पराजय की कहानियां लिखना बेहद मुश्किल काम है. इससे भी मुश्किल है पराजय की किसी कहानी पर फिल्म बनाना. ऐसी फिल्म जो दर्शकों को प्रभावित कर जाए. यही वजह है कि दुनियाभर के सिनेमा में फिल्मकार पराजयों पर फ़िल्में बनाने से बचते हैं. बॉलीवुड में जोखिम लिया था चेतन आनंद ने. उन्होंने पराजय की एक कहानी पर हकीकत के रूप में इतनी अथेंटिक और बेहतरीन फिल्म बनाई कि उसका असर आज भी दर्शकों को भावुक कर देता है. हकीकत ब्लैक एंड व्हाइट में बनी थी और अपने समय की बेहद कामयाब फिल्म थी. फिल्म की कहानी 1962 चीन के साथ देश की जंग को लेकर बनाई गई थी. अंग्रेजों के चंगुल से कुछ ही समय पहले आजाद हुए संसाधनहीन देश ने दिल से एक जज्बाती जंग लड़ा और उसे बहुत कुछ गंवाना पड़ा.
62 में चीन का धोखा और जंग से मिले घाव आजतक नहीं भर पाए हैं. चेतन आनंद के बेटे पिता के जूते में पैर डाल रहे हैं. हालांकि वो युद्ध आधारित फिल्म बनाने की तैयारी में हैं, मगर कहानी पराजय की बजाय जय की है. दरअसल, केतन आनंद पिछले साल लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ देश के जवानों की मुठभेड़ पर फिल्म बनाना चाहते हैं. गलवान घाटी में हमारे सैनिकों ने चीन को अपनी ताकत दिखाई थी और घुसपैठ की कोशिश में आए चीनियों को मार भगाया था. मुठभेड़ में देश के 20 जवान शहीद हुए थे. मगर चीन के भी करीब चार दर्जन सैनिक मारे गए थे जो हमारी संख्या से बहुत ज्यादा है. शुरू शुरू में चीन अपने सैनिकों के मारे जाने की बात को खारिज करता रहा मगर बाद में जब विदेशी मीडिया की रिपोर्ट्स में सैनिकों की हताहत होने के आंकड़े आने लगे तो घोषणा की कि उसके मात्र पांच सैनिक मारे गए थे. गलवान में सैनिकों का शौर्य 62 में मिले घाव पर हलके मरहम की तरह है.
केतन आनंद ने दैनिक...
पराजय की कहानियां लिखना बेहद मुश्किल काम है. इससे भी मुश्किल है पराजय की किसी कहानी पर फिल्म बनाना. ऐसी फिल्म जो दर्शकों को प्रभावित कर जाए. यही वजह है कि दुनियाभर के सिनेमा में फिल्मकार पराजयों पर फ़िल्में बनाने से बचते हैं. बॉलीवुड में जोखिम लिया था चेतन आनंद ने. उन्होंने पराजय की एक कहानी पर हकीकत के रूप में इतनी अथेंटिक और बेहतरीन फिल्म बनाई कि उसका असर आज भी दर्शकों को भावुक कर देता है. हकीकत ब्लैक एंड व्हाइट में बनी थी और अपने समय की बेहद कामयाब फिल्म थी. फिल्म की कहानी 1962 चीन के साथ देश की जंग को लेकर बनाई गई थी. अंग्रेजों के चंगुल से कुछ ही समय पहले आजाद हुए संसाधनहीन देश ने दिल से एक जज्बाती जंग लड़ा और उसे बहुत कुछ गंवाना पड़ा.
62 में चीन का धोखा और जंग से मिले घाव आजतक नहीं भर पाए हैं. चेतन आनंद के बेटे पिता के जूते में पैर डाल रहे हैं. हालांकि वो युद्ध आधारित फिल्म बनाने की तैयारी में हैं, मगर कहानी पराजय की बजाय जय की है. दरअसल, केतन आनंद पिछले साल लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ देश के जवानों की मुठभेड़ पर फिल्म बनाना चाहते हैं. गलवान घाटी में हमारे सैनिकों ने चीन को अपनी ताकत दिखाई थी और घुसपैठ की कोशिश में आए चीनियों को मार भगाया था. मुठभेड़ में देश के 20 जवान शहीद हुए थे. मगर चीन के भी करीब चार दर्जन सैनिक मारे गए थे जो हमारी संख्या से बहुत ज्यादा है. शुरू शुरू में चीन अपने सैनिकों के मारे जाने की बात को खारिज करता रहा मगर बाद में जब विदेशी मीडिया की रिपोर्ट्स में सैनिकों की हताहत होने के आंकड़े आने लगे तो घोषणा की कि उसके मात्र पांच सैनिक मारे गए थे. गलवान में सैनिकों का शौर्य 62 में मिले घाव पर हलके मरहम की तरह है.
केतन आनंद ने दैनिक भास्कर अखबार को बताया कि गलवान की कहानी के रूप में वो हकीकत 2.0 बनाने जा रहे हैं. फिल्म में गलवान के क्लेश के साथ ही देश में कोरोना महामारी के हालात और उससे जूझ रहे कोरोना वॉरियर्स की भी कहानी हो सकती है. रिपोर्ट के मुताबिक़ केतन ने कहा- "लॉकडाउन के समय में एक तरफ गलवान में चीन के आक्रमण में हमारे जवान शहीद हुए. दूसरी ओर हमारे फ्रंट लाइन वॉरियर्स ने कोरोना के खिलाफ जंग लड़ी. इन नए वॉरियर्स की कहानी को लेकर वह हकीकत 2.0 बना रहे हैं." प्रोजेक्ट में उनका सहयोग कर सरिता चौरसिया कर रही हैं. सरिता ने बताया- "स्क्रिप्ट और प्रोजेक्ट से जुड़े दूसरे पेपर वर्क का काम हो चुका है."
इससे पहले केतन आनंद पिता की फिल्म को कलर में लाने की कोशिशों में जुटे थे. हकीकत के कलर वर्जन पर काफी काम किया गया है. इसमें फिल्म की लेंथ भी कम की गई है और साउंड में भी फेरबदल हुआ है. करोड़ों खर्च कर हकीकत को कलर बनाने का चेतन आनंद का सपना पूरा हो गया, बावजूद फिल्म को अभी तक दोबारा रिलीज नहीं किया जा सका है. हकीकत के कलर वर्जन को रिलीज करने के लिए केतन काफी मेहनत कर रहे हैं. उनके मुताबिक कोरोना की वजह से भी फिल्म की रिलीज में अड़चनें आईं. अब युद्ध आधारित भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया और शेरशाह जैसी फिल्मों के अच्छे ओटीटी रेस्पोंस को देखते हुए केतन भी हकीकत को ओटीटी पर लाना चाहते हैं.
हकीकत 62 की जंग पर आधारित है. जंग के बाद फिल्म शुरू हुई और साल 1964 में रिलीज हुई. हकीकत लद्दाख में तैनात एक छोटी पलटन के बहादुरी की कहानी है. हकीकत में धर्मेंद्र, बलराज साहनी और जयंत ने अहम भूमिकाएं निभाई थीं. फिल्म के गाने बहुत लोकप्रिय हुए थे. कर चले हम फ़िदा जानों तन साथियों और हो के मजबूर मुझे उसने बुलाया होगा- हकीकत के ही अमर गीत हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.