चकाचौंध से भरी फ़िल्मी दुनिया भले इस तथ्य को अस्वीकार्य करें कि वहां किसी प्रकार की कोई अराजकता नहीं है पर समय समय पर कलाकारों के साथ हुए दुर्व्यवहार, आर्थिक अभाव में उन कलाकारों का जीवन व्यतीत होना सच्चाई बयां कर ही देती है. टीवी, फ़िल्म और थियेटर की दुनिया से ताल्लुक रखने वाले अभिनेता श्रीवल्लभ व्यास का 7 जनवरी को जयपुर में निधन हो गया. उनकी मृत्यु के पीछे के कारण कुछ और नहीं सिर्फ और सिर्फ आर्थिक स्थिति खराब होना और सही इलाज का न हो पाना है.
आपको याद होगा, सदी के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को फ़िल्म कुली की शूटिंग के दौरान चोट लगी थी, यह चोट इतनी गहरी थी कि डॉक्टरों ने अमिताभ को क्लीनिकली डेड तक घोषित कर दिया था. यह खबर देश और दुनिया में ऐसे फैली जैसे प्रलय आ गया हो. देश के प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी की अपनी अमेरिका तक की रद्द करनी पड़ी. आखिरकार डॉक्टर्स की मेहनत, फैंस के प्यार और बेशुमार दौलत से अमिताभ मौत के मुंह से वापस आ गए. लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि अगर अमिताभ की जगह वहां कोई और अभिनेता होता तो क्या पूरा फ़िल्म उद्योग और देश की भावुक जनता उसके लिए यही सब कर पाते. शायद जवाब हो नहीं.
कहा जा सकता है कि, किसी भी फ़िल्म के लिए हर व्यक्ति उतना ही जरूरी है जितना उस फिल्म का निर्देशक. इसके बावजूद इंडस्ट्री का सौतेला व्यवहार एक नए विमर्श को हमेशा केंद्र में खड़ा करता हुआ दिखता है. 60 से अधिक फिल्में, तमाम टीवी शो तथा विरासत जैसे थियेटर प्ले के जरिये अपनी निजी पहचान बनाने वाले श्रीवल्लभ व्यास की मृत्यु सामान्य मृत्यु नहीं है. इससे कई बड़े सवालों की तरफ हमारा ध्यान जरूर खिंचना चाहिए. छोटे कलाकारों के लिए यह इंडस्ट्री कैसे इतना सौतेला व्यवहार कर सकती है इसका ही...
चकाचौंध से भरी फ़िल्मी दुनिया भले इस तथ्य को अस्वीकार्य करें कि वहां किसी प्रकार की कोई अराजकता नहीं है पर समय समय पर कलाकारों के साथ हुए दुर्व्यवहार, आर्थिक अभाव में उन कलाकारों का जीवन व्यतीत होना सच्चाई बयां कर ही देती है. टीवी, फ़िल्म और थियेटर की दुनिया से ताल्लुक रखने वाले अभिनेता श्रीवल्लभ व्यास का 7 जनवरी को जयपुर में निधन हो गया. उनकी मृत्यु के पीछे के कारण कुछ और नहीं सिर्फ और सिर्फ आर्थिक स्थिति खराब होना और सही इलाज का न हो पाना है.
आपको याद होगा, सदी के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को फ़िल्म कुली की शूटिंग के दौरान चोट लगी थी, यह चोट इतनी गहरी थी कि डॉक्टरों ने अमिताभ को क्लीनिकली डेड तक घोषित कर दिया था. यह खबर देश और दुनिया में ऐसे फैली जैसे प्रलय आ गया हो. देश के प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी की अपनी अमेरिका तक की रद्द करनी पड़ी. आखिरकार डॉक्टर्स की मेहनत, फैंस के प्यार और बेशुमार दौलत से अमिताभ मौत के मुंह से वापस आ गए. लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि अगर अमिताभ की जगह वहां कोई और अभिनेता होता तो क्या पूरा फ़िल्म उद्योग और देश की भावुक जनता उसके लिए यही सब कर पाते. शायद जवाब हो नहीं.
कहा जा सकता है कि, किसी भी फ़िल्म के लिए हर व्यक्ति उतना ही जरूरी है जितना उस फिल्म का निर्देशक. इसके बावजूद इंडस्ट्री का सौतेला व्यवहार एक नए विमर्श को हमेशा केंद्र में खड़ा करता हुआ दिखता है. 60 से अधिक फिल्में, तमाम टीवी शो तथा विरासत जैसे थियेटर प्ले के जरिये अपनी निजी पहचान बनाने वाले श्रीवल्लभ व्यास की मृत्यु सामान्य मृत्यु नहीं है. इससे कई बड़े सवालों की तरफ हमारा ध्यान जरूर खिंचना चाहिए. छोटे कलाकारों के लिए यह इंडस्ट्री कैसे इतना सौतेला व्यवहार कर सकती है इसका ही ताजा उदाहरण श्रीवल्लभ व्यास की मृत्यु से हमें देखने को मिलता है. 2008 में श्रीवल्लभ व्यास गुजरात में एक भोजपुरी फ़िल्म की शूटिंग के दौरान ब्रेन स्ट्रोक का शिकार हुए थे. इसी के बाद वो पैरालिसिस के शिकार भी हो गए.
इस फ़िल्म में रवि किशन के साथ उनका सेकेंड लीड रोल था. जैसलमर में जन्में श्रीवल्लभ व्यास जी को अपने इलाज के लिए परिवार के साथ मजबूरन जयपुर शिफ्ट होना पड़ा. तब से श्रीवल्लभ व्यास वही रह रहे थे. लंबे समय से टीवी फ़िल्म थियेटर की दुनिया से जुड़े रहे व्यास के आखिरी दिनों को बताते हुए उनकी पत्नी शोभा कहती हैं कि उनका परिवार आर्थिक तंगी के दौर से गुजरा है. बीमारी के दौरान सिनेमा और टीवी आर्टिस्ट असोशिएशन (CINTAA) ने भी उनकी कोई भी मदद नहीं की.
हालांकि सिनेमा और टीवी आर्टिस्ट असोशिएशन के सदस्य अरुण बाली ने 10,000 तथा वाइस प्रेसिडेंट गजेंद्र चौहान ने 50,000 रुपये दिये तो परिवार ने ठुकरा दिये. दिवंगत अभिनेता व्यास के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में जूनियर रहे इरफान खान और अभिनेता मनोज बाजपेयी द्वारा उनके ट्रीटमेंट के लिए दी गयी सहायता मानवता के स्तर पर गिनी जा सकती है. व्यास जी के परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटियां हैं.
श्रीवल्लभ व्यास को हमने फ़िल्म सरफरोश, अभय, आन: मेन एट वर्क, शूल, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस: अनफॉरगॉटेन हीरों, बंटी और बबली, चांदनी बार, विरुद्ध, संकट सिटी, दिल बोले हड़िप्पा, लगान, तथा जिन्ना जैसी फिल्मों में बतौर कलाकार देखा है. केतन मेहता की फ़िल्म सरदार में मुहम्मद अली जिन्ना और आमिर खान की फ़िल्म लगान मे ईश्वर काका का किरदार यादगार रहा. उन्हें लगान की क्रिकेट टीम के विकेटकीपर के तौर पर भी हम याद कर सकते हैं. टीवी की दुनिया में उन्होंने 'आहट', 'सीआईडी', 'कैप्टन व्योम जैसे सीरियल में काम करके अपने आप को दर्शकों से रूबरू कराया था.
दरअसल सहायक कलाकार, नॉन स्टार कलाकार, जब तक सिनेमाई पर्दे पर हैं तभी तक उनकी पहचान बनी रहती है. इसके बाद की दुनिया में हालत व्यास के जैसी ही है. इस तथ्य से शायद ही किसी को कोई गुरेज होगा. बीते वर्ष पीपली लाइव', 'पान सिंह तोमर', 'जॉली एलएलबी-2' और 'स्लमडॉग मिलिनेयर' जैसी फिल्मों में काम कर चुके एक्टर सीताराम पंचाल की कैंसर की वजह से मृत्यु हो गयी. उनकी भी आर्थिक हालत ठीक नहीं थी. जब उन्होंने फेसबुक पर पोस्ट लिखा तब जाकर सिने और टीवी आर्टिस्ट एसोसिएशन मदद को आगे आया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
पाकीजा और रज़िया सुल्तान जैसी फिल्मों में काम कर चुकी अभिनेत्री गीता कपूर के बेटे ने उन्हें उनके इलाज के दौरान ही अकेला छोड़ दिया. ऐसा इसलिए क्योंकि उसके पास उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कराने तक के पैसे नहीं थे. भला हो फ़िल्मकार अशोक पंडित और रमेश तोरानी का जिन्होंने समय रहते उनकी मदद की. अस्पताल के सारे बिल से लेकर उनकी अन्य आर्थिक मदद भी की. पेशावर में जन्मी तथा बॉलीवुड में मां के किरदार से ख्याति पाने वाली अचला सचदेवा का बेटा भले ही अमेरिका में रहता हो लेकिन आखिरी दिनों में वह पैसे के अभाव में दुनिया से अलविदा कह चुकी थीं.
2012 में उनकी मौत के बाद कोई सिनेमा से जुड़ी बड़ी हस्ती उनके द्वार तक नहीं पहुंची. गौरतलब है कि अचला ने 'चांदनी', 'प्रेम पुजारी', 'मेरा नाम जोकर' और 'हरे राम हरे कृष्णल' दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे 'वक्त' जैसी फिल्मों में यादगार किरदार निभाए हैं. फ़िल्म वक्त का 'ओ मेरी जोहराजबीं' आज भी लोगों की जुबान में चढ़ा हैं पर अचला याद है या नहीं ये कह पाना मुश्किल है.
इन कलाकारों के आखिरी दिनों को देखते हुए इस विधा से प्यार करने वालों को हताशा का होना लाजमी है. अपने जीवन का लम्बा समय टीवी और फिल्म की दुनिया में बिताने के बाद की स्थिति को आप इन कलाकारों के जीवन संघर्ष को देखकर आसानी से समझ सकते हैं. श्रीवल्लभ व्यास की मौत के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए हम इतना ही कह सकते हैं कि इस दुनिया में जीना तो वैसे भी खतरों से खाली नहीं हैं, ऊपर से फिल्मी दुनिया के सहारे जीना अपने आप में एक जोखिम भरा काम है.
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