बॉलीवुड की सबसे बड़ी समस्या ये है कि करोड़ो के वारे न्यारे करने वाले, नेपोटिज्म के मारे अच्छी फिल्म नहीं बनाते. जो कहानी पर काम करते हुए किसी अलग तरह की फिल्म पर हाथ आजमा ले उस फिल्म को वो कवरेज और वियुअर्शिप नही मिलती जिसका वो हकदार है. बांके राजकुवर सा पर घटिया फिल्म बना कर और उसे राष्ट्रवाद की चाशनी में डूबो कर टैक्स फ्री कर दिया जाएगा लेकिन एक बेहद ज़रूरी फिल्म पर किसी की नजर नहीं जाती. जनहित में जारी एक ऐसी ही फिल्म है जिसे न सिर्फ देखा जाना चाहिए बल्कि जागरूकता के तौर पर इसको दिखाया भी जाना चाहिए. 140 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में सेक्स और कंडोम जैसे शब्द खुले में बोलना बेशर्मी समझी जाती है. अबॉर्शन रेट खास तौर पर टीन अबॉर्शन भारत का डाटा आपको हर धर्म के संस्कार, पर्दे, हिजाब से बाहर चौराहे पर खड़ा करेगा.
67% अबॉर्शन असुरक्षित है और रोज तकरीबन 8 स्त्रियों की मृत्यु इस वजह से होती है. नजरंदाज कर धूल को कालीन के नीचे छुपाने की पुरानी आदत के चलते भारत में आज भी ये दिक्कतें आम है जिनका इलाज बरसों पहले खोज लिया गया.
इसी मुद्दे पर बनी बेहद साफ सुथरी परिवार के साथ देखीं जा सकने वाली फिल्म है जय बसंतु सिंह की निर्देशित जनहित में जारी. परिवार के साथ देखने वाली- बशर्ते आपने अपने बच्चे से ये न कहा हो कि पापा की प्रार्थना से आसमान से आई परी ने बच्चे को मां की गोद में डाला. ऐसे में लिटिल अंब्रेला का मतलब आपके पुरखे भी न बता पाएंगे.
फिल्म के डायरेक्टर जय बसंतू को आप लोकप्रिय सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है, जमाई राजा आदिं से बखूबी पहचानते है और समझ सकते है की कहानी बिनने की कला में उन्हें महारथ है. फिल्म के लेखक यूसुफ अली खान, उत्सव सरकार,...
बॉलीवुड की सबसे बड़ी समस्या ये है कि करोड़ो के वारे न्यारे करने वाले, नेपोटिज्म के मारे अच्छी फिल्म नहीं बनाते. जो कहानी पर काम करते हुए किसी अलग तरह की फिल्म पर हाथ आजमा ले उस फिल्म को वो कवरेज और वियुअर्शिप नही मिलती जिसका वो हकदार है. बांके राजकुवर सा पर घटिया फिल्म बना कर और उसे राष्ट्रवाद की चाशनी में डूबो कर टैक्स फ्री कर दिया जाएगा लेकिन एक बेहद ज़रूरी फिल्म पर किसी की नजर नहीं जाती. जनहित में जारी एक ऐसी ही फिल्म है जिसे न सिर्फ देखा जाना चाहिए बल्कि जागरूकता के तौर पर इसको दिखाया भी जाना चाहिए. 140 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में सेक्स और कंडोम जैसे शब्द खुले में बोलना बेशर्मी समझी जाती है. अबॉर्शन रेट खास तौर पर टीन अबॉर्शन भारत का डाटा आपको हर धर्म के संस्कार, पर्दे, हिजाब से बाहर चौराहे पर खड़ा करेगा.
67% अबॉर्शन असुरक्षित है और रोज तकरीबन 8 स्त्रियों की मृत्यु इस वजह से होती है. नजरंदाज कर धूल को कालीन के नीचे छुपाने की पुरानी आदत के चलते भारत में आज भी ये दिक्कतें आम है जिनका इलाज बरसों पहले खोज लिया गया.
इसी मुद्दे पर बनी बेहद साफ सुथरी परिवार के साथ देखीं जा सकने वाली फिल्म है जय बसंतु सिंह की निर्देशित जनहित में जारी. परिवार के साथ देखने वाली- बशर्ते आपने अपने बच्चे से ये न कहा हो कि पापा की प्रार्थना से आसमान से आई परी ने बच्चे को मां की गोद में डाला. ऐसे में लिटिल अंब्रेला का मतलब आपके पुरखे भी न बता पाएंगे.
फिल्म के डायरेक्टर जय बसंतू को आप लोकप्रिय सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है, जमाई राजा आदिं से बखूबी पहचानते है और समझ सकते है की कहानी बिनने की कला में उन्हें महारथ है. फिल्म के लेखक यूसुफ अली खान, उत्सव सरकार, राज शांडिल्य बधाई के पात्र हैं कि महीन धागे पर चलते विषय को कहीं भी भौंडा नहीं होने दिया.
फिल्म के डायलॉग और सिचुएशन ही उसमे ह्यूमर का पुट देते है. एक संयुक्त परिवार बीते दिनों की याद दिलाता है और साथ ही बीते दिनों को फिल्मे भी खान पारिवारिक समस्या को देश और समाज से जोड़ कर दिखाया जाता था. हां तब तक फिल्मी दुनिया पर चकाचौंध की परत नही थी तो इन फिल्मों को तालियां भरपूर मिलती थी. हालांकि आज कल बनने वाले ओटीटी कंटेंट और जनहित में जारी जैसी फिल्मों को सफल बनाने की जिम्मेदारी देखने वालो पर है.
फिल्म में छोटे शहर की लड़की अपने पैरों पर खड़े होने की जिद्द में कंडोम कंपनी में सेल्स एक्जीक्यूटिव की नौकरी करती है. ऐसा समाज जहां आदमी भी इसे बेझिझक नहीं मांगते और इसे तमाम बीमारियों से बचाव की जगह केवल प्लेजर का जामा पहनाया गया वहां ये किरदार इसे वूमेन हेल्थ एंड प्रोटेक्शन से जोड़ती है. आगे कहानी में ऐसा बहुत कुछ है जो समाज में आम देखी जाने वाली बातों की ओर आपका ध्यान आकर्षित करता है.
फिल्म में लव ट्राएंगल है नुसरत भरूचा, परितोष त्रिपाठी और अनुद सिंह ढाका, जहां एक बार फिर बेस्ट फ्रेंड का दिल तो टूटता है पर दोस्ती बरकरार रहती है. परितोष त्रिपाठी के किरदार देवी में आप टॉल डार्क हैंडसम हीरो न देखे लेकिन लाइफ पार्टनर वाले गुर भरपूर है. लाइफ पार्टनर के रिश्ते में भी सहजता भरपूर है. रिफ्रेशिंग है बिना मेलोड्रामा के प्रेम और बिना एक्सीसेसिव मेकअप के आम कामकाज करती हुई नायिका देखना.
फिल्म के नायक और नायिका दोनो के किरदार में नुसरत भरूचा हैं. बाकी लोग सह कलाकार हैं हैरारकी में. विजय राज़ समाज के बहुत से चेहरों का नेतृत्व करते है. सामाजिक इज्जत, घर के बड़ों की जिद्द और पितृसत्ता इन सभी चेहरों को वो खुद में समेटे हैं.
हिरोइन सेंट्रिक सोशल फिल्म
सोचने वाली बात है की अगर सेनिटेशन पर बनी फिल्म अथवा पीरियड्स पर बनी फिल्म जरूरी है वाहवाही लूट कर, टैक्स फ्री हो सकती है तो जनसंख्या कंट्रोल और स्त्रियों की सेहत को मद्देनजर रखते हुए कंडोम की जरूरत पर बनी फिल्म को नजरंदाज क्यों किया गया. या तो एक नायिका के मुंह से इस विषय को सुनने में सरकार, समाज दोनो अचकचा रहे है. अगर ऐसा है तो, ग्रो अप प्लीज!
किसी नामी चेहरे का न होना भी वजह हो सकती है और ऐसे में दर्शको की जिम्मेदारी बढ़ती है. नेपोटिजम को हैशटैग मत बनाइए उसके प्रति अपना कर्तव्य निभाइए और अच्छी फिल्मों को सफल बनाइए. फिल्म कुछ जगहों पर लड़खड़ाई जहां एडिटिंग की कमी लगी साथ ही संगीत यूं तो मधुर है किंतु थोड़ी गुंजाइश रह गई. जनहित में जारी एक जरूरी फिल्म है खास तौर पर ग्रामीण भारत में जहां इस पर बातचीत तो क्या अभी इसका नाम लेना भी बेशर्मी मानी जाती है. फिल्म देखिए किरदार कहानी और एक नई ईमानदार कोशिश के लिए.
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