पिछले साल कोरोना महामारी की आमद के कुछ हफ़्तों बाद देशभर में कड़े लॉकडाउन की घोषणा हुई थी. जरूरी सेवाओं को छोड़कर लगभग सारे काम-धंधे बंद हो गए थे. फिल्म इंडस्ट्री पर तो वज्रपात की तरह थी पहली लहर. ना फिल्मों की शूटिंग हो रही थी और जो फ़िल्में बनकर तैयार थीं, लॉकडाउन में उन्हें कहां रिलीज किया जाए- बड़ा सवाल खड़ा हो गया था. जिन्हें अच्छे दिनों का इंतज़ार करना ठीक लगा उन्होंने तो रिलीज डेट आगे खिसका दी. पर जो इंतज़ार नहीं कर पाए वो अपने-अपने प्रोजेक्ट OTT पर ले गए. इस प्रक्रिया में नफे-नुकसान की बात फिर कभी. इंतज़ार करने वालों को लगा था कि नए साल में (2021 में) एक नए सिरे से चीजों को शुरू करेंगे. धीरे-धीरे कोरोना केसेस की रफ़्तार में कमी के साथ जिंदगी वापस ढर्रे पर लौटने लगी थी और बॉलीवुड भी पुराने तेवर में नजर आने लगा था. लेकिन अचानक से दूसरी लहर ने एक झटके में चीजों को वहीं ला पटका, जहां इस महीने में पिछले साल बॉलीवुड था.
दूसरी लहर में देश के कई बड़े हिस्से सख्त पाबंदियों और लॉकडाउन में हैं. महाराष्ट्र कोरोना का केंद्र बना हुआ है और पुणे, मुंबई, थाणे की हालत नाजुक है. महाराष्ट्र की तबियत जिस तरह दिख रही है, बॉलीवुड भी लगभग वैसे ही परेशान हाल है. इसी महीने ईद से बॉलीवुड की बड़ी फिल्मों की रिलीज का सिलसिला शुरू होना था. लेकिन बंदी के सियापे में हाल फिलहाल तक कारोबार पर अँधेरे के बादल साफ़ नजर आ रहे हैं. ये दूसरी बात है कि शूटिंग का काम किसी तरह शुरू है. लेकिन शहर, मॉल, सिंगल स्क्रीन और मल्टीप्लेक्स बंद होने की दशा में भला फ़िल्में कहां रिलीज की जाएं. बॉलीवुड अबतक मुंबई/दिल्ली/बेंगलुरु सर्किट के सिंगल स्क्रीन और मल्टीप्लेक्स को ही ध्यान में रखकर फ़िल्में बना रहा है. इसकी वजह भी है. ये वो शहर हैं जो बॉलीवुड को मुनाफा कमाने में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं.
भारत में मनोरंजन कारोबार दिन दूनी और रात चौगुनी स्पीड से बढ़ रहा है. चार साल पहले मनोरंजन कारोबार करीब 22 बिलियन डॉलर था जो पिछले साल तक 31 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच चुका है. इसमें भी सबसे...
पिछले साल कोरोना महामारी की आमद के कुछ हफ़्तों बाद देशभर में कड़े लॉकडाउन की घोषणा हुई थी. जरूरी सेवाओं को छोड़कर लगभग सारे काम-धंधे बंद हो गए थे. फिल्म इंडस्ट्री पर तो वज्रपात की तरह थी पहली लहर. ना फिल्मों की शूटिंग हो रही थी और जो फ़िल्में बनकर तैयार थीं, लॉकडाउन में उन्हें कहां रिलीज किया जाए- बड़ा सवाल खड़ा हो गया था. जिन्हें अच्छे दिनों का इंतज़ार करना ठीक लगा उन्होंने तो रिलीज डेट आगे खिसका दी. पर जो इंतज़ार नहीं कर पाए वो अपने-अपने प्रोजेक्ट OTT पर ले गए. इस प्रक्रिया में नफे-नुकसान की बात फिर कभी. इंतज़ार करने वालों को लगा था कि नए साल में (2021 में) एक नए सिरे से चीजों को शुरू करेंगे. धीरे-धीरे कोरोना केसेस की रफ़्तार में कमी के साथ जिंदगी वापस ढर्रे पर लौटने लगी थी और बॉलीवुड भी पुराने तेवर में नजर आने लगा था. लेकिन अचानक से दूसरी लहर ने एक झटके में चीजों को वहीं ला पटका, जहां इस महीने में पिछले साल बॉलीवुड था.
दूसरी लहर में देश के कई बड़े हिस्से सख्त पाबंदियों और लॉकडाउन में हैं. महाराष्ट्र कोरोना का केंद्र बना हुआ है और पुणे, मुंबई, थाणे की हालत नाजुक है. महाराष्ट्र की तबियत जिस तरह दिख रही है, बॉलीवुड भी लगभग वैसे ही परेशान हाल है. इसी महीने ईद से बॉलीवुड की बड़ी फिल्मों की रिलीज का सिलसिला शुरू होना था. लेकिन बंदी के सियापे में हाल फिलहाल तक कारोबार पर अँधेरे के बादल साफ़ नजर आ रहे हैं. ये दूसरी बात है कि शूटिंग का काम किसी तरह शुरू है. लेकिन शहर, मॉल, सिंगल स्क्रीन और मल्टीप्लेक्स बंद होने की दशा में भला फ़िल्में कहां रिलीज की जाएं. बॉलीवुड अबतक मुंबई/दिल्ली/बेंगलुरु सर्किट के सिंगल स्क्रीन और मल्टीप्लेक्स को ही ध्यान में रखकर फ़िल्में बना रहा है. इसकी वजह भी है. ये वो शहर हैं जो बॉलीवुड को मुनाफा कमाने में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं.
भारत में मनोरंजन कारोबार दिन दूनी और रात चौगुनी स्पीड से बढ़ रहा है. चार साल पहले मनोरंजन कारोबार करीब 22 बिलियन डॉलर था जो पिछले साल तक 31 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच चुका है. इसमें भी सबसे बड़ा हिस्सा फिल्मों का और उसमें भी हिंदी सिनेमा काफी आगे है. बॉलीवुड कारोबार की गणित समझने वाले जानते हैं कि मुंबई-थाणे कैसे बॉक्स ऑफिस पर सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है. इंडस्ट्री के फिल्म बिजनेस के तीन अहम बिंदु हैं.
#1. इन्वेस्टर/प्रोड्यूसर
पहला बिंदु वह निर्माता है जो फिल्म में पैसे निवेश करता है. निर्माता एक हो सकता है या कई भी. आजकल सलमान खान, अक्षय कुमार, शाहरुख खान, अजय देवगन और आमिर खान जैसे लगभग सभी बड़े सितारे फीस ना लेकर खुद ही फिल्मों को प्रोड्यूस कर रहे हैं. ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए लागत का ज्यादा हिस्सा अपने पास ही रखते हैं. ये ट्रेंड पिछले दो दशक से बदला है. पहले अभिनेता फिल्मों में मुनाफा साझा करने की बजाय मेहनताने को तरजीह देते थे.
#2. डिस्ट्रीब्यूशन
फिल्म बिजनेस का दूसरा बिंदु वितरण है. आजकल सलमान खान जैसे सितारों की कंपनियां फ़िल्में डिस्ट्रिब्यूट भी करती हैं. फिल्मों के मुनाफे का छोटा हिस्सा देकर सबडिस्ट्रीब्यूटर को वितरण अधिकार दे देते हैं. डिस्ट्रीब्यूशन में सितारों का प्रवेश नई टेक्नोलोजी के बाद बनी व्यवस्था की वजह से हुआ है. दरअसल, पहले फिल्मों की कमाई का जरिया थियेटर के अलावा ऑडियो म्यूजिक बेचने भर में था. म्यूजिक कंपनियां ऑडियो राइट खरीदती थीं जबकि जबकि डिस्ट्रिब्यूटर थियेटर एग्जिबिशन राइट. लेकिन सैटेलाइट चैनलों के आने और डिजिटल प्लेटफॉर्म डेवलप होने के बाद फिल्मों से कमाई के कई नए और बड़े रास्ते बन गए. सैटेलाइट और डिजिटल राइट इसी में शामिल है. बड़े सितारे या बैनर इन राइट्स के जरिए खुद मुनाफा कमा रहे हैं और डिस्ट्रिब्यूटर को सिर्फ थियेटर एग्जिबिशन का अधिकार देते हैं.
#3. एग्जिबिशन
फिल्म बिजनेस का तीसरा अहम बिंदु थियेटर एग्जिबिशन है. थियेटर दो तरह के होते हैं. सिंगल स्क्रीन और मल्टीप्लेक्स. थियेटर मालिक डिस्ट्रिब्यूटर से फिल्म खरीदकर उसे प्रदर्शित करते हैं. डिस्ट्रिब्यूटर और थियेटर मालिक हफ़्तों के आधार पर आपस में मुनाफा शेयर करते हैं जो समय के साथ कम होता जाता है और ऊपर निर्माता तक पहुंचता . मल्टीप्लेक्स पहले हफ्ते डिस्ट्रिब्यूटर को 50 प्रतिशत, दूसरे हफ्ते 42 प्रतिशत, तीसरे हफ्ते 37 प्रतिशत देता है. सिंगल स्क्रीन में मुनाफा शेयरिंग लगभग फिक्स होता है. थियेटर मालिक डिस्ट्रिब्यूटर के साथ 70-90 प्रतिशत तक मुनाफा साझा करते हैं. यह भी ऊपर निर्माता तक जाता है.
फिल्म बिजनेस में यहां डिस्ट्रिब्यूटर की वैल्यू उसकी टेरिटरी के रेवेन्यू आधार पर अहम होती है. वैसे तो समूचे देश की टेरिटरी कुल 14 सर्किट में बंटी हुई है. इसमें मुंबई, दिल्ली/यूपी, ईस्ट पंजाब, सेंट्रल इंडिया, सीपी बेरार, बिहार, राजस्थान, निजाम, वेस्ट बंगाल, तमिलनाडु, मैसूर, केरला, ओडिशा और आसाम शामिल हैं. सर्किट राज्यों के मौजूदा नक़्शे के आधार पर नहीं हैं. जैसे ईस्ट पंजाब में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर के साथ लद्दाख भी है. निजाम सर्किट में महाराष्ट्र कर्नाटक के कुछ हिस्सों के साथ तेलंगाना है. अन्य सर्किट भी अलग-अलग राज्यों के क्षेत्रों को समेटे हुए हैं. भले ही दिल्ली/यूपी/बिहार भले ही हिंदी टेरिटरी के रूप में नजर आते हैं, मगर हिंदी सिनेमा को रेवेन्यू देने के मामले में वो काफी पीछे हैं.
कैसे बॉलीवुड के लिए बिजनेस लाइफलाइन है मुंबई?
मान लीजिए कि अगर बॉलीवुड की कोई हिंदी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर 100 करोड़ रुपये की कमाई करती है तो उसका करीब 40 करोड़ अकेले मुंबई सर्किट में आता है. मुंबई सर्किट में महाराष्ट्र के ज्यादातर बड़े शहर हैं. इनके अलावा गोवा, गुजरात, कर्नाटक का कुछ हिस्सा, दमन दीव और दादर नगर हवेली शामिल है. बॉलीवुड को रेवेन्यू देने के मामले में दूसरे नंबर पर दिल्ली/यूपी (दिल्ली-यूपी-उत्तराखंड) सर्किट है जिसका ज्यादातर रेवेन्यू दिल्ली/एनसीआर पर निर्भर है. और तीसरे नंबर पर आता है मैसूर सर्किट. मैसूर सर्किट में बेंगलुरु से बॉलीवुड फिल्मों की खूब कमाई होती है. एक अनुमान है कि करीब 70 प्रतिशत से ज्यादा तक रेवेन्यू इन्हीं तीन सर्किट से बॉलीवुड को मिल जाता है. बताने की जरूरत नहीं है कि कैसे मुंबई बॉलीवुड के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है. बॉक्स ऑफिस के लिहाज से बॉलीवुड की कारोबारी सेहत तभी सुधरेगी जब मुंबई/दिल्ली सर्किट से कोरोना का साया कमजोर होगा और जनजीवन सामान्य.
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