भारतीय टीवी की दुनिया भी अजीब है. नागिन, ब्रह्म राक्षस, मक्खी के बीच 9 साल के बच्चे की 19 साल की पत्नि जैसे कई किस्से, कैरेक्टर और प्लॉट लाइन इंडियन टीवी इंडस्ट्री में मिलती है कि यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि इस तरह के सीरियल भी कोई देख सकता है. मैं उन लोगों में से हूं जो ज्यादातर विदेशी सीरियल देखते हैं और गेम ऑफ थ्रोन्स और फ्रेंड्स को हमेशा नागिन और ससुराल सिमर का जैसे सीरियल से ऊपर रखते हैं. इसमें मुझे कोई बुराई नजर नहीं आती. और मन से चाहती हूं कि भारतीय टीवी में कई चीजें बदल जाएं जैसे...
1. मेकअप...
'कसौटी जिंदगी की' की कोमोलिका हो, 'कहीं किसी रोज' की रमोला सिकंद हो या फिर 'इस प्यार को क्या नाम दूं दोबारा' की चांदनी. इतना हैवी मेकअप लेकर आखिर ये लोग जी कैसे लेते हैं. मतलब कोई बिलकुल प्लास्टिक बनकर आइना कैसे देख सकता है? ढाई किलो मेकअप, 5 किलो के गहने और 30 किलो की साड़ी पहने आखिर वो नाजुक सी महिलाएं कैसे चल सकती हैं. इसपर उनके इमोशन उफ्फ... कोई तो रोक लो...
2. संस्कारी और बेचारी बनना...
फीमेल लीड को हमेशा इतना बेचारा दिखाया जाता है जैसे दुनिया भर का बोझ उनपर ही है और अगर उन्होंने रोना बंद कर दिया तो पाकिस्तान भारत पर हमला कर देगा और किम जोंग उन तीसरा विश्व युद्ध छेड़ देगा. कभी वो किडनैप हो जाती हैं, तो कभी उनका दूध का पतीला गिर जाता है. मेलोड्रामा दोनों ही बातों के लिए एक जैसा होता है.
3. जानवरों से प्यार...
देखिए बहुत से चमत्कारी शो विदेशों में बनते हैं. सुपरनैचुरल, वैम्पायर डायरीज, गेम ऑफ थ्रोन्स...
भारतीय टीवी की दुनिया भी अजीब है. नागिन, ब्रह्म राक्षस, मक्खी के बीच 9 साल के बच्चे की 19 साल की पत्नि जैसे कई किस्से, कैरेक्टर और प्लॉट लाइन इंडियन टीवी इंडस्ट्री में मिलती है कि यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि इस तरह के सीरियल भी कोई देख सकता है. मैं उन लोगों में से हूं जो ज्यादातर विदेशी सीरियल देखते हैं और गेम ऑफ थ्रोन्स और फ्रेंड्स को हमेशा नागिन और ससुराल सिमर का जैसे सीरियल से ऊपर रखते हैं. इसमें मुझे कोई बुराई नजर नहीं आती. और मन से चाहती हूं कि भारतीय टीवी में कई चीजें बदल जाएं जैसे...
1. मेकअप...
'कसौटी जिंदगी की' की कोमोलिका हो, 'कहीं किसी रोज' की रमोला सिकंद हो या फिर 'इस प्यार को क्या नाम दूं दोबारा' की चांदनी. इतना हैवी मेकअप लेकर आखिर ये लोग जी कैसे लेते हैं. मतलब कोई बिलकुल प्लास्टिक बनकर आइना कैसे देख सकता है? ढाई किलो मेकअप, 5 किलो के गहने और 30 किलो की साड़ी पहने आखिर वो नाजुक सी महिलाएं कैसे चल सकती हैं. इसपर उनके इमोशन उफ्फ... कोई तो रोक लो...
2. संस्कारी और बेचारी बनना...
फीमेल लीड को हमेशा इतना बेचारा दिखाया जाता है जैसे दुनिया भर का बोझ उनपर ही है और अगर उन्होंने रोना बंद कर दिया तो पाकिस्तान भारत पर हमला कर देगा और किम जोंग उन तीसरा विश्व युद्ध छेड़ देगा. कभी वो किडनैप हो जाती हैं, तो कभी उनका दूध का पतीला गिर जाता है. मेलोड्रामा दोनों ही बातों के लिए एक जैसा होता है.
3. जानवरों से प्यार...
देखिए बहुत से चमत्कारी शो विदेशों में बनते हैं. सुपरनैचुरल, वैम्पायर डायरीज, गेम ऑफ थ्रोन्स आदि लिस्ट काफी लंबी है. अगर टीवी वाले लोगों को ये लगता है कि नागिन, नागिन 2 जैसे सीरियल असली लगते हैं तो ये गलत है. प्लीज, नागिन, गोरिल्ला, मक्खी को इंसानों से प्यार नहीं होता. उन्हें थोड़ा तो रियल बनाएं.
4. कहानी बुआ की...
हिंदी टीवी सीरियल में हमेशा एक बुआ या बेटी ऐसी होती है जो या तो शादीशुदा नहीं होती, या फिर तलाकशुदा होती है या फिर किसी कारण से अपनी मां के घर रहती है और नई नवेली दुल्हन का जीना हराम करती है. उफ्फ.. कितना नया है ये.
5. त्योहार/पूजा...
किस घर में साल भर त्योहार मनाए जाते हैं? जिंदगी हर घड़ी एक नया त्योहार हो जाता है. इस प्यार को क्या नाम दूं (पहला वाला) जैसे टीवी सीरियल में दीदी अंजली की जिंदगी सिर्फ पूजा पाठ से ही जुड़ी हुई थी. अरे हर दिन घर में हवन और पूजन. कुछ तो वाजिब करो.
6. रिएलिटी शो...
ठीक है.. विदेशों में भी रिएलिटी शो होते हैं पर हर स्टोरी के साथ जज रोते नहीं हैं और न ही एक ही शो के जज किसी और शो में जाते हैं. सिंगिंग के लिए, डांसिंग के लिए, किसी और टैलेंट के लिए एक ही तरह का जज. वो तो फिर भी ठीक है, लेकिन एक ही शो में इतने इमोशन. आखिर कब तक इंडियन ऑडियंस के लिए इमोशन वाला कार्ड खेला जाएगा.
7. करियर का क्या?
इतनी जरूरी बात जो हमारे देश में टीवी सीरियल बनाने वाले भूल जाते हैं वो है करियर. एक ही जैसी प्लॉट लाइन होती है हमेशा. दिया और बाती जैसे करियर फोकस शो में भी पारिवारिक कलह के बीच फंसे रहते हैं. अरे असलियत इससे बहुत आगे बढ़ चुकी है. जब तक नए शो बनाए नहीं जाएंगे लोग कैसे नए शो और नई सोच की तरफ बढ़ेंगे.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.