तुम मुझे यूं भूला न पाओगे
जब भी सुनोगे गीत मेरे
संग संग तुम भी गुनगुनाओगे...
ये पंक्तियां स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर के उन अनगिनत गानों में एक है जिसे पढ़ते ही एक आवाज़ ज़हन में तैर जाती है. स्वर कोकिला, द गोल्डन नाइटेंगल कह कर भी लता जी के चाहने वालों को शब्द कम पड़ते हैं कि उनकी आवाज़ की मिठास को उदाहरणों में समेटा जाए. आज वो संगीतमाय आत्मा अपना शरीर छोड़ ईश्वर में विलीन हो गयी.
नश्वर जग से अमरता की ओर प्रस्थान...
मृत्योर्मामृतं गमय... ॐ शान्ति शान्ति शान्ति यानि मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो... कैसा संयोग है कि बीते दिन सरस्वती पूजन और आज लता मंगेशकर पंच तत्व में विलीन- मानो स्वयं सरस्वती उन्हें लेने आई हों. 28 सितंबर 1929 में जन्मी लता जी ने पहला गाना मात्र तेरह वर्ष की आयु में गाया था. वो समय जब लड़कियों के लिए इस क्षेत्र में आ कर करियर बनाने के लिए माकूल नहीं था किंतु पैसों की तंगी लता जी को कम उम्र में फिल्मी दुनिया की तरफ ले आई.
स्वर साम्राज्ञी को हम तक पहुंचाने का शायद ईश्वरीय विधान था. अपना पहला कदम उन्होंने अभिनय क्षेत्र में रखा लेकिन बकौल लता जी ,उन्हें अभिनय पसंद नहीं था किन्तु परिस्तिथियों की विवशता में उन्होंने कुछ हिंदी और मराठी फिल्मो में काम किया. अपना पहला फ़िल्मी गाना उन्होंने एक मराठी फिल्म 'कीति हसाल' के लिए था, मगर वो रिलीज नहीं हो पाया.
यूं भी सफलता की राह आसान नहीं होती है. लता जी को भी अपना स्थान बनाने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. उस समय शमशाद बेगम, नूरजहां आदि गायिकाएं शीर्षस्थ थी. पार्श्व गायिका नूरजहां के...
तुम मुझे यूं भूला न पाओगे
जब भी सुनोगे गीत मेरे
संग संग तुम भी गुनगुनाओगे...
ये पंक्तियां स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर के उन अनगिनत गानों में एक है जिसे पढ़ते ही एक आवाज़ ज़हन में तैर जाती है. स्वर कोकिला, द गोल्डन नाइटेंगल कह कर भी लता जी के चाहने वालों को शब्द कम पड़ते हैं कि उनकी आवाज़ की मिठास को उदाहरणों में समेटा जाए. आज वो संगीतमाय आत्मा अपना शरीर छोड़ ईश्वर में विलीन हो गयी.
नश्वर जग से अमरता की ओर प्रस्थान...
मृत्योर्मामृतं गमय... ॐ शान्ति शान्ति शान्ति यानि मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो... कैसा संयोग है कि बीते दिन सरस्वती पूजन और आज लता मंगेशकर पंच तत्व में विलीन- मानो स्वयं सरस्वती उन्हें लेने आई हों. 28 सितंबर 1929 में जन्मी लता जी ने पहला गाना मात्र तेरह वर्ष की आयु में गाया था. वो समय जब लड़कियों के लिए इस क्षेत्र में आ कर करियर बनाने के लिए माकूल नहीं था किंतु पैसों की तंगी लता जी को कम उम्र में फिल्मी दुनिया की तरफ ले आई.
स्वर साम्राज्ञी को हम तक पहुंचाने का शायद ईश्वरीय विधान था. अपना पहला कदम उन्होंने अभिनय क्षेत्र में रखा लेकिन बकौल लता जी ,उन्हें अभिनय पसंद नहीं था किन्तु परिस्तिथियों की विवशता में उन्होंने कुछ हिंदी और मराठी फिल्मो में काम किया. अपना पहला फ़िल्मी गाना उन्होंने एक मराठी फिल्म 'कीति हसाल' के लिए था, मगर वो रिलीज नहीं हो पाया.
यूं भी सफलता की राह आसान नहीं होती है. लता जी को भी अपना स्थान बनाने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. उस समय शमशाद बेगम, नूरजहां आदि गायिकाएं शीर्षस्थ थी. पार्श्व गायिका नूरजहां के साथ लता जी की तुलना की जाती थी. ऐसे में संगीतकारों ने उन्हें शुरू-शुरू में पतली आवाज़ के कारण काम देने से साफ़ मना कर दिया. लेकिन धीरे-धीरे अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर मिली अद्भुत कामयाबी ने लता जी को हिंदी फिल्म जगत का कभी न डूबने वाला सितारा बना दिया.
अगली कुछ फिल्मों में आवाज़ लोगों के ज़हन दर्ज़ होने लगी लेकिन 'महल', फिल्म का गाना, 'आएगा आनेवाला', मधुबाला पर फिल्माया गया और इस फिल्म ने लता जी को लोगों के दिलो में वो जगह दिला दी जिस पर उन्होंने अगले पचहत्तर साल तक राज किया, और अनंतकाल काल तक सबसे ऊंचे पायदान पर रहेंगी, क्योंकि लता जी की आवाज़ सा न कोई हुआ न होगा.
ये वो शख्सियत है जिनके साथ आज के हिंदुस्तान का संगीत पोषित हुआ. ये वो शख्सियत है जो हिंदुस्तान के साथ साथ बड़ी हुईं. ये वो कलाकार है जिनके जीवनकाल में ही उनके साथ जुड़ी किवदंतियां लोगों में चर्चा का विषय बन गई.
पड़ोसी देश पाकिस्तान में तत्कालीन शासक ज़िया उल हक़, पाकिस्तान के इस्लामीकरण में जुटे थे. जुल्फिकार अली भुट्टो को रास्ते से हटाने और पाकिस्तान को इस्लामी देश बनाने की जिद्द के कारण पूरा विश्व उन्हें क्रूर शासक के तौर पर देख रहा था, वो भी लता जी की आवाज़ के आगे झुक जाते थे. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, हालांकि संगीत और सांस्कृतिक मेलजोल से फिलहाल उन्हें गुरेज़ है लेकिन वो खुद लता जी की आवाज़ के मुरीद हैं.
लता मंगेशकर कभी पाकिस्तान नहीं गई लेकिन उनकी आवाज़ सरहद के पार भी उतनी ही शिद्दत से सुनी जाती थीं और रहेंगी. ये किस्सा भी शायद ही किसी भारतीय ने सुना न जो. 1963 में कवि प्रदीप द्वारा लिखा गया जो की 1962 शहीद हुए सिपाहियों के नाम था. गीत जब लता जी की आवाज़ में लोगों ने सुना तब सुनने वालों की रुलाई न रुकी.
ये गीत तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की आंखों में आंसू ले आया था और 2016 में स्वर्ण जयंती समारोह में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी भवुक हुए बिना न रह पाए. आज भी जब, 'सरहद पर मरने वाला हर वीर था भारतवासी', सुनते हैं तब जाति धर्म के नाम पर अलगाव की सोच स्वयं को शर्मिंदा करती है.एक और किस्सा बचपन मे सुनते थे कि 'अमरीकी साइंटिस्ट कहते हैं की लता जी के गले पर रिसर्च की ज़रूरत है, कैसे किसी इंसानी आवाज़ में इतनी मिठास हो सकती है'? ऐसी थीं देश का गौरव स्वर कोकिला लता ताई !
आज की कई गायिकाओं अलका याग्निक, श्रेया घोषाल आदि से स्नेह रखने वाली लता ताई से एक बार इंटरव्यू में पूछा गया था की कहीं कोई मलाल है या अधूरी ख्वाहिश है तो उन्होंने हंसते हुए कहा, 'हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले', मैं अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती थी. पढ़ लिख कर प्रोफेसर बनना मेरा सपना था. इसीलिए आज की पीढ़ी से कहती हूं पढ़ाई पूरी करो फिर उसमे मन लगाओ जो ज़िंदगी में करना चाहते हो'.
सरलता की प्रतिमूर्ति लता जी पदम् भूषण, पदम् विभूषण ,भारत रत्न दादा साहेब फाल्के और तमाम सम्मानो से नवाज़ी गई. आज वो आवाज़ अपनी मिठास का खज़ाना विश्व की तीस से अधिक भाषाओं में लुटा कर अनन्त यात्रा पर निकल पड़ी. पीछे रह गए गीत और उनके बोल 'नाम गुम जायेगा, चेहरा ये बदल जायेगा मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे.
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