मुझे नहीं लगता कि कोई भी 24 मार्च 2020 की वो शाम भूल सकता है जब कोरोना महामारी की वजह से 21 दिनों के लॉकडाउन का ऐलान किया गया था. उस दिन शाम 8 बजे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसे ही इस बात का ऐलान किया, महानगरों में रहने वाले प्रवासी मजदूरों की बड़ी संख्या अपने गांव जाने के लिए सड़कों पर निकल पड़ी थी. कोई मुंबई से चल दिया, तो कोई दिल्ली से अपने परिवार के साथ निकल पड़ा. सामने 20 से 25 दिन की यात्रा, साथ में ढे़रों सामान, बीवी-बच्चे लिए, खाली पेट लोगों का जत्था हर तरफ दिखाई देने लगा. शहर में जो बच भी गया, उसमें कई वर्ग ऐसा था, जिसे अपना पेट पालने के लिए दूसरे तरह के काम करने पड़े. कोविड 19 की वजह लगे पहले लॉकडाउन के तीन साल बाद फिल्म मेकर मधुर भंडारकर अपनी फिल्म 'इंडिया लॉकडाउन' लेकर आए है. ये फिल्म हम सभी को उस अंधेरे समय में वापस ले जाती है.
फिल्म 'इंडिया लॉकडाउन' ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर स्ट्रीम हो रही है, जिसका निर्देशन खुद मधुर भंडारकर ने किया है. इसकी कहानी अमित जोशी और आराधना साह ने लिखी है. इसमें प्रतीक बब्बर, श्वेता बसु प्रसाद, सई ताम्हणकर, प्रकाश बेलवाडी, ऋषिता भट्ट और अहाना कुमरा जैसे कलाकार अहम रोल में हैं. चार समानांतर कहानियों के साथ मानवीय भावनाओं और दुविधाओं के विभिन्न पहलुओं का विवरण देने वाली यह फिल्म दर्शकों को बीच में सोचने के लिए ज्यादा समय नहीं देती है. देश में लॉकडाउन के पहले और बाद में क्या प्रभाव हुआ, कौन सा वर्ग किस तरह प्रभावित हुआ, इसको वास्तविक धरातल पर पेश करने की कोशिश करती है. हालांकि, कई बार ऐसा लगता है कि सबकुछ छूकर आगे निकलने की हड़बड़ी ज्यादा है. इसकी वजह से अलग-अलग वर्ग के लोगों की कहानियां रोचक होने के बावजूद बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाती हैं.
मुझे नहीं लगता कि कोई भी 24 मार्च 2020 की वो शाम भूल सकता है जब कोरोना महामारी की वजह से 21 दिनों के लॉकडाउन का ऐलान किया गया था. उस दिन शाम 8 बजे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसे ही इस बात का ऐलान किया, महानगरों में रहने वाले प्रवासी मजदूरों की बड़ी संख्या अपने गांव जाने के लिए सड़कों पर निकल पड़ी थी. कोई मुंबई से चल दिया, तो कोई दिल्ली से अपने परिवार के साथ निकल पड़ा. सामने 20 से 25 दिन की यात्रा, साथ में ढे़रों सामान, बीवी-बच्चे लिए, खाली पेट लोगों का जत्था हर तरफ दिखाई देने लगा. शहर में जो बच भी गया, उसमें कई वर्ग ऐसा था, जिसे अपना पेट पालने के लिए दूसरे तरह के काम करने पड़े. कोविड 19 की वजह लगे पहले लॉकडाउन के तीन साल बाद फिल्म मेकर मधुर भंडारकर अपनी फिल्म 'इंडिया लॉकडाउन' लेकर आए है. ये फिल्म हम सभी को उस अंधेरे समय में वापस ले जाती है.
फिल्म 'इंडिया लॉकडाउन' ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर स्ट्रीम हो रही है, जिसका निर्देशन खुद मधुर भंडारकर ने किया है. इसकी कहानी अमित जोशी और आराधना साह ने लिखी है. इसमें प्रतीक बब्बर, श्वेता बसु प्रसाद, सई ताम्हणकर, प्रकाश बेलवाडी, ऋषिता भट्ट और अहाना कुमरा जैसे कलाकार अहम रोल में हैं. चार समानांतर कहानियों के साथ मानवीय भावनाओं और दुविधाओं के विभिन्न पहलुओं का विवरण देने वाली यह फिल्म दर्शकों को बीच में सोचने के लिए ज्यादा समय नहीं देती है. देश में लॉकडाउन के पहले और बाद में क्या प्रभाव हुआ, कौन सा वर्ग किस तरह प्रभावित हुआ, इसको वास्तविक धरातल पर पेश करने की कोशिश करती है. हालांकि, कई बार ऐसा लगता है कि सबकुछ छूकर आगे निकलने की हड़बड़ी ज्यादा है. इसकी वजह से अलग-अलग वर्ग के लोगों की कहानियां रोचक होने के बावजूद बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाती हैं.
भारत में 31 जनवरी 2020 को कोरोना का पहला केस मिला था. उस वक्त कोरोना चीन सहित दुनिया के दूसरे देशों में तेजी से फैल रहा था. अपने देश में अलर्ट था, लेकिन कुछ लोगों को छोड़ दिया जाए तो बाकी लोगों को कोई फिक्र नहीं थी. यहां तक कि सरकार को भी कोरोना की भयावहता का अंदाजा नहीं था. बिहार के किसी गांव से मुंबई आया माधव मिश्रा (प्रतीक बब्बर) अपनी पत्नी फूलमती (सई ताम्हणकर) और दो बेटियों के साथ गृहस्थी और व्यापार जमाने की कोशिश कर रहा था. अपनी मां से झूठ बोलकर सेक्स वर्कर का काम करने वाली मेहरू (श्वेता बासु) का धंधा जोरों पर था. सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके नागेश्वर राव (प्रकाश बेलावडी) अपनी गर्भवती बेटी की डिलविरी के लिए हैदराबाद जाने की योजना बना रहे थे. एक कपल देव और पलक अपनी जवानी के दिनों का आनंद ले रहे थे. एक ही शहर में चारों कहानियां अलग-अलग चल रही थी. अचानक एक दिन लॉकडाउन का ऐलान कर दिया गया. इसकी वजह से माधव का व्यापार ठप्प हो गया. मेहरू का धंधा बंद हो गया. फूलमती का काम छूट गया. नागेश्वर राव घर में बंद हो गए.
हर किसी की जिंदगी मानो ठहर सी गई. लेकिन इंसान की खासियत यही होती है कि वो परेशानियों में रास्ता खोज लेता है. माधव मिश्रा अपने परिवार के साथ बिहार पैदल निकल पड़ता है. मेहरू अपने धंधे का नया स्वरूप चुन लेती है. देव अपने चाचा के फ्लैट में रहता है, जहां उसकी मुलाकात एक एयर होस्टेस मून (अहाना कुमार) से होती है, जो एकांत के साथी बन जाते हैं. नागेश्वर राव अपने किसी दोस्त की मदद से पास का इंतजाम करके खुद कार ड्राइव करके हैदराबाद के लिए निकल पड़ते हैं. मेहरू के कोठे पर एक छोटी बच्ची होती है, जिसे वहां का दलाल बेंचने की योजना बनाता है. लेकिन मेहरू उस बच्ची को बचाकर अपनी मां के पास गांव भेज देती है. इधर, देव एयर होस्टेस के नजदीक आने लगता है, लेकिन वो अपने प्यार को धोखा नहीं देना चाहता, इसलिए अचानक उससे दूर हो जाता है. वो और उसकी गर्लफ्रेंड पलक वर्जिन होते हैं. दोनों उसी फ्लैट में एक साथ अपनी वर्जिनिटी खोते हैं. लेकिन बड़ा सवाल कि क्या माधव मिश्रा अपने परिवार के साथ बिहार पहुंच पाएगा? क्या नागेश्वर राव अपनी बेटी के पास पहुंच पाएंगे? जवाब के लिए फिल्म देखनी होगी.
नेशनल अवॉर्ड विनर फिल्म मेकर मधुर भंडारकर ने फिल्में भले ही कम बनाई हैं, लेकिन उनकी अधिकतर फिल्मों का परफॉर्मेंस शानदार रहा है. सबसे अच्छी बात ये है कि उनकी फिल्में किसी न किसी सामाजिक विषय या समस्या पर आधारित होती हैं. इसके बावजूद उनका बॉक्स ऑफिस परफॉर्मेंस तमाम कमर्शियल फिल्मों की तुलना में बेहतर होता है. 'चांदनी बार', 'सत्ता', 'पेज 3', 'फैशन', 'ट्रैफिक सिंगनल', 'हीरोइन' और 'इंदू सरकार' जैसी फिल्मों की सफलता मधुर की उपलब्धियों की कहानी कहती हैं. लेकिन मधुर इस बार चूक गए हैं. फिल्म 'इंडिया लॉकडाउन' की कहानी रोचक होते हुए भी अधूरी सी लगती है. ऐसा लगता है कि कई कहानियों को एक साथ कहने की जल्दीबाजी में किसी को भी ठीक से पेश नहीं किया जा सका है. एक सेक्स वर्कर और प्रेमी जोड़े की लाइफ पर ज्यादा फोकस किया गया है, जबकि लॉकडाउन में सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब और मजदूर हुए थे. उनकी कहानियों को ज्यादा तवज्जो दिया जाना चाहिए था. लेकिन गरीब माधव की कहानी बीच रास्ते में ही खत्म हो जाती है. फिल्म खत्म होने के बाद मन में एक अधूरापन रहता है.
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