ऑस्कर अवॉर्ड में लगातार दूसरे साल किसी अश्वेत कलाकार को नामांकित नहीं किया गया है. अब इससे उपजे विवाद ने 1973 की उस घटना को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है जब 'द गॉडफादर' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का खिताब जीतने वाले मार्लोन ब्रांडो ने तब अमेरिका में रंगभेद के खिलाफ ऑस्कर पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया था.
27 मार्च, 1973 को हुए उस 45वें अवॉर्ड समारोह मार्लोन तब खुद हिस्सा लेने नहीं आए थे. लेकिन एक अभिनेत्री साशीन लिटिलफेदर के द्वारा अपना संदेश भेजवाया था. लिटिलफेदर ने मंच पर आते ही कहा कि उनके हाथ में मार्लोन का लंबा भाषण है लेकिन वे इसे यहां समय की पाबंदी के कारण पूरा नहीं पढ़ सकतीं. इसके बाद लिटिलफेदर ने संक्षेप में यह बताया कि मार्लोन ने इस पुरस्कार को लेने से इंकार कर दिया है क्योंकि अमेरिकी फिल्मों, टीवी में अश्वेतों को गलत ढ़ंग से दिखाया जा रहा है.
आप भी देखिए..उस समारोह में क्या हुआ था..
विवाद रंगभेद का..
विवाद जैसे भी रहे हों ये तो मानना होगा कि ऑस्कर पुरस्कारों की अपनी एक प्रतिष्ठा है. तभी तो आज भी हर बरस जब ऑस्कर अवॉर्ड की घोषणा होती है तो पूरी दुनिया की नजर उस मंच पर ठिठक जाती है. हालांकि यह भी सच है कि ऑस्कर के पिछले 88 वर्षों के इतिहास में कई विवाद इस अवार्ड के साथ जुड़े. इस साल ऑस्कर पुरस्कार का आयोजन 28 फरवरी को होना है.
तो क्या सच में ऑस्कर में गोरे-काले का खेल होता है? क्या अमेरिका के ऑस्कर अवॉर्ड में अश्वेत कलाकारों के साथ भेदभाव होता रहा है? पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर यही सवाल तैर रहे हैं. ये लगातार दूसरा साल है जब किसी भी अश्वेत कलाकार को ऑस्कर के लिए नामांकित नहीं किया गया है. यह विवाद अब इतना आगे बढ़ गया है कि कई अश्वेत कलाकारों ने इस समारोह का बहिष्कार करने का फैसला किया है. इसमें मेन इन ब्लैक फेम विल स्मिथ से लेकर उनकी पत्नी जेडा पिनकेट स्मिथ और स्पाइक ली जैसे बड़े नाम शामिल हैं. आलम ये कि इस बार इसकी मेजबानी...
ऑस्कर अवॉर्ड में लगातार दूसरे साल किसी अश्वेत कलाकार को नामांकित नहीं किया गया है. अब इससे उपजे विवाद ने 1973 की उस घटना को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है जब 'द गॉडफादर' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का खिताब जीतने वाले मार्लोन ब्रांडो ने तब अमेरिका में रंगभेद के खिलाफ ऑस्कर पुरस्कार लेने से इंकार कर दिया था.
27 मार्च, 1973 को हुए उस 45वें अवॉर्ड समारोह मार्लोन तब खुद हिस्सा लेने नहीं आए थे. लेकिन एक अभिनेत्री साशीन लिटिलफेदर के द्वारा अपना संदेश भेजवाया था. लिटिलफेदर ने मंच पर आते ही कहा कि उनके हाथ में मार्लोन का लंबा भाषण है लेकिन वे इसे यहां समय की पाबंदी के कारण पूरा नहीं पढ़ सकतीं. इसके बाद लिटिलफेदर ने संक्षेप में यह बताया कि मार्लोन ने इस पुरस्कार को लेने से इंकार कर दिया है क्योंकि अमेरिकी फिल्मों, टीवी में अश्वेतों को गलत ढ़ंग से दिखाया जा रहा है.
आप भी देखिए..उस समारोह में क्या हुआ था..
विवाद रंगभेद का..
विवाद जैसे भी रहे हों ये तो मानना होगा कि ऑस्कर पुरस्कारों की अपनी एक प्रतिष्ठा है. तभी तो आज भी हर बरस जब ऑस्कर अवॉर्ड की घोषणा होती है तो पूरी दुनिया की नजर उस मंच पर ठिठक जाती है. हालांकि यह भी सच है कि ऑस्कर के पिछले 88 वर्षों के इतिहास में कई विवाद इस अवार्ड के साथ जुड़े. इस साल ऑस्कर पुरस्कार का आयोजन 28 फरवरी को होना है.
तो क्या सच में ऑस्कर में गोरे-काले का खेल होता है? क्या अमेरिका के ऑस्कर अवॉर्ड में अश्वेत कलाकारों के साथ भेदभाव होता रहा है? पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर यही सवाल तैर रहे हैं. ये लगातार दूसरा साल है जब किसी भी अश्वेत कलाकार को ऑस्कर के लिए नामांकित नहीं किया गया है. यह विवाद अब इतना आगे बढ़ गया है कि कई अश्वेत कलाकारों ने इस समारोह का बहिष्कार करने का फैसला किया है. इसमें मेन इन ब्लैक फेम विल स्मिथ से लेकर उनकी पत्नी जेडा पिनकेट स्मिथ और स्पाइक ली जैसे बड़े नाम शामिल हैं. आलम ये कि इस बार इसकी मेजबानी करने जा रहे अश्वेत कॉमेडियन क्रिस रॉक पर भी दबाव है कि वह खुद को इस समारोह से अलग कर लें.
पिछले साल भी ऐसा ही विवाद सामने आया था जब फिल्म निर्माता और चर्चित एंकर ओप्रा विन्फ्रे की फिल्म 'सेलमा' को नामांकन नहीं मिला. अपनी बेहतरीन अदाकारी से डेविड ओयेलोवो ने इस फिल्म में मार्टिन लूथर किंग को पर्दे पर जीवंत कर दिया था.
हॉलीवुड में रंगभेद
अमेरिकी फिल्म इंडस्ट्री में रंगभेद हमेशा से एक मुद्दा रहा है. यह आरोप भी लगते रहे हैं कि हॉलीवुड अश्वेत कलाकारों और दर्शकों की अनदेखी करता आया है. जबकि वहां के अश्वेत लोग अपनी कहानी भी बड़े पर्दे पर देखना चाहते हैं, लेकिन ऐसा बहुत कम मौकों पर ही हो पाया है. अगर पुरस्कारों की ही बात करें तो एक आकड़ें के अनुसार 2012 तक एकेडमी अवार्ड्स के लिए वोट करने वाले ज्यूरी में 94 फीसदी श्वेत थे. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के 2014 के एक रिपोर्ट के अनुसार 2011 से 2015 के बीच बनी फिल्मों में केवल 10.5 फीसदी फिल्में ऐसी थी जिसके लीड रोल में कोई अश्वेत कलाकार रहा. साथ ही इन चार वर्षों में बनी फिल्मों में केवल 7.6 फीसदी ऐसी हैं जिसका लेखक कोई अश्वेत शख्स है. जाहिर है इन आकड़ों के बीच एक सवाल यही है कि फिर आगे रास्ता क्या है. क्योंकि केवल एक अवॉर्ड का बहिष्कार करने भर से तो ये समस्या खत्म होने से रही...
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