'फंस गया रे ओबामा', 'जॉली एलएलबी' और 'जॉली एलएलबी 2' जैसी फिल्मों का निर्देशन करने वाले सुभाष कपूर जब फिल्म 'मैडम चीफ मिनिस्टर' की पटकथा लिख रहे थे, उस वक्त लीड रोल के लिए उनके जहन में एक नाम घूम रहा था. वह करीना कपूर, कटरीना कैफ या दीपिका पादुकोण जैसे लोकप्रिय कलाकारों का नहीं बल्कि एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा का था. सुभाष कपूर ने पटकथा लिखते समय ही निश्चय कर लिया था कि वह ऋचा चड्ढा के साथ ही इस फिल्म को बनाएंगे. उनको पता था कि तारा के रोल को सिर्फ वही जस्टिफाई कर पाएंगी और हुआ भी वही. फिल्म 'मैडम चीफ मिनिस्टर' के रिलीज होने के बाद हर तरफ ऋचा चड्ढा के शानदार अभिनय की तारीफ हो रही है. इस फिल्म के हर कलाकार ने अपना सौ फीसदी दिया है. सभी ने अपने दमदार अभिनय के जरिए फिल्म में चार चांद लगा दिया है.
सुभाष कपूर खुद एक राजनीतिक पत्रकार रहे हैं. उन्होंने कई अच्छी फिल्मों का निर्देशन किया है. आने वाले समय में एक बड़ी फिल्म का निर्देशन करने जा रहे हैं. उन्हें आमिर खान के साथ फिल्म ‘मुगल’ भी बनानी है. ऐसे में मुगल से ठीक पहले 'मैडम चीफ मिनिस्टर' के जरिए उन्होंने साबित कर दिया है कि फिल्म की पटकथा हो या कलाकारों का चयन या फिर निर्देशन, उनका कोई जोड़ नहीं है. फिल्म 'मैडम चीफ मिनिस्टर' में उन्होंने कसा हुआ निर्देशन किया है. फिल्म का स्क्रीनप्ले एनवायरमेंट को मजबूती प्रदान करता है. वह फिल्म के जरिए समाज में व्याप्त जातिवाद, धर्मवाद, सत्ता संघर्ष और लैंगिग असमानता जैसे मुद्दों को बारीकी से उजागर करते हैं. इंटरवल तक फिल्म का रोमांच ज्यादा रहता है, लेकिन उसके बाद स्टोरी थोड़ी कमजोर पड़ जाती है. लेकिन कलाकारों के उम्दा अभिनय की वजह से सारी कमियां गौण हो जाती हैं.
'फंस गया रे ओबामा', 'जॉली एलएलबी' और 'जॉली एलएलबी 2' जैसी फिल्मों का निर्देशन करने वाले सुभाष कपूर जब फिल्म 'मैडम चीफ मिनिस्टर' की पटकथा लिख रहे थे, उस वक्त लीड रोल के लिए उनके जहन में एक नाम घूम रहा था. वह करीना कपूर, कटरीना कैफ या दीपिका पादुकोण जैसे लोकप्रिय कलाकारों का नहीं बल्कि एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा का था. सुभाष कपूर ने पटकथा लिखते समय ही निश्चय कर लिया था कि वह ऋचा चड्ढा के साथ ही इस फिल्म को बनाएंगे. उनको पता था कि तारा के रोल को सिर्फ वही जस्टिफाई कर पाएंगी और हुआ भी वही. फिल्म 'मैडम चीफ मिनिस्टर' के रिलीज होने के बाद हर तरफ ऋचा चड्ढा के शानदार अभिनय की तारीफ हो रही है. इस फिल्म के हर कलाकार ने अपना सौ फीसदी दिया है. सभी ने अपने दमदार अभिनय के जरिए फिल्म में चार चांद लगा दिया है.
सुभाष कपूर खुद एक राजनीतिक पत्रकार रहे हैं. उन्होंने कई अच्छी फिल्मों का निर्देशन किया है. आने वाले समय में एक बड़ी फिल्म का निर्देशन करने जा रहे हैं. उन्हें आमिर खान के साथ फिल्म ‘मुगल’ भी बनानी है. ऐसे में मुगल से ठीक पहले 'मैडम चीफ मिनिस्टर' के जरिए उन्होंने साबित कर दिया है कि फिल्म की पटकथा हो या कलाकारों का चयन या फिर निर्देशन, उनका कोई जोड़ नहीं है. फिल्म 'मैडम चीफ मिनिस्टर' में उन्होंने कसा हुआ निर्देशन किया है. फिल्म का स्क्रीनप्ले एनवायरमेंट को मजबूती प्रदान करता है. वह फिल्म के जरिए समाज में व्याप्त जातिवाद, धर्मवाद, सत्ता संघर्ष और लैंगिग असमानता जैसे मुद्दों को बारीकी से उजागर करते हैं. इंटरवल तक फिल्म का रोमांच ज्यादा रहता है, लेकिन उसके बाद स्टोरी थोड़ी कमजोर पड़ जाती है. लेकिन कलाकारों के उम्दा अभिनय की वजह से सारी कमियां गौण हो जाती हैं.
क्या है फिल्म 'मैडम चीफ मिनिस्टर' की कहानी
वैसे तो 'मैडम चीफ मिनिस्टर' फिल्म की कहानी बसपा सुप्रीमो मायावती की जिंदगी से प्रेरित बताई जा रही है, लेकिन सुभाष कपूर का कहना है कि ऐसा बिल्कुल भी सच नहीं है. विवादों से बचने के लिए फ़िल्म की शुरुआत में ही डिस्क्लेमर के ज़रिए इस बात की पुष्टि की गई है कि इसके पात्र, घटनाएं और कहानी सभी काल्पनिक है. फिल्म की कहानी शुरू होती है उत्तर प्रदेश से, जहां एक दलित दूल्हे की बारात में महज इसलिए गोलीबारी की जाती है, क्योंकि उस दलित ने ठाकुरों की मौजूदगी में गाजे-बाजे के साथ घोड़ी पर चढ़ने का दुस्साहस किया था. इस गोलीबारी में बीच-बचाव करते हुए एक शख्स रूपराम मारा जाता है. उसके घर एक बेटी पैदा होती है. बेटी की मां किसी तरह अपनी सास से उसकी जान बचाती है.
ठाकुरों द्वारा मारे गए उसी रामरूप की बेटी तारा (ऋचा चड्ढा) बेबाक, बिंदास और पढ़ी-लिखी होती है. वह एक लाइब्रेरी में काम करने लगती है. वहां ऊंची जाति के एक युवा नेता इंदू त्रिपाठी (अक्षय ओबेरॉय) से उसे प्रेम हो जाता है. वह इंदू से शादी करना चाहती है, लेकिन वह मना कर देता है. अपने प्रेमी की इस हरकत से नाराज तारा को एक मास्टरजी (सौरभ शुक्ला) का साथ मिलता है, जो एक राजनीतिक पार्टी चलाते हैं. धीरे-धीरे तारा मास्टर जी की खास बन जाती है और यूपी की राजनीति में उसकी तूती बोलने लगती है. यहां तक की सियासी दांवपेंच के बाद एक दिन वह सूबे की सीएम बन जाती है. इस तरह गांव की एक छोटे जाति की लड़की 'मैडम चीफ मिनिस्टर' बन जाती है.
जोरदार अभिनय के साथ बेहतरीन डायलॉग
फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ को ऋचा चड्ढा के जोरदार अभिनय के अलावा बेहतरीन डायलॉग के लिए भी याद रखा जाएगा. 'जो न करें तुमसे प्यार, उनको मारो जूते चार', 'यूपी में जो मेट्रो बनाता है, वो हारता है और जो मंदिर बनाता है वो जीतता है' और 'सत्ता में रहकर सत्ता की बीमारी से बचना मुश्किल है' जैसे डायलॉग इस फिल्म में जान डाल देते हैं. इसके अलावा सौरभ शुक्ला, मानव कौल, अक्षय ओबेरॉय और शुभ्रज्योति का अभिनय भी फिल्म में चार चांद लगा देता है. मास्टरजी के किरदार में सौरभ शुक्ला हैं. इस किरदार को उन्होंने बेहतरीन तरीके से निभाया है. फिल्म की सिनेमैटोग्राफी भी विषय को सामने लाने में सफल है. कुल मिलाकर इस फिल्म को किसी विवाद से परे कलाकारों के अच्छे अभिनय के लिए जरूर देखा जाना चाहिए.
देखिए फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ का ट्रेलर...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.