जब भी दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित सिनेमा अवॉर्ड का जिक्र होता है, सबसे पहले एकेडमी अवॉर्ड यानी ऑस्कर का नाम लोगों की जुबान पर आता है. हर फिल्म मेकर या फिल्म इंडस्ट्री का सपना होता है कि उनकी फिल्म को इस अवॉर्ड से सम्मानित किया जाए. इस साल रिलीज हुई फिल्म 'आरआरआर' के मेकर्स ने भी यही सपना देखा था कि उनकी फिल्म को हिंदुस्तान की तरफ से ऑस्कर में ऑफिशियली एंट्री के तौर पर भेजा जाएगा.
लोगों ने सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक इस बात की मुहिम चला रखी थी कि ऑस्कर के लिए 'आरआरआर' को ही भेजा जाए. हालांकि, कुछ लोग विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' की भी पैरवी कर रहे थे. लेकिन फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ने इन सभी फिल्मों से इतर एक गुजराती फिल्म के नाम ऐलान करके हैरान कर दिया. गुजराती फिल्म 'छेल्लो शो' (लास्ट फिल्म शो) को ऑस्कर के लिए ऑफिशियल नॉमिनेट किया गया.
गुजराती फिल्म 'छेल्लो शो' (लास्ट फिल्म शो) के नाम के ऐलान के बाद 'आरआरआर' के मेकर्स सहित उसके फैंस निराश हो गए. लेकिन मेकर्स ने व्यक्तिगत तौर पर ऑस्कर के लिए 14 कैटेगरी में में नॉमिनेशन करके उम्मीद की नई किरण जगा दी. इस बीच इंटरनेशनल लेवल पर फिल्म को जिस तरह से प्रोत्साहन मिल रहा है, उसे देखते हुए निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ये फिल्म 2 से 3 कैटेगरी में ऑस्कर अवॉर्ड जीतने में कामयाब रहेगी.
इस बात की तस्दीक फिल्म को मिले एक बेहद प्रतिष्ठित इंटरनेशनल अवॉर्ड ने कर दी है. जी हां, फिल्म 'आरआरआर' को अटलांटा फिल्म क्रिटिक्स सर्कल की तरफ से बेस्ट इंटरनेशनल सिनेमा का अवॉर्ड मिला है. इससे पहले फिल्म के निर्देशक एसएस राजामौली को न्यूयॉर्क फिल्म क्रिटिक्स सर्कल में बेस्ट डायरेक्टर का अवॉर्ड दिया गया था. ये दोनों सम्मान भारतीय सिनेमा के लिए किसी सपने की तरह हैं, जो अभी तक किसी फिल्म को नहीं मिले हैं.
एसएस राजामौली की फिल्म 'आरआरआर' पूरी दुनिया में धूम मचा रही है.
इतना ही नहीं फिल्म 'आरआरआर' को पिछले महीने जापान में रिलीज किया गया था. वहां इसे जिस तरह से जबरदस्त रिस्पांस मिला, उसे देखकर फिल्म मेकर्स गदगद हो गए. फिल्म को बड़े पैमाने पर देखा गया. महज दो हफ्ते में फिल्म ने 20 करोड़ रुपए से अधिक की कमाई कर ली, जो इस बात की गवाही दे रही है कि ये न सिर्फ हिंदुस्तान में पसंद की गई है, बल्कि सात समंदर पार दूसरे देशों में भी इसे पसंद किया जा रहा है.
अमेरिका के जिस न्यूयॉर्क फिल्म क्रिटिक्स सर्कल में राजामौली को सम्मानित किया गया, वहां उनका मुकाबला हॉलीवुड के कई बड़े निर्देशकों से था. इनमें हॉलीवुड के मशहूर डायरेक्टर स्टीवन स्पीलबर्ग, डैरेन एरोनोफ्सकी, सारा पोली और जीना प्रिंस-बाइटवुड का नाम शामिल है. स्टीवन स्पीलबर्ग को जुरासिक पार्क जैसी बेहतरीन फिल्म के निर्माण के लिए जाना जाता है. इस साल उनकी फिल्म 'द फैबेलमैन्स' रिलीज हुई है, जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया है.
अटलांटा फिल्म क्रिटिक्स सर्कल हर साल दुनिया की बेहतरीन फिल्मों को सम्मानित करता है. इस साल जिन फिल्मों को सम्मानित किया गया है, उनमें 'द फेबेलमैन्स', 'द बंशीज ऑफ इनिशरिन', 'टीएआर', 'आरआरआर', 'टॉप गन: मेवरिक', 'डिसिजन टू लीव', 'वूमेन टॉकिंग', 'ग्लास अनियन: ए नाइफ्स आउट मिस्ट्री' और 'नोप' जैसी फिल्मों के नाम शामिल हैं. इस अवॉर्ड समारोह में द डेनियल को बेस्ट डायरेक्टर, कॉलिन फैरेल (द बंशीज ऑफ इनिशरिन) को बेस्ट एक्टर, केट ब्लैंचेट (टीएआर) को बेस्ट एक्ट्रेस, के हुए क्वान (एवरीथिंग एवरीवेयर ऑल एट वंस) को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर, जेनेल मोने (ग्लास अनियन: ए नाइफ्स आउट मिस्ट्री) को बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस, मार्टिन मैकडोनाग (द बंशीज ऑफ इनिशरिन) बेस्ट स्क्रिप्ट, गिलर्मो डेल टोरो की पिनोचियो को बेस्ट एनिमेटेड फिल्म, आरआरआर को बेस्ट इंटरनेशनल पिक्चर और फॉयर ऑफ लव को बेस्ट डाक्युमेंट्री के सम्मान से नवाजा गया है.
विदेशी धरती पर इन तमाम सम्मानों से सम्मानित हो रहे फिल्म 'आरआरआर' के मेकर्स का सपना ऑस्कर अवॉर्ड जीतने का है. इस फिल्म को बेस्ट पिक्चर, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट एक्टर (राम चरण और जूनियर एनटीआर), बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर (अजय देवगन), बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस (आलिया भटट्), बेस्ट सिनेमैटोग्राफी, बेस्ट म्युजिक सहित 14 कैटेगरी में नॉमिनेशन के लिए भेजा गया है. देखना दिलचस्प होगा कि ये फिल्म ऑस्कर अवॉर्ड की किस कैटेगरी में जीत हासिल कर पाती है.
वैसे दुर्भाग्य है कि आजतक भारत की किसी भी सिनेमा इंडस्ट्री की फिल्म को ये अवॉर्ड अभी तक नहीं मिला है. पिछले कुछ वर्षों में देखा जाए तो हर साल किसी न किसी भारतीय फिल्म को ऑस्कर अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किया गया, लेकिन ट्रॉफी कभी हाथ नहीं आई है. इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं? क्या भारत में इस तरह की फिल्में बनती ही नहीं हैं जो कि ऑस्कर के स्तर की हों या फिर भारतीय फिल्मों के साथ भेदभाव किया जाता है? सवाल कई हैं, लेकिन जवाब मुश्किल नहीं है. क्योंकि इसका जवाब हमारी व्यवस्था में छिपा है, जो सियासत से संचालित होती है.
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