फिल्म 'लोमड' का ट्रेलर आज निर्देशक हेमवंत तिवारी ने अपने यूट्यूब चैनल पर आज रिलीज़ किया है. करीब दो मिनट के ट्रेलर की कहानी बता रही है कि है कि एक मर्डर हुआ है और अभय एक सीन में अपनी दोस्त से बात कर रहा है. वे दोनों एक दूसरे से मोहब्बत की बातें और मर्डर के बाद की बातें कर रहे हैं. फिर अगले ही सीन में वही दोस्त सच में हाजिर होती है और कहानी बदल कर आगे की प्लानिंग की बात करते हुए नजर आती है. हेमवंत तिवारी ने अपनी इस फिल्म से सिनेमा जगत में नई सोच को दिशा देने का प्रयास किया है. कम से कम इस मामले में तो जरूर की इस तरह से भी भी फ़िल्में बनाई जा सकती है.
फिर फिल्म 'लोमड' ट्रेलर को देखते हुए इतना तो पक्का यकीन होता है कि इसमें एक भी कट नहीं लगा है. बाकी पूरी तस्वीर फिल्म रिलीज के बाद ही साफ हो पाएगी. अब बात फिल्म को बनाने वाले निर्देशक हेमवंत तिवारी की. हेमवंत आर्मी पब्लिक स्कूल धोला कुआँ, दिल्ली तथा दिल्ली यूनिवर्सिटी के ओपन कॉलेज से ग्रेजुएट हुए. जिसने सिनेमा की कोई विधिवत शिक्षा नहीं ली किन्तु बचपन से वह सिनेमा देख-देखकर सीखता रहा. कॉल सेंटर में जॉब की और पैसे जोड़ कर मुंबई आया और फिर 'बैरीजॉन' के यहाँ से मात्र एक फिल्म का कोर्स किया. लेकिन यह लड़का ही आज वजह बन रहा है बॉलीवुड में चर्चा का जिसका कारण है फिल्म.
आगामी चार अगस्त 2023 को सिनेमाघरों में रिलीज के लिए तैयार हेमवंत के निर्देशन में बनने वाली बतौर इंडिपेंडेंट डायरेक्टर यह एक अनोखी फिल्म है. अनोखी इसलिए की यह भारत की पहली ब्लैक एंड वाईट फिल्म है. क्यों चौंक गये ना. अब आप कहेंगे भारत में सिनेमा का उदय ही मूक और ब्लैक एंड वाईट फिल्मों से हुआ. फिर इसे पहली फिल्म क्यों कहा जा रहा है. तो इसके पीछे का कारण यही है कि बिना कोई कट लगे वो भी ब्लैक एंड वाईट में बनने वाली अपने तरह की यह पहली फिल्म...
फिल्म 'लोमड' का ट्रेलर आज निर्देशक हेमवंत तिवारी ने अपने यूट्यूब चैनल पर आज रिलीज़ किया है. करीब दो मिनट के ट्रेलर की कहानी बता रही है कि है कि एक मर्डर हुआ है और अभय एक सीन में अपनी दोस्त से बात कर रहा है. वे दोनों एक दूसरे से मोहब्बत की बातें और मर्डर के बाद की बातें कर रहे हैं. फिर अगले ही सीन में वही दोस्त सच में हाजिर होती है और कहानी बदल कर आगे की प्लानिंग की बात करते हुए नजर आती है. हेमवंत तिवारी ने अपनी इस फिल्म से सिनेमा जगत में नई सोच को दिशा देने का प्रयास किया है. कम से कम इस मामले में तो जरूर की इस तरह से भी भी फ़िल्में बनाई जा सकती है.
फिर फिल्म 'लोमड' ट्रेलर को देखते हुए इतना तो पक्का यकीन होता है कि इसमें एक भी कट नहीं लगा है. बाकी पूरी तस्वीर फिल्म रिलीज के बाद ही साफ हो पाएगी. अब बात फिल्म को बनाने वाले निर्देशक हेमवंत तिवारी की. हेमवंत आर्मी पब्लिक स्कूल धोला कुआँ, दिल्ली तथा दिल्ली यूनिवर्सिटी के ओपन कॉलेज से ग्रेजुएट हुए. जिसने सिनेमा की कोई विधिवत शिक्षा नहीं ली किन्तु बचपन से वह सिनेमा देख-देखकर सीखता रहा. कॉल सेंटर में जॉब की और पैसे जोड़ कर मुंबई आया और फिर 'बैरीजॉन' के यहाँ से मात्र एक फिल्म का कोर्स किया. लेकिन यह लड़का ही आज वजह बन रहा है बॉलीवुड में चर्चा का जिसका कारण है फिल्म.
आगामी चार अगस्त 2023 को सिनेमाघरों में रिलीज के लिए तैयार हेमवंत के निर्देशन में बनने वाली बतौर इंडिपेंडेंट डायरेक्टर यह एक अनोखी फिल्म है. अनोखी इसलिए की यह भारत की पहली ब्लैक एंड वाईट फिल्म है. क्यों चौंक गये ना. अब आप कहेंगे भारत में सिनेमा का उदय ही मूक और ब्लैक एंड वाईट फिल्मों से हुआ. फिर इसे पहली फिल्म क्यों कहा जा रहा है. तो इसके पीछे का कारण यही है कि बिना कोई कट लगे वो भी ब्लैक एंड वाईट में बनने वाली अपने तरह की यह पहली फिल्म है.
फिल्म के चर्चा में आने का कारण है मायानगरी की सड़कों पर हाथ में फिल्म का बड़ा सा पोस्टर लिए एक शख्स जो सोशल मीडिया में नजर आ रहा है. और उसने अपनी फिल्म के पोस्टर पर लिखा है. Find a cut in my film, get double the price of your ticket. First black & white single-take film. Releasing on 4th august इसके आगे उसने फिल्म का नाम लिखा है. LOMAD (The Fox) सोशल मीडिया पर धीरे-धीरे वायरल हो रही फिल्म निर्देशक हेमवंत की रील्स तथा पोस्ट से सिनेमा जगत में छुपे रूप से ही सही एक सुगबुगाहट फ़ैल रही है. हेमवंत से इस सिलसिले में हुई बातचीत के कुछ अंश से आप जान सकेंगे कि फिल्म कैसी है और क्या कहने जा रही है.
हेमवंत कहते हैं- इंडिपेंडेंट निर्देशकों के लिए सिनेमा बनाना हमेशा दुश्वारी भरा काम रहा है. इस फिल्म को बनाने के पीछे मेरा मकसद यह था कि कुछ नया दिया जाए सिनेमा को. बचपन से यही सीखा है कि जैसे मां अलग-अलग तरह की सब्जियां परोस कर उनके स्वाद को हमारे मुंह लगाती हैं वही सिनेमा में भी होता है. कि जब तक दर्शकों को नया नहीं परोसा जाएगा तो उन्हें मालूम कैसे चलेगा कि कुछ अलग भी आ रहा है.
हेमवंत कहते हैं- इसकी कहानी इस तरह बुनी गई कि हमेशा हमारे आस-पास कुछ दिलचस्प घटता रहता है. इसकी कहानी भी कुछ इस तरह ही रोचक है जिसका ट्रीटमेंट भी दर्शकों को अवश्य आकर्षित करेगा. कहानी को लेकर वे कहते हैं- हर इंसान के भीतर एक अजनबी छुपा होता है. जिसकी पहचान अनजान जगह पर और अनोखे समय पर होती है. हर किसी की लाइफ में कम से कम एक बार तो लोमड आया ही होगा. जिसका पता भी नहीं होता हमें कि वह कब आयेगा और कब चला जाएगा. उस समय खुद हमारा स्वयं पर कंट्रोल नहीं रहता उसमें चीजें स्वत घटती चली जाती हैं.
वे कहते हैं कि इस फिल्म में कोई कट नहीं लगना ही काफी नहीं है इसकी कहानी भी अलग है. फिर जनता का इसे देखने आना ना आना मेरे हाथ में नहीं है मैं बस कोशिश कर सकता हूँ. एक इंडिपेंडेट सिनेकार का इस तरह का यह पहला प्रयास है इसलिए भी कम से कम जनता तो यह तो बताना फर्ज बनता ही है कि वे इसे क्यों देखे. ऐसा अनुभव भी आपको सिनेमाघरों में पहली बार देखने को मिलेगा.
हेमवंत कहते हैं- फिल्म बनना जितना मुश्किल है एक इंडिपेंडेंट फिल्ममेकर के लिए उससे कहीं ज्यादा मुश्किल उसे रिलीज कर पाना. किन्तु हिम्मत और हौसले से दुनिया जीती जा सकती है. यही कोशिश कर रहा हूँ कि इसके माध्यम से नया कुछ प्रयोग लेकर आया जाए सिनेमाघरों में. यह फिल्म एक दिशा प्रदान करेगी कि इस तरह से भी कुछ बनाया जा सकता है. पहली बार इस तरह का नया जॉनर सिनेमा में नजर आने वाला है.
कट ढूंढ पाने में असमर्थ रहे लोगों के बारे में वे कहते हैं- यह सच है कि देश-विदेश के कई जाने-माने फेस्टिवल्स में फिल्म दिखाई गई जहाँ इसने सराहना तो पाई साथ ही पुरुस्कृत भी हुई. जिसमें ‘दादा साहेब फाल्के फिल्म फेस्टिवल’ में बेस्ट डेब्यू डायरेक्टर समेत दर्जन भर फेस्टिवल शामिल हैं. फिल्म फेस्टिवल्स में इस फिल्म ने कई कैटेगरी में ईनाम पाने में सफलता हासिल की है.
साथ ही उन फेस्टिवल्स में ज्यूरी के तौर पर जुड़े हुए लोगों ने भी कई बार फिल्म देखी और उन्होंने उसमें कट ढूंढने की कोशिश की लेकिन उन्हें भी कहीं कोई कट नजर नहीं आया. फिल्म के प्रमोशन के दौरान के बारे में वे कहते हैं- जिन्होंने इसे दो-चार बार देखा वे भी कट नहीं ढूंढ पाए क्योंकि वो इसमें है ही नहीं. इसीलिए मैं यह दावा कर रहा हूँ कि आप कट ढूंढ कर दिखाएँ और अपनी फिल्म की टिकट का दोगुना पैसा लेकर जाएं.
फिल्म के शूट से पहले छह माह तक वर्कशॉप हुई जिसमें फिल्म से जुड़ी हुई पूरी टीम वहां लोकेशन पर जाती रही. शूट के दौरान भी कैमरा लगातार एक घंटा चालीस मिनट तक यहां से वहां घूमता रहा लेकिन वह बंद नहीं हुआ. यह फिल्म पूरी तरह से आउटडोर फिल्म है. उन्होंने बताया कि फिल्म की पूरी टीम का इसे बनाने में अतुलनीय योगदान रहा है. जिसमें नेशनल अवार्ड जीतने वाले ‘सुप्रतिम भोल’ की सिनेमैटोग्राफी है. परिमल, शिखा डे, तीर्था के अलावा एफटीआईआई से सीखे हुए लोगों की टीम के सहयोग से यह संभव हो पाया है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.