ऑमिक्रोन वेरिएंट के बाद कोरोना के मामलों में रोजाना तेजी दिख रही है. इसका बुरा असर मल्टीप्लेक्स/थियेटर्स कारोबार पर पड़ता नजर आ रहा है. इक्का दुक्का इलाकों को छोड़ दिया जाए तो अभी भी देश के ज्यादातर हिस्सों में सरकारों की तरफ से सिनेमाघरों को बंद करने का कोई फरमान नहीं सुनाया गया है. बावजूद बदले हालात में सिनेमाघरों को "बंदी" जैसे हालात से गुजरना पड़ रहा है. ऐसा लग रहा कि सिनेमाघरों को बिना सरकारी आदेश के खुद अपनी दुकान बंद करनी पड़ेगी.
थियेटर कारोबार सिर्फ दो हफ्ते पहले बदले हालात में दिख रहा था. बॉक्स ऑफिस पर फिल्मों की भीड़ बहुत ज्यादा थी. हर हफ्ते कोई ना कोई फिल्म रिलीज हो रही थी और उनके बीच स्क्रीन/शोकेसिंग को लेकर खींचतान दिखाई दे रहा था. अब तक जितनी फ़िल्में आई हैं उनमें अक्षय कुमार की सूर्यवंशी को छोड़ दिया जाए तो बाकी फिल्मों को पूरी तरह से खाली टिकट खिड़की नहीं मिली है. लेकिन नजारा बिल्कुल अलग है. कुछ इलाकों को छोड़कर सिनेमाघर भले चालू हैं पर दिखाने के लिए उनके पास फ़िल्में ही नहीं हैं. इस बात की पूरी आशंका है कि आने वाले हफ़्तों में फिल्मों की अनुपलब्धता की वजह से थियेटर के दरवाजे बंद करने पड़ जाए. कम से कम हिंदी सिनेमा क्षेत्रों में तो कुछ ऐसे ही संकेत नजर आ रहे हैं.
दरअसल, पिछले शुक्रवार से ही जो नई फ़िल्में रिलीज होनी थीं उन्हें टालने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. जनवरी तक आने वाली लगभग सभी बड़ी फिल्मों को टाला जा चुका है. इनमें जर्सी, आरआरआर, राधेश्याम और पृथ्वीराज जैसी फ़िल्में शामिल हैं. सभी फिल्मों की रिलीज में सिर्फ एक हफ्ते का अंतराल था. कई सिनेमाघरों में फिलहाल स्पाइडरमैन: नो वे होम, पुष्पा द: राइज और 83 चल रही है. इन फिल्मों के बाद जनवरी में आने वाली फिल्मों पर ही सिनेमाघरों का कारोबार टिका था. अब चूंकि पहले से तय फ़िल्में पोस्टफोन हो चुकी हैं, सिनेमाघरों के पास कोई विकल्प नहीं रहा.
कोरोना की वजह से इस बार शाहिद कपूर की जर्सी सबसे पहले पोस्टफोन हुई.
सिनेमाघर या तो पहले से चल रही फिल्मों की शोकेसिंग जारी रखें या फिर उन्हें टिकट खिड़की के "क्लोज्ड शटर" को गिराना होगा. स्पाइडरमैन, पुष्पा और 83 ने अपनी क्षमता के अनुसार काफी वक्त सिनेमाघरों में बिता लिया हैं. अब फिल्मों के बिजनेस में फुटफॉल दिख रहा है. मौजूद फिल्मों से ज्यादा से ज्यादा और एक-दो हफ्ते सिनेमाघर चलाए जा सकते हैं. कमाई नहीं होने की स्थिति में फिल्मों को शोकेस करना मल्टीप्लेक्स के लिए सिर्फ और सिर्फ घाटे का सौदा साबित होगा. यह भी देखने में आ रहा है कि जहां इन फिल्मों से कम कमाई हो रही है वहां थियेटर्स के ऑपरेशन बंद किए जा रहे हैं. बॉलीवुड हंगामा की एक रिपोर्ट के अनुसार कंटेट की कमी की वजह से मुंबई में Gaiety सिनेमा ने अपने ऑपरेशन रोक लिए हैं. मुंबई के जी 7 मल्टीप्लेक्स में Gaiety सिनेमा के सात थियेटर हैं. यहां सिर्फ एक 100 सीटर थियेटर चल रहा है जहां 83 दिखाई जा रही है. रिपोर्ट के मुताबिक़ Gaiety सिनेमा को आगे दिखाने के लिए कंटेंट ही नहीं है.
कहां सिनेमाघर बंद हैं?
तीसरी लहर के शोर के बाद सिनेमाघरों को सबसे पहले बंद करने वाला राज्य दिल्ली था. यहां 100 प्रतिशत दर्शक क्षमता के साथ सिनेमाघर शुरू थे, सरकार ने 28 दिसंबर से इन्हें पूरी तरह से बंद करने का आदेश जारी किया था. इसके बाद एनसीआर में आने वाले गुरुग्राम समेत हरियाणा के पांच जिलों में जहां भी कोरोना के ज्यादा मामले दिखे सिनेमाघरों को बंद करने का आदेश दिया गया. बिहार में भी सिनेमाघरों को बंद करने को कहा गया है. हालांकि कई दूसरे राज्यों में सिनेमाघर अभी भी शुरू हैं क्योंकि वहां सरकारों ने बंद करने से जुड़े आदेश नहीं दिए हैं.
किन बड़े राज्यों में सिनेमाघर खुल रहे, क्या स्थिति है वहां?
हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े मार्केट मुंबई सर्किट में सिनेमाघर दीपावली के पहले से ही 50 प्रतिशत दर्शक क्षमता के साथ खुल रहे हैं. कोरोना की बड़ी लहर की आशंका के बावजूद अन्य राज्यों मसलन पंजाब, वेस्ट बंगाल, मध्य प्रदेश ओडिशा, राजस्थान आदि में नाइट कर्फ्यू जैसी पाबंदियां तो हैं मगर सिनेमाघरों को 50 प्रतिशत अकुपेंसी यानी दर्शक क्षमता के साथ चलाए रखने की अनुमति है. गुजरात में 100 प्रतिशत दर्शक क्षमता की अनुमति है. हालांकि यहां के आठ बड़े शहरों में नाइट कर्फ्यू चल रहा है. यूपी के उन जिलों में 50 प्रतिशत दर्शक क्षमता की अनुमति के साथ सिनेमाघरों को खोलने की अनुमति है जहां 1,000 से ज्यादा एक्टिव केस हैं.
तमिलनाडु में 50 प्रतिशत दर्शक क्षमता के साथ ऑपरेशन शुरू है, मगर रविवार को लॉकडाउन है. कर्नाटक में वीकएंड कर्फ्यू है लेकिन वीकडेज में 50 प्रतिशत दर्शक क्षमता के साथ सिनेमाघर चलाए जा सकते हैं. इन सब में बॉलीवुड के लिहाज से महाराष्ट्र सबसे बेहतर मार्केट है. लेकिन सवाल यही है कि कंटेंट ना होने की स्थिति में एग्जीबिटर्स आखिर दिखाएंगे क्या? उनके सामने सिनेमाघरों को बंद करने के अलावा कोई चारा नहीं है. बावजूद कि यहां सरकारों ने बंदी जैसा कोई आदेश अब तक जारी नहीं किया है.
कब बदलेगी सिनेमाघरों की सूरत?
सिनेमाघरों की हालत सुधरने के आसार फिलहाल नजदीक तो नजर नहीं आ रहे हैं. महामारी की लहर को लेकर जो आशंका जताई जा रही है उसमें कम से कम दो महीने का समय उबरने में लग सकता है. वह भी तब जब दूसरी लहर की तरह स्थितियां चिंताजनक ना हों. स्थितियां भयावह हुईं तो इस साल भी सिनेमाघरों के कम से कम तीन से चार महीने बर्बाद होना तय है. अगर सबकुछ ठीक रहा तो फरवरी के अंत से सिनेमाघरों में फिल्मों की रिलीज का सिलसिला शुरू हो सकता है. वैसे इस बात की भी संभावना है कि तमाम निर्माता इस अवधि में अपनी फिल्मों को ओवर दी टॉप प्लेटफॉर्म पर रिलीज करने के लिए आगे आए.
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