जिसके बारे में भारत में सिने क्रिटिक्स और क्वालिटी/ सब्जेक्टिव फिल्मों के शौक़ीन लोगों ने बहुत पहले ही अंदेशा लगा लिया था वो घटना घट चुकी है. ऑस्कर (Oscars 2021) के लिए इंटरनेशनल फीचर फिल्म की दौड़ से भारत की ऑफिशियल एंट्री 'जल्लीकट्टू' बाहर हो गयी है. वहीं शार्ट फ़िल्म 'बिट्टू' (Bittu) अंतरराष्ट्रीय मंच पर अभी भी भारत की लाज बचाए हुए है और मुकाबले में है. कहा जा रहा है कि डायरेक्टर लिजो जोस पेल्लीसेरी द्वारा निर्देशित मलयालम फिल्म 'जल्लीकट्टू' (Jallikattu) को कम्पटीशन के लिए 15 फिल्मों की अंतिम सूची में जगह नहीं मिली है. घोषणा खुद एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइसंसेज (एएमपीएसी) की तरफ से हुई है. ध्यान रहे कि जिस कैटेगरी के लिए जल्लीकट्टू नॉमिनेट हुई थी उस कैटेगरी में 93 देशों की फिल्मों को रखा गया था चूंकि 6 सिंतबर 2019 को टोरंटो इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में जल्लीकट्टू को प्रदर्शित किया जा चुका था साथ ही फ़िल्म की खूब तारीफ भी हुई थी इसलिए उम्मीद यही जताई जा रही थी कि फ़िल्म बाजी मार लेगी और ऑस्कर भारत की झोली में आएगा.'
जल्लीकट्टू को भारत में भले ही सिने क्रिटिक्स द्वारा एक लाजवाब फ़िल्म बताया जा रहा हो. मगर अब जबकि इसे बाहर का रास्ता दिखाने का ऐलान खुद एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइसंसेज की तरफ से हुआ है, जैसा टेम्परामेंट इस फ़िल्म को खुद निर्माता निर्देशक ने दिया है साफ हो जाता है कि दरअसल ये फ़िल्म सिर्फ इसलिए बनाई गई थी ताकि ये फ़िल्म ऑस्कर्स के दरवाजे पर जाए और वहां से बैरंग वापस लौट आए.
जल्लीकट्टू की घर वापसी के बाद सवाल ये भी आता है कि कहीं ऐसा तो नहीं फ़िल्म और निर्माता निर्देशक का उद्देश्य कभी ऑस्कर्स जीतना था ही नहीं. ये बात थोड़ी...
जिसके बारे में भारत में सिने क्रिटिक्स और क्वालिटी/ सब्जेक्टिव फिल्मों के शौक़ीन लोगों ने बहुत पहले ही अंदेशा लगा लिया था वो घटना घट चुकी है. ऑस्कर (Oscars 2021) के लिए इंटरनेशनल फीचर फिल्म की दौड़ से भारत की ऑफिशियल एंट्री 'जल्लीकट्टू' बाहर हो गयी है. वहीं शार्ट फ़िल्म 'बिट्टू' (Bittu) अंतरराष्ट्रीय मंच पर अभी भी भारत की लाज बचाए हुए है और मुकाबले में है. कहा जा रहा है कि डायरेक्टर लिजो जोस पेल्लीसेरी द्वारा निर्देशित मलयालम फिल्म 'जल्लीकट्टू' (Jallikattu) को कम्पटीशन के लिए 15 फिल्मों की अंतिम सूची में जगह नहीं मिली है. घोषणा खुद एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइसंसेज (एएमपीएसी) की तरफ से हुई है. ध्यान रहे कि जिस कैटेगरी के लिए जल्लीकट्टू नॉमिनेट हुई थी उस कैटेगरी में 93 देशों की फिल्मों को रखा गया था चूंकि 6 सिंतबर 2019 को टोरंटो इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में जल्लीकट्टू को प्रदर्शित किया जा चुका था साथ ही फ़िल्म की खूब तारीफ भी हुई थी इसलिए उम्मीद यही जताई जा रही थी कि फ़िल्म बाजी मार लेगी और ऑस्कर भारत की झोली में आएगा.'
जल्लीकट्टू को भारत में भले ही सिने क्रिटिक्स द्वारा एक लाजवाब फ़िल्म बताया जा रहा हो. मगर अब जबकि इसे बाहर का रास्ता दिखाने का ऐलान खुद एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइसंसेज की तरफ से हुआ है, जैसा टेम्परामेंट इस फ़िल्म को खुद निर्माता निर्देशक ने दिया है साफ हो जाता है कि दरअसल ये फ़िल्म सिर्फ इसलिए बनाई गई थी ताकि ये फ़िल्म ऑस्कर्स के दरवाजे पर जाए और वहां से बैरंग वापस लौट आए.
जल्लीकट्टू की घर वापसी के बाद सवाल ये भी आता है कि कहीं ऐसा तो नहीं फ़िल्म और निर्माता निर्देशक का उद्देश्य कभी ऑस्कर्स जीतना था ही नहीं. ये बात थोड़ी विचलित कर सकती है मगर सच यही है कि ऑस्कर में भारतीय फिल्मों का वही मुकाम है जो ओलंपिक में हमारे धावकों / एथलीट्स का है.
जी हां चाहे वो मिल्खा सिंह हों या फिर पीटी उषा, दीपा कर्मकार समेत दीगर खिलाड़ी. ये सभी लोग ओलंपिक में गए वहां प्रदर्शन किया और फोर्थ पोजिशन हासिल की. इन लोगों का प्रदर्शन ठीक वैसा ही था जैसा ओलंपिक में गए अन्य देशों के खिलाड़ियों का होता है. लेकिन बावजूद इसके हमने इन्हें सिर आंखों पर बैठाया. इन्हें वो दर्जा दिया जिसने इनके प्रदर्शन पर चार चांद न लगाकर उसे ब्लॉक करने का काम किया.
गौरतलब है कि भले ही इन खिलाड़ियों का प्रदर्शन ओलंपिक के लिहाज आए बहुत साधारण था. लेकिन हमने उसे हव्वा माना और उन्हें वो स्थान दे दिया जहां विनर या ये कहें कि गोल्ड मेडलिस्ट को बैठाया जाता है. हमारे खिलाड़ियों का यहां तक पहुंचना ही उनकी ज़िंदगी का मकसद या ये कहें कि उनकी उपलब्धि है. सबसे मजे की बात ये कि हम ऐसे खिलाड़ियों को भगवान का दर्जा देने से भी नहीं चूकते.
दिलचस्प बात ये भी है कि अंधों में काने राजा वाली इस स्थिति में हमारी ही तर्ज पर हमारे खिलाड़ी भी इस बात को मान चुके हैं कि ओलंपिक के मेडल्स पर हक़ अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों का है.
बात क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री के सन्दर्भ में हुई है तो यही हाल फिल्मों का भी है. हम ऑस्कर्स लाना नहीं बल्कि सिर्फ वहां तक पहुंचना चाहते हैं. हमारे निर्माता निर्देशक कोई आज से नहीं बल्कि कई दशक पहले ही इस बात को सोच चुके हैं कि सिर्फ उनका ऑस्कर्स के दर तक पहुंचना उनके करियर प्रोफाइल की एक बड़ी उपलब्धि है.
इन बातों के बाद बात यदि हमारी खुशियों की हो तो हम इसी में खुश हैं कि शाहरुख की फ़िल्म ने 100 करोड़ कमा लिए. फलां फ़िल्म में आमिर क्यूट हैं. अक्षय के फाइटिंग सीक्वेंस बेहतरीन हैं. या किसी पिक्चर में हृतिक ने मन मोह लेने वाला डांस किया है. अब खुद बताइये जहां प्रायोरिटी ऐसी हो वहां नतीजा क्या निकलेगा?
कहना गलत नहीं है कि हमें तो ऑस्कर्स के प्रति संयास घोषित कर देना चाहिए. एक इंडस्ट्री के रूप में हमें फोकस वहीं करना चाहिए जिस पर अभी तक हम करते आए हैं. बहरहाल बात जल्लीकट्टू के बाहर होने और बिट्टू के शार्ट फ़िल्म कैटेगरी में बने रहने से शुरू हुई थी तो जट्टीकट्टू की तर्ज पर अगर बिट्टू भी बाहर हो गयी तो हमें निराश नहीं होना चाहिए.
जल्लीकट्टू की तरह बिट्टू भी अपने मकसद में कामयाब हुई है. बड़े दुख के साथ हमें इस बात को कहना पड़ रहा है कि एक इंडस्ट्री के रूप में हमने काटा वही जिसकी फसल खुद हमने अपने हाथों से बोई थी. चूंकि भविष्य किसी ने नहीं देखा है इसलिए यदि बिट्टू ऑस्कर भारत ले आई तो अच्छा. नहीं लाई तो और अच्छा. जल्लीकट्टू और बिट्टू दोनों ने उस सोच का मान रख लिया जिसे ध्यान में रखते हुए इनका निर्माण किया गया था.
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