Siddharth Mehrotra और Ritesh Deshmukh को एक साथ 2014 में फिल्म एक विलेन में देखा था. फिल्म जैसी भी थी लेकिन रितेश देशमुख बाजी मार ले गए थे. उन्हें पहली बार विलेन के रूप में देखना काफी रोमांचक लगा था. और इसी रोमांच को बरकरार रखते हुए ये जोड़ी फिल्म Marjaavaan में भी दिखाई दे रही है. इस बार रितेश देशमुख विलेन तो हैं ही लेकिन उन्होंने अपने लुक के साथ भी एकसपेरिमेंट किया है. वो विलेन के साथ-साथ बौने भी बने हैं. यानी रितेश देशमुख ने इस फिल्म को देखने के लिए दो कारण दे दिए हैं.
फिल्म का डायलॉग है 'कमीनेपन की हाइट होती है तीन फुट' और रितेश को देखकर लगता है कि ये फिल्म Ritesh Deshmukh को फ्रंट फुट पर ले आएगी.
पर ऐसा क्यों है कि फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा से ज्यादा रितेश के चर्चे हो रहे हैं. वजह एक दम साफ है. हमेशा हंसी ठिठोली करने वाले एक्टर को जब उसके किरदार के एकदम उलट रूप में देखा जाएगा तो मजा तो आएगा ही. एक विलेन में रितेश को इसी वजह से लोगों ने पसंद किया और उन्हें दोबारा निगेटिव कैरेक्टर दिए जाने के पीछे भी वजह यही है कि उन्हें लोगों ने पसंद किया.
बॉलीवुड में हीरो का विलेन बनना एक सफल एक्सपेरिमेंट रहा है
फिल्मों में हीरो की छवि अच्छी इसीलिए होती है क्योंकि वो सभ्य, अच्छा, संस्कारी, सुंदर और बलवान होता है. विलेन वो जो इसका ठीक उल्ट हो. पुरानी फिल्मों में यही पैटर्न होता था. हीरो- हीरोइन और विलेन. लेकिन 1993 में जब शाहरुख खान फिल्म 'डर' में एक विलेन के रूप में सामने आए तो लोग स्तब्ध रह गए. वजह यही थी कि शाहरुख को हमेशा उनके क्यूट लुक की वजह से पसंद किया गया था. लेकिन निगेटिव रोल में उन्हें देखना ज्यादा अच्छा लगा था. इसके बाद 1994 में...
Siddharth Mehrotra और Ritesh Deshmukh को एक साथ 2014 में फिल्म एक विलेन में देखा था. फिल्म जैसी भी थी लेकिन रितेश देशमुख बाजी मार ले गए थे. उन्हें पहली बार विलेन के रूप में देखना काफी रोमांचक लगा था. और इसी रोमांच को बरकरार रखते हुए ये जोड़ी फिल्म Marjaavaan में भी दिखाई दे रही है. इस बार रितेश देशमुख विलेन तो हैं ही लेकिन उन्होंने अपने लुक के साथ भी एकसपेरिमेंट किया है. वो विलेन के साथ-साथ बौने भी बने हैं. यानी रितेश देशमुख ने इस फिल्म को देखने के लिए दो कारण दे दिए हैं.
फिल्म का डायलॉग है 'कमीनेपन की हाइट होती है तीन फुट' और रितेश को देखकर लगता है कि ये फिल्म Ritesh Deshmukh को फ्रंट फुट पर ले आएगी.
पर ऐसा क्यों है कि फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा से ज्यादा रितेश के चर्चे हो रहे हैं. वजह एक दम साफ है. हमेशा हंसी ठिठोली करने वाले एक्टर को जब उसके किरदार के एकदम उलट रूप में देखा जाएगा तो मजा तो आएगा ही. एक विलेन में रितेश को इसी वजह से लोगों ने पसंद किया और उन्हें दोबारा निगेटिव कैरेक्टर दिए जाने के पीछे भी वजह यही है कि उन्हें लोगों ने पसंद किया.
बॉलीवुड में हीरो का विलेन बनना एक सफल एक्सपेरिमेंट रहा है
फिल्मों में हीरो की छवि अच्छी इसीलिए होती है क्योंकि वो सभ्य, अच्छा, संस्कारी, सुंदर और बलवान होता है. विलेन वो जो इसका ठीक उल्ट हो. पुरानी फिल्मों में यही पैटर्न होता था. हीरो- हीरोइन और विलेन. लेकिन 1993 में जब शाहरुख खान फिल्म 'डर' में एक विलेन के रूप में सामने आए तो लोग स्तब्ध रह गए. वजह यही थी कि शाहरुख को हमेशा उनके क्यूट लुक की वजह से पसंद किया गया था. लेकिन निगेटिव रोल में उन्हें देखना ज्यादा अच्छा लगा था. इसके बाद 1994 में फिल्म 'अंजाम' में भी शाहरुख खान निगेटिव रोल में नजर आए थे.
शाहरुख खान से पहले तक कोई भी एक्टर अपनी हीरो वाली छवि से बाहर नहीं निकलना चाहता था. लेकिन शाहरुख के बाद बॉलीवुड में ये झिझक टूटी. और एक्टर्स अपने हीरो वाले खोल से बाहर निकले. काफी एक्टर्स ने अपनी इमेज के साथ एक्सपेरिमेंट किया.
आमिर खान ने पहले फिल्म 'अर्थ' में और बाद में धूम 3 में. इसके अलावा अक्षय कुमार ने भी अपनी छवि के विपरीत फिल्में कीं जैसे 'अजनबी', लेकिन '2.0' में अक्षय ने खतरनाक लुक भी लिया था. इस फिल्म को भी अक्षय कुमार के निगेटिव रोल की वजह से पसंद किया गया था. सुनील शेट्टी भी 'धड़कन' में निगेटिव किरदार में थे हालांकि उसे ग्रे शोड ही कहा जाएगा.
फिल्म 'ओंकारा' में सैफ अली खान ने अगर लंगड़ा त्यागी का किरदार न किया होता तो उनका करियर कब का ठप्प हो गया होता. सैफ अली खान ने इस रोल के माध्यम से खुद को साबित किया था कि वो आखिर क्या क्या कर सकते हैं. असल में तो लंगड़ा त्यागी ने ही सैफ एक एक्टर बनाया.
फिर फिल्म 'बदलापुर' में वरुण धवन, 'क्रिश' में विवेक ओबरॉय ने निगेटिव रोल निभाया था. और उनके काम को सराहा भी गया. फिल्म 'अग्निपथ' में संजय दत्त और ऋषि कपूर दोनों ने विलेन का रोल निभाया, जबकि दोनों ही अपने समय के बेहद पसंद किए जाने वाले हीरो थे. इसके बाद रणबीर सिंह को पद्मावत में खिलजी के रोल में देखकर तो इस किरदार से नफरत ही हो गई थी. लेकिन रणबीर की अदाकारी का हर कोई कायल हो गया था.
अपनी छवि के साथ एक्पेरिमेंट करने वाले सिर्फ हीरो ही नहीं हीरोइन भी थीं. सबसे पहले काजोल ने फिल्म 'गुप्त' में विलेन बनकर चौंकाया था. इसके बाद फिल्म 'एतराज' में प्रियंका चोपड़ा ने. फिल्म 'गुलाब गैंग' में हमेशा हंसने वाली जूही चावला ने भी अपनी निगेटिव छवि को पर्दे पर दिखाया. हालांकि अभिनेत्रियों में इस तरह का एक्पेरिमेंट करने वालों की संख्या जरा कम है.
हीरो अगर विलेन बन जाए तो अच्छा क्यों लगता है?
वजह एकदम साफ है. कोई भी व्यक्ति जो अपने कैरेक्टर से हटकर व्यवहार करे, वो आकर्षित और स्तब्ध करता ही है. फिल्मों में ही नहीं असल जीवन में भी ऐसा ही होता है. हालांकि अगर शाहरुख खान ने सिर्फ अपनी हीरो वाली छवि ही मेंटेन की होती तो उनके अभिनय के ये रंग हमें कभी देखने नहीं मिलते. असल में दर्शक फिल्में इंटरटेनमेंट के लिए ही देखते हैं. और ये सत्य ही है कि हीरो को विलेन बनते देखने से ज्यादा रोमांच किसी और चीज में नहीं.
ऐसा करने में फायदा एक्टर्स का ही है
लंबे समय तक फिल्मों में बने रहना है तो हर रंग के किरदार निभाने होते हैं. आजकल के एक्टर्स कॉमेडियन्स को तो खा ही गए हैं क्योंकि फिल्मों में वो हीरो भी हैं और कॉमेडी भी बखूबी करते हैं. अब निगेटिव किरदार निभाने में भी एक्टर्स को अपनी छवि की चिंता नहीं है. क्योंकि सिने प्रेमी परिपक्व हुए हैं. वो एक्टर्स की एक्टिंग देखना चाहते हैं. आज जिमी शेरगिल को लोग देखना चाहते हैं क्योंकि हर फिल्म में उनकी एक्टिंग देखने लायक होती है. वो चाहे फिल्म में हीरो रहें, सपोर्टिंग एक्टर रहें या विलेन. और ये नियम अब हर कोई एक्टर फॉलो करता है कि उसे अपने अभिनय में अलग-अलग शेड्स दिखाने हैं, भले ही इसके लिए वो विलेन बन जाए. वो ये बदलाव नहीं करेंगे तो टाइप्ड हो जाएंगे.
विलेन का किरदार या ग्रे शेड निभाना अलग भी है और चैलेंजिंग भी. लेकिन एक बात सही है कि अब तक जिन भी सितारों ने ये चैलेंज लिया वो सफल हुए. और ये भी सच है कि बॉलीवुड में वो लंबी रेस का घोड़ा साबित होंगे. रितेश देशमुख भी एक ही तरह की फ्लॉप फिल्में देने के बाद टाइप्ड हो गए थे, वो कॉमेडी अच्छी करते हैं सब जानते हैं, लेकिन वो कमीनापन भी अच्छी तरह दिखा सकते हैं ये जानना बाकी है.
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