'कुछ फिल्में बस देख ली जाती हैं और कुछ का इंतजार किया जाता है. कारण? ताकि उन्हें केवल देखा न जाए, समझा भी जाए. उस मैसेज को महसूस किया जाए जो उस फिल्म के जरिये निर्देशक ने देने का प्रयास किया है.अमेज़न प्राइम पर रिलीज हुई विद्या बालन स्टारर 'शेरनी' सिर्फ देखने भर की फ़िल्म नहीं है.
देखने की नीयत से देखेंगे तो शायद निराशा हाथ लगे और एक पल वो भी आए जब महसूस हो कि कहीं 2 घंटे 10 मिनट और कुछ सेकंड्स बर्बाद तो नहीं हुए? नहीं. ये बात हमने एक्टिंग के मद्देनजर नहीं की. एक्टिंग के लिहाज से चाहे वो विद्या बालन हों या भी बिजेंद्र काला, नीरज काबी, विजय राज़, शरत सक्सेना हों सब के सब बेहतरीन थे. बात ये है कि वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन पर बनी ये अपनी तरह की पहली फ़िल्म है. सो एक दर्शक के रूप में ऐसी फिल्मों को पचा पाने की हिम्मत अभी हमारे अंदर नहीं है.
जैसा फ़िल्म का प्लॉट है इसे समझ वही पाएगा जिसे प्रकृति से प्रेम हो. जो वन्य जीवन को अधिक से अधिक जानना और समझना चाहता है. फ़िल्म समझने के लिए समझ चाहिए और समझ के मद्देनजर जैसा नजरिया खुद को बड़ा फ़िल्म क्रिटिक समझने वाले एक्टर कमाल आर खान का है वो किसी से छुपा नहीं है. एक्टर कमाल आर खान ने विद्या बालन और उनकी हाल हुई में रिलीज हुई फ़िल्म 'शेरनी' को छोटी फ़िल्म बताया है.
जी हां शेरनी और उसके रिव्यू के मद्देनजर जो कुछ भी कमाल आर खान ने कहा है वो इएलिये भी हास्यास्पद है क्योंकि जिस जिस ने भी अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई विद्या की फ़िल्म शेरनी देखी है वो भले ही आलोचक रहा हो लेकिन विद्या और फ़िल्म की तारीफ से ख़ुद को रोक नहीं पाया है. हुआ कुछ यूं है कि अभी बीते दिन ही फ़िल्म एक्टर और स्वघोषित क्रिटिक केआरके ने एक ट्वीट...
'कुछ फिल्में बस देख ली जाती हैं और कुछ का इंतजार किया जाता है. कारण? ताकि उन्हें केवल देखा न जाए, समझा भी जाए. उस मैसेज को महसूस किया जाए जो उस फिल्म के जरिये निर्देशक ने देने का प्रयास किया है.अमेज़न प्राइम पर रिलीज हुई विद्या बालन स्टारर 'शेरनी' सिर्फ देखने भर की फ़िल्म नहीं है.
देखने की नीयत से देखेंगे तो शायद निराशा हाथ लगे और एक पल वो भी आए जब महसूस हो कि कहीं 2 घंटे 10 मिनट और कुछ सेकंड्स बर्बाद तो नहीं हुए? नहीं. ये बात हमने एक्टिंग के मद्देनजर नहीं की. एक्टिंग के लिहाज से चाहे वो विद्या बालन हों या भी बिजेंद्र काला, नीरज काबी, विजय राज़, शरत सक्सेना हों सब के सब बेहतरीन थे. बात ये है कि वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन पर बनी ये अपनी तरह की पहली फ़िल्म है. सो एक दर्शक के रूप में ऐसी फिल्मों को पचा पाने की हिम्मत अभी हमारे अंदर नहीं है.
जैसा फ़िल्म का प्लॉट है इसे समझ वही पाएगा जिसे प्रकृति से प्रेम हो. जो वन्य जीवन को अधिक से अधिक जानना और समझना चाहता है. फ़िल्म समझने के लिए समझ चाहिए और समझ के मद्देनजर जैसा नजरिया खुद को बड़ा फ़िल्म क्रिटिक समझने वाले एक्टर कमाल आर खान का है वो किसी से छुपा नहीं है. एक्टर कमाल आर खान ने विद्या बालन और उनकी हाल हुई में रिलीज हुई फ़िल्म 'शेरनी' को छोटी फ़िल्म बताया है.
जी हां शेरनी और उसके रिव्यू के मद्देनजर जो कुछ भी कमाल आर खान ने कहा है वो इएलिये भी हास्यास्पद है क्योंकि जिस जिस ने भी अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई विद्या की फ़िल्म शेरनी देखी है वो भले ही आलोचक रहा हो लेकिन विद्या और फ़िल्म की तारीफ से ख़ुद को रोक नहीं पाया है. हुआ कुछ यूं है कि अभी बीते दिन ही फ़िल्म एक्टर और स्वघोषित क्रिटिक केआरके ने एक ट्वीट किया है और लिखा है कि, फैंस चाहते हैं कि वह (केआरके) विद्या की फ़िल्म का रिव्यू करें लेकिन मैं बता दूं कि मैं ऐसी छोटी फिल्मों को देखता भी नहीं.
ट्वीटर पर केआरके ने लिखा कि वह शेरनी जैसी छोटी फिल्म न तो देखते हैं और न ही उसके बारे में बात करते हैं. केआरके इतना भर कह देते तो भी ठीक था हद तो तब हो गई जब वो ये बोल बैठे कि वो वर्ल्ड का नंबर 1 समीक्षक हैं. केआरके का ट्वीट विवादास्पद था जाहिर है जो विद्या के फैंस होंगे उन्हें केआरके की बातों से गहरा धक्का लगा होगा.
बताते चलें कि अपने द्वारा कही छोटी बात के बाद केआरके को विद्या के फैंस की अच्छी से लेकर बुरी बातों का सामना करना पड़ रहा है. ट्विटर पर उन ट्वीट्स की भी भरमार है जिसमें विद्या के फैंस द्वारा यही कहा जा रहा है कि केआरके कितने भी बड़े क्रिटिक क्यों न बन जाएं उन्हें फिल्में देखने की न तो समझ है और न ही तमीज बालन के फैन केआरके को ट्रोल कर रहे हैं.
अब जबकि केआरके ने विवाद की शुरुआत कर ही दी है और शेरनी जैसी लीग से हटकर फ़िल्म को छोटी फ़िल्म कहा है तो इस पूरे मामले पर बस इतना ही कहा जाएगा कि आखिर क्यों नहीं केआरके देशद्रोही का पार्ट 2 या ये कहें कि सीक्वल बनाते. क्योंकि उनके खाते में उपलब्धि के नाम पर सिर्फ देशद्रोही है. इसलिए बेहतर यही है कि केआरके दोबारा इसे बनाएं और बता दें एंटरटेनमेंट के शौकीन लोगों को कि बड़ी मसाला और फूल ऑन एंटरटेनर फ़िल्म किसे कहते हैं.
बात सीधी और साफ है. राधे तक तो ठीक था. सिनेमा के शौकीन के रूप में जब हमने केआरके की बातें सुनीं हमें यक़ीन हो गया कि उन्हें फ़िल्म देखने की थोड़ी बहुत तमीज है. ऐसा सिर्फ इसलिए हुआ था क्योंकि जो कुछ बजी अपने रिव्यू में केआरके ने कहा था वैसा ही कुछ हमने भी फील किया था मगर अब जब केआरके ने शेरनी को छोटा बताया है कहीं न कहीं यकीन हो चला है कि हम गफलत में थे.
गौरतलब है कि शेरनी का शुमार उन चुनिंदा फिल्मों में है जिसने परत दर परत समाज को, व्यवस्था को बेनकाब किया है. फ़िल्म का प्लॉट भले ही एक डीएफओ, जंगल और आदमखोर शेरनी हो मगर इस फ़िल्म में दिखाया गया है कि वो कौन कौन सी चुनौतियां हैं जिनका सामना एक महिला अधिकारी को करना पड़ता है.
बात विद्या की फिल्म शेरनी की हो तो इसमें एक बहुत ही संजीदा विषय को उठाया गया. उसके इर्द गिर्द कहानी को बना गया और एक बड़े से सन्देश को बिना चीखे चिल्लाए और हल्ला मचाए दिया गया. कहना गलत नहीं है कि शेरनी हालिया दौर की उन गिनी चुनी फिल्मों में है जिसका सन्देश समझना हर किसी के बस की बात नहीं है. शेरनी और केआरके के मद्देनजर ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति नहीं है कि ये एक संजीदा फिल्म है जिसका रिव्यू केवल और केवल वही कर सकता है जो खुद स्वाभाव से संजीदा हो. अब कमाल कितने संजीदा है ये न आपसे छिपा है न हमसे.
अंत में हम बस ये कहेंगे कि केआरके का लेवल राधे के रिव्यू लयाक है वो उसी पर फोकस रखें. शेरनी और उसकी पकड़ उनकी पहुंच से दूर बल्कि बहुत दूर है. वो उसके रिव्यू की बात कहकर बेवजह में अपनी ऊर्जा नष्ट कर रहे हैं. खैर बात फिल्मों की चली है तो क्यों न कमाल आर खान देशद्रोही 2 का निर्माण कर दे. आखिर देश को भी तो पता चलना चाहिए कि बड़ी और फूल ऑन एंटरटेनर फिल्म होती क्या है.
अंत में बस इतना ही कि फ़िल्में देखने और उन्हें समझने में दिमाग लगता है कमाल आर खान को न केवल इस बात को समझना चाहिए बल्कि इसे गांठ भी बांधना चाहिए. कुल मिलाकर अब वो वक़्त आ गया है जब कमाल आर खान को अपनी सोच बड़ी कर लेनी चाहिए.
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