बिहार का बैकड्रॉप हमेशा से मुम्बइया फिल्मकारों को आकर्षित करता रहा है. राजनीतिक भ्रष्टाचार, जातीय हिंसा, अपराधियों को सत्ता-सिस्टम का संरक्षण, सामजिक गुटबाजी और आम आदमी के संघर्षों पर आधारित राज्य के अलग-अलग पहलुओं को पर्दे पर दिखाया जा चुका है. यथार्थ के काफी नजदीक दिख रही मसालेदार कहानियों को लोगों ने खूब पसंद भी किया. इस कड़ी में अब वेब सीरीज "महारानी" का नाम भी जुड़ने जा रहा है. पिछले दिनों इसका टीजर सामने आया था. खूब चर्चा हो रही है.
महारानी पर चर्चा की सबसे बड़ी वजह सीरीज की कहानी का लालू यादव और उनके परिवार से प्रेरित हिना है. ये दूसरी बात है कि मेकर्स ने राजनीतिक विवादों से बचने के लिए काफी सावधानियां बरती हैं. कहानी को पूरी तरह काल्पनिक बताया गया है. मूल घटनाओं और चरित्रों का रूपांतरण भी कर दिया गया है. फिलहाल का टीजर इस बात का सबूत है. लेकिन भले ही घटनाएं, चरित्रों के नाम, कॉस्टयूम, मेकअप का किसी सच्चाई से वास्ता ना हो मगर कहानी सीधे लालू-राबड़ी यादव से जाकर जुड़ती नजर आती है. भला अब ये भी बताने की जरूरत है कि जब भ्रष्टाचार मामले में लालू के जेल जाने की नौबत आई तो उन्होंने बिहार की सत्ता पर पारिवारिक नियंत्रण बनाए रखने के लिए अपनी जगह पत्नी राबड़ी यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी दे दी. लालू के राजनीतिक करियर में ये सबसे हैरानी भरे फैसलों में गिना जाता है. मुख्यमंत्री बनने से पहले तक राबड़ी के पास कोई राजनीतिक अनुभव नहीं था. वो सार्वजनिक रूप से कभी कभार राजनीतिक कार्यक्रमों में दिखती थीं. घर-बार संभालने वाली सामान्य गृहणी थीं. राजनीतिक रूप से उनका महत्व सिर्फ लालू यादव की पत्नी होना भर था.
महारानी की कहानी तो लालू परिवार की ही है
मुख्यमंत्री पाने की जो सच्ची घटना बिहार में हुई थी महारानी के टीजर में उसका सिनेमाई रूपांतरण है. भीमा (सोहम शाह) नाम का एक मुख्यमंत्री गंभीर दुर्घटना का शिकार होने के बाद किसी और को मुख्यमंत्री बनाने की बजाय रसोई संभालने वाली पत्नी रानी भारती (हुमा कुरैशी) को पद दे देता है. कोई तर्क नहीं...
बिहार का बैकड्रॉप हमेशा से मुम्बइया फिल्मकारों को आकर्षित करता रहा है. राजनीतिक भ्रष्टाचार, जातीय हिंसा, अपराधियों को सत्ता-सिस्टम का संरक्षण, सामजिक गुटबाजी और आम आदमी के संघर्षों पर आधारित राज्य के अलग-अलग पहलुओं को पर्दे पर दिखाया जा चुका है. यथार्थ के काफी नजदीक दिख रही मसालेदार कहानियों को लोगों ने खूब पसंद भी किया. इस कड़ी में अब वेब सीरीज "महारानी" का नाम भी जुड़ने जा रहा है. पिछले दिनों इसका टीजर सामने आया था. खूब चर्चा हो रही है.
महारानी पर चर्चा की सबसे बड़ी वजह सीरीज की कहानी का लालू यादव और उनके परिवार से प्रेरित हिना है. ये दूसरी बात है कि मेकर्स ने राजनीतिक विवादों से बचने के लिए काफी सावधानियां बरती हैं. कहानी को पूरी तरह काल्पनिक बताया गया है. मूल घटनाओं और चरित्रों का रूपांतरण भी कर दिया गया है. फिलहाल का टीजर इस बात का सबूत है. लेकिन भले ही घटनाएं, चरित्रों के नाम, कॉस्टयूम, मेकअप का किसी सच्चाई से वास्ता ना हो मगर कहानी सीधे लालू-राबड़ी यादव से जाकर जुड़ती नजर आती है. भला अब ये भी बताने की जरूरत है कि जब भ्रष्टाचार मामले में लालू के जेल जाने की नौबत आई तो उन्होंने बिहार की सत्ता पर पारिवारिक नियंत्रण बनाए रखने के लिए अपनी जगह पत्नी राबड़ी यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी दे दी. लालू के राजनीतिक करियर में ये सबसे हैरानी भरे फैसलों में गिना जाता है. मुख्यमंत्री बनने से पहले तक राबड़ी के पास कोई राजनीतिक अनुभव नहीं था. वो सार्वजनिक रूप से कभी कभार राजनीतिक कार्यक्रमों में दिखती थीं. घर-बार संभालने वाली सामान्य गृहणी थीं. राजनीतिक रूप से उनका महत्व सिर्फ लालू यादव की पत्नी होना भर था.
महारानी की कहानी तो लालू परिवार की ही है
मुख्यमंत्री पाने की जो सच्ची घटना बिहार में हुई थी महारानी के टीजर में उसका सिनेमाई रूपांतरण है. भीमा (सोहम शाह) नाम का एक मुख्यमंत्री गंभीर दुर्घटना का शिकार होने के बाद किसी और को मुख्यमंत्री बनाने की बजाय रसोई संभालने वाली पत्नी रानी भारती (हुमा कुरैशी) को पद दे देता है. कोई तर्क नहीं है कि भारतीय राजनीति की महत्वपूर्ण और इकलौती घटना राबड़ी देवी से प्रेरित नहीं है. महारानी का प्रीमियर सोनी लिव पर होगा. इसे सुभाष कपूर ने क्रिएट किया है. सुभाष की गिनती बॉलीवुड में पॉलिटिकल टॉपिक्स पर आधारित कहानियों को दिखाने वाले "उस्ताद फिल्म मेकरठ के रूप में होती है. वो इससे पहले भी जॉली एलएलबी के जरिए अदालती सिस्टम, उसकी खामियों खूबियों और उसे किस तरह प्रभावित किया जाता है- पर प्रकाश डाल चुके हैं. नीचे महारानी का टीजर देखें:-
हिंदी सिनेमा में बिहार की मौजूदगी
अगर बिहार के सोशियो-पॉलिटिकल बैकड्रॉप पर हिट फ़िल्मी कहानियों की बात करें तो दामुल, मृत्युदंड, शूल, गंगाजल, अपहरण, राजनीति, आरक्षण, सत्याग्रह, चक्रव्यूह, जय गंगाजल और सुपर 30 शामिल हैं. इन कहानियों ने शोहरत के साथ दौलत भी बटोरी. मनोज वाजपेयी स्टारर शूल और ऋतिक रोशन स्टारर सुपर 30 को छोड़कर ऊपर बताई गई ज्यादातर फ़िल्में प्रकाश झा की हैं. यह उनका बॉलीवुड में किया बेहतरीन काम भी है.
अगर इसमें से बिहार की कहानियों को निकाल दिया जाए तो एक फिल्मकार के रूप में उनके पास शायद ही कुछ बचेगा. ज्यादातर फिल्मों में निशाने पर राजनीतिक भ्रष्टता और बिहार का आपराधिक सिंडिकेट ही है. कुछ फिल्मों में घटनाओं का विवरण लालू यादव, उनके रिश्तेदार और उनकी राजनीति तक पहुंच जाता है. बिहार को सबसे प्रभावी तरीके से परदे पर उतारने वाले प्रकाश झा की फिल्म गंगाजल को लेकर भारी विवाद हुआ. गंगाजल 2003 में लोकसभा आम चुनाव से कुछ पहले रिलीज हुई थी.
घटनाएं, नाम, गेटअप असली पर काल्पनिक बताई गई फिल्म
वैसे तो गंगाजल की कहानी लालू की सत्ता से पहले भागलपुर के 1980 में बहुचर्चित 'अखफोड़वा कांड' से प्रेरित थी, मगर फिल्म के सभी विवरण लालू राज के हालात से मेल खाते नजर आ रहे थे. अजय देवगन ने आईपीएस अफसर अमित कुमार की भूमिका निभाई थी. मोहन जोशी ने दबंग नेता साधू यादव का किरदार निभाया था. गंगाजल का साधू यादव अपने आप में सरकार था. समूचा पुलिस और प्रशासनिक सिस्टम उसके इशारों पर नाचता था. मोहन जोशी का लुक लगभग लालू यादव जैसा ही था. राबड़ी देवी के भाई अनिरूद्ध प्रसाद का नाम साधू यादव भी है.
कहानी-किरदारों, नाम और जाति का क्लू की वजह से गंगाजल को सीधे लालू परिवार से जोड़ दिया गया. तब बिहार में साधू यादव के कारनामे अक्सर राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरते थे राज्य में जिनकी हैसियत लालू के बाद दूसरे सबसे ताकतवर शख्स की थी. विपक्ष की ओर से लालू राज में उनके संरक्षण में आपराधिक सिंडिकेट के आरोप लगते ही रहते थे. गंगाजल में अमित कुमार पुलिस टीम के साथ उसी सिंडिकेट को कड़ी चुनौती देते दिखते हैं. गंगाजल के क्लाइमेक्स में साधू यादव के कुनबे का बुरा हश्र दिखा.
चुनाव से पहले आई फिल्म से नाराज हो गए थे साधू यादव
आम चुनाव से पहले आई फिल्म से नुकसान की आशंका की वजह से RJD कार्यकर्ताओं का गुस्सा गंगाजल के खिलाफ निकलने लगा. साधू यादव के समर्थकों ने फिल्म को बिहार में नहीं चलने देने की धमकी दी. पटना के जिन दो सिनेमाघरों में गंगाजल दिखाने की तैयारी थी वहां साधू यादव के समर्थकों ने जमकर बवाल काटा. ज्यादातर थियेटर मालिक फिल्म दिखाने से डरने लगे. बिहार में प्रदर्शन पर प्रश्नचिन्ह लगता दिखा. हालांकि विवादों के बाद प्रकाश झा ने लालू यादव से मुलाक़ात की और उन्हें फिल्म दिखाई.
मीटिंग में प्रकाश झा-लालू यादव के बीच का समझौता
मीटिंग में लालू-प्रकाश झा के बीच क्या हुआ, गंगाजल पर लालू यादव की प्रतिक्रियाएं क्या रहीं इसकी बहुत जानकारी तो नहीं है मगर फिल्म को क्लीनचिट मिल गई. आखिरकार शांतिपूर्वक प्रीमियर हुआ. गंगाजल ने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त बिजनेस किया. बॉक्स ऑफिस इंडिया के मुताबिक फिल्म की कुल कमाई 142 मिलियन (रुपये) से ज्यादा रही. समीक्षकों ने भी इसे सराहा और नेशनल अवार्ड के साथ कई पुरस्कार गंगाजल की झोली में गिरे.
क्या महारानी पर भी हो सकता है बवाल
अब कई साल बाद महारानी के जरिए मनोरंजन जगत वेब सीरीज के जरिए लालू की राजनीति में अंदर तक झांकने आ रहा है. बदले राजनीतिक माहौल और गंगाजल के अतीत को देखते हुए यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि बिहार में आरजेडी के लोग महारानी की कहानी को किस तरह लेंगे. अब लालू परिवार से साधू यादव के रिश्ते भी ठीक नहीं हैं मगर महारानी की कहानी में दिखाई गई जो घटनाएं लालू-राबडी के खिलाफ जाएंगी क्या उसे समर्थक आसानी से स्वीकार कर लेंगे. आने वाले दिनों में बिहार की सियासत में महारानी के असर को देखना दिलचस्प होगा.
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