'इत्तेफ़ाक़' एक मर्डर मिस्टरी है, जिसे देखने की कई वजह है..
1) ये फिल्म राजेश खन्ना और नंदा स्टार्र 1969 की इत्तेफ़ाक़ की रीमेक है...
2) पहली इत्तेफ़ाक़ के निर्देशक थे लेजेंड्री डायरेक्टर यश चोपड़ा और निर्माता थे अपने वक्त के सुपर हिट डायरेक्टर बी आर चोपड़ा.
3) नई इत्तेफ़ाक़ के डायरेक्टर हैं बी आर चोपड़ा के पोते और रवि चोपड़ा के बेटे अभय चोपड़ा.
4) इस फिल्म के निर्माता हैं करण जौहर हालांकि चोपड़ा परिवार भी साथ में बतौर प्रोड्यूसर हैं, लेकिन एक नाम और जो दिलचस्पी बढ़ाता है, वो है शाहरुख खान की पत्नी गौरी खान का. वो इस फिल्म में पार्टनर हैं. तो ऐसे में जिस फिल्म से इतने बड़े-बड़े नाम जुड़े हों उसमें कुछ बात तो होगी.
5) पुरानी इत्तेफ़ाक़ की तरह ये भी बिना गानों की फिल्म है.
6) यूथ को ध्यान में रखते हुए सिद्धार्थ मल्होत्रा और सोनाक्षी सिन्हा की कास्टिंग भी दिलचस्प है.
अब बात कहानी की....
एक नामचीन राइटर विक्रम सेठी (सिद्धार्थ मल्होत्रा) जिसके ऊपर अपनी पत्नी के क़त्ल का इल्ज़ाम है और इत्तेफ़ाक़ से वो पुलिस से बचने के लिये ऐसे घर में छिपता है जहां एक खून होता है. जिसके बाद उसी शक्स पर एक और क़त्ल का इल्ज़ाम लग जाता है. दूसरा मर्डर जिसका होता है उसकी पत्नी है माया (सोनाक्षी सिन्हा) जिसका मानना है क़त्ल विक्रम सेठी ने किया है और विक्रम के मुताबिक़ माया की कोई साज़िश है और वो निर्दोश हैं. इसके बाद शुरू होता है इल्ज़ामों का दौर, दो लोग अपना-अपना सच बयान करते हैं पुलिस ऑफ़िसर देव वर्मा (अक्षय खन्ना) के सामने. तीन किरदारों के इर्दगिर्द बुना गया है पूरा ड्रामा, दो लोग हैं कहानी बताने वाले और एक सुनने वाला.
आखिरकार क्या होगा? क्योंकि सच तो सिर्फ एक बोल रहा, तो कौन झूठा है और कौन है...
'इत्तेफ़ाक़' एक मर्डर मिस्टरी है, जिसे देखने की कई वजह है..
1) ये फिल्म राजेश खन्ना और नंदा स्टार्र 1969 की इत्तेफ़ाक़ की रीमेक है...
2) पहली इत्तेफ़ाक़ के निर्देशक थे लेजेंड्री डायरेक्टर यश चोपड़ा और निर्माता थे अपने वक्त के सुपर हिट डायरेक्टर बी आर चोपड़ा.
3) नई इत्तेफ़ाक़ के डायरेक्टर हैं बी आर चोपड़ा के पोते और रवि चोपड़ा के बेटे अभय चोपड़ा.
4) इस फिल्म के निर्माता हैं करण जौहर हालांकि चोपड़ा परिवार भी साथ में बतौर प्रोड्यूसर हैं, लेकिन एक नाम और जो दिलचस्पी बढ़ाता है, वो है शाहरुख खान की पत्नी गौरी खान का. वो इस फिल्म में पार्टनर हैं. तो ऐसे में जिस फिल्म से इतने बड़े-बड़े नाम जुड़े हों उसमें कुछ बात तो होगी.
5) पुरानी इत्तेफ़ाक़ की तरह ये भी बिना गानों की फिल्म है.
6) यूथ को ध्यान में रखते हुए सिद्धार्थ मल्होत्रा और सोनाक्षी सिन्हा की कास्टिंग भी दिलचस्प है.
अब बात कहानी की....
एक नामचीन राइटर विक्रम सेठी (सिद्धार्थ मल्होत्रा) जिसके ऊपर अपनी पत्नी के क़त्ल का इल्ज़ाम है और इत्तेफ़ाक़ से वो पुलिस से बचने के लिये ऐसे घर में छिपता है जहां एक खून होता है. जिसके बाद उसी शक्स पर एक और क़त्ल का इल्ज़ाम लग जाता है. दूसरा मर्डर जिसका होता है उसकी पत्नी है माया (सोनाक्षी सिन्हा) जिसका मानना है क़त्ल विक्रम सेठी ने किया है और विक्रम के मुताबिक़ माया की कोई साज़िश है और वो निर्दोश हैं. इसके बाद शुरू होता है इल्ज़ामों का दौर, दो लोग अपना-अपना सच बयान करते हैं पुलिस ऑफ़िसर देव वर्मा (अक्षय खन्ना) के सामने. तीन किरदारों के इर्दगिर्द बुना गया है पूरा ड्रामा, दो लोग हैं कहानी बताने वाले और एक सुनने वाला.
आखिरकार क्या होगा? क्योंकि सच तो सिर्फ एक बोल रहा, तो कौन झूठा है और कौन है क़ातिल? सिद्धार्थ, सोनाक्षी या अक्षय खन्ना? या फिर कोई और? ये है कहानी "इत्तेफ़ाक़" की. फिल्म का स्क्रीनप्ले दिलचस्प है बाँध के रखता है, लेकिन बीच में कई ऐसे मौके आते हैं जब कहानी थोड़ी बोरिंग लगने लगती है, लेकिन आखिर के 15 मिनट बेहद दिलचस्प हैं जो फिल्म की सबसे मज़बूत कड़ी है. चूँकि ये ससपेन्स थ्रिलर है इसलिये ज्यादा डीटेल्स में बात नहीं कर सकते, लेकिन अगर पुरानी इत्तेफ़ाक़ से तुलना करेंगे तो उस फिल्म का ड्रामा ज्यादा दिलचस्प था और अभिनय के डिपार्टमेंट में राजेश खन्ना और नंदा का जवाब तो आज भी नहीं है. सोनाक्षी और सिद्धार्थ किरदार के साथ इंसाफ़ तो करते हैं लेकिन तुलना में वो बहुत पीछे हैं. ख़ासतौर से नंदा के रोल में सोनाक्षी वो मासूमियत और किरदार के प्रति वो दर्द नहीं ला पाईं. अक्षय खन्ना वाक़ई इस फिल्म का सर्प्राइज पैकेज हैं दर्शकों को सबसे ज्यादा एंटरटेन वही करते हैं. निर्देशक अभय चोपड़ा की कोशिश अच्छी है, तकनीक का इस्तेमाल उन्होंने पुरानी फिल्म के मुक़ाबले बेहतर किया है, लेकिन ये भी सच है कि एक ससपेन्स फिल्म का रीमेक करने के लिये दम चाहिये, क्योंकि ज़ाहिर है वो एंडिंग तो इस फिल्म की होगी नहीं जो पहले वाली इत्तेफ़ाक़ की थी ऐसे में और ज्यादा मुश्किल है दर्शक हॉल में आये और फिल्म को देखें.
इत्तेफ़ाक़ का बैक्ग्राउंड स्कोर बहुत अच्छा है और माइकल लूका की सिनेमेटोग्राफ़ी ग़ज़ब की है. कुल मिलाकर इत्तेफ़ाक़ अगर एक क्लासिक फिल्म ना भी हो जो 1969 वाली इत्तेफ़ाक़ उस ज़माने में थी, तब भी एक बार देखने लायक फिल्म तो जरूर है और ख़ासतौर से अगर आपको सस्पेंस फिल्में पसंद है तो आप निराश नही होंगे.
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