सुरिया (सूर्या) ने जय भीम बनाई. अमेजन प्राइम वीडियो के जरिए दुनिया ने यह देखा कि कैसे सिर्फ एक निचली जाति में पैदा होने की वजह से राजकन्नू नर्क की यातनाओं से गुजरने के बावजूद जाति पर टिके तंत्र के हाथों मारा गया. उसकी पत्नी न्याय के लिए दर-दर ठोकरे खाती रही. लेकिन उसे चंद्रू के रूप में एक वकील मिला और आखिर में सच की जीत हुई. लेकिन 28 साल बाद की यह सच्ची कहानी कई अर्थों में आज भी वहीं खड़ी है, उसी बहस में जहां ऐसी कहानियों की शुरुआत होती है. सेंगनी की कहानी फिल्म के जरिए बिक तो गई. उसके लिए तमाम लोगों ने तब भी आंसू बहाए थे और आज भी बहा रहे हैं. इनमें कौन से आंसू सच्चे माने जाए या घड़ियाली- कुछ कहा नहीं जा सकता.
टीजे गणनवेल की जयभीम आने के बाद इरुलर समुदाय से आने वाले राजकन्नू की पत्नी सेंगनी यानी पार्वती अम्मा की दुर्भाग्यपूर्ण कहानी गलट्टा तमिल नाम के एक स्थानीय चैनल ने दिखाई है. और यह कहानी जयभीम के उस सीन पर करारा तमाचा है जिसमें सुरिया केस जीतने के बाद सेंगनी के नए घर पर फीता काटकर गृह प्रवेश कराते नजर आते हैं. गलट्टा के वीडियो में जो कुछ दिखा, वह उस बड़े से चेक पर भी तमाचा है जिसे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को सुरिया और उनकी पत्नी ज्योतिका सुरिया थमाते नजर आईं.
यह उन तमाम सोशल मीडिया इनफ़्लुएन्शर के दावों और जयभीम को लेकर लिखी उन टिप्पणियों पर भी तमाचा है जिसमें जातिवाद और सिस्टम के शोषण को लेकर सुविधाजनक "जातीय फायदे" वाले तर्क गढ़े गए. नहीं मालूम कि जयभीम में सेंगनी जो घर और जमीन पाते नजर आती हैं उसका क्या हुआ, वो मिला भी या नहीं और मिला तो आखिर सेंगनी यानी पार्वती अम्मा को उसे गंवाना क्यों पड़ा?
राजकन्नू की...
सुरिया (सूर्या) ने जय भीम बनाई. अमेजन प्राइम वीडियो के जरिए दुनिया ने यह देखा कि कैसे सिर्फ एक निचली जाति में पैदा होने की वजह से राजकन्नू नर्क की यातनाओं से गुजरने के बावजूद जाति पर टिके तंत्र के हाथों मारा गया. उसकी पत्नी न्याय के लिए दर-दर ठोकरे खाती रही. लेकिन उसे चंद्रू के रूप में एक वकील मिला और आखिर में सच की जीत हुई. लेकिन 28 साल बाद की यह सच्ची कहानी कई अर्थों में आज भी वहीं खड़ी है, उसी बहस में जहां ऐसी कहानियों की शुरुआत होती है. सेंगनी की कहानी फिल्म के जरिए बिक तो गई. उसके लिए तमाम लोगों ने तब भी आंसू बहाए थे और आज भी बहा रहे हैं. इनमें कौन से आंसू सच्चे माने जाए या घड़ियाली- कुछ कहा नहीं जा सकता.
टीजे गणनवेल की जयभीम आने के बाद इरुलर समुदाय से आने वाले राजकन्नू की पत्नी सेंगनी यानी पार्वती अम्मा की दुर्भाग्यपूर्ण कहानी गलट्टा तमिल नाम के एक स्थानीय चैनल ने दिखाई है. और यह कहानी जयभीम के उस सीन पर करारा तमाचा है जिसमें सुरिया केस जीतने के बाद सेंगनी के नए घर पर फीता काटकर गृह प्रवेश कराते नजर आते हैं. गलट्टा के वीडियो में जो कुछ दिखा, वह उस बड़े से चेक पर भी तमाचा है जिसे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को सुरिया और उनकी पत्नी ज्योतिका सुरिया थमाते नजर आईं.
यह उन तमाम सोशल मीडिया इनफ़्लुएन्शर के दावों और जयभीम को लेकर लिखी उन टिप्पणियों पर भी तमाचा है जिसमें जातिवाद और सिस्टम के शोषण को लेकर सुविधाजनक "जातीय फायदे" वाले तर्क गढ़े गए. नहीं मालूम कि जयभीम में सेंगनी जो घर और जमीन पाते नजर आती हैं उसका क्या हुआ, वो मिला भी या नहीं और मिला तो आखिर सेंगनी यानी पार्वती अम्मा को उसे गंवाना क्यों पड़ा?
राजकन्नू की पत्नी पार्वती अम्मा फिलहाल चेन्नई के एक रिमोट एरिया में किराए की झोपड़ी में रहती हैं. झोपडी में परिवार के सिर छिपानेभर की जगहें हैं. बारिश से बचने के लिए छत पर फैला प्लास्टिक देखा जा सकता है. रसोई है ही नहीं. उन्हें झोपड़ी से बाहर खाना पकाना पड़ता है. बारिश में उनकी रसोई किस तरह बनती होगी सिर्फ कल्पना कर सकते हैं. कल्पना में भी वह आ पाएगा या नहीं इस बारे में नहीं कहा जा सकता. मैं ये मानता हूं कि वह एक ऐसी कल्पना होगी जिसे भले हमने हूबहू देखा हो पर वास्तविक अनुभव शायद ही कर सकें. मानसून में उनकी रसोई बनेगी या नहीं यह निर्धारण मौसम करता है. वे बादलों की हलचल देखकर रसोई पकाती होंगी.
पार्वती अम्मा चेन्नई के जिस इलाके में रहती हैं वो साल के बारह महीनों में ज्यादातर पानी में डूबा रहता है. पार्वती अम्मा के जीवन से तमाम चीजें अब भी बहुत दूर हैं. इस इलाके में आमतौर पर हाशिए के समाज के लोग ही हैं. स्वच्छता मिशन के नारे यहां अर्थपूर्ण नहीं हैं. पार्वती अम्मा की झोपड़ी के आसपास टॉयलेट नहीं हैं. जो सरकारी टॉयलेट है वह भी उनके घर से करीब-करीब एक किलोमीटर दूर है.
पार्वती अम्मा की मौजूदा हालात नीचे वीडियो में देखे जा सकते हैं:-
रहने के लिहाज से कोई जगह जितनी खराब हो सकती है पार्वती अम्मा अपने परिवार के साथ आज की तारीख में बिल्कुल वैसी ही जगह पर रहती हैं. उनकी झोपड़ी तक जाने के लिए गलियां इतनी संकरी और पानी और कचरे से आती पड़ी हैं कि दो व्यक्ति शायद ही साथ चल पाएं. पार्वती और उनका परिवार, उन जैसे तमाम पड़ोसियों के परिवार भी सालों से इन्हीं रास्तों से रोज गुजर रहे हैं. उनकी झोपडी के आसपास गोबर डंप किया जाता है. उनकी सड़ांध बदबू खासकर मानसून के दिनों की कल्पना की जा सकती है.
पार्वती और उनका परिवार सरकार से कुछ और नहीं चाहता. उनकी चाहत है कि सरकार उन्हें सिर छिपाने के लिए एक अदद घर दे दे बस. वैसे फिल्म बनाने से पहले पार्वती की दुर्दशा देखकर निर्माताओं की ओर से उन्हें एक घर देने का वादा किया गया है. वैसे फिल्म के आते ही सुरिया ने एक करोड़ का चेक एमके स्टालिन को हाथोंहाथ दिया. यह खबर अखबारों में आ चुकी है. उन्होंने मुख्यमंत्री को यह चेक इरुलर समाज में शिक्षा पर खर्च करने के लिए दिया. सुरिया ही जयभीम के निर्माता हैं.
पार्वती अम्मा के लिए एडवोकेट के. चंद्रू ने मद्रास हाईकोर्ट में हैबियस कॉर्पस दाखिल किया था. हैबियास कॉर्पस का नंबर 711 है. हैबियास कॉर्पस राजकन्नू बनाम तमिलनाडु स्टेट और अन्य था. चेन्नई पत्रिका के मुताबिक़ हैबियस कॉर्पस एक्सेप्ट करने वाले जज पीएस मिश्रा और शिवराज वी पाटिल थे. तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल आर कृष्णमूर्ती ने कोर्ट में केस डिफेंड किया था. कम्मपुरम पुलिस स्टेशन के आरोपी पुलिसकर्मियों में सब इंस्पेक्टर एंथनी स्वामी था. हैबियास कॉर्पस और जज पीएस मिश्रा के बारे में चेन्नई पत्रिका की विस्तृत जानकारी अंग्रेजी में यहां क्लिक कर पढ़ सकते हैं.
जय भीम सिर्फ जातीय वजहों से हाशिए के एक समाज "इरुलर" द्वारा भोगे गए अनंत दुख की कहानी है. इसे जरूर देखना चाहिए. उसी अर्थ में जिस अर्थ में वह थी, जिस अर्थ में उसकी वजहें थीं. आखिर बात और. राजकन्नू का जब मामला आया उस वक्त दिवंगत जयललिता राज्य की मुख्यमंत्री थीं. और करूणानिधि की पार्टी डीएमके मुख्य विपक्ष था. जय भीम के रिलीज होने तक तमिलनाडु में यह राजनीतिक बदलाव हुआ है कि अब करूणानिधि के बेटे वहां मुख्यमंत्री हैं और जयललिता की पार्टी मुख्य विपक्षी दल.
द हिंदू के मुताबिक़ राजकन्नू की पत्नी के नाम जयभीम के मेकर्स ने 10 लाख रुपये जमा कर दिए है. जब यह खबर लिखी गई थी, तब तक हमारे पास अपडेट नहीं था.
बस इतना ही.
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