पठान को लेकर क्या कुछ चल रहा है- किसी को बताने की जरूरत नहीं. फिल्म के प्रचार में सोशल मीडिया पर शाहरुख खान के तमाम फैन ग्रुप्स जो कुछ कर रहे हैं- मार्केटिंग और बिजनेस स्कॉलर कुछ साल बाद जरूर इस पर केस स्टडी करते नजर आएंगे. केस स्टडी यह कि कैसे कुचर्चाओं के जरिए एक नाकाम अभिनेता के स्टारडम को बचाने की कोशिशों में क्या-क्या हथकंडे प्रचार के तिकड़म अपनाए गए. संभवत: इस मुद्दे पर राजनीति के स्कॉलर भी भविष्य में कोई शोध करें कि एक फिल्म को बेंचने के लिए सामजिक धार्मिक रूप से संवेदनशील मुद्दों का किस तरह स्मार्ट यूज किया गया. कारोबारी मुनाफे के लिए ट्रोल्स समूहों के जरिए ध्रुवीकरण किया गया. यह छिपी बात नहीं है कि ट्रोल्स समूहों के पीछे प्राय: कौन होते हैं. उन्हें किस तरह फंडिंग मिलती है और उनका किस तरह इस्तेमाल किया जाता है.
यह भी छिपी बात नहीं है कि पठान को यौन कुंठा के सहारे बेंचा जा रहा है. जिनकी रीढ़ सीधी है- लगभग सभी वैचारिक धड़ों से कला के नाम पर पठान की बेशरमी के खिलाफ एक स्वर में आवाज उठी है. सवाल बिकिनी या गाने के बोल का नहीं था. बेशरम रंग में जिस तरह जबरदस्ती फूहड़ता परोसी गई है- कोई पचाने को तैयार नहीं कि यह कैसी कला हुई भाई. सोशल मीडिया पर निंदा देख सकते हैं. बावजूद कला के नाम पर बनाई गई फूहड़ता को बचाने के लिए नाना प्रकार के कुतर्क (स्त्री स्वतंत्रता, ड्रेस डिबेट) और 'हेडलाइन हंटिंग' रुकने का नाम नहीं ले रहे. एक तरह से पठान और बेशरम रंग ही अपने आप में हेडलाइन हंटिंग है. पठान की प्रमोशनल गतिविधियों को देखें तो समझ में आता है कि फिल्म, गाने, बयानों और राजनीतिक मंचों के जरिए किस स्तर की हेडलाइन हंटिंग हुई. बदनाम होंगे तो क्या नाम ना होगा- के दर्शन पर बनी पठान असल में हेडलाइन हंटिंग की वजह से ही कुचर्चा में है.
पठान को लेकर क्या कुछ चल रहा है- किसी को बताने की जरूरत नहीं. फिल्म के प्रचार में सोशल मीडिया पर शाहरुख खान के तमाम फैन ग्रुप्स जो कुछ कर रहे हैं- मार्केटिंग और बिजनेस स्कॉलर कुछ साल बाद जरूर इस पर केस स्टडी करते नजर आएंगे. केस स्टडी यह कि कैसे कुचर्चाओं के जरिए एक नाकाम अभिनेता के स्टारडम को बचाने की कोशिशों में क्या-क्या हथकंडे प्रचार के तिकड़म अपनाए गए. संभवत: इस मुद्दे पर राजनीति के स्कॉलर भी भविष्य में कोई शोध करें कि एक फिल्म को बेंचने के लिए सामजिक धार्मिक रूप से संवेदनशील मुद्दों का किस तरह स्मार्ट यूज किया गया. कारोबारी मुनाफे के लिए ट्रोल्स समूहों के जरिए ध्रुवीकरण किया गया. यह छिपी बात नहीं है कि ट्रोल्स समूहों के पीछे प्राय: कौन होते हैं. उन्हें किस तरह फंडिंग मिलती है और उनका किस तरह इस्तेमाल किया जाता है.
यह भी छिपी बात नहीं है कि पठान को यौन कुंठा के सहारे बेंचा जा रहा है. जिनकी रीढ़ सीधी है- लगभग सभी वैचारिक धड़ों से कला के नाम पर पठान की बेशरमी के खिलाफ एक स्वर में आवाज उठी है. सवाल बिकिनी या गाने के बोल का नहीं था. बेशरम रंग में जिस तरह जबरदस्ती फूहड़ता परोसी गई है- कोई पचाने को तैयार नहीं कि यह कैसी कला हुई भाई. सोशल मीडिया पर निंदा देख सकते हैं. बावजूद कला के नाम पर बनाई गई फूहड़ता को बचाने के लिए नाना प्रकार के कुतर्क (स्त्री स्वतंत्रता, ड्रेस डिबेट) और 'हेडलाइन हंटिंग' रुकने का नाम नहीं ले रहे. एक तरह से पठान और बेशरम रंग ही अपने आप में हेडलाइन हंटिंग है. पठान की प्रमोशनल गतिविधियों को देखें तो समझ में आता है कि फिल्म, गाने, बयानों और राजनीतिक मंचों के जरिए किस स्तर की हेडलाइन हंटिंग हुई. बदनाम होंगे तो क्या नाम ना होगा- के दर्शन पर बनी पठान असल में हेडलाइन हंटिंग की वजह से ही कुचर्चा में है.
विवेक अग्निहोत्री पर बात करिए, उनकी लड़की निशाने पर क्यों है?
इसी कड़ी में पठान की बेशरमी बचाने के लिए ताजा हरकत तो सारी हदों को पार करते नजर आ रही है. असल में दो दिन पहले द कश्मीर फाइल्स बनाने वाले विवेक अग्निहोत्री ने ट्विटर पर एक वीडियो साझा किया. उन्होंने वीडियो के साथ लिखा- अगर आप सेकुलर हैं तो इसे न देखें. उन्होंने पठान की आलोचना के साथ एक लड़की का वीडियो भी साझा किया था. वीडियो में लड़की गाने को रेप के लिए उकसाने वाला बता रही थी. खैर, विवेक अग्निहोत्री के के बाद तमाम लोग उनकी आलोचना करने लगे. आलोचना में विवेक की कुछ पुरानी फिल्मों के बोल्ड सीन्स साझा किए गए और उनके पाखंड पर हमला किया गया. यह स्वाभाविक था. बहस यहां तक ठीक थी. लेकिन कुछ ट्रोल्स ने विवेक की बेटी की तस्वीरों को वायरल कर दिया. तस्वीरों में विवेक की बेटी ऑरेंज बिकिनी में थीं. विवेक ने गलत कहा या सही, उनके पाखंड पर बहस कर सकते हैं. मगर इसमें उनकी बेटी का संदर्भ जिस तरह घुसेड़ा गया- वह असल में बीमार मानसिकता का ही परिचायक है.
विवेक की बेटी की तस्वीरों को पठान की बेशरमी बचाने के लिए ही साझा किया गया. दोनों तस्वीरों के मकसद और बैकग्राउंड में जमीन आसमान का अंतर है. क्या देश की लड़कियां बिकिनी या छोटे कपड़े नहीं पहनती हैं? क्या वे बिकिनी पहनकर वैसे ही कामुक डांस करती हैं- जैसे बेशरम रंग में दीपिका पादुकोण ने किया है? क्या बीच पर बिकिनी में नजर आने वाली महिलाएं अश्लीलता का प्रदर्शन करती हैं जैसे- दीपिका ने बेशरम रंग में किया है. सवाल यह भी है कि क्या विवेक की बेटी ने बिकिनी में वैसे ही अश्लील प्रदर्शन किया है जैसे दीपिका ने बेशरम रंग में किया. और क्या विवेक की बेटी की तस्वीरें किसी एक्ट का हिस्सा हैं?
शाहरुख के समर्थकों ने बिकिनी पहनने वाली देश की असंख्य महिलाओं का मजाक उड़ाया, माफी मांगे
ट्रोल्स ने डिग्निटी के साथ बिकिनी पहनने वाली महिलाओं के अस्तित्व पर भी हमला किया है. बेशरम रंग के बचाव में जिस तरह फोटो साझा हुई- असल में ट्रोल्स कहना चाहते हैं कि बेशरम रंग के एक्ट की तरह ही तो तस्वीरें भी हैं. क्या ऐसा है? शाहरुख खुद एक बेटी के पिटा हैं. उन्हें इस मामले में प्रतिक्रियाएं देनी चाहिए. दुर्भाग्य से पठान के प्रचार में जुटे शाहरुख का कोई ट्वीट या उनकी प्रतिक्रिया अबतक इस बारे में नहीं दिखी. ममता बनर्जी के मंच पर जिस पॉजिटिविटी से शाहरुख लैस थे, क्या वह सकारात्मकता ख़त्म हो गई. अगर ख़त्म हो गई तो मान लिया जाए कि पठान के प्रमोशन में सोशल मीडिया पर जुटा एक दस्ता तमाम तरह के हथकंडों के जरिए 'हेडलाइन हंटिंग' ही कर रहा है. किसी ना किसी बहाने फिल्म चर्चा में बनी रहे. और कुचर्चा है. हैरानी है कि जिस तरह से एक निर्दोष लड़की को एक फूहड़ता बचाने के लिए इस्तेमाल किया गया- नारी स्वतंत्रता की बात करने वाला लिबरल धड़ा खामोश है.
बेशरम रंग गाने को छोड़ दिया जाए तो पठान का टीजर आया. कई और गाने आए- किसी ने ध्यान तक नहीं दिया. बेशरम रंग को लेकर भी बातें उसके गाने, धुन, बोल पर नहीं हुई. बल्कि दीपिका के उत्तेजक एक्ट पर ही हुई. बिकिनी खराब ड्रेस थोड़े है. जो बिकिनी में कम्फर्ट हैं, वे पहनती हैं. कहीं सामने नहीं आया कि महिलाओं के बिकिनी पहनने को लेकर धरना प्रदर्शन हो रहे हैं. महिलाओं के कपड़े पर आलोचनाएं बीस साल पीछे छूट चुकी हैं. तब पंचायतें जिंस तक पर पाबंदी लगाती थीं. अब ऐसा नहीं है. भारत की महिलाएं बिकिनी पहनती और ठसक के साथ पहनती हैं. लेकिन सड़क पर पोर्न स्टार्स की तरह कामुक एक्ट नहीं करतीं. विवेक की बेटी की तस्वीरों को जिस तरह वायरल किया गया है- यह एक गंभीर मामला है. एक तरह से आपराधिक हरकत भी कह सकते हैं. कायदे से जो भी इसके पीछे हैं उन्हें खींचकर बाहर निकालना चाहिए और बीमारी का उचित इलाज करना चाहिए.
विवेक अग्निहोत्री ने सवाल किया तो इसका मतलब यह नहीं कि उनके बच्चे जो इससे जुड़े नहीं हैं- उनका भी नाम घसीटा जाएगा. शर्मनाक मामला है यह.
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