मराठी के मशहूर फिल्म निर्देशक नागराज मंजुले का नाम आते ही उनकी फिल्म 'सैराट' का नाम सामने आ जाता है. 'सैराट' एक ऐसी फिल्म है, जो मराठी में रिलीज होने के बावजूद पूरे देश में देखी गई. इसे हर भाषा के दर्शकों ने मराठी में ही देखा, लेकिन दादा देनी होगी नागराज के निर्देशन को, न सिर्फ सबको फिल्म समझ में आई, बल्कि सबने इसे बहुत पसंद भी किया. बाद में इसकी लोकप्रियता को भुनाने के लिए करण जौहर ने इसका हिंदी रीमेक 'धड़क' के रूप में बनाया, लेकिन वो मंजुले की ऊंचाई को छू भी नहीं पाए. इसे कहते हैं कमाल का निर्देशक और कहानी लेखक, जो अपनी भावनाओं को सिनेमा के जरिए सीधे दर्शकों के दिल में उतार दे, जिसके लिए भाषा कभी बाधक न बने. इसी नागराज मंजुले की पहली हिंदी फिल्म 'झुंड' 4 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. इसमें अमिताभ बच्चन पहली बार एक 'दलित नायक' के किरदार में नजर आने वाले हैं.
फिल्म 'झुंड' कई मायने में अहम साबित होने वाली है. इस फिल्म के नायक और निर्देशक के नजरिए से देखें तो फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा सक्सेसफुल कॉकटेल बहुत कम देखने को मिलता है. फिल्म में बॉलीवुड के 'शहंशाह' अमिताभ बच्चन लीड रोल में हैं. वो पहली बार एक ऐसे किरदार को करने जा रहे हैं, जो शोषित-वंचित बच्चों का महानायक है. उस शख्स ने अपनी पूरी जिंदगी झुग्गी-बस्ती में रहने वाले दलित और पिछड़े बच्चों के भविष्य को बनाने और संवारने में लगा दिया. वो किरदार है नागपुर के रहने वाले रिटायर्ड स्पोर्ट्स टीचर विजय बारसे का, जिनकी जिंदगी पर फिल्म 'झुंड' आधारित है. इस फिल्म के निर्देशक नागराज मंजुले की प्रतिभा से परिचित होना हो तो प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही एक एंथोलॉजी सीरीज 'वैकुंठ' जरूर देखनी चाहिए. इसमें नागराज नायक और निर्देशक दोनों की भूमिका में हैं. इसके अलावा मराठी फिल्म 'फैंड्री' के लिए भी वो जाने जाते हैं.
फिल्म 'झुंड' की रिलीज से दो दिन पहले दिल्ली और मुंबई में प्रेस शो आयोजित किया था. यहां फिल्म देखने वाले अधिकतर समीक्षक दिल खोलकर इसकी तारीफ कर रहे हैं. कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि ऐसी फिल्म सिर्फ नागराज मंजुले ही बना सकते हैं और विजय बारसे जैसा किरदार सिर्फ अमिताभ बच्चन जैसा अनुभवी कलाकार ही निभा सकता है. शायद ही वजह है कि मंजुले इस फिल्म के लिए अमिताभ बच्चन का चार साल तक इंतजार करते रहे थे. जब उनके पास इस फिल्म के लिए डेट उपलब्ध हुए, तब जाकर उन्होंने फिल्म पर काम शुरू किया. वरना फिल्म की कहानी उन्होंने पांच साल पहले ही लिख ली थी. लेकिन लीड रोल के लिए वो बिग बी को लेना चाहते थे. बताया जा रहा है कि इस फिल्म को देखने के बाद बॉलीवुड के मिस्टर परफेक्टनिस्ट आमिर खान और उनके साथ के लोग रोने लगे थे. यहां तक कि आमिर ने ये भी कहा, ''बच्चन साहब ने क्या काम किया है. वैसे तो उनकी एक से एक फिल्में हैं, लेकिन यह बेस्ट फिल्म है. यह एक सरप्राइजिंग फिल्म है. 20-30 साल में हमने जो सीखा है, वह इसके सामने कुछ नहीं है.''
आइए जानते हैं कि Jhund Movie के बारे में फिल्म समीक्षकों ने क्या लिखा है...
इंडिया टुडे के लिए तुषार जोशी लिखते हैं कि नागराज मंजुले की फिल्म 'झुंड' में अमिताभ बच्चन और टीम ने शानदार काम किया है. 'झुंड' नागराज मंजुले का एक ठोस प्रयास है. यदि आप 'सैराट' में उनके द्वारा बनाई गई दुनिया से प्यार करते हैं और रियल लाइफ ड्राम देखना पसंद करते हैं, तो 'झुंड' आपको पसंद आएगी. फिल्म में रिटायर्ड स्पोर्ट्स टीचर विजय बारसे की जिंदगी और उनके द्वारा किए गए प्रयासों पर बात करने के साथ ही कई अन्य सामाजिक विषयों पर भी प्रकाश डाला गया है. धार्मिक कट्टरता, जातिवाद, असमानता और बेवफाई को व्यवस्थित रूप से कथानक में बुना गया है. फिल्म कई बार झकझोरती है. जब भी हमें लगता है कि सबकुछ ठीक होने वाला है, तो एक नया मोड़ आ जाता है, जो पूरी फिल्म की कहानी की दिशा बदल देता है. यही अप्रत्याशित ट्विस्ट एंड टर्न फिल्म में रोमांच बनाए रखता है. इसमें सभी कलाकारों ने गजब का अभिनय प्रदर्शन किया है.
नेटवर्क 18 के लिए दीपिका शर्मा लिखती हैं कि वैसे तो भारतीय सिनेमा में स्पोर्ट्स को जोड़ते हुए कई फिल्में बनीं हैं, जिनका असर दर्शकों पर खूब भारी पड़ा है. लेकिन नागराज मंजुले की ये फिल्म सिर्फ फुटबॉल जैसे खेल को नहीं दिखाती है, बल्कि खेल के मैदान के जरिए हमारे समाज के 'पीछे छूटे भारत' को सिनेमा के पर्दे पर लाकर खड़ा कर देती है. इस फिल्म में एक झुग्गी का बच्चा पूछता है 'ये भारत क्या होता है…' अगर आप भी इस सवाल का सही जवाब जानना चाहते हैं तो आपको ये फिल्म देखनी चाहिए. इस फिल्म के निर्देशक नागराज मंजुले सिनेमा पर जादुई दुनिया दिखाने वाले फिल्म मेकर नहीं हैं. वह पर्दे पर सच रखते हैं, बिलकुल देसी और खाटी अंदाज में और कभी-कभी ये सच इतना नंगा होता है कि हमें शर्म आ जाती है. 'झुंड' भी ऐसा ही नंगा सच है. इसके साथ ही अमिताभ बच्चन और बच्चों की टोली ने अपने बेहतरीन अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया है.
आजतक.इन के लिए पल्लवी लिखती हैं कि फिल्म 'झुंड' में अमिताभ बच्चन ने कमाल का परफॉरमेंस दिया है. वह एक रिटायर्ड प्रोफेसर के रोल में हैं, जो अपने खर्चे पर लोगों की मदद करता है. अमिताभ ने विजय बोराड़े के किरदार को बखूबी निभाया है. उन्हें देखकर लगता है कि वह असल में विजय हैं. सबसे अच्छी बात है कि उन्होंने किसी भी साथी कलाकार को ओवरशैडो नहीं किया बल्कि उनके काम को निखारने में मदद की है. फिल्म में अंकुश मसराम उर्फ डॉन और बाबू जैसे किरदारों पर आपका सबसे ज्यादा ध्यान जाता है. नागराज की फिल्म सैराट के एक्टर रिंकू राजगुरु और आकाश थोसार भी इस फिल्म में हैं और दोनों ने बढ़िया काम किया है. नागराज मंजुले ने कमाल का डायरेक्शन किया है. इसके साथ ही उन्होंने इस फिल्म में एक्टिंग भी की है. ये फिल्म आपको सीख देती है, आपको सोचने पर मजबूर करती है और शुरू से अंत तक आपको अपने साथ जोड़े भी रखती है.
फिल्म 'झुंड' की समीक्षा में बॉलीवुड लाइफ ने लिखा है कि हमने ऐसी कई फिल्में देखी हैं, जिनमें दलितों का नायक बनते हुए दिखाया गया है. लेकिन जो चीज झुंड को सबसे अलग बनाती है, वह है मंजुले का आख्यान और अमिताभ बच्चन का प्रदर्शन. मनुजले ने एक ऐसी फिल्म बनाई है जो समाज की वास्तविकता को दिखाती है. वह इसके साथ फुटबॉल जैसे खेल का अद्भुत मिश्रण करते हैं. फिल्म की शूटिंग काफी अच्छी की गई है. सुधाकर रेड्डी यक्कंती का कैमरा वर्क कमाल करता है. अमिताभ बच्चन एक मेगास्टार हैं, और निस्संदेह भारतीय सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में से एक हैं. इस फिल्म के लिए उन्हें अपनी मेगास्टार की छवि को छोड़कर विजय बोराडे बनना पड़ा और वह इसे सहजता से करते हैं. एक पल के लिए भी नहीं लगता कि वो बड़े पर्दे के मेगास्टार बिग बी हैं. इसके लिए दिग्गज अभिनेता को सलाम. फिल्म में बच्चे भी कमाल के हैं. उनका अभिनय भी शानदार है.
कुल मिलाकर, फिल्म 'सैराट' की तरह 'झुंड' भी बेहतरीन निर्देशन और कलाकारों के दमदार अभिनय प्रदर्शन की बदौलत शानदार सिनेमा की श्रेणी में शामिल हो गई है. यदि अमिताभ बच्चन के अभिनय के फैन हैं, नागराज मंजुले की सिनेमाई दुनिया से प्यार करते हैं, रोमांटिग-क्राइम-थ्रिलर-एक्शन से इतर कुछ देखना चाहते हैं, तो फिल्म झुंड देखनी चाहिए.
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