बॉलीवुड में ज्यादातर फिल्में फॉर्मूला बेस्ड बनाई जाती हैं. जो बॉक्स ऑफिस पर हिट होता है, उसे सिनेमा में फिट करने की कोशिश की जाती है. मसलन जो फिल्मी कलाकार चल जाए उसे ले लो, जो कहानी चलती है, उसके इर्दगिर्द पटकथा बन लो. थोड़ा सा ट्विस्ट एंड टर्न डालो और पंजाबी भांगड़ा गाने डाल दो, फिर खुश हो जाओ की फिल्म तो चल ही जाएगी. ऐसा थियेटर के जमाने में तो संभव था, लेकिन ओटीटी के समय में नहीं. यहां दर्शक प्योर कंटेंट देखता है, सो उसे ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए. कंटेंट के लिहाज से कुछ अलग हटकर सिनेमा बनाने के बारे में सोचना चाहिए. जैसे कि ओटीटी पर वेब सीरीज में ऐसा प्रयोग शुरू हो चुका है.
आपने राजकुमार राव और कृति सैनन की जोड़ी को फिल्म 'बरेली की बर्फी' में देखा होगा. राजकुमार राव ने फिल्म 'स्त्री' और कृति सैनन ने 'मिमी' में भी शानदार काम किया, जिसे दर्शकों ने भी खूब पसंद किया. अब आप ये सोच रहे होंगे कि उन सभी फिल्मों से अलग उनकी नई रिलीज फिल्म 'हम दो हमारे दो' में आपको कुछ नया देखने को मिलने वाला है, तो आप निराश होंगे. इसमें उन अभी फिल्मों के बेहतरीन हिस्सों को मिक्स करके एक नई फिल्म बनाने और दिखाने की कोशिश की गई है. यही वजह है कि सबकुछ तय सा लगता है. कुछ भी अनअपेक्षित नहीं लगता. अंत भी वैसा ही होता है, इसलिए फिल्म कौतूहल पैदा करने में असफल साबित होती है.
फिल्म 'हम दो हमारे दो' में कुछ सीन ऐसे हैं जो भावुक करते हैं, लेकिन तभी जब आप अपने परिवार से गहरे जुड़े हुए हैं. वरना सबकुछ सीधा सपाट सा लगता है. इसकी कहानी जो ट्रेलर देख कर समझ आ जाती है, लगभग वैसी ही है, इसलिए रोमांच नहीं बचता. हां, एक जानी-पहचानी कहानी को नए कलेवर में देखकर ये जरूर लगता है कि...
बॉलीवुड में ज्यादातर फिल्में फॉर्मूला बेस्ड बनाई जाती हैं. जो बॉक्स ऑफिस पर हिट होता है, उसे सिनेमा में फिट करने की कोशिश की जाती है. मसलन जो फिल्मी कलाकार चल जाए उसे ले लो, जो कहानी चलती है, उसके इर्दगिर्द पटकथा बन लो. थोड़ा सा ट्विस्ट एंड टर्न डालो और पंजाबी भांगड़ा गाने डाल दो, फिर खुश हो जाओ की फिल्म तो चल ही जाएगी. ऐसा थियेटर के जमाने में तो संभव था, लेकिन ओटीटी के समय में नहीं. यहां दर्शक प्योर कंटेंट देखता है, सो उसे ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए. कंटेंट के लिहाज से कुछ अलग हटकर सिनेमा बनाने के बारे में सोचना चाहिए. जैसे कि ओटीटी पर वेब सीरीज में ऐसा प्रयोग शुरू हो चुका है.
आपने राजकुमार राव और कृति सैनन की जोड़ी को फिल्म 'बरेली की बर्फी' में देखा होगा. राजकुमार राव ने फिल्म 'स्त्री' और कृति सैनन ने 'मिमी' में भी शानदार काम किया, जिसे दर्शकों ने भी खूब पसंद किया. अब आप ये सोच रहे होंगे कि उन सभी फिल्मों से अलग उनकी नई रिलीज फिल्म 'हम दो हमारे दो' में आपको कुछ नया देखने को मिलने वाला है, तो आप निराश होंगे. इसमें उन अभी फिल्मों के बेहतरीन हिस्सों को मिक्स करके एक नई फिल्म बनाने और दिखाने की कोशिश की गई है. यही वजह है कि सबकुछ तय सा लगता है. कुछ भी अनअपेक्षित नहीं लगता. अंत भी वैसा ही होता है, इसलिए फिल्म कौतूहल पैदा करने में असफल साबित होती है.
फिल्म 'हम दो हमारे दो' में कुछ सीन ऐसे हैं जो भावुक करते हैं, लेकिन तभी जब आप अपने परिवार से गहरे जुड़े हुए हैं. वरना सबकुछ सीधा सपाट सा लगता है. इसकी कहानी जो ट्रेलर देख कर समझ आ जाती है, लगभग वैसी ही है, इसलिए रोमांच नहीं बचता. हां, एक जानी-पहचानी कहानी को नए कलेवर में देखकर ये जरूर लगता है कि इसे एक बार देखा जा सकता है. वैसे भी राजकुमार राव, कृति सैनन के साथ परेश रावल, रत्ना पाठक शाह, अपारशक्ति खुराना, मनु ऋषि चड्ढा और सानंद वर्मा जैसे कलाकारों की किसी एक फिल्म में मौजूदगी कम से कम परफॉर्मेंस के स्तर पर मनोरंजन की गारंटी तो जरूर देती है. फिल्म के निर्देशक अभिषेक जैन हैं.
Hum Do Hamare Do Movie की कहानी
फिल्म की कहानी एक अनाथ बच्चे के इर्दगिर्द घूमती है. 6-7 साल का बच्चा बालप्रेमी एक ढाबे पर काम करता है. उसका मालिक पुरुषोत्तम मिश्रा (परेश रावल) उसे बहुत मानता है, जिसकी अपनी कोई फैमिली नहीं होती. एक दिन एक महिला दीप्ति कश्यप (रत्ना पाठक शाह) ढाबे पर आती है. बालप्रेमी से मिलकर उसकी मासूमियत को देखकर बहुत खुश होती है. उसे उसका नाम और काम बदलने की सलाह देखकर चली जाती है. ये वही महिला होती है, जिसे पुरुषोत्तम मिश्रा (परेश रावल) प्यार करता होता है. फिल्म में दो तरह के प्रेमी दिखाए गए हैं. एक जो प्रेम तो करता है, लेकिन उसके लिए जीवन में फैसला लेने से डरता है, जैसे कि पुरुषोत्तम मिश्रा.
दूसरा जो अपने प्रेम के लिए सबकुछ करता है, सबसे लड़ता है और अंत में उसे हासिल करता है, जैसे कि ध्रुव (राजकुमार राव). ध्रुव अपने प्यार के लिए सबकुछ करता है. ध्रुव और पुरुषोत्तम की प्रेम कहानी ही इस फिल्म का आधार है. दीप्ति कश्यप की सलाह मानकर बालप्रेमी अपना नाम ध्रुव रख लेता है और एक दिन रात को ढाबे से भाग जाता है. इसके बाद ध्रुव एक बहुत बड़ा बिजनेसमैन बन जाता है. एक दिन उसकी मुलाकात ब्लॉगर आन्या (कृति सैनन) से होती है. धीरे-धीरे वो उससे प्यार करने लगता है. शादी करना चाहता है. लेकिन आन्या की फैमिली ध्रुव के परिवार से मिलना चाहती है. अनाथ ध्रुव माता-पिता के लिए लोगों की तलाश करता है.
तभी उसको पुरुषोत्तम मिश्रा (परेश रावल) का ध्यान आता है. वो उसके पास जाकर अपने पिता बनने का नाटक करने के लिए कहता है. लेकिन वो नहीं मानता. इसके बाद ध्रुव दीप्ति के पास जाता है. वो भी शुरू में नहीं मानती, लेकिन कोशिश करने के बाद मां बनने के लिए तैयार हो जाती है. दीप्ति के आने के बाद पुरुषोत्तम भी मान जाता है. इस तरह दोनों माता-पिता बनकर आन्या के परिवार से मिलते हैं. शादी तय हो जाती है. लेकिन शादी के दिन उनका भांडा फूट जाता है. शादी टूट जाती है. लेकिन थोड़े से ट्विस्ट एंड टर्न के बाद आन्या और उसका परिवार शादी के लिए मान जाता है. इस तरह दोनों की शादी हो जाती है. पुरुषोत्तम और दीप्ति भी मिल जाते हैं.
Hum Do Hamare Do Movie की समीक्षा
'स्त्री', 'हिंदी मीडियम' और 'लुका छिपी' जैसी फिल्मों के निर्माण के लिए मशहूर निर्माता दिनेश विजान छोटे शहरों की पृष्ठभूमि पर आधारित कहानियां पेश करने में ज्यादा यकीन रखते हैं. फिल्म 'हम दो हमारे दो' में भी उन्होंने चंडीगढ़ के एक लड़के-लड़की की प्रेम कहानी पेश की है. लेकिन फिल्म औसत दर्जे की ही बन पाई है. इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार पटकथा लेखक दीपक वेंकटेशन और प्रशांत झा नजर आते हैं. यही वजह है कि बतौर निर्देशक अभिषेक जैन भी कुछ खास नहीं कर पाते. वरना उन्होंने गुजराती में तीन सफल फिल्में बनाने के बाद बॉलीवुड में एंट्री ली है. गुजराती में उनकी अब तक की तीनों फिल्में चर्चा में रहीं और उन्होंने पुरस्कार भी जीते हैं.
जहां तक कलाकारों की परफॉर्मेंस की बात है, तो राजकुमार राव और कृति सैनन ने शानदार अभिनय किया है. राजकुमार यह साबित करने में सफल होते हैं कि वह बॉक्स ऑफिस पर इतने लंबे समय से क्यों बने हुए हैं. आन्या के किरदार में कृति सैनन ने भी बेहतरीन काम किया है. परेश रावल और रत्ना पाठक शाह भी अपने शानदार फॉर्म में दिख रहे हैं. उनके किरदारों पुरुषोत्तम और दीप्ति की प्रेम कहानी रोमांच पैदा करती है. केमिस्ट्री भी गजब है. चाचा के किरदार में मनु ऋषि चड्ढा का रोल रोचक है और वह यहां दर्शक का ध्यान खींचने में सफल रहे हैं. शादीलाल की भूमिका में सानंद वर्मा शानदार हैं, लेकिन लेखक-निर्देशक उनके किरदार से न्याय नहीं कर पाए हैं.
राजकुमार के दोस्त शंटी के किरदार में अपारशक्ति खुराना ने अपना काम बखूबी किया है. सहायक कलाकारों ने फिल्म को गढ़ने में यहां अहम भूमिका निभाई है. जैसा कि अमूमन इस तरह की फिल्मों में देखने को मिलता है. फिल्म में कुछ बहुत अच्छे और मजेदार पल हैं. इसके साथ ही इस फिल्म के जरिए उन परिवारों पर भी प्रकाश डाला गया है, जो बाहर से एकदम खुश और एकजुट नजर आते हैं, लेकिन आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं. कुल मिलाकर, 'हम दो हमारे दो' एक बेहतरीन फिल्म हो सकती थी, यदि इसकी कहानी और पटकथा पर अच्छे से काम किया गया होता. वैसे इस फिल्म को कलाकारों के परफॉर्मेंस के लिहाज से एक बार जरूर देख सकते हैं.
iChowk.in रेटिंग: 5 में से 2.5 स्टार
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.