'ओएमजी 2' देखने के बाद मेरी पहली प्रतिक्रिया, Oh My God, क्या फिल्म बनाई है. लंबे अरसे के बाद कोई ऐसी फिल्म देखने को मिली है, जिसमें विषय की गंभीरता के साथ जबरदस्त मनोरंजन है. कई दृश्य और संवाद ऐसे हैं, जिसे सुनने के बाद आंखें छलक उठती हैं. हर कलाकार अपने किरदार में इतना सहज है, जिसे देखकर लगता ही नहीं कि वो अभिनय कर रहा है. फिल्म की पटकथा से लेकर निर्देशन तक सबकुछ दमदार और दुरुस्त है, जो शिकायत का एक भी मौका नहीं देता. यूं तो मन में कई पूर्वाग्रह लिए इस फिल्म को देखने गया था. सेंसर बोर्ड ने फिल्म को एडल्ट सर्टिफिकेट देकर पहले ही तय कर दिया था कि इसमें अश्लीलता बहुत है. दूसरी ट्रेलर में जो चीजें दिखी और उसके बाद जिस तरह से विरोध प्रदर्शन हुआ, उससे यही लगा कि इसमें भी हिंदू भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया गया है. बॉलीवुड की हरकते भी तो ऐसी ही रही हैं.
लेकिन फिल्म 'ओह माई गॉड 2' के शुरू होने के बाद दृश्य-दर-दृश्य पूर्वाग्रह के बादल छंटते गए. अंत में तो यह एहसास हुआ कि सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म के मेकर्स के साथ सरासर नाइंसाफी की है. क्योंकि फिल्म को नेक नीयत के साथ बनाया गया है. निश्चित रूप से मेकर्स ने एक बहुत बड़ा जोखिम लिया है, जिसका वो हरजाना भी भर चुके हैं, लेकिन उनकी सोच पर शक नहीं किया जा सकता. समाज के लिए एक बहुत जरूरी और महत्वपूर्ण विषय पर फिल्म बनाई गई है. इसे हर उम्र, लिंग, वर्ग, जाति और धर्म से परे होकर देखा जाना चाहिए. सेंसर बोर्ड को ए सर्टिफिकेट पर फिर से विचार करके इसे उचित सम्मान देना चाहिए. इतना ही नहीं दबाव रहित निर्णय लेने की क्षमता भी विकसित करनी चाहिए. लोगों को भी अंधविरोधी होने की जगह सही और गलत में फर्क करना सीखना चाहिए. हर फिल्म बहिष्कार के लिए नहीं होती, बिना देखे निर्णय नहीं लेना चाहिए.
'ओएमजी 2' देखने के बाद मेरी पहली प्रतिक्रिया, Oh My God, क्या फिल्म बनाई है. लंबे अरसे के बाद कोई ऐसी फिल्म देखने को मिली है, जिसमें विषय की गंभीरता के साथ जबरदस्त मनोरंजन है. कई दृश्य और संवाद ऐसे हैं, जिसे सुनने के बाद आंखें छलक उठती हैं. हर कलाकार अपने किरदार में इतना सहज है, जिसे देखकर लगता ही नहीं कि वो अभिनय कर रहा है. फिल्म की पटकथा से लेकर निर्देशन तक सबकुछ दमदार और दुरुस्त है, जो शिकायत का एक भी मौका नहीं देता. यूं तो मन में कई पूर्वाग्रह लिए इस फिल्म को देखने गया था. सेंसर बोर्ड ने फिल्म को एडल्ट सर्टिफिकेट देकर पहले ही तय कर दिया था कि इसमें अश्लीलता बहुत है. दूसरी ट्रेलर में जो चीजें दिखी और उसके बाद जिस तरह से विरोध प्रदर्शन हुआ, उससे यही लगा कि इसमें भी हिंदू भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया गया है. बॉलीवुड की हरकते भी तो ऐसी ही रही हैं.
लेकिन फिल्म 'ओह माई गॉड 2' के शुरू होने के बाद दृश्य-दर-दृश्य पूर्वाग्रह के बादल छंटते गए. अंत में तो यह एहसास हुआ कि सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म के मेकर्स के साथ सरासर नाइंसाफी की है. क्योंकि फिल्म को नेक नीयत के साथ बनाया गया है. निश्चित रूप से मेकर्स ने एक बहुत बड़ा जोखिम लिया है, जिसका वो हरजाना भी भर चुके हैं, लेकिन उनकी सोच पर शक नहीं किया जा सकता. समाज के लिए एक बहुत जरूरी और महत्वपूर्ण विषय पर फिल्म बनाई गई है. इसे हर उम्र, लिंग, वर्ग, जाति और धर्म से परे होकर देखा जाना चाहिए. सेंसर बोर्ड को ए सर्टिफिकेट पर फिर से विचार करके इसे उचित सम्मान देना चाहिए. इतना ही नहीं दबाव रहित निर्णय लेने की क्षमता भी विकसित करनी चाहिए. लोगों को भी अंधविरोधी होने की जगह सही और गलत में फर्क करना सीखना चाहिए. हर फिल्म बहिष्कार के लिए नहीं होती, बिना देखे निर्णय नहीं लेना चाहिए.
खैर, फिल्म में विषय के बाद सबसे अच्छी जो चीज लगी है, वो है सभी कलाकारों की बेहतरीन अदाकारी. कहने को फिल्म के हीरो अक्षय कुमार है, लेकिन सही मायने में पूरी फिल्म पंकज त्रिपाठी के कंधों पर टिकी है. फिल्म के असली नायक वही हैं. उनके सशक्त अभिनय कौशल से हर कोई परिचित है. लेकिन इस फिल्म में उन्होंने कांति शरण मुद्गल के किरदार में एक नई लकीर खींची है. अद्भुत अभिनय किया है. अपने किरदार को ऐसे जिया है जैसे वो हमारे आसपास ही है. उनके कई डायलॉग इंप्रोवाइज लगते हैं, जो उन्होंने अपनी शैली में ढालकर बोले हैं. उनके किरदार को नेचुरल बनाते हैं. इसके अलावा सबसे ज्यादा प्रभावित अक्षय कुमार ने किया है. उन्होंने अपनी रूटीन एक्टिंग को छोड़कर अपने किरदार से ऐसी छाप छोड़ी है, जो दिल में बस गई है. पिछली असफलताओं ने शायद उन्हें सबक दे दिया है कि हर किरदार को जीना जरूरी है. वरना वो एक्टिंग कम ड्रामा ज्यादा करते नजर आते थे. शिवजी के दूत के किरदार में उनके चेहरे की आभा, बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग डिलीवरी, साक्षात ईश्वर से साक्षात्कार करने जैसी है. अक्की ने अपने अभिनय से मनमोह लिया है.
इन दोनों के अलावा वकील के किरदार में यामी गौतम और जज बने पवन मल्होत्रा ने भी बहुत प्रभावित किया है. यामी तो फिल्म-दर-फिल्म निखरती जा रही है. बेहतरीन कलाकारों से भरी फिल्म में भी उन्होंने अपनी मजबूत जगह बनाई है. उनका किरदार निगेटिव होते भी असर छोड़ता है. इनके अलावा महाकाल मंदिर के पुजारी के किरदार में गोविंद नामदेव, स्कूल प्रिंसिपल अटल नाथ माहेश्वरी के किरदार में अरुण गोविल और डॉक्टर के किरदार में बृजेंद्र काला ने भी शानदार अभिनय किया है. सही मायने में कहें तो फिल्म के विषय के बाद अभिनय ही एक ऐसी मजबूत कड़ी है, जो दर्शकों को फिल्म से बांधे रखती है. 'ओएमजी 2' अमित राय के निर्देशन में बनी दूसरी फिल्म है, लेकिन अपने सशक्त निर्देशन से उन्होंने साबित कर दिया है कि वो लंबी रेस के घोड़े हैं. उनको खुद पर विश्वास है, जो उन्हें बहुत आगे ले जाएगा, वरना इतने विरोध के बाद कोई भी हार मान सकता था.
फिल्म की कहानी भी अमित राय ने ही लिखी है, जो फिल्म के पहले पार्ट से बिल्कुल अलग होते हुए भी कनेक्ट करती है. फिल्म की कहानी की पृष्ठभूमि महाकाल नगरी उज्जैन में रची गई है. मुख्य किरदार कांति शरण मुद्गल (पंकज त्रिपाठी) एक सीधा और धार्मिक इंसान है. बाबा महाकाल की सेवा करते हुए अपने परिवार का पेट पाल रहा होता है. घर में पत्नी के अलावा एक बेटा और एक बेटी है. दोनों शहर के अच्छे स्कूल में पढ़ते है. परिवार संतुष्ट और प्रसन्न है. लेकिन एक बार जब बुरे दिनों की शुरूआत हो जाती है, तो रुकने का ना ही नहीं लेती. बेटा बुरी संगत में पड़कर ऐसा काम कर जाता है, जिससे उसके साथ पूरे परिवार का नाम खराब हो जाता है. बेटे को स्कूल से निकाल दिया जाता है. हालात ऐसे हो जाते हैं कि मुंह छुपाकर शहर छोड़ने की नौबत आ जाती है, लेकिन तभी शिवजी के दूत प्रकट होते हैं. वो परोक्ष रुप से कांति और उसके परिवार की मदद करने लगते हैं.
इसके बाद कांति शरण मुद्गल अपने बच्चे के लिए स्कूल सहित उन सभी आरोपियों पर मानहानी का केस करते हैं, जिन्हें वो उसकी बर्बादी के लिए दोषी मानते हैं. मजे की बात ये है कि इसमें वो खुद को भी रखते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि उन्होंने बच्चे की परवरिश ठीक से नहीं की है. लेकिन सबसे ज्यादा स्कूल का दोष है, क्योंकि उसने अपने छात्र को इस बात की शिक्षा ही नहीं दी कि क्या सही है, क्या गलत है. इसके बाद कोर्ट में सेक्स एजुकेशन को लेकर खूब जिरह होती है. इस दौरान कांति और कामिनी माहेश्वरी (यामी गौतम) की दलीलों में ऐसी बातें सुनने को मिलती हैं, जो समाज की संकीर्ण मानसिकता से पर्दा हटाने के लिए काफी है. सही मायने में 'ओह माई गॉड 2' एक फिल्म नहीं आज के समाज में क्रांति है. ऐसी क्रांतियां समाज के हित में हैं. इतिहास गवाह रहा है कि समय-समय पर सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघात होता रहा है. इस फिल्म ने भी वही किया है.
जिन लोगों ने हिंदू भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाकर 'ओएमजी 2' का विरोध किया था, उन्हें फिल्म देखकर बहुत निराशा होगी. क्योंकि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है. बल्कि धर्म और भगवान के प्रति अटूट आस्था और उसके प्रभाव पर ज्यादा प्रकाश डाला गया है. ईश्वर सत्य है और हमेशा सच का साथ देता है, कुछ ऐसा ही इस फिल्म के जरिए संदेश देने की कोशिश की गई है. यूथ कनेक्ट के लिए यहां शिव के दूत को मॉर्डन भी दिखाया गया है, जो कि रेसिंग कार चलाते हैं, टैबलेट का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन 'आदिपुरुष' जैसी बचकानी हरकत बिल्कुल भी नहीं की गई है. 'आदिपुरुष' में तो यूथ कनेक्ट के नाम पर रामायण के किरदारों के साथ भी टपोरी और सड़कछाप भाषा का इस्तेमाल किया गया, जो कि अक्षम्य है. कुल मिलाकर, 'ओह माई गॉड 2' आज के समय की जरूरत है. इसे देखने, समझने और विचार करने की जरूरत है. बिना किसी पूर्वाग्रह के हर किसी को ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए.
हर हर महादेव!!!
रेटिंग- 4 स्टार
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