नवाजुद्दीन सिद्दीकी फिल्म इंडस्ट्री के उन चंद सितारों में से एक हैं जो हाशिये से कब मुख्यधारा का लीड चेहरा हो गया ये पता ही नहीं चला. इसमें बेशक पूरी तरह उनकी मेहनत और काबिलियत को ही श्रेय जाता है, मेरी हालिया मुलाकात में नवाज ने कुछ बाते कहीं जो मन किया आपसे साझा किया जाए.
मेरे ये पूछने पर कि एक हीरो की स्टीरीयोटाइप्ड छवि को नवाज ने तोड़ा है, सोच को बदला है, एक कलाकारों की पीढ़ी के इस लिहाज से वो प्रेरणास्त्रोत हैं, इस पर नवाज ने जो कहा वो समझना और जानना दोनों जरुरी है. वो बोले, "मुझे सोच बदलने वाले लोग मिले. अनुराग कश्यप ने मुझे पहले ही कह दिया था कि मुझे किस तरफ के सिनेमा की तरफ जाना है. रामगोपाल वर्मा, श्याम बेनेगल जैसे फिल्मकारों के सिनेमा में मेरे जैसे चेहरे खप जाते है."
अपनी यूनीकनेस को समझ कर नवाज ने वाकई अपने वाले सिनेमा को जाना, पहचाना और उसमे समां गए हैं. इसीलिए जब मैंने ये पूछा कि अब आप सिर्फ लीड रोल करने की बात करते हैं, ये बड़ी चुनौती है. इस पर उनका जवाब है कि कब तक मैं साइड रोल करता रहता, अब मुझे लीड रोल ही करने हैं. बड़े सितारों को आप कभी सपोर्टिंग रोल के लिए नहीं कह सकते.
नवाज अपने हुनर और उसकी बारीकी को जितना समझते है उतना ही ये भी मानकर चलते हैं कि बतौर कलाकार वो जितने इवाल्व हुए हैं उन्हें अब अपनी एक स्पेस चाहिये, जो यकीकनन वो पूरे सम्मान के साथ डिजर्व करते हैं.
नवाज मानसिक अवसाद पर खुलकर बात करते हैं. अपनी फिल्म रामन राघव की शूट के बाद वे किरदार को अपने दिमाग से निकाल नहीं पा रहे थे. उन्हें उस मेंटल फ्रेम से निकलने में काफी वक्त लगा, लेकिन वो मानते हैं कि अवसाद को जितना ओढ़ो वो उतना बढ़ता है. गांव देहात में ऐसी कोई बात करो तो दो झापड़ मारकर लोग सही कर देते हैं.
बॉलीवुड के दोगलेपन से नवाज थक गये लगते...
नवाजुद्दीन सिद्दीकी फिल्म इंडस्ट्री के उन चंद सितारों में से एक हैं जो हाशिये से कब मुख्यधारा का लीड चेहरा हो गया ये पता ही नहीं चला. इसमें बेशक पूरी तरह उनकी मेहनत और काबिलियत को ही श्रेय जाता है, मेरी हालिया मुलाकात में नवाज ने कुछ बाते कहीं जो मन किया आपसे साझा किया जाए.
मेरे ये पूछने पर कि एक हीरो की स्टीरीयोटाइप्ड छवि को नवाज ने तोड़ा है, सोच को बदला है, एक कलाकारों की पीढ़ी के इस लिहाज से वो प्रेरणास्त्रोत हैं, इस पर नवाज ने जो कहा वो समझना और जानना दोनों जरुरी है. वो बोले, "मुझे सोच बदलने वाले लोग मिले. अनुराग कश्यप ने मुझे पहले ही कह दिया था कि मुझे किस तरफ के सिनेमा की तरफ जाना है. रामगोपाल वर्मा, श्याम बेनेगल जैसे फिल्मकारों के सिनेमा में मेरे जैसे चेहरे खप जाते है."
अपनी यूनीकनेस को समझ कर नवाज ने वाकई अपने वाले सिनेमा को जाना, पहचाना और उसमे समां गए हैं. इसीलिए जब मैंने ये पूछा कि अब आप सिर्फ लीड रोल करने की बात करते हैं, ये बड़ी चुनौती है. इस पर उनका जवाब है कि कब तक मैं साइड रोल करता रहता, अब मुझे लीड रोल ही करने हैं. बड़े सितारों को आप कभी सपोर्टिंग रोल के लिए नहीं कह सकते.
नवाज अपने हुनर और उसकी बारीकी को जितना समझते है उतना ही ये भी मानकर चलते हैं कि बतौर कलाकार वो जितने इवाल्व हुए हैं उन्हें अब अपनी एक स्पेस चाहिये, जो यकीकनन वो पूरे सम्मान के साथ डिजर्व करते हैं.
नवाज मानसिक अवसाद पर खुलकर बात करते हैं. अपनी फिल्म रामन राघव की शूट के बाद वे किरदार को अपने दिमाग से निकाल नहीं पा रहे थे. उन्हें उस मेंटल फ्रेम से निकलने में काफी वक्त लगा, लेकिन वो मानते हैं कि अवसाद को जितना ओढ़ो वो उतना बढ़ता है. गांव देहात में ऐसी कोई बात करो तो दो झापड़ मारकर लोग सही कर देते हैं.
बॉलीवुड के दोगलेपन से नवाज थक गये लगते हैं. वो अपनी अप्रोच को लेकर बेहद क्लियर हैं. नवाजुद्दीन वक्त के साथ मंझे एक सेल्फ मेड अभिनेता हैं. वो जितने सफल हैं. उतने ही सहज भी. बहुत कम कलाकार सफलता के आसमान पर जमीन से जुड़े रहते हैं. नवाज उनमें से एक हैं. नवाजुद्दीन से नवाज भाई का उनका सफर मेहनत, संघर्ष, दर्द, से भरा है. उन्होंने अपेन हिस्से का आसमान खुद संवारा है. उसमें लंबी उड़ान उन्हें मुबारतक हो.
नवाज से पूरी बातचीत यहां देखिए...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.