जुड़वा 2 में है डबल रोल का तड़का. डबल रोल की फिल्में अकसर उन्हीं कलाकरों को लेकर बनाई जाती हैं, जो सुपर स्टार्स होते हैं. और उनकी लोकप्रियता को भुनाने का ये है एक कमाल का फ़ॉर्मूला. फैन्स भी खुश एक टिकट पर अपने चहेते सितारे के दो अंदाज देखने को मिलते हैं. ये भी देखा गया है कि डबल रोल की फिल्मों में एक अनाड़ी और दूसरा खिलाड़ी होता है, यानि एक सीधा-साधा और लल्लू, तो वहीं दूसरा तेज़ तर्रार और चालू. और यहीं से शुरू होता है comedy of error का ड्रामा.
डबल रोल का इतिहास
1967 की...
जुड़वा 2 में है डबल रोल का तड़का. डबल रोल की फिल्में अकसर उन्हीं कलाकरों को लेकर बनाई जाती हैं, जो सुपर स्टार्स होते हैं. और उनकी लोकप्रियता को भुनाने का ये है एक कमाल का फ़ॉर्मूला. फैन्स भी खुश एक टिकट पर अपने चहेते सितारे के दो अंदाज देखने को मिलते हैं. ये भी देखा गया है कि डबल रोल की फिल्मों में एक अनाड़ी और दूसरा खिलाड़ी होता है, यानि एक सीधा-साधा और लल्लू, तो वहीं दूसरा तेज़ तर्रार और चालू. और यहीं से शुरू होता है comedy of error का ड्रामा.
डबल रोल का इतिहास
1967 की सबसे मशहूर डबल रोल फिल्म "राम और श्याम" में दिखे थे. एक्टिंग के सरताज दिलीप कुमार, जिसमें उन्होंने भी यही रंग दिखाये जो एक डबल रोल कॉमेडी ड्रामा फिल्म में होते हैं. लेकिन दीलीप साहब का अंदाज और फिल्म में पिरोये गये सीन्स आज की किसी भी फिल्म पर भारी पड़ सकते हैं. या यूं कहे कि ड्रामा और कॉमेडी का संगम जो राम और श्याम में था वो उस वक्त के लिये नया भी था और अनोखा भी. जो कि आजतक यादगार है. नयी पीढ़ी ने उनकी फिल्म शायद नहीं देखी होगी मगर उस अंदाज की नक़ल के असर से बनी 1972 में रमेश सिप्पी की "सीता और गीता" भी सुपर हिट रही थी, उस दौर की टॉप स्टार हेमा मालिनी के साथ बनी "सीता और गीता" हेमा जी के स्टारडम को सातवें आसमान पर ले गयी, अपने कंधे पर उन्होंने ये फिल्म उठाई, चाहे भोली सीता या चुलबुली गीता. हेमा जी ने राम और श्याम का फ़ीमेल अंदाज दिखाया सीता और गीता में, चाहे फिल्म के डायलॉग्स हों या स्क्रीनप्ले सभी डिपार्टमेंट अव्वल नंबर के थे.
"सीता और गीता" की सफलता को एक बार फिर भुनाया श्रीदेवी के साथ निर्देशक पंकज पराशर ने 1989 की फिल्म "चालबाज़" में. इस फिल्म के दौरान श्रीदेवी का स्टारडम चरम सीमा पर था. श्रीदेवी की तरह उस वक्त के सुपर स्टार अनिल कपूर ने भी राम और श्याम का पैंतरा उठाया और निर्देशक राकेश रोशन के साथ बनाई "किशन कन्हैया". वही स्टोरी एक ग़रीब तो दूसरा अमीर. चोट एक को लगे तो दर्द दूसरे को हो. वैसे इसी तर्ज़ पर थी 1983 की "अंगूर". जिसमें संजीव कुमार थे मुख्य किरदार में, लेकिन इस फिल्म का अंदाज बहुत रियलिस्टिक था. चाहे वो फिल्म का ट्रीटमेंट हो या लेखनी. लार्जर देन लाइफ़ ना होने के बाद भी ये एक कमाल की फिल्म बनी थी जो हर तबके को पसंद आई थी.
डबल रोल ड्रामा अलग अलग स्टाइल में बहुत हुआ है, शत्रुघ्न सिन्हा की कालीचरण, अमिताभ बच्चन की डॉन, कमाल हसन की अप्पू राजा, अक्षय कुमार की राउडी राठौर, शाहरुख की डुप्लीकेट, देव आनन्द की हम दोनों, फ़ेहरिस्त बहुत लंबी है. लेकिन यहां हम बात उन फिल्मों की कर रहे हैं जिनकी कहानी या स्क्रीनप्ले का कोई ना कोई अंश निर्देशक डेविड धवन ने जुड़वा 2 में डाला है. जुड़वा 2 आज के कॉलेज स्टूडेंट को अच्छी या टाइमपास लग सकती है. लेकिन वही स्टूडेंट अगर "राम और श्याम" या "सीता और गीता" देखें, तो मज़ा उसको उसमें भी बहुत आयेगा.
जुड़वा 2 में इन सभी फिल्मों की झलक अलग तरीके से दिखेगी, फिर भी ये फिल्म उन फिल्मों की तरह क्लासिक नहीं बन पायी. वरुण धवन का स्टारडम फिल्म को ओपनिंग अच्छी दिलवा देगा. फिल्म हिट भी हो जायेगी. एक क्लासिक कॉमेडी और फूहड़ कॉमेडी में जो अंतर होता है वो यहां भी दिखेगा. वरुण धवन का टपोरी अंदाज में डायलॉग "राजा की इज्जत, सौंद्रया साबुन की टिकीया नहीं है, जो तू घिसकर फेंक डालेगा" या "ऊंची है बिल्डिंग लिफ़्ट तेरी बंद है" जैसे गाने आपका मनोरंजन अगर करते हैं तो आपको इस फिल्म में भी थोड़ी बहुत हंसी आयेगी. लेकिन ज़रा सोचिये कुछ तो बात अलग होगी जो राम और श्याम, सीता और गीता, चालबाज़ जैसी फिल्में आज भी याद की जाती हैं. और जुड़वा 2 जैसी कॉमेडीज स्क्रिप्ट से ज्यादा इस बात पर बेची जाती हैं कि ये वो फिल्म है जिसमें वरुण वाला रोल सलमान ने निभाया था. वहीं फिल्म के आखिर में गेस्ट अपियरेन्स में सलमान की एंट्री भी करवा दी है.
अब सवाल ये है कि जुडवा 2 कैसी है ? तो जवाब है फ़ॉर्मूला क्लासिक कॉमेडी का है. लेकिन पूरी फिल्म में वो बात नहीं है. और ये ज़रूरी तो नहीं कि हिट फिल्म अच्छी हो और अच्छी फिल्म हमेशा हिट हो.
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