीरियोटाइपिंग इन बॉलीवुड मूवीज. खास बात ये है कि इस स्टडी में पूरी 4000 बॉलीवुड फिल्मों को देखा गया और उसपर बाकायदा चर्चा और शोध भी किया गया. इतना ही नहीं पूरा फ्लोचार्ट बनाकर दिखाया भी गया. ये स्टडी बताती है कि आखिर कैसे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के किरदार के साथ अन्याय किया जाता है.
1. एक एवरेज हिंदी फिल्म में मेल कैरेक्टर का प्लॉट फीमेल कैरेक्टर के मुकाबले दुगना होता है. ये निष्कर्श इस आधार पर निकाला गया है कि विकीपीडिया पर किसी मेल कैरेक्टर का विवरण अगर 30 बार दिया गया है तो फीमेल का 15 बार ही है. ये 1970 से चला आ रहा है.
2. हिंदी फिल्मों में कैरेक्टर हमेशा टाइपकास्ट (एक ही जैसे) होते हैं. जैसे पुरुष कैरेक्टर अधिकतर अमीर, ताकतवर और कामयाब दिखाए जाते हैं और यहीं फीमेल कैरेक्टर के लिए हमेशा आकर्षक और खूबसूरत होना जरूरी होता है. इसी को उसकी खूबी बताया जाता है.
3. हीरो और हीरोइन के काम भी बहुत अलग-अलग होते हैं. अगर क्रिया की बात करें तो हमेशा फीमेल कैरेक्टर के पास, रोमांट, शादी, प्रपोज आदि काम होता है और मेल कैरेक्टर के पास मारना, पीटना, गोली चलाना, धमकी देना जैसे काम भी होते हैं.
4. इंट्रोडक्शन के दौरान भी हिंदी फिल्मों में मेल कैरेक्टर को प्रोफेशन के हिसाब से डिस्क्राइब किया जाता है और फीमेल कैरेक्टर के साथ हमेशा सुंदरता और उनके शरीर को ही जोड़ा जाता है. जैसे अगर धूम में अभिषेक पुलिस हैं और जॉन अब्राहिम चोर तो दोनों को उसी हिसाब से दिखाया जाएगा, लेकिन रिमी सेन और ईशा देओल के लिए उनके कपड़े और सुंदरता को दिखाया जाएगा.
5. यही जेंडर रोल फिल्म में हीरो और हिरोइन के पेशे पर भी असर डालता है. एवरेज हिंदी फिल्म में फीमेल कैरेक्टर टीचर, सेक्रेटरी या स्टूडेंट के तौर पर दिखाई जाती है.
6. भले ही फिल्म में रोल कैसा भी हो, लेकिन एक्ट्रेस को प्रमोशन में बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. जैसे नीचे दिए दो पोस्टर दिख रहे हैं. रईस और गंगाजल में दोनों में ही हीरोइन को आधे पोस्टर में दिखाया गया है और फिल्म में 20% हिस्सा भी उनका नहीं है.
7. ट्रेलर के समय फिर वही बात आ जाती है. फिल्म ट्रेलर में अगर 1 मिनट हीरो को दिए गए हैं तो 20 सेकंड ही हीरोइन के होते हैं.
8. डायलॉग की बात करें तो बेहद चर्चित फिल्मों में भी हीरोइन के डायलॉग काफी कम होते हैं. इसमें पिंक और मकबूल जैसी फिल्में भी शामिल हैं जहां महिलाओं का रोल बहुत अहम है. नीचे दी गई फोटो में जो पिंक कलर दिखाई दे रहा है वो हीरोइनों के डायलॉग दर्शाता है और जो ब्लू रंग है वो पुरुषों के.
9. सिर्फ एक्टर्स ही नहीं ये सिंगर्स के साथ भी होता है. मेल हिट की तुलना में फीमेल हिट सॉन्ग काफी अलग होता है और इनकी संख्या भी कम होती है.
10. महिलाओं पर केंद्रित फिल्मों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती चली जा रही है, लेकिन ये हाल में ही होना शुरू हुआ है. आज भी इन फिल्मों की संख्या काफी कम है.
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