बेबाक, बिंदास और बागी कही जाने वाली बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत (Kangana Ranaut) आज अपना जन्मदिन मना रही हैं. जन्मदिन की पूर्व संध्या पर यदि किसी को नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स जैसा बेहतरीन गिफ्ट मिल जाए, तो उसकी खुशी का अंदाजा आप सहज लगा सकते हैं. कंगना के साथ भी ऐसा ही हुआ. 34 साल की इस एक्ट्रेस को चौथी बार नेशनल फिल्म अवॉर्ड (67th National Film Awards) से सम्मानित किया गया. उनको फिल्म 'मणिकर्णिका' और 'पंगा' के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला है. इससे पहले उन्हें फिल्म 'फैशन' (2008) के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस, 'क्वीन' (2014) के लिए बेस्ट एक्ट्रेस और 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' (2015) के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिल चुका है.
एक कहावत है, 'पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं'. कंगना के साथ भी कुछ ऐसा ही था. वह बचपन से ही विद्रोही और बिंदास स्वभाव की रही हैं. बचपन में जब उनके छोटे भाई को खिलौना बंदूक और उन्हें गुड़िया दी जाती थी, तो वह लेने से इंकार कर देती थीं. वह जिद्द करती थीं कि जो खिलौने उनके भाई को दिए जाते हैं, वही उनको भी दिए जाएं. अपनी मर्जी के कपड़े पहनना और अपने हिसाब से जीना उनको पसंद था. 23 मार्च, 1987 को हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के पास स्थित सूरजपुर (भाबंला) में जन्मी कंगना को बचपन से ही फैशन के कीड़े ने काट रखा था. भाबंला जैसी छोटी जगह में भी वह शॉर्ट पेंट्स, व्हाइट शर्ट और हैट पहनकर घूमा करती थीं, जो उस वक्त लोगों को अजीब लगता था.
जब जवानी की दलहीज पर कदम रखा, तो बागी हो गईं. परिवार से ही बगावत कर दिया. कंगना के परदादा विधायक थे, दादा आईएएस अफसर, पिता कारोबारी और मां टीचर थीं. परिवार उन्हें डॉक्टर बनाना चाहता था....
बेबाक, बिंदास और बागी कही जाने वाली बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत (Kangana Ranaut) आज अपना जन्मदिन मना रही हैं. जन्मदिन की पूर्व संध्या पर यदि किसी को नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स जैसा बेहतरीन गिफ्ट मिल जाए, तो उसकी खुशी का अंदाजा आप सहज लगा सकते हैं. कंगना के साथ भी ऐसा ही हुआ. 34 साल की इस एक्ट्रेस को चौथी बार नेशनल फिल्म अवॉर्ड (67th National Film Awards) से सम्मानित किया गया. उनको फिल्म 'मणिकर्णिका' और 'पंगा' के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला है. इससे पहले उन्हें फिल्म 'फैशन' (2008) के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस, 'क्वीन' (2014) के लिए बेस्ट एक्ट्रेस और 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' (2015) के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिल चुका है.
एक कहावत है, 'पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं'. कंगना के साथ भी कुछ ऐसा ही था. वह बचपन से ही विद्रोही और बिंदास स्वभाव की रही हैं. बचपन में जब उनके छोटे भाई को खिलौना बंदूक और उन्हें गुड़िया दी जाती थी, तो वह लेने से इंकार कर देती थीं. वह जिद्द करती थीं कि जो खिलौने उनके भाई को दिए जाते हैं, वही उनको भी दिए जाएं. अपनी मर्जी के कपड़े पहनना और अपने हिसाब से जीना उनको पसंद था. 23 मार्च, 1987 को हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के पास स्थित सूरजपुर (भाबंला) में जन्मी कंगना को बचपन से ही फैशन के कीड़े ने काट रखा था. भाबंला जैसी छोटी जगह में भी वह शॉर्ट पेंट्स, व्हाइट शर्ट और हैट पहनकर घूमा करती थीं, जो उस वक्त लोगों को अजीब लगता था.
जब जवानी की दलहीज पर कदम रखा, तो बागी हो गईं. परिवार से ही बगावत कर दिया. कंगना के परदादा विधायक थे, दादा आईएएस अफसर, पिता कारोबारी और मां टीचर थीं. परिवार उन्हें डॉक्टर बनाना चाहता था. इसके लिए चंडीगढ़ के डीएवी स्कूल में विज्ञान की पढ़ाई के लिए उनका दाखिला कराया गया था, लेकिन कंगना के तो सपने ही कुछ और थे. उन्होंने परिजनों से मॉडल और एक्ट्रेस बनने की अपनी इच्छा बताई, तो सबने विरोध किया. उन पर पढ़ाई का दबाव बनाया जाने लगा, लेकिन एक दिन अचानक उन्हें लगा कि वह इसके लिए नहीं बनी हैं. मात्र 16 बरस की उम्र में घर-परिवार पीछे छोड़कर वह दिल्ली चली आईं. उनके पिता को उनका यह कदम बिल्कुल रास नहीं आया. उन्होंने अपनी बेटी से रिश्ता तोड़ लिया.
इधर अपने मजबूत इरादों के साथ कंगना रनौत ने अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ना शुरू कर दिया. दिल्ली में कुछ समय तक मॉडलिंग करने के बाद उन्होंने अभिनय की तरफ अपना रुख किया. अभिनय की बारीकियां सीखने के लिए अस्मिता थिएटर ग्रुप के साथ जुड़ गईं. इस दौरान उन्होंने कुछ नाटकों में काम किया और उनके अभिनय की खूब सराहना हुई. कंगना खुद बताती हैं कि थिएटर से उनके अंदर आत्मविश्वास का संचार हुआ. थियेटर उनकी जड़ों में शामिल है. मशहूर निर्देशक अरविंद गौड़ की इस संस्था से उन्होंने अभिनय के प्रतीक और बिंब सीखे. उनके साथ अपना पहला नाटक गिरीश कर्नाड का 'रक्त कल्याण' किया था. इसमें ललिताम्बा और दामोदर भट्ट दो पात्रों की भूमिका एक साथ की थी. इससे उनको अपने कैरियर के लिए जरूरी पहचान मिली.
थियेटर के जरिए अपनी एक्टिंग की धार परखने के बाद कंगना रनौत माया नगरी मुंबई पहुंची. वहां अपनी स्ट्रगल के दौरान आशा चंद्रा के ड्रामा स्कूल में चार महीने का कोर्स किया. इसके बाद अपने सपनों की दुनिया में पहुंचने का रास्ता तलाशने में जुट गईं. महेश भट्ट ने उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए उन्हें फिल्म 'गैंगेस्टर' में सिमरन की भूमिका निभाने का अवसर दिया. अपनी पहली ही फिल्म में कंगना के अभिनय और आकर्षण ने दर्शकों को अपना दीवाना बना दिया. साल 2008 में आई मधुर भंडारकर की फिल्म 'फैशन' से कंगना सफलता के शिखर पर पहुंच गई. इसके बाद साल 2011 में आई फिल्म 'तनु वेड्स मनु' ने यह साबित कर दिया कि कंगना हर तरह की भूमिकाएं पूरे विश्वास के साथ निभा सकती हैं. धीरे-धीरे सफलता की सीढियां चढ़ती रहीं.
साल 2014 में फिल्म 'क्वीन' में कंगना रनौत ने एक ऐसी लड़की की भूमिका निभाई जिसका मंगेतर शादी से ठीक पहले उसे छोड़ देता है और वह हाथों में मेहंदी लगाए दुखी मन से अकेले ही अपने हनीमून पर निकल जाती है. इस फिल्म में कंगना के बेहतरीन अभिनय ने उन्हें नेशनल फिल्म अवॉर्ड ही नहीं दिलाया, बल्कि सही मायने में बॉलीवुड की रानी बना दिया. इसके बाद साल 2015 में आई फिल्म 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' के लिए जब बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल अवॉर्ड मिला, तो फिल्म इंडस्ट्री में यह साबित हो गया कि कंगना एक काबिल एक्ट्रेस हैं. कंगना जितनी सफल अभिनेत्री हैं, उनका विवादों से भी उतना ही गहरा नाता है. सच कहें तो कंगना का विवादों से चोली-दामन का साथ है. उनको विवादों का तंदूर भड़काए रखना बहुत पसंद है.
बचपन से ही कंगना के अंदर विरोध का जो गुण है, वह फिल्मी दुनिया में रहते हुए भी उन्होंने बचाए रखा है. यही वजह है कि वह तमाम तरह के भेदभाव के खिलाफ खड़ी नजर आती रहती हैं. चाहे वह पुरूष कलाकारों से कम मेहनताना मिलने का सवाल हो, मीटू विवाद हो या फिर बॉलीवुड में नेपोटिज्म का मुद्दा, कंगना ने हर बार बड़े पुरजोर तरीके से अपनी बात रखी है. उस पर डटी रही हैं. दिवंगत बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मौत के बाद सबसे ज्यादा मुखर होकर कंगना ने ही बोला था. बोलते-बोलते वह कब राजनीतिक सीमाओं में प्रवेश कर गईं, उनको पता ही नहीं चला. उनके बोल सियासी हुए तो प्रतिक्रिया भी हुई. उनके मुंबई स्थित दफ्तर पर सरकारी बुलडोजर चलवा दिया गया, लेकिन कंगना टूटी नहीं डटी रहीं.
मशहूर फिल्म क्रिटिक जय प्रकाश चौकसे कंगना के बारे में लिखते हैं, 'फिल्म इंडस्ट्री में अपनी शर्तों पर काम करने वाली कंगना रनौत अपने पूरे सनकीपन के साथ मिट्टी पकड़ पहलवान की तरह फिल्मी दंगल में लंबे समय से टिकी हुई हैं. अपने संघर्ष के दिनों में वह मुंबई के फुटपाथ पर सोई हैं और आज मुंबई से लेकर मनाली तक, कई भव्य भवन की मालकिन हैं. फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेता राजकुमार बहुत सनकी थे और किशोर कुमार ने सनक का मुखौटा धारण किया था, ताकि वह अजनबी लोगों से बच सकें. इस तरह सनकीपन में कंगना रनौत 'जानी' राजकुमार की तरह हैं. कंगना रनौत, दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा से कई गुना अधिक मेहनताना प्राप्त करती हैं. काम के लिए कहीं नहीं जाती, फिर भी उन्हें प्रस्ताव मिलते रहते हैं.'
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.