यूं तो कोरोना वायरस (Corona Virus) की मार तमाम सेक्टर्स पर पड़ी लेकिन जो सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ या ये कहें कि इस महामारी ने जिस सेक्टर की रीढ़ तोड़ी वो एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री (Entertainment Industry) थी. भारत में जनता कर्फ्यू (Janata Curfew) के ऐलान के साथ ही थियेटर बंद हो गए थे अब जबकि चीजें नार्मल हो रही हैं तो एक भले 50 % ऑडियंस ही सही लेकिन थियेटर खोले जा रहे हैं और फिल्में भी रिलीज हो रही हैं. चूंकि लंबे समय का घाटा पूरा करना है और यूं भी दर्शकों पर OTT का चस्का चढ़ चुका है तो निर्माता निर्देशकों के लिए भी जरूरी है कि वो क्वालिटी का ध्यान रखें. नहीं तो अपनी अपनी फिल्मों को लेकर जो उनके अरमां हैं वो आंसुओं में बह जाएंगे और वो मुसीबत में आ जाएंगे. मुसीबत किस हद तक होग? इसका अंदाजा कियारा आडवाणी (Kiara Advani) और आदित्य सील (Aditya Seal) स्टारर 'इंदू की जवानी' (Indoo Ki Jawani ) और उसके बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है. जैसी फ़िल्म है, स्क्रिप्ट में इतना मिस मैच है कि एक अच्छी कॉमेडी फिल्म, बिलो एवरेज कहानी बन कर रह गई.
फ़िल्म अगर पिटी है या ये कहें कि दर्शकों को रिझाने में नाकाम हुई है तो इस गुनाह का अकेला गुनाहगार हम एक्टर आदित्य सील और एक्ट्रेस कियारा आडवाणी को नहीं मानेंगे. इस ब्लंडर के जिम्मेदार आदित्य और कियारा के अलावा प्रोड्यूसर डायरेक्टर और सबसे ज्यादा स्क्रिप्ट राइटर है. फ़िल्म अगर डूबी है तो इसके लिए स्क्रिप्ट राइटर को सामने आना चाहिए और अपना गुनाह कबूलना चाहिए.
क्या है फ़िल्म की कहनी
फ़िल्म की शुरुआत होती है उस सीन से जिसमें इंदिरा गुप्ता यानी इंदू को गाज़ियाबाद की एक ऐसी लड़की के रूप में दिखाया गया है जिसपर क्या इलाके के लड़के,...
यूं तो कोरोना वायरस (Corona Virus) की मार तमाम सेक्टर्स पर पड़ी लेकिन जो सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ या ये कहें कि इस महामारी ने जिस सेक्टर की रीढ़ तोड़ी वो एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री (Entertainment Industry) थी. भारत में जनता कर्फ्यू (Janata Curfew) के ऐलान के साथ ही थियेटर बंद हो गए थे अब जबकि चीजें नार्मल हो रही हैं तो एक भले 50 % ऑडियंस ही सही लेकिन थियेटर खोले जा रहे हैं और फिल्में भी रिलीज हो रही हैं. चूंकि लंबे समय का घाटा पूरा करना है और यूं भी दर्शकों पर OTT का चस्का चढ़ चुका है तो निर्माता निर्देशकों के लिए भी जरूरी है कि वो क्वालिटी का ध्यान रखें. नहीं तो अपनी अपनी फिल्मों को लेकर जो उनके अरमां हैं वो आंसुओं में बह जाएंगे और वो मुसीबत में आ जाएंगे. मुसीबत किस हद तक होग? इसका अंदाजा कियारा आडवाणी (Kiara Advani) और आदित्य सील (Aditya Seal) स्टारर 'इंदू की जवानी' (Indoo Ki Jawani ) और उसके बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है. जैसी फ़िल्म है, स्क्रिप्ट में इतना मिस मैच है कि एक अच्छी कॉमेडी फिल्म, बिलो एवरेज कहानी बन कर रह गई.
फ़िल्म अगर पिटी है या ये कहें कि दर्शकों को रिझाने में नाकाम हुई है तो इस गुनाह का अकेला गुनाहगार हम एक्टर आदित्य सील और एक्ट्रेस कियारा आडवाणी को नहीं मानेंगे. इस ब्लंडर के जिम्मेदार आदित्य और कियारा के अलावा प्रोड्यूसर डायरेक्टर और सबसे ज्यादा स्क्रिप्ट राइटर है. फ़िल्म अगर डूबी है तो इसके लिए स्क्रिप्ट राइटर को सामने आना चाहिए और अपना गुनाह कबूलना चाहिए.
क्या है फ़िल्म की कहनी
फ़िल्म की शुरुआत होती है उस सीन से जिसमें इंदिरा गुप्ता यानी इंदू को गाज़ियाबाद की एक ऐसी लड़की के रूप में दिखाया गया है जिसपर क्या इलाके के लड़के, क्या मोहल्ले के अंकल. सब फिदा हैं. इंदू भले ही स्मॉल टाउन गर्ल हो लेकिन उसका बॉय फ्रेंड है. इंदू का बॉय फ्रेंड सतीश भी यूपी के एक छोटे से शहर से ताल्लुख रखता है इसलिए उसका भी एजेंडा बस यही है कि वो अपनी गर्ल फ्रेंड के साथ एक रात बिता ले.
इंदू एक ऐसी लड़की है जो शादी से पहले सेक्स के खिलाफ है. इसी उधेड़ बुन में इंदू अपनी दोस्त सोनल (मल्लिका दुआ) से राय मांगती है जिसपर उसे गूगल से ज्यादा विश्वास है. सोनल भी लड़कों के बारे में खूब जानती है उसे पता है किस चीज को लेकर कोई लड़का किसी लड़की की तरफ आकर्षित होता है.
कहां गोल गोल घूमी और दर्शकों को कंफ्यूज कर गयी कहानी ?
जैसा कि हम पहले ही बता चुके है फ़िल्म की दर्शकों ने कोई खास पसंद नहीं किया है और कहीं न कहीं फ़िल्म पिट चुकी है. इस स्टेटमेंट के पीछे हमारे पास माकूल वजहें हैं. कहानी में इंदू अपने बॉयफ्रेंड को एक अन्य लड़की के साथ सेक्स करते हुए देख लेती है और दोनों का ब्रेक अप हो जाता है. अब चूंकि इंदू हर चीज के लिए अपनी दोस्त सोनल से राय मशवरा करती है तो सोनल, इंदू को डेटिंग ऐप से वन नाइट स्टैंड के लिए लड़के तलाशने की राय देती है. इंदू अपनी दोस्त की बात मानती है और यहीं उसकी मुलाकात होती है समर (आदित्य सील) से.
समर को फ़िल्म में बतौर पाकिस्तानी नागरिक दिखाया गया है जो बातचीत के बाद इंदू के घर आता है. अभी फ़िल्म में ये सीन दर्शक समझ भी नहीं पाए थे कि अगले सीन में दिखाया गया है कि एक आतंकवादी पुलिस वालों पर गोली चलाकर भागता है. आतंकवादी और समर के तार आपस में जुड़े हुए हैं.
चूंकि डेटिंग ऐप एक नया कांसेप्ट था इसलिए बहुत कुछ हो सकता था मगर इंडिया पाकिस्तान करके फ़िल्म के लेखक और निर्देशक अबीर सेनगुप्ता ने एक अच्छी भली कहानी की लंका लगा दी. क्योंकि फ़िल्म में इंडिया पाकिस्तान कॉन्फ्लिक्ट को दिखाया गया है इसलिए कई कड़ियां एक साथ उलझ गयीं जिसने सीधे और साफ तौर पर फ़िल्म और उसकी कहानी को प्रभावित किया है.
फ़िल्म देखकर शुरुआत में थोड़ी बहुत हंसी आती है लेकिन जैसे जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती है बोरियत का एहसास होता है और इंटरवल तक फ़िल्म बुरी तरह बोझिल हो जाती है.
फ़िल्म में एक स्मॉल टाउन गर्ल के रूप में कियारा ने एक्टिंग अच्छी की है. वहीं बात आदित्य सील की हो तो जब जब उन्होंने डायलॉग बोले हैं महसूस होता है कि वो ये काम ख़ुशी से नहीं बल्कि दिए गए एक टास्क के रूप में कर रहे हैं. फ़िल्म में राकेश बेदी भी हैं. राकेश बेदी एक अनुभवी कलाकार हैं मगर जिस तरह का काम उनसे निर्देशक ने लिया टैलेंट जाया हुआ है.
बहरहाल अब जबकि कियारा की फ़िल्म रिलीज हो गयी है और इसका धीमा कलेक्शन हो रहा है. देखना दिलचस्प रहेगा कि जैसे जैसे दिन बीतेंगे फ़िल्म क्या गुल खिलाती है.
अंत में जाते जाते हम फिर उसी बात को दोहराना चाहेंगे जिसका जिक्र हमने उपरोक्त पंक्तियों में किया. स्क्रिप्ट राइटर के अलावा निर्माता निर्देशक और एक्टर इस बात को समझें कि कोरोना की बदौलत सिनेमा का स्वरूप बदल गया है. अब दर्शक उन्हीं फिल्मों को हाथों हाथ लेगा जिनमें क्वालिटी होगी. इधर उधर की बातों को दर्शकों को सिरे से खारिज कर दिया जाएगा.
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