फिल्म- मिसेज अंडरकवर
स्टारकास्ट- राधिका आप्टे, सुमित व्यास और राजेश शर्मा
डायरेक्टर- अनुश्री मेहता
आईचौक रेटिंग- 1.5/5
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते...मां दुर्गा को स्त्री शक्ति का प्रतीक माना जाता है. शास्त्रों में लिखा गया है कि उन्होंने राक्षसों का संहार करके देवताओं और मानवों की रक्षा की थी. दुर्गा नाम के इसी किरदार को केंद्र में रख एक फिल्म की कहानी बुनी गई है, जिसका नाम 'मिसेज अंडरकवर' है. इसमें घर गृहस्थी की जिम्मेदारी संभालने वाली एक आम महिला शहर में रहने वाली अन्य महिलाओं की लगातार हत्या कर रहे एक सीरियल किलर का पता करके उसे मौत के घाट उतार देती है. इस किरदार को बॉलीवुड एक्ट्रेस राधिका आप्टे ने निभाया है, जबकि सीरियल किलर का रोल सुमित व्यास ने किया है. इस फिल्म की निर्देशक अनुश्री मेहता हैं. फिल्म की कहानी, पटकथा और संवाद अबीर सेनगुप्ता के साथ अनुश्री मेहता ने लिखा है. इसे स्पाई कॉमेडी कैटेगरी की फिल्म बनाने की कोशिश की गई है, जिसमें मेकर्स अंतत: असफल साबित हुए हैं.
'मिसेज अंडरकवर' को अच्छी नीयत के साथ बनाई गई खराब फिल्म कह सकते हैं. अच्छी नीयत इसलिए कि इसमें आम महिलाओं को सशक्त दिखाया गया है. महिला सशक्तिकरण की बात की गई है. इसमें ये भी दिखाया गया है कि पूरे परिवार का ख्याल रखने में मशगूल एक हाऊस वाइफ जरूरत पड़ने पर मां दुर्गा बन सकती है. अपने हक और अधिकार के लिए लड़ सकती है. अत्याचारियों को सबक सीखा सकती है. खराब फिल्म इसलिए कि मेकर्स ने जिस सोच के साथ इसे बनाने की कोशिश की है, उसमें वो सफल नहीं हुए हैं. फिल्म को दो कैटेगरी में बांट सकते हैं, पहली स्पाई और दूसरी कॉमेडी. दोनों कैटेगरी महत्वपूर्ण हैं. लेकिन दोनों को एक साथ लाने के चक्कर में मेकर्स मात खा गए हैं. ऐसे में न तो कॉमेडी बना पाए हैं, न ही जासूसी फिल्मों के स्तर को छू पाए हैं. इन सबके बीच फिल्म के सभी कलाकारों ने शानदार अभिनय प्रदर्शन किया है. खासकर राधिका आप्टे की एक्टिंग जबरदस्त है.
फिल्म- मिसेज अंडरकवर
स्टारकास्ट- राधिका आप्टे, सुमित व्यास और राजेश शर्मा
डायरेक्टर- अनुश्री मेहता
आईचौक रेटिंग- 1.5/5
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते...मां दुर्गा को स्त्री शक्ति का प्रतीक माना जाता है. शास्त्रों में लिखा गया है कि उन्होंने राक्षसों का संहार करके देवताओं और मानवों की रक्षा की थी. दुर्गा नाम के इसी किरदार को केंद्र में रख एक फिल्म की कहानी बुनी गई है, जिसका नाम 'मिसेज अंडरकवर' है. इसमें घर गृहस्थी की जिम्मेदारी संभालने वाली एक आम महिला शहर में रहने वाली अन्य महिलाओं की लगातार हत्या कर रहे एक सीरियल किलर का पता करके उसे मौत के घाट उतार देती है. इस किरदार को बॉलीवुड एक्ट्रेस राधिका आप्टे ने निभाया है, जबकि सीरियल किलर का रोल सुमित व्यास ने किया है. इस फिल्म की निर्देशक अनुश्री मेहता हैं. फिल्म की कहानी, पटकथा और संवाद अबीर सेनगुप्ता के साथ अनुश्री मेहता ने लिखा है. इसे स्पाई कॉमेडी कैटेगरी की फिल्म बनाने की कोशिश की गई है, जिसमें मेकर्स अंतत: असफल साबित हुए हैं.
'मिसेज अंडरकवर' को अच्छी नीयत के साथ बनाई गई खराब फिल्म कह सकते हैं. अच्छी नीयत इसलिए कि इसमें आम महिलाओं को सशक्त दिखाया गया है. महिला सशक्तिकरण की बात की गई है. इसमें ये भी दिखाया गया है कि पूरे परिवार का ख्याल रखने में मशगूल एक हाऊस वाइफ जरूरत पड़ने पर मां दुर्गा बन सकती है. अपने हक और अधिकार के लिए लड़ सकती है. अत्याचारियों को सबक सीखा सकती है. खराब फिल्म इसलिए कि मेकर्स ने जिस सोच के साथ इसे बनाने की कोशिश की है, उसमें वो सफल नहीं हुए हैं. फिल्म को दो कैटेगरी में बांट सकते हैं, पहली स्पाई और दूसरी कॉमेडी. दोनों कैटेगरी महत्वपूर्ण हैं. लेकिन दोनों को एक साथ लाने के चक्कर में मेकर्स मात खा गए हैं. ऐसे में न तो कॉमेडी बना पाए हैं, न ही जासूसी फिल्मों के स्तर को छू पाए हैं. इन सबके बीच फिल्म के सभी कलाकारों ने शानदार अभिनय प्रदर्शन किया है. खासकर राधिका आप्टे की एक्टिंग जबरदस्त है.
फिल्म 'मिसेज अंडरकवर' की कहानी के केंद्र में राधिका आप्टे की किरदार दुर्गा है, जो कि अंडरकवर सीक्रेट एजेंट है. यानी अंडरकवर रहते हुए खुफिया एजेंसी के लिए जासूसी का काम करती है. उसे बाकायदा ट्रेनिंग देने के बाद शादी कराकर अंडरकवर कर दिया गया है. लेकिन उसके बाद एजेंसी उसके बारे में भूल जाती है. चार साल इंतजार करने के बाद दुर्गा भी उस परिवार को अपना मानकर उनके साथ रम जाती है. घर में पति और बेटे के अलावा सास-ससूर हैं. वो उनकी सेवा करके खुश रहती है. अचानक शहर में महिलाओं का कत्ल शुरू हो जाता है. कॉमन मैन नामक एक सीरियल किलर है, जो सशक्त महिलाओं को धोखे से मार डालता है. उनके वीडियो बनाकर दहशत फैलाता है. पुलिस उसे पकड़ने में नाकाम रहती है. खुफिया एजेंसी के लोग अपने जासूस भेजते हैं, लेकिन कॉमन मैन उन्हें मार डालता है. एजेंसी का चीफ रंगीला अपने अंतिम अंडरकवर एजेंट दुर्गा के पास मदद मांगने पहुंचता है.
दुर्गा रंगीला (राजेश शर्मा) की बात मानने से इंकार कर देती है. उसका कहना है कि 12 साल से उसके बारे में कोई खोज खबर नहीं ली गई. अब अचानक उसे टास्क दिया जा रहा है. रंगीला उसे बताते हैं कि सीक्रेट सर्विस का रेकॉर्ड आग में जल जाने के कारण एजेंसी के साथ उसका कॉन्टेक्ट खत्म हो गया था. लेकिन अब जब कॉमन मैन ने सारे फील्ड एजेंट को निपटा दिया, तो उन्होंने उससे निपटने के लिए काफी मुश्किल से दुर्गा का रेकॉर्ड तलाशा है. अंतत: दुर्गा इस मिशन के लिए तैयार हो जाती है. योजना के तहत दुर्गा को एक गर्ल कॉलेज में कोर्स करने के बहाने भेजा जाता है. उस कोर्स को कोई और नहीं वही कॉमन मैन संचालित करता है, जो महिलाओं की हत्या कर रहा है. दुर्गा को उसकी गतिविधियों पर शक होता है, तो वो उसकी जासूसी करने लगती है. क्या दुर्गा को कॉमन मैन का सच पता चल पाएगा, वो उसके साथ क्या सलूक करेगी, इसका जवाब जानने के लिए फिल्म को देखना होगा.
कॉमेडी कैटेगरी की फिल्में पिछले कुछ समय से दर्शकों को काफी पसंद आ रही हैं. यही वजह है कि इस कैटेगरी की फिल्मों का निर्माण बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. लेकिन कॉमेडी के साथ किसी दूसरी कैटेगरी का संतुलन बनाना बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम माना जाता है. जैसे कि इस फिल्म में कॉमेडी के साथ जासूसी की कल्पना को साकार करने की असफल कोशिश की गई है. यदि पूरी तरह कॉमेडी पर फोकस रखा गया होता तो शायद ये बेहतर बन पड़ी होती. फिल्म में कई चीजें बेवजह लगती है. जैसे कि एक खुफिया एजेंसी के चीफ की चीप हरकतें, उसमें उसका नाम तो कुछ ज्यादा ही चीप है. रंगीला नामक चीफ अंडरकवर एजेंट को मिशन पर लगाने के लिए जिस तरह की ऊटपटांग हरकते करता है, उसकी कोई जरूरत नजर नहीं थी. वास्तविकता में ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं होता है. इसके अलावा फिल्म में अंडरकवर एजेंट दुर्गा के पति का अवैध संबंध दिखाया गया है. उसकी प्रेमिका अचानक उस पर हमला करवा देती है. ये सब क्यों और किसलिए हुआ उसकी कोई वजह नहीं दिखाई देती. फिल्म का सबसे मजबूत पहलू इसके सभी कलाकार और उनका बेहतरीन अभिनय प्रदर्शन है.
कुल मिलाकर, 'मिसेज अंडरकवर' के मेकर्स ये तय नहीं कर पाए हैं कि उन्हें कैसा सिनेमा बनाना है. फिल्म थ्रिलर से शुरू होकर कॉमेडी पर खत्म हो जाती है. फिल्म की रफ्तार बहुत सुस्त है, जो कि बोर करती है. पहला हॉफ तो बहुत ऊबाऊ है. दूसरे हॉफ में थोड़ा मनोरंजन होता है. आप इस फिल्म को न देखकर अपना कीमती समय बचा सकते हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.