नए लोग जो एक्टिंग को बतौर करियर अपनाना चाहते हैं, उन्हें यही लगता होगा कि जब वो इंडस्ट्री में जाएंगे तो वहां बाहें फैलाकर उनका स्वागत होगा. ऐसा लगना भी चाहिए. इंडस्ट्री की चकाचौंध ही कुछ ऐसी है कि आदमी सम्मोहित हो जाता है. इन तमाम बातों के बाद सवाल खड़ा होता है कि क्या वाकई ऐसा ही है? जवाब है नहीं. बॉलीवुड या फ़िल्म इंडस्ट्री अंदर से खोखली और पूर्णतः बेरहम है. यहां नए लोगों को 'कॉम्प्रोमाइज' तो करना ही होता है साथ ही शोषण भी यहां का दस्तूर है. इंडस्ट्री की ये परिभाषा हमने यूं ही नहीं दी है. बॉलीवुड एक्टर नीना गुप्ता के रूप में हमारे पास माकूल वजहें हैं. अपनी बेबाक राय और निष्पक्ष ओपिनियन के लिए मशहूर नीना गुप्ता ने अभी हाल ही में अपनी ऑटोबायोग्राफी 'सच कहूं तो' को लांच किया है. ऑटोबायोग्राफी ने जहां सोशल मीडिया के अलावा मेन स्ट्रीम तक पर खूब सुर्खियां बटोरीं हैं तो वहीं क्रिटिक्स ने भी इसे खूब सराहा है. किताब में नीना ने अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को लेकर कई अहम खुलासे किए हैं और बता दिया है कि एक इंडस्ट्री के रूप में हमेशा ही बॉलीवुड ने फ्रेशर्स की मजबूरी का फायदा उठाया है.
ध्यान रहे कि अभी हाल ही में नीना ने एक इंटरव्यू भी दिया है. इस इंटरव्यू में भी नीना ने अपनी बातों से बॉलीवुड के कपड़े उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.नीना ने कहा है कि जब वह पहले फिल्में किया करती थी, उनमें काम करने के बाद उनकी यही प्रार्थना रहती थी कि ये फ़िल्म कभी रिलीज ही ना हों. नीना के अनुसार उनकी जिंदगी में ऐसे भी तमाम मौके आए जब उन्होंने एक से एक घटिया रोल किये.
नीना ने तब उन रोल्स को करने के लिए हामी क्यों भरी वजह बस इतनी थी कि तब उस दौर में...
नए लोग जो एक्टिंग को बतौर करियर अपनाना चाहते हैं, उन्हें यही लगता होगा कि जब वो इंडस्ट्री में जाएंगे तो वहां बाहें फैलाकर उनका स्वागत होगा. ऐसा लगना भी चाहिए. इंडस्ट्री की चकाचौंध ही कुछ ऐसी है कि आदमी सम्मोहित हो जाता है. इन तमाम बातों के बाद सवाल खड़ा होता है कि क्या वाकई ऐसा ही है? जवाब है नहीं. बॉलीवुड या फ़िल्म इंडस्ट्री अंदर से खोखली और पूर्णतः बेरहम है. यहां नए लोगों को 'कॉम्प्रोमाइज' तो करना ही होता है साथ ही शोषण भी यहां का दस्तूर है. इंडस्ट्री की ये परिभाषा हमने यूं ही नहीं दी है. बॉलीवुड एक्टर नीना गुप्ता के रूप में हमारे पास माकूल वजहें हैं. अपनी बेबाक राय और निष्पक्ष ओपिनियन के लिए मशहूर नीना गुप्ता ने अभी हाल ही में अपनी ऑटोबायोग्राफी 'सच कहूं तो' को लांच किया है. ऑटोबायोग्राफी ने जहां सोशल मीडिया के अलावा मेन स्ट्रीम तक पर खूब सुर्खियां बटोरीं हैं तो वहीं क्रिटिक्स ने भी इसे खूब सराहा है. किताब में नीना ने अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को लेकर कई अहम खुलासे किए हैं और बता दिया है कि एक इंडस्ट्री के रूप में हमेशा ही बॉलीवुड ने फ्रेशर्स की मजबूरी का फायदा उठाया है.
ध्यान रहे कि अभी हाल ही में नीना ने एक इंटरव्यू भी दिया है. इस इंटरव्यू में भी नीना ने अपनी बातों से बॉलीवुड के कपड़े उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.नीना ने कहा है कि जब वह पहले फिल्में किया करती थी, उनमें काम करने के बाद उनकी यही प्रार्थना रहती थी कि ये फ़िल्म कभी रिलीज ही ना हों. नीना के अनुसार उनकी जिंदगी में ऐसे भी तमाम मौके आए जब उन्होंने एक से एक घटिया रोल किये.
नीना ने तब उन रोल्स को करने के लिए हामी क्यों भरी वजह बस इतनी थी कि तब उस दौर में नीना के पास काम नहीं था. अपने इंटरव्यू में नीना ने इस बात को भी कहा कि, मैंने टेलीविजन पर कभी ऐसा काम नहीं किया जो मुझे पसंद ना हो लेकिन फिल्मों में ऐसा नहीं था. मुझे पैसों की जरूरत थी इसलिए मुझे घटिया स्तर की फिल्में करनी पड़ीं जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते हैं. टीवी पर एक फिल्म बार-बार आती है और जब मैं उसमें अपने आपको देखती हूं तो मेरा दिमाग खराब हो जाता है.
नीना का कहना है कि अब स्थिति ऐसी नहीं है और मेरे ऊपर जिम्मेदारी है तो अब मैं क्लियर हूं कि मुझे क्या पसंद है और मुझे कौन सा किरदार नहीं निभाना है. बताते चलें कि जिस दौर के किस्से नीना ने अपने इंटरव्यू में बयां किये हैं उस समय वो वेस्टइंडीज के क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स के साथ रिलेशनशिप में थीं और गर्भवती थीं.
अपने इंटरव्यू में नीना ने इस बात को भी कहा था कि जब वो प्रेग्नेंट थीं तो उस समय उनकी आर्थिक स्थिति बिल्कुल भी अच्छी नहीं थी. बेटी मसाबा के जन्म के समय तो हालात इतने खराब थे कि उनके लिए अपना ऑपरेशन कराना भी बहुत मुश्किल था.
इसके अलावा भी इंटरव्यू में नीना ने तमाम बातें की हैं. पुराने दिनों पर जो दुख नीना का था साफ है कि इंडस्ट्री बेनकाब हुई है. भले ही बॉलीवुड इस बात को बार बार दोहराता रहे कि उसके दरवाजे सबके लिए खुले हैं और वहां सबकी मदद होती है. लेकिन जब हम नीना की बातें सुनते हैं तो महसूस होता है कि वहां सिर्फ और सिर्फ उगते सूरज को सलाम किया जाता है. बुझे या फिर बुझते चिरागों की यहां कोई जगह नहीं है.
बात एकदम सीधी और साफ़ है. बॉलीवुड न कभी किसी का सगा हुआ है और न ही कभी होगा. वहां का सिद्धांत बहुत सीधा है. बॉलीवुड में संघर्ष भी उन्हीं के कामयाब होते हैं जिनका मुकद्दर अच्छा होता है. यदि मुकद्दर ने साथ दिया तो लोग शाहरुख़, सलमान अक्षय बन जाते हैं वरना बॉलीवुड तो जाना ही जाता है लोगों को गर्त में ले जाने के लिए.
बहरहाल ऊपर बात एक एक्टर के रूप में नीना गुप्ता और उनके संघर्षों की हुई है तो वाक़ई नीना के जज्बे को सलाम रहेगा. नीना ने परिस्थितियों के सामने कभी हार नहीं मानी. उन्होंने अपनी सूझ बूझ से काम लिया और ये नजदीकियां', 'मंडी', 'उत्सव', 'डैडी', 'खलनायक', 'तेरे संग', और 'वीर' जैसी फिल्मों में काम करके बताया कि आए मौके को कभी गंवाना नहीं चाहिए.
अंत में हम बस इतना कहकर अपनी तमाम बातों को विराम देंगे कि नीना का जीवन उन तमाम नए लोगों के लिए प्रेरणा है. जो बॉलीवुड में आने का सोचते हो हैं. लेकिन जिन्हें एक डर बना रहता है कि वहां क्या होगा? इंडस्ट्री के रूप में बॉलीवुड उन्हें किस तरह ट्रीट करेगा? नीना ने हमें मैसेज यही दिया है कि व्यक्ति बॉलीवुड में सफल तभी है जब वो अपने रास्ते खुद बनाता है.
याद रहे, बातें चाहे जितनी भी क्यों न हो जाएं. आलोचक नीना की आलोचना में चूड़ियां तोड़ दें. लेकिन हमें इसपर गौर करना होगा कि नीना गुप्ता ने बॉलीवुड नाम की इंडस्ट्री में एक दौर को जिया है और वो कोई मजाक नहीं है.
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