Illegal Review: किसी बड़े पेड़ के इर्द गिर्द गाना गाते प्रेमी जोड़े. मार पड़ने से पहले ढिशुम ढिशुम की आवाज निकालता विलेन. चाकू दिखाकर बड़ी से बड़ी वारदात को अंजाम देता गुंडा. कोर्ट में जज साहब के फैसला देने से पहले मुख्य गवाह को गोली से छलनी करके भागता शूटर... ये गुज़रे जमाने की वो बातें हैं जिनके लिए हमारी इंडस्ट्री जानी जाती थी. वक़्त बदला, दौर बदला अब रीयलिस्टिक सिनेमा का दौर है.चाहे बड़ा पर्दा हो या फिर टेलीविजन और इंटरनेट/ ओटीटी प्लेटफॉर्म वही दिखाया और परोसा जा रहा है जो वास्तविकता के नजदीक है. बात जब वास्तविकता के सांचे में हो तो अमूमन हर दूसरी फिल्म में एक कोर्टरूम सीन होता ही है. अब सवाल ये है कि क्या पर्दे पर दिखाया जा रहा कोर्टरूम वैसा ही होता है जैसे असली कोर्टरूम हैं? इस सवाल का जवाब निर्देशक साहिर रज़ा ने 'Voot' पर रिलीज हुई अपनी वेब सीरीज "Illegal' में देने की कोशिश तो की मगर क्यों कि स्क्रिप्ट कमज़ोर थी इसलिए चुनिंदा कलाकारों के चयन के बावजूद वो बात नहीं बनी जिसकी उम्मीद की जा रही थी. साफ है कि भारतीय कोर्टरूम की जो तस्वीर साहिर ने पेश की है उसमें तमाम खामियां हैं.
बतौर कलाकार इस सीरीज में पीयूष मिश्रा और नेहा शर्मा का चयन किया गया है मगर जब कहानी में लूप होल्स हों तब कलाकार भी प्लॉट के चक्रव्यूह में फंस जाता है और वो एक्टिंग नहीं हो पाती जिसकी उम्मीद जनता करती है.
चूंकि इस कहानी का प्लाट एक कोर्टरूम है और जब प्लॉट ऐसा हो तो दर्शकों को यही उम्मीद रहती है कि उन्हें कुछ ऐसा दिखेगा जिसे देखकर वो रोमांच का अनुभव करेंगे. मगर जब हम इललीगल पर गौर करते हैं तो ऐसा कुछ नहीं मिलता है. कहानी कुछ इस तरह लिखी गयी है कि कई चीजें उलझ कर...
Illegal Review: किसी बड़े पेड़ के इर्द गिर्द गाना गाते प्रेमी जोड़े. मार पड़ने से पहले ढिशुम ढिशुम की आवाज निकालता विलेन. चाकू दिखाकर बड़ी से बड़ी वारदात को अंजाम देता गुंडा. कोर्ट में जज साहब के फैसला देने से पहले मुख्य गवाह को गोली से छलनी करके भागता शूटर... ये गुज़रे जमाने की वो बातें हैं जिनके लिए हमारी इंडस्ट्री जानी जाती थी. वक़्त बदला, दौर बदला अब रीयलिस्टिक सिनेमा का दौर है.चाहे बड़ा पर्दा हो या फिर टेलीविजन और इंटरनेट/ ओटीटी प्लेटफॉर्म वही दिखाया और परोसा जा रहा है जो वास्तविकता के नजदीक है. बात जब वास्तविकता के सांचे में हो तो अमूमन हर दूसरी फिल्म में एक कोर्टरूम सीन होता ही है. अब सवाल ये है कि क्या पर्दे पर दिखाया जा रहा कोर्टरूम वैसा ही होता है जैसे असली कोर्टरूम हैं? इस सवाल का जवाब निर्देशक साहिर रज़ा ने 'Voot' पर रिलीज हुई अपनी वेब सीरीज "Illegal' में देने की कोशिश तो की मगर क्यों कि स्क्रिप्ट कमज़ोर थी इसलिए चुनिंदा कलाकारों के चयन के बावजूद वो बात नहीं बनी जिसकी उम्मीद की जा रही थी. साफ है कि भारतीय कोर्टरूम की जो तस्वीर साहिर ने पेश की है उसमें तमाम खामियां हैं.
बतौर कलाकार इस सीरीज में पीयूष मिश्रा और नेहा शर्मा का चयन किया गया है मगर जब कहानी में लूप होल्स हों तब कलाकार भी प्लॉट के चक्रव्यूह में फंस जाता है और वो एक्टिंग नहीं हो पाती जिसकी उम्मीद जनता करती है.
चूंकि इस कहानी का प्लाट एक कोर्टरूम है और जब प्लॉट ऐसा हो तो दर्शकों को यही उम्मीद रहती है कि उन्हें कुछ ऐसा दिखेगा जिसे देखकर वो रोमांच का अनुभव करेंगे. मगर जब हम इललीगल पर गौर करते हैं तो ऐसा कुछ नहीं मिलता है. कहानी कुछ इस तरह लिखी गयी है कि कई चीजें उलझ कर राह गई हैं जिससे वक तरह की खिचड़ी पक गई है.
क्या कहता है कलाकारों का अभिनय
Voot Select पर प्रसारित हो रही इस वेब सीरीज को वजनदार बनाने के लिए निर्देशक साहिर रज़ा ने बतौर कलाकार इस वेब सीरीज में पीयूष मिश्रा,नेहा शर्मा, अक्षय ओबेरॉय, कुबरा सैत, सत्यादीप मिश्रा है. बाकी कलाकारों को अगर एक तरफ कर दिया जाए तो इसमें पीयूष मिश्रा वो अकेले कलाकार थे जिनको लेकर एक दर्शक यही सोच रहा था कि ये कुछ तूफानी करेंगे और इनकी एक्टिंग ऐसी होगी कि दर्शक भी दांतों तले अंगुली दबा लेने को मजबूर हो जाएगा.
अब जबकि ये वेब सीरीज हमारे बीच आ चुकी है तो इसमें जैसी अदाकारी पीयूष ने की है ज्यादातर जगहों पर वो झल्लाए हुए नजर आ रहे हैं. एक वकील के रूप में उन्हें पर्दे पर बहस करते तो देखा जा सकता है मगर चूंकि कहानी दमदार नहीं है वो कमी हमें दिखाई देती है.
बात अगर नेहा शर्मा की हो तो सीरीज देखते हुए आपको भी यही महसूस होगा कि नेहा का कैरेक्टर पीयूष के आगे कमजोर है और शो में कई ऐसे सीन हैं जिनमें पीयूष नेहा को दबा ले गए हैं. इन दो के अलावा बात अगर इस सीरीज के अन्य कलाकारों की हो तो तमाम बातों का सार यही है कि जैसी स्क्रिप्ट थी ठीक वैसी ही एक्टिंग शो के बाकी लोगों ने की है.
क्या है 'Illegal' की कहानी
सीरीज में कुबरा सैत ने मेहर सलाम नाम की महिला की भूमिका निभाई है जिसपर आरोप है कि उसने अपने ही परिवार के 4 लोगों की हत्या की है. मेहर जेल में बंद है जिसका केस जनार्दन जेटली (पीयूष मिश्रा) और उनकी असिस्टेंट निहारिका (नेहा शर्मा) लड़ते हैं. जनार्दन यानी पीयूष को शहर के एक नामी वकील की भूमिका में दिखाया गया है जो इस बात को अच्छे से जनता है कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ कैसे करनी है और केस को अपने हक़ में कैसे लाना है.
वहीं नेहा एक युवा और आदर्शवादी वकील है जो जेजे यानी पियूष की मदद करने के लिए बैंगलोर से दिल्ली आई है. अब चूंकि जे जे को ये केस किसी भी कीमत पर जीतना है तो वो कुछ ऐसे स्वांग रचता है जो तकनिकी रूप से सही नहीं हैं. इन्हीं सब ट्विस्ट और टर्न्स को हम इस वेब सीरीज की कहानी कह सकते हैं.
कहानी में नेहा के रोल को एक मजबूत रोल दिखाया गया है जबकि जैसा उनका अभिनय रहा है उसको देखकर साफ़ पता चलता है कि वो एक बड़ी मिस फिट हैं.
कहानी के जरिये क्या बताना स चाह रहे थे निर्देशक
कहानी में न्यायप्रणाली या ये कहें कि कोर्ट रूम की जटिलताओं को दिखाने की बात तो की गयी मगर जब उसे अमली जामा पहनाने की बारी आई तो यहां पर निर्देशक से लेकर एक्टर तक सभी लोग नाकाम साबित हुए. कुल मिलाकर सारी बातों का नतीजा यही है कि एक अच्छी सीरीज इसलिए ख़राब हो गयी क्योंकि निर्देशक से लेकर एक्रिप्ट राइटर तक किसी ने भी अपना होम वर्क करने की ज़हमत नहीं उठाई.
बात बहुत साफ़ है कि जब एक निर्देशक इस तरह का ट्रीटमेंट स्क्रिप्ट के साथ कर रहा हो तो उसे इस बात का ख़ास ख्याल रखना चाहिए कि कम से कम वो चीजें दिखें जो अदालत में होती हैं. एक दर्शक कभी भी आधे अधूरे को सम्पूर्ण नहीं मानेगा.
खैर अब जबकि ये सीरीज हमारे सामने आ गयी है तो देखना दिलचस्प रहेगा कि दर्शक इसे कैसे देखते हैं. हमने अपनी बात रीयलिस्टिक अप्रोच से शुरू की है तो बताना जरूरी है कि अब सिनेमा या वेब सीरीज को लेकर भारतीय दर्शक का रवैया बदल चुका है वो या तो फैंटेसी देखना चाहता है या फिर हकीकत और जब हम Illegal को देखते हैं तो ये हमें न तो फैंटेसी में दिखती है और न ही इसका कोई वास्ता हकीकत से है.
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