उद्धव ठाकरे से बगावत करके महाराष्ट्र सरकार की चूले हिला देने वाले शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे कई दिनों से सुर्खियों में हैं. लेकिन उनके गुरु और दिवंगत शिवसेना नेता आनंद दिघे के जीवन पर आधारित मराठी फिल्म 'धर्मवीर' की क्लिपिंग सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं. इन क्लिपिंग के जरिए यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि शिवसेना नेता आनंद दिघे अपने राजनीतिक गुरु बालासाहेब ठाकरे कितना आदर देते थे. उनके लिए कुछ करने को तैयार रहते थे. इतना ही नहीं महाराष्ट्र खासकर ठाणे में उन्होंने किस तरह से हिंदू राज्य की स्थापना की थी, जहां गैर हिंदुओं खासकर मुस्लिमों को उनके दायरे में रहने की हिदायत होती थी. इसी के साथ यह भी दिखाया जा रहा है कि एकनाथ शिंदे शिवसेना नेता आनंद दिघे को अपना गुरु मानते थे. उनके साथ साए की तरह रहते थे. दिघे भी उसी तरह से शिंदे को मान-सम्मान और प्यार देते थे.
वैसे तो मराठी फिल्म 'धर्मवीर' 12 मई को ही महाराष्ट्र के सिनेमाघरों में रिलीज हो गई थी. इसके प्रीमियर पर खुद उद्धव ठाकरे अपने परिवार और एकनाथ शिंदे के साथ गए थे. लेकिन इसके वीडियो ऐसे वक्त में सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जब महाराष्ट्र की सियासत में सुनामी आई हुई है, जब एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे एक-दूसरे के आमने-सामने हैं. इस समय आनंद दिघे को फिल्म के जरिए दोबारा जिंदा करने का आखिर क्या मकसद हो सकता है? आखिर क्यों एकनाथ शिंदे आनंद दिघे की मौत और उससे जुड़े विवाद को सामने ला रहे हैं? आखिर महाराष्ट्र की राजनीति में आनंद दिघे की क्या हैसियत थी? आइए इन सवालों के पीछे की वजह जानने की कोशिश करते हैं.
1. शिंदे के पक्ष में माहौल बनाना
इस वक्त एकनाथ शिंदे पूरे देश में चर्चा के केंद्र में हैं. सभी जानते हैं कि उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी शिवसेना के खिलाफ बगावत किया है. ऐसे...
उद्धव ठाकरे से बगावत करके महाराष्ट्र सरकार की चूले हिला देने वाले शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे कई दिनों से सुर्खियों में हैं. लेकिन उनके गुरु और दिवंगत शिवसेना नेता आनंद दिघे के जीवन पर आधारित मराठी फिल्म 'धर्मवीर' की क्लिपिंग सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं. इन क्लिपिंग के जरिए यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि शिवसेना नेता आनंद दिघे अपने राजनीतिक गुरु बालासाहेब ठाकरे कितना आदर देते थे. उनके लिए कुछ करने को तैयार रहते थे. इतना ही नहीं महाराष्ट्र खासकर ठाणे में उन्होंने किस तरह से हिंदू राज्य की स्थापना की थी, जहां गैर हिंदुओं खासकर मुस्लिमों को उनके दायरे में रहने की हिदायत होती थी. इसी के साथ यह भी दिखाया जा रहा है कि एकनाथ शिंदे शिवसेना नेता आनंद दिघे को अपना गुरु मानते थे. उनके साथ साए की तरह रहते थे. दिघे भी उसी तरह से शिंदे को मान-सम्मान और प्यार देते थे.
वैसे तो मराठी फिल्म 'धर्मवीर' 12 मई को ही महाराष्ट्र के सिनेमाघरों में रिलीज हो गई थी. इसके प्रीमियर पर खुद उद्धव ठाकरे अपने परिवार और एकनाथ शिंदे के साथ गए थे. लेकिन इसके वीडियो ऐसे वक्त में सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जब महाराष्ट्र की सियासत में सुनामी आई हुई है, जब एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे एक-दूसरे के आमने-सामने हैं. इस समय आनंद दिघे को फिल्म के जरिए दोबारा जिंदा करने का आखिर क्या मकसद हो सकता है? आखिर क्यों एकनाथ शिंदे आनंद दिघे की मौत और उससे जुड़े विवाद को सामने ला रहे हैं? आखिर महाराष्ट्र की राजनीति में आनंद दिघे की क्या हैसियत थी? आइए इन सवालों के पीछे की वजह जानने की कोशिश करते हैं.
1. शिंदे के पक्ष में माहौल बनाना
इस वक्त एकनाथ शिंदे पूरे देश में चर्चा के केंद्र में हैं. सभी जानते हैं कि उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी शिवसेना के खिलाफ बगावत किया है. ऐसे में शिवसेना का उद्धव गुट उनके खिलाफ पूरे सूबे में माहौल बनाने में लगा हुआ है. उनको गद्दार बताया जा रहा है. उन लोगों का यहां तक कहना है कि उन्होंने पार्टी में इतना मान-सम्मान मिला, इसके बावजूद उन्होंने धोखा दे दिया. उद्धव ठाकरे ने कहा कि यदि शिंदे उनसे कहते तो वो उनको अपनी जगह सीएम भी बना देते. शिंदे अभी महाराष्ट्र से बाहर हैं. उनके पक्ष में प्रत्यक्ष संवाद करने वाला कोई नहीं है. ऐसे में इस फिल्म के जरिए शिंदे के पक्ष में माहौल बनाया जा रहा है. फिल्म में शिंदे को शिवसेना का सच्चा सिपाही बताया गया है. हिंदुओं का संरक्षक दिखाया गया है. ऐसे में फिल्म की क्लिपिंग देखने के बाद वो लोग भी उनके बारे में जानकारी पा रहे हैं, जो शिंदे को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते हैं. सिनेमा समाज को सीधे प्रभावित करता है. ऐसे में फिल्म के जरिए इमेज बिल्डिंग का काम लंबे वक्त से हो रहा है. संजय राऊत ने भी बालासाहेब ठाकरे की बायोपिक 'ठाकरे' बनाई थी, जिसमें नवाजुद्दीन ने लीड रोल किया था.
2. शिंदे को दिघे का वारिस बताना
''तुम एक मारोगे तो हम 10 मारेंगे. तुम 10 मारोगे तो हम 100 मारेंगे. तुम 100 मारोगे तो हम तुम सबको मार डालेंगे''...फिल्म 'धर्मवीर' में आनंद दिघे का ये डायलॉग उनके बारे में बताने के लिए काफी है. सभी जानते हैं कि दिघे बहुत ज्यादा लोकप्रिय थे. उनको बालासाहेब ठाकरे का दाहिना हाथ माना जाता था. उनकी लोकप्रियता का आलम ये था कि लोग उनको 'ठाणे का ठाकरे' तक कहते थे. शिवसेना में बालासाहेब का बाद उनकी सबसे मजबूत राजनीतिक हैसियत थी. फिल्म में दिखाया गया है कि शिंदे दिघे के सबसे खास आदमी है. उसी तरह जैसे दिघे ठाकरे के थे. शिंदे उनको अपना गुरु मानते हैं. उनको राजनीतिक में लाने और आगे बढ़ाने का श्रेय दिघे को ही दिया जाता है. चूंकि दिघे की लोगों की बीच बहुत ज्यादा लोकप्रियता थी. उसी को भुनाने का काम इस वक्त शिंदे कर रहे हैं. वो जानते हैं कि महाराष्ट्र की सियासत में बालासाहेब के बाद आनंद दिघे की ही राजनीतिक हैसियत ऐसी है, जो कि उनको सूबे में स्थापित कर सकती हैं. शिवसैनिकों को विरोध करने से रोक सकती है. हालांकि, दिघे की मौत के बाद शिंदे ने उनकी खाली जगह को पूरी तरह से भर लिया है.
3. शिंदे की छवि मजबूत बनाना
''बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना उन लोगों का समर्थन कैसे कर सकती है, जिनका मुंबई बम विस्फोट के दोषियों, दाऊद इब्राहिम और मुंबई के निर्दोष लोगों की जान लेने के लिए ज़िम्मेदार लोगों से सीधा संबंध था, इसलिए हमने ऐसा कदम उठाया, मरना ही बेहतर है''...शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे ने ये ट्वीट उस वक्त किया, जब उनके ऊपर धोखेबाजी के आरोप लगने लगे. शिंदे का खुले तौर पर कहना है कि बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना जिन सिद्धांतों पर काम कर रही थी, उद्धव ठाकरे ने सत्ता की लालच में आकर उसे तिलांजलि दे दी है. वो अपने हिंदुत्व की छवि पर कायम हैं. उसे ही मजबूत बनाना चाहते हैं. फिल्म में भी दिखाया गया है कि आनंद दिघे और एकनाथ शिंदे ने हिंदुत्व को मुद्दा बनाकर किस तरह से शिवसेना को मजबूत किया था. ऐसे में फिल्म के जरिए उन लोगों को आसानी से साधा जा सकता है जो शिवसेना के मूल सिद्धांतों से आज भी जुड़े हुए हैं.
4. दिघे की मौत को साजिश बताना
सामाजिक सरोकारों के लिए आनंद दिघे हमेशा से ही चर्चा में रहे हैं. वो ठाणे में हर रोज दरबार लगाया करते थे, जहां पीड़ितों की समस्याओं को सुनते और उसे सुलझाने की कोशिश करते थे. उन्होंने अपने पद और प्रतिष्ठा का इस्तेमाल लोगों के कल्याण के लिए हमेशा किया. सैकड़ों लोगों की नौकरियां लगवाईं. लोगों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए कई त्योहारों को बड़े पैमाने पर मनवाना शुरू किया. इन सभी वजहों से उनकी लोकप्रियता आसमान पर पहुंच गई. कहा जाता है कि इसकी वजह से बालासाहेब ठाकरे भी परेशान रहने लगे. क्योंकि कई मामलों में उन्होंने बालासाहेब की बात भी नहीं मानी थी. साल 2001 में रहस्यमयी परिस्थितियों में एक कार हादसे में आनंद दिघे बुरी तरह घायल हो गए. उनको इलाज के लिए ठाणे के सुनीतादेवी सिंघानिया अस्पताल में भर्ती कराया गया. लेकिन इलाज के दौरान उनकी मौत गई. इस घटना के बाद इलाज में लापरवाही का आरोप लगाते हुए उनके कार्यकर्ताओं ने अस्पताल में आग लगा दिया था. दिघे की मौत के पीछे गहरी साजिश की आशंका जताई गई थी. फिल्म में इस पूरे सीक्वेंस को दिखाया गया है.
दबंग लेकिन दयालु थे आनंद दिघे?
महाराष्ट्र के ठाणे के तेम्बी नाका इलाके में पैदा हुए आनंद दिघे शरीर से दबंग लेकिन स्वभाव से दयालु माने जाते थे. उनके दरबार से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था. यहां तक कि उनके दरबार में लिए जाने वाले फैसलों को कोई पलट भी नहीं सकता था. वो सर्वमान्य और अंतिम हुआ करता था. जवानी की दहलीज पर कदम रखने के साथ दिघे बाला साहेब ठाकरे की विचारधारा से बहुत प्रभावित हुए. यही वजह है कि 80 के दशक में ही वो शिवसेना के साथ जुड़ गए. बालासाहेब जब भी ठाणे जाते, उनसे मुलाकात जरूर करते. धीरे-धीरे उन्होंने इतना भरोसा जमा लिया कि ठाकरे ने ठाणे में शिवसेना का सारा काम उनके जिम्मे ही कर दिया. ठाणे मुंबई से सटा एक जिला है. यहां दिघे के प्रभाव की वजह से शिवसैनिकों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ. यही वजह है कि वो बालासाहेब के बहुत करीबी हो गए. साल 1989 में हुए ठाणे नगर निगम के चुनाव में शिवसेना के 30 पार्षद चुनकर आए. शिवसेना ने जनता पार्टी से हाथ मिलाया और महापौर पद के लिए दावा ठोक दिया. लेकिन शिवसेना के कुछ पार्षदों ने धोखा देकर क्रास वोटिंग कर दी.
उस वक्त ठाणे के जिला प्रमुख आनंद दिघे ही थे. उन्होंने पहले ही चेतावनी जारी कर दी थी कि पार्टी से धोखा करने वालों को छोड़ा नहीं जाएगा. क्रास वोटिंग करने वाले पार्षदों के नेता श्रीधर खोपकर की बाद में तलवार से हत्या कर दी गई. इसका आरोप आनंद दिघे पर ही लगा. लेकिन सबूतों के अभाव में पुलिस उनको गिरफ्तार नहीं कर पाई. कुछ समय बाद टाडा के तहत उनको गिरफ्तार किया गया, लेकिन जनता का भारी समर्थन देखकर पुलिस के भी हाथ पांव भूल गए. कुछ दिनों बाद कोर्ट ने उनको जमानत पर रिहा कर दिया. शिवसेना और महाराष्ट्र की राजनीति में दिघे के बढ़ते कद की वजह से पार्टी के कई नेता बालासाहेब का कान भरने लगे. कुछ मौकों पर बालासाहेब को भी लगा कि दिघे उनको बाईपास करके काम करने लगे हैं. यही वजह है कि दोनों के बीच मतभेद भी होने लगा. इसी बीच एक कार हादसे में दिघे गंभीर रूप से घायल हुए और अस्पताल में उनकी मौत हो गई. आनंद दिघे भले ही जिंदा न हो, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में आज भी उनकी अहमियत है. शिंदे उनके नाम के सहारे ही यहां तक पहुंच पाए हैं.
देखिए फिल्म धर्मवीर का ट्रेलर...
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