'मेरे पास बंगला है, गाड़ी है, बैंक बैलेंस है...तुम्हारे पास क्या है?...मेरे पास, 'मां' है...फिल्म 'दीवार' का यह फेमस डायलॉग बॉलीवुड के उन चंद डायलॉगों में से है जिसे शायद ही कोई भूल सके. फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन और शशि कपूर के बीच हुए इस संवाद की सबसे बड़ी ताकत थी 'मां की ममता', जिसने इसे अमर कर दिया. वैसे तो मां की ममता के लिए कोई दिन मुकर्रर नहीं किया जा सकता, उसके प्यार के प्रति अपना आभार जताने के लिए कोई समय सीमा नहीं तय की जा सकती, लेकिन दुनियाभर में एक खास दिन पर मदर्स डे मनाने की परंपरा चली आ रही है. हर साल मई के दूसरे हफ्ते के रविवार को मातृ दिवस के रूप में मनाया जाता है.
दशकों से, मां का किरदार हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बनने वाली अधिकांश फिल्मों का अभिन्न हिस्सा रहा है. लगभग हर दूसरी फिल्म में, मां का किरदार उसके कथानक के केंद्र में रहा है. अक्सर कथानक के पीछे प्रेरक शक्ति रहा है. बॉलीवुड ने बदलते दौर के साथ खुद को बदला है. वक्त की मांग के हिसाब से स्क्रिप्ट, कैरेक्टर्स, सॉन्ग और विजुअलाइजेशन पर काम किया गया. फिल्म मेकर्स ने बदलते समाज के अनुरूप कई नए प्रयोग भी किए. लेकिन इन सारे बदलावों के बीच बस एक चीज है जो पिछले कुछ वर्षों में सिनेमा में ज्यादा नहीं बदली, वो है 'मां', उसका प्यार और उसकी अपने बच्चों के अधिकारों के प्रति सजगता. सब बदल गया, लेकिन 'मां' नहीं बदली.
बॉलीवुड में कई फिल्में ऐसी हैं, जिसमें मां का किरदार मुख्य है. इन फिल्मों में मां का रोल निभाने वाली कई अभिनेत्रियों की पहचान धीरे-धीरे 'बॉलीवुड मॉम्स' के तौर पर होने लगी. उदाहरण के लिए, निरूपा रॉय, वहीदा रहमान, फरीदा जलाल, राखी, अचला सचदेव, दुर्गा खोटे, नीना गुप्ता और सीमा पहवा, इनको फिल्मो में देखते ही दर्शकों को पता चल जाता है कि ये मां के रोल में ही होंगी. इन अभिनेत्रियों ने अपने किरदार को इतनी दमदारी से निभाया कि आज वो 'मां' और उसकी ममता की पर्याय बन चुकी हैं. इनमें से कई अभिनेत्रियां हमारे बीच नहीं...
'मेरे पास बंगला है, गाड़ी है, बैंक बैलेंस है...तुम्हारे पास क्या है?...मेरे पास, 'मां' है...फिल्म 'दीवार' का यह फेमस डायलॉग बॉलीवुड के उन चंद डायलॉगों में से है जिसे शायद ही कोई भूल सके. फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन और शशि कपूर के बीच हुए इस संवाद की सबसे बड़ी ताकत थी 'मां की ममता', जिसने इसे अमर कर दिया. वैसे तो मां की ममता के लिए कोई दिन मुकर्रर नहीं किया जा सकता, उसके प्यार के प्रति अपना आभार जताने के लिए कोई समय सीमा नहीं तय की जा सकती, लेकिन दुनियाभर में एक खास दिन पर मदर्स डे मनाने की परंपरा चली आ रही है. हर साल मई के दूसरे हफ्ते के रविवार को मातृ दिवस के रूप में मनाया जाता है.
दशकों से, मां का किरदार हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बनने वाली अधिकांश फिल्मों का अभिन्न हिस्सा रहा है. लगभग हर दूसरी फिल्म में, मां का किरदार उसके कथानक के केंद्र में रहा है. अक्सर कथानक के पीछे प्रेरक शक्ति रहा है. बॉलीवुड ने बदलते दौर के साथ खुद को बदला है. वक्त की मांग के हिसाब से स्क्रिप्ट, कैरेक्टर्स, सॉन्ग और विजुअलाइजेशन पर काम किया गया. फिल्म मेकर्स ने बदलते समाज के अनुरूप कई नए प्रयोग भी किए. लेकिन इन सारे बदलावों के बीच बस एक चीज है जो पिछले कुछ वर्षों में सिनेमा में ज्यादा नहीं बदली, वो है 'मां', उसका प्यार और उसकी अपने बच्चों के अधिकारों के प्रति सजगता. सब बदल गया, लेकिन 'मां' नहीं बदली.
बॉलीवुड में कई फिल्में ऐसी हैं, जिसमें मां का किरदार मुख्य है. इन फिल्मों में मां का रोल निभाने वाली कई अभिनेत्रियों की पहचान धीरे-धीरे 'बॉलीवुड मॉम्स' के तौर पर होने लगी. उदाहरण के लिए, निरूपा रॉय, वहीदा रहमान, फरीदा जलाल, राखी, अचला सचदेव, दुर्गा खोटे, नीना गुप्ता और सीमा पहवा, इनको फिल्मो में देखते ही दर्शकों को पता चल जाता है कि ये मां के रोल में ही होंगी. इन अभिनेत्रियों ने अपने किरदार को इतनी दमदारी से निभाया कि आज वो 'मां' और उसकी ममता की पर्याय बन चुकी हैं. इनमें से कई अभिनेत्रियां हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन कुछ आज भी फिल्मों के जरिए मातृ प्रेम को दर्शकों के बीच उड़ेल रही हैं. आइए इनके बारे में जानते हैं.
निरूपा रॉय (Nirupa Roy)
बॉलीवुड फिल्मों में जब भी मां का जिक्र आता है तो जेहन में सबसे पहले अभिनेत्री 'निरूपा रॉय' का नाम उभरता है. करीब 200 से ज्यादा फिल्मों में मां का किरदार निभाने वाली निरूपा रॉय ने अपनी ऐसी छाप छोड़ी कि उनके सामने सब फीके लगने लगे. उनका इमोशन और दर्द रुपहले पर्दे पर इतना असली लगता था कि दर्शक भी उन्हें देख अपने आंसू नहीं रोक पाते थे. मां के रूप में उनकी पहली भूमिका फिल्म मुनीमजी में सदाबहार अभिनेता देव आनंद के साथ थी, जो उनसे सात साल बड़े थे. 70 और 80 के दशक में अधिकांश फिल्मों में उन्होंने मां की भूमिका निभाई थी. उनके किरदारों के चलते ही लोग उन्हें ‘Queen Of Misery’ कहा करते हैं.
राखी गुलज़ार (Rakhee Gulzar)
'मेरे बेटे आएंगे. मेरे करण-अर्जुन आएंगे. जमीन की छाती फाड़ के आएंगे. आसमान का सीना चीर के आएंगे.' आज से 26 साल पहले साल 1993 में रिलीज हुई फिल्म करन-अर्जुन का ये डायलॉग आज भी हर किसी की जुबान पर है. इसे बोला था अभिनेत्री राखी गुलज़ार ने, जिन्होंने इस फिल्म में शाहरुख खान और सलमान खान की मां की भूमिका निभाई है. राखी एक ऐसी एक्ट्रेस हैं, जो बतौर हिरोइन जितनी सफल रही थीं, उतना ही मां के रोल में भी लोगों ने उनको पसंद किया है. अमिताभ बच्चन के साथ उन्होंने आठ हिट फिल्में की थीं, लेकिन बाद में बिगबी की मां का रोल भी किया था. उस वक्त उनकी उम्र 35, तो अमिताभ 40 साल के थे.
वहीदा रहमान (Waheeda Rahman)
'चौदवीं का चांद हो या फिर आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो'...फिल्म 'चौदवीं का चांद' के इस गीत की ये पंक्तियां अभिनेत्री वहीदा रहमान की सुंदरता का सटीक वर्णन करती हैं. अदब, अदा और अदाकारी ने मिलकर वहीदा को बॉलीवुड की सबसे खूबसूरत हीरोइन बना दिया था. उन्होंने हिंदी, तमिल, तेलुगू, बंगाली और मलयालम भाषा में कई फिल्में की हैं. साल 1956 से लेकर 1971 तक लीड एक्ट्रेस के रोल में उन्होंने तमाम सुपहिट हिन्दी फिल्में दीं. इसके बाद चरित्र अभिनेत्री के रूप में उनका करियर शुरू कर दिया. इस दौरान मां के रोल में उनके अभिनय की वैसी ही सराहना हुई, जैसे हिरोइन के रूप में लोग उनको पसंद करते थे.
फरीदा जलाल (Farida Jalal)
अभिनेत्री फरीदा जलाल बॉलीवुड की सम्मानित एक्ट्रेस में गिनी जाती हैं. उन्होंने अपने करियर में 200 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है. बॉलीवुड में मां के किरदार को कई अभिनेत्रियों ने निभाया है, लेकिन फरीदा ने जब-जब मां का रोल किया वे अधिकतर फिल्मों में 'कूल मॉम' के रूप में नजर आईं. उनके लहजे और व्यक्तित्व में ही एक ऐसी मधुरता है कि जब भी वे स्क्रीन पर नजर आती हैं पॉजिटिव फीलिंग आती है. निरूपा रॉय को मां के रोल में यदि कोई अभिनेत्री टक्कर दे सकती है तो वो फरीदा जलाल ही हैं. उन्होंने दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे, कुछ-कुछ होता है, कभी खुशी कभी गम और कुछ तुम कहो कुछ हम कहें जैसी फिल्मों में मां का रोल किया है.
नीना गुप्ता (Neena Gupta)
डायरेक्टर, प्रोड्यूसर और एक्ट्रेस नीना गुप्ता ने अपने करियर की शुरूआत साल 1981 में फिल्म 'आदत से मजबूर' से की थी. इसके बाद साल 2005 में आई फिल्म 'नज़र' के बाद वो फिल्म इंडस्ट्री में लंबे समय तक नजर ही नहीं आईं. एक लंबे अंतराल के बाद साल 2018 में आईं दो फिल्मों मुल्क और बधाई हो से उन्होंने बॉलीवुड में कमबैक किया. फिल्म बधाई हो में उनके जबरदस्त अभिनय ने एक अलग ही छाप छोड़ी. उसके बाद तो वह अधिकांश फिल्म स्क्रिप्ट की मांग बन गईं. पिन्नी, पंगा, बधाई हो, मुल्क, वीरे दी वेडिंग और पंचायत जैसी फिल्मों और वेब सीरीज में सफल अभिनय के बाद वो बहुत जल्द फिल्म सूर्यवंशी और 83 में मां के रोल में नजर आने वाली हैं.
सीमा पाहवा (Seema Pahwa)
फिल्म और टीवी एक्ट्रेस, डायरेक्टर और थियेटर आर्टिस्ट सीमा पाहवा किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. बड़े परदे पर मां के किरदार को जीवंत करने वाले कई कलाकार हैं, जिनमें सीमा पाहवा का नाम प्रमुख रूप से शामिल है. उन्होंने फिल्म दम लगा के हईशा, शुभ मंगल सावधान में भूमि पेडनेकर की मां और बाला में मौसी की भूमिका निभाई. इसके साथ ही वह फिल्म बरेली की बर्फी में कृति सैनन की मां की भूमिका में भी दिखी थीं. कुछ महीने पहले ही उनके निर्देशन में बनी फिल्म रामप्रसाद की तेरहवीं रिलीज हुई थी. 80 के दशक के मशहूर सीरियल 'हम लोग' में बड़की का लोकप्रिय किरदार निभानेवाली सीमा को अब मां के रोल में एक नई पहचान मिल चुकी है.
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