देश के नौजवानों का बहुप्रतीक्षित वेबसीरीज 'कोटा फैक्ट्री सीजन 2' ओटीटी प्लेटफॉर्म टफ्लिक्स पर रिलीज हो चुका है. इसमें मयूर मोरे, जितेंद्र कुमार, आलम खान, रंजन राज, अहसास चन्ना, समीर सक्सेना और वैभव ठक्कर अहम भूमिकाओं में हैं. हल्के-फुल्के रोमांच से भरपूर पहले सीजन के बाद, जो कि यूट्युब के व्यूज के हिसाब से शानदार था, अब इस शो का दूसरा सीजन नेटफ्लिक्स पर वापस आया है. इस सीजन में नए बैच के साथ पांच एपीसोड हैं जो पिछले की तुलना में कम हैं. पहले सीजन में जहां एक तरफ अल्हड़ उत्साह था. इसमें राजस्थान के कोटा में आईआईटी की तैयारी कर रहे छात्रों की कहानी, टीनएजर्स को आकर्षित करने वाला इसका माहौल और इन होनहारों की नई पौध को तैयार करने का दावा ठोकने वाले कोचिंग इंस्टीट्यूट की कहानी दिखाई गई थी. वहीं दूसरे सीजन में इसी क्रम को आगे बढ़ाया गया है.
कोटा फैक्ट्री सीजन 2 में एक छात्र वैभव के नजरिए से इंजीनियरिंग के कोचिंग इंस्टीट्यूट को दिखाया गया है, जिसमें छात्रों की एक ऐसी कम्यूनिटी है जो आईआईटी जैसे प्रतियोगी परीक्षा को पास करने के लिए अपना बचपन और अपनी जिन्दगी का सबसे बहुमूल्य समय कुर्बान कर देती है. इस देश में सबसे टॉप के संस्थान में अपनी जगह बनाने का मतलब यह है कि उसी के बराबर सम्मान मिलना. लेकिन विडंबना ये है कि देश का भावी लीडर बनने के इच्छुक इन छात्रों में महत्वाकांक्षा नहीं दिखाई गई है, बल्कि एक पैटर्न की बात की गई है, जिसके तहते कुछ छात्र अपने जीवन में सफलता हासिल करते हैं. वेब सीरीज के टाइटल में 'फैक्ट्री' शब्द को देखकर ऐसा लगता है कि ये उस शिक्षा व्यवस्था पर एक करारा तंज साबित होगा, लेकिन नाम बड़े और दर्शन छोटे जैसा मामला साबित होता है. वैसा कुछ इसमें प्रतीत नहीं हो पाता.
देश के नौजवानों का बहुप्रतीक्षित वेबसीरीज 'कोटा फैक्ट्री सीजन 2' ओटीटी प्लेटफॉर्म टफ्लिक्स पर रिलीज हो चुका है. इसमें मयूर मोरे, जितेंद्र कुमार, आलम खान, रंजन राज, अहसास चन्ना, समीर सक्सेना और वैभव ठक्कर अहम भूमिकाओं में हैं. हल्के-फुल्के रोमांच से भरपूर पहले सीजन के बाद, जो कि यूट्युब के व्यूज के हिसाब से शानदार था, अब इस शो का दूसरा सीजन नेटफ्लिक्स पर वापस आया है. इस सीजन में नए बैच के साथ पांच एपीसोड हैं जो पिछले की तुलना में कम हैं. पहले सीजन में जहां एक तरफ अल्हड़ उत्साह था. इसमें राजस्थान के कोटा में आईआईटी की तैयारी कर रहे छात्रों की कहानी, टीनएजर्स को आकर्षित करने वाला इसका माहौल और इन होनहारों की नई पौध को तैयार करने का दावा ठोकने वाले कोचिंग इंस्टीट्यूट की कहानी दिखाई गई थी. वहीं दूसरे सीजन में इसी क्रम को आगे बढ़ाया गया है.
कोटा फैक्ट्री सीजन 2 में एक छात्र वैभव के नजरिए से इंजीनियरिंग के कोचिंग इंस्टीट्यूट को दिखाया गया है, जिसमें छात्रों की एक ऐसी कम्यूनिटी है जो आईआईटी जैसे प्रतियोगी परीक्षा को पास करने के लिए अपना बचपन और अपनी जिन्दगी का सबसे बहुमूल्य समय कुर्बान कर देती है. इस देश में सबसे टॉप के संस्थान में अपनी जगह बनाने का मतलब यह है कि उसी के बराबर सम्मान मिलना. लेकिन विडंबना ये है कि देश का भावी लीडर बनने के इच्छुक इन छात्रों में महत्वाकांक्षा नहीं दिखाई गई है, बल्कि एक पैटर्न की बात की गई है, जिसके तहते कुछ छात्र अपने जीवन में सफलता हासिल करते हैं. वेब सीरीज के टाइटल में 'फैक्ट्री' शब्द को देखकर ऐसा लगता है कि ये उस शिक्षा व्यवस्था पर एक करारा तंज साबित होगा, लेकिन नाम बड़े और दर्शन छोटे जैसा मामला साबित होता है. वैसा कुछ इसमें प्रतीत नहीं हो पाता.
Kota Factory season 2 की कहानी
कोटा फैक्ट्री सीजन 2 की कहानी की शुरूआत सीजन 1 के आखिरी से होती है. महेश्वरी इंस्टिट्यूट में वैभव (मयूर मोरे) एडमिशन लेता है. पहले दिन वैभव और शुसरूत उर्फ सुसु डीन की बात सुनकर हैरान रह जाते हैं, क्योंकि उन्होंने एक साल देरी से वहां एडमिशन लिया है. आईआईटी में एडमिशन का सपना लिए दोनों मेहनत से अपनी पढ़ाई शुरू कर देते हैं. लेकिन उनको जीतू भइया (जितेंद्र कुमार) की कमी खल रही है, जो उनदिनों इंस्टिट्यूट नहीं आ रहे हैं. स्टूडेंट्स को बाद में पता चलता है कि जीतू भइया को प्रोडोजी क्लासेस से निकाल दिया गया. हालांकि, सच ये होता है कि जीतू भईया अपना खुद का इंस्टिट्यूट खोलने के लिए वहां से चले जाते हैं.
जीतू भैया के इस स्टार्टअप में बहुत सारी समस्याएं भी रही हैं. उधर, वैभव का दोस्त सुसु परेशान है. उसे समझ नहीं आ रहा है कि वो आईआईटी क्यों करने जा रहा है. वो अपने दोस्त वैभव से इस बारे में बातचीत करता है, लेकिन उसके जवाब से संतुष्ट नहीं होता. वैभव उसे एक सीनियर के पास लेकर जाता है, जो खुद डिप्रेस होता है. इसके बाद वैभव उसे लेकर जीतू भइया के पास जाता है. वहां वरतिका (रेवती पिल्ले), मीना और उदय पहले से ही मौजूद होते हैं, जो वहां कोचिंग में एडमिशन लेने आए हुए होते हैं. जीतू भइया की बात सुनने के बाद सुसु एक बार फिर मोटिवेट हो जाता है और आईआईटी की परीक्षा की तैयारी में दोबारा जुट जाता है.
Kota Factory season 2 की समीक्षा
ब्लैक एंड व्हाइट वेब सीरीज कोटा फैक्ट्री के डायरेक्टर राघव सुब्बू ने अपना काम बखूबी किया है. तमाम कमियों को उन्होंने अपने निर्देशन के दम पर छुपा लिया है. इसकी पटकथा लेखन टीम का काम भी बढ़िया है. सबसे दमदार तो इसके संवाद हैं. कई जगह संवाद इतने मजबूत हैं कि दर्शक उस स्थिति के बाद भी सोचने पर मजबूर हो जाते हैं. जैसे, एक अभिभावक परेशान होकर जीतू भइया के पास आते हैं. अपने बच्चे की समस्या साझा करते हैं. इस पर जीतू भइया बोलते हैं, ''सर सेलिब्रेट किजीए कि आपका बच्चा उदास है, उदास है क्योंकि सीरियस था, सीरियस था क्योंकि जिम्मेदार था. अब 18 की उम्र में आपका बच्चा जिम्मेदार हो गया है, बड़ा गोल सेट करके लड़ रहा है, ये तो आपकी पेरेंटिंग सफल हुई.'' ये जवाब तो उस अभिभावक के लिए है, लेकिन इस वेब सीरीज को देख रहे तमाम अभिभावकों को संतुष्टि मिलेगी.
जहां तक वेब सीरीज में कलाकारों की परफॉर्मेंस की बात है, तो हर किसी ने अपने हिस्से का काम अच्छे से किया है. आईआईटी की तैयारी कर रहे एक छात्र वैभव का किरदार अभिनेता मयूर मोरे ने निभाया है. मयूर इस किरदार में एकदम सटीक बैठते हैं. शिवांगी के किरदार में अहसास चन्ना इस सीजन में कम दिखाई देती हैं, लेकिन जब भी दिखती हैं अपनी छाप छोड़ जाती हैं. नए सीजन में एक नए किरदार को जोड़ा गया है, जिसका नाम है रोशेश. इसे राजेश कुमार ने निभाया है. अपने अभिनय से राजेश ने इतना जरूर बता दिया है कि भविष्य में वो तुरूप का पत्ता साबित होने वाले हैं. जीतू भइया का रोल करने वाले अभिनेता जितेंद्र कुमार ने हमेशा की तरह दर्शकों के सामने अपना दमदार अभिनय पेश किया है. कुल मिलाकर, 'कोटा फैक्ट्री सीजन 2' एक बार देखनी चाहिए. स्कूल और कॉलेज के छात्रों को बहुत पसंद आएगी.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.