फिल्म समाज का आईना होती है. सिनेमा और समाज एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं. कई फिल्मों में दिखाए गए दृश्य या डायलॉग को लोग फॉलो करते हैं, तो कई बार समाज में जो कुछ चल रहा होता है वो रुपहले पर्दे पर दिखाई दे जाता है. हर माध्यम की अपनी एक प्रकृति होती है. वो उसी के हिसाब से व्यवहार भी करता है. टेलीविजन का अपना दर्शक वर्ग है, तो थियेटर का अपना. उसी तरह ओटीटी प्लेटफॉर्म्स का एक अपना अलग दर्शक वर्ग तैयार हो रहा है. टीवी सीरियल्स में परिवार, संस्कार और नैतिकता से जुड़े विषयों पर आधारित कंटेंट दिखाया जाता है. लेकिन ओवर द टॉप स्ट्रीमिंग यानि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने खुद को किसी बंधन से आजाद रखा है. यहां क्रिएटिव आजादी का भरपूर फायदा उठाया जाता है. लेकिन यदि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर सेंसरशिप की गई, तो इसकी खासियत खत्म हो जाएगी. फिर क्या अमेजन और नेटफ्लिक्स पर दर्शक सास-बहू सीरियल देखने आएंगे?
देखा जाए तो ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने मनोरंजन की बंजर जमीन को उर्वर बना दिया है. इस पर वेब सीरीज की फसल लहलहा रही है. मेकर्स को इसमें असीमित संभावनाएं दिख रही हैं. लेखकों-निर्देशकों के लिए कल्पना का आकाश खुल गया है. वे किसी ऊंचाई और विस्तार तक जा सकते हैं. कंटेंट के नैरेटिव, डिजाइन और स्टाइल से लेकर उसकी पहुंच से सभी आह्लादित हैं. सबसे खास बात है कि इस फॉरमेट की सुविधा से मिली आज़ादी ने सारे बंधनों को तोड़ दिया है. इन बंधनों के टूटने की सबसे बड़ी बानगी आप 'मिर्ज़ापुर', 'इनसाइड ऐज', 'गंदी बात', 'कौशिकी', 'बारकोड', 'फोर मोर शॉट्स', 'सैक्रेड गेम्स', 'लस्ट स्टोरीज़', 'आश्रम' और 'तांडव' जैसी वेब सीरीजों में देख चुके हैं. इनमें स्क्रिप्ट की डिमांड के मुताबिक सब दिखाया और सुनाया गया है.
गले की हड्डी...
फिल्म समाज का आईना होती है. सिनेमा और समाज एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं. कई फिल्मों में दिखाए गए दृश्य या डायलॉग को लोग फॉलो करते हैं, तो कई बार समाज में जो कुछ चल रहा होता है वो रुपहले पर्दे पर दिखाई दे जाता है. हर माध्यम की अपनी एक प्रकृति होती है. वो उसी के हिसाब से व्यवहार भी करता है. टेलीविजन का अपना दर्शक वर्ग है, तो थियेटर का अपना. उसी तरह ओटीटी प्लेटफॉर्म्स का एक अपना अलग दर्शक वर्ग तैयार हो रहा है. टीवी सीरियल्स में परिवार, संस्कार और नैतिकता से जुड़े विषयों पर आधारित कंटेंट दिखाया जाता है. लेकिन ओवर द टॉप स्ट्रीमिंग यानि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने खुद को किसी बंधन से आजाद रखा है. यहां क्रिएटिव आजादी का भरपूर फायदा उठाया जाता है. लेकिन यदि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर सेंसरशिप की गई, तो इसकी खासियत खत्म हो जाएगी. फिर क्या अमेजन और नेटफ्लिक्स पर दर्शक सास-बहू सीरियल देखने आएंगे?
देखा जाए तो ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने मनोरंजन की बंजर जमीन को उर्वर बना दिया है. इस पर वेब सीरीज की फसल लहलहा रही है. मेकर्स को इसमें असीमित संभावनाएं दिख रही हैं. लेखकों-निर्देशकों के लिए कल्पना का आकाश खुल गया है. वे किसी ऊंचाई और विस्तार तक जा सकते हैं. कंटेंट के नैरेटिव, डिजाइन और स्टाइल से लेकर उसकी पहुंच से सभी आह्लादित हैं. सबसे खास बात है कि इस फॉरमेट की सुविधा से मिली आज़ादी ने सारे बंधनों को तोड़ दिया है. इन बंधनों के टूटने की सबसे बड़ी बानगी आप 'मिर्ज़ापुर', 'इनसाइड ऐज', 'गंदी बात', 'कौशिकी', 'बारकोड', 'फोर मोर शॉट्स', 'सैक्रेड गेम्स', 'लस्ट स्टोरीज़', 'आश्रम' और 'तांडव' जैसी वेब सीरीजों में देख चुके हैं. इनमें स्क्रिप्ट की डिमांड के मुताबिक सब दिखाया और सुनाया गया है.
गले की हड्डी बनी तांडव जैसी वेब सीरीज
वैसे जहां तक वेब सीरीज 'तांडव' की बात है, तो ये अमेजन प्राइम वीडियो के गले की हड्डी बन गई है. इसे वह न तो निगल पा रहा है और न ही उगल पा रहा है. क्रिएटिव आज़ादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर तमाम नियमों की धज्जियां उड़ाने वाली इस वेब सीरीज पर कई गंभीर आरोप हैं. धार्मिक और जातीय भावनाएं आहत करना तो सबसे बड़ा आरोप है. इस वजह से मेकर्स के खिलाफ जब कई राज्यों में केस दर्ज हो गए, गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी, तो कोर्ट की शरण में पहुंचे. कई बार माफी मांगी. लेकिन न तो कोर्ट से राहत मिल रही है, न ही लोग माफ कर पा रहे हैं. हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी खारिज होने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट से फौरी राहत नहीं मिलना, ये बताता है कि कोर्ट भी माफ करने के मूड में नहीं है.
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की समस्याएं-चिंताएं
तांडव का 'भूत' अमेजन प्राइम वीडियो के पीछे पड़ गया है. जो फिलहाल पीछा छोड़ता नजर नहीं आ रहा है. वैसे तांडव एक नजीर बनने की ओर है, जिससे सबक लेकर ओटीटी प्लेटफॉर्म्स सेल्फ रेगुलेशन की तरह ज्यादा ध्यान देंगे. लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की अपनी अलग समस्याएं और चिंताएं हैं. इनका मानना है कि इनका दर्शक वर्ग बिल्कुल अलग है. वह बहुत ज्यादा स्मार्ट और समझदार है. उसे पता है कि क्या देखना है, क्या नहीं देखना है. वह पूरी दुनिया का सिनेमा देख रहा है. उसे अच्छे-बुरे की पहचान है. ऐसे में क्रिएटिव आजादी पर कोई पाबंदी नहीं होनी चाहिए. मेकर्स के विवेक पर सब छोड़ देना चाहिए. हर मेकर इतने जाहिल नहीं हैं कि कुछ भी दिखाते रहें. हां, इसका ख़्याल रखा जाए कि सांप्रदायिक तनाव या दंगा करने वाले कंटेट न बनाएं.
ओटीटी कंटेंट पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी
धार्मिक और जातीय भावनाएं आहत करने का आरोप झेल रही तांडव वेब सीरीज विवाद पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर दिखाए जाने वाले कंटेंट पर बहुत कड़ा कमेंट किया है. कोर्ट ने कहा कि कुछ ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर पोर्नोग्राफी दिखाई जा रही है. यहां दिखाए जाने वाले हर कंटेंट की सख्त स्क्रीनिंग होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा, 'फिल्में देखने का ट्रेडिशनल तरीका अब पुराना हो चुका है. लोगों का इंटरनेट पर फिल्में देखना अब कॉमन है. कुछ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लील कंटेंट प्रसारित किया जा रहा है. इसकी स्क्रीनिंग होनी चाहिए क्योंकि कुछ प्लेटफॉर्म्स पर तो पोर्नोग्राफी भी दिखाई जा रही है. संतुलन बनाने की जरूरत है.' कोर्ट ने केंद्र सरकार से ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को रेगुलेट करने के लिए बनी नई गाइडलाइन भी सौंपने को कहा है.
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के लिए सरकारी गाइडलाइन
दरअसल, केंद्र सरकार ने ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के लिए कुछ गाइडलाइन तैयार की है, जो मुख्यत: सेल्फ रेगुलेशन पर ही आधारित है. इसके लिए बकायदा कोड ऑफ एथिक्स बनाया गया है. इसका पालन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल मीडिया कंपनियों को करना है. कंटेंट को पांच कैटेगरी में बांटा जाएगा. उसे हर कैटेगरी के कंटेंट पर दिखाना होगा कि वह किस उम्र वाले लोगों के लिए है. हालांकि, अमेजन प्राइम वीडियो, डिज्नी हॉटस्टार सहित ज्यादातर प्लेटफॉर्म्स ने यह नियम पहले से ही लागू कर रखा है. दर्शक को पता होता है कि वह किस तरह का कंटेंट देखने जा रहे हैं. यदि किसी दर्शक को ओटीटी प्लेटफॉर्म से शिकायत है, तो उसकी तीन स्तरों पर सुनवाई की जाएगी. इससे व्यवस्था से सुधार की संभावना है.
CBFC के तहत क्या आएंगे स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म
तकरीबन 10 साल पहले जब केबल और ब्रॉडकास्ट एक्ट आया था तब चर्चा हुई थी कि टेलीविजन पर कैसे कंटेंट दिखाए जाएंगे और उन्हें किस तरह से दिखाया जाएगा. कौन और कितने लोग उस कंटेंट को देखते हैं. सारी चीजों को ध्यान में रखकर एक्ट बनाया गया था. वहीं स्ट्रीमिंग सर्विसेज ने कभी अपने सब्सक्राइबर्स के नंबर नहीं जारी किए. हमें अब तक नहीं पता कि कौन से स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म में कितने सब्सक्राइबर्स हैं. इसमें थोड़ी ट्रांसपेरेंसी की जरूरत है. यदि आप अमेरिका में कुछ कर रहे हैं तो जरूरी नहीं है कि भारत के कल्चर में भी वो फिट बैठे. ऐसे में नई गाइडलाइन की भूमिका अहम हो जाती है. वैसे सरकार ने सेंसरशिप लागू तो नहीं किया है, लेकिन भविष्य में सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन के तहत लाने पर विचार किया जा रहा है.
फिल्में शॉर्ट स्टोरी हैं, तो वेब सीरीज़ नावेल
यदि ऐसा हुआ तो तांडव, मिर्जापुर, गंदी बात और सैक्रेड गेम्स वेब सीरीज बनाना मुश्किल हो जाएगा. इनमें इतने कांट-छांट कराई जाएगी कि वेब सीरीज के साथ ही ओटीटी प्लेटफॉर्म की आत्मा मर जाएगी. वेब सीरीज और फिल्मों या थियेटर, टीवी और ओटीटी के बीच तुलना नहीं की जा सकती है. वेब सीरीज़ फिल्मों से बहुत अलग हैं. फिल्में शॉर्ट स्टोरी हैं, तो वेब सीरीज़ नावेल हैं. हमें माध्यम की प्रकृति के अनुसार ही उसके साथ व्यवहार करना चाहिए. सिनेमा अब समूह से व्यक्ति केंद्रित हो चुका है. हम सिनेमाघरों में सैकड़ों लोगों के साथ समूह में बैठकर फिल्में देखते हैं, ऐसे में हो सकता है कि कोई चीज किसी को पसंद आए, किसी को न आए. लेकिन मोबाइल, लैपटॉप या टैबलेट पर ओटीटी प्लेटफॉर्म के जरिए एक व्यक्ति अकेला ही सिनेमा देखता है.
ओटीटी इंडस्ट्री का हो रहा है तेजी से विकास
भारत में ओटीटी इंडस्ट्री तेजी से विकास हो रहा है. एक अनुमान के अनुसार साल 2023 तक ओटीटी इंडस्ट्री में 45 फीसदी ग्रोथ की संभावना है. कोरोना ने तो इस संभावना को दोगुना कर दिया है. पहले जहां देश में अमेजन और नेटफ्लिक्स जैसे विदेशी प्लेटफॉर्म्स का ही दबदबा था, वहीं, अब ओरिजनल कंटेंट के मामले में भारतीय प्लेटफॉर्म्स उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं. कुछ भारतीय ओटीटी प्लेटफॉर्म तो इनसे आगे ही हैं. करीब एक से डेढ़ साल पहले 40 ओटीटी प्लेटफॉर्म थे, लेकिन अब इनकी संख्या दोगुनी होकर 80 से भी ज्यादा हो गई है. पिछले साल मार्च से जुलाई के बीच भारत में ओटीटी सेक्टर में पेड सबस्क्राइबर्स में 30% की बढ़ोतरी हुई है. मार्च में 2.22 करोड़ से बढ़कर पेड सबस्क्राइबर्स की संख्या 2.9 करोड़ तक पहुंच गई है.
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