Wait Is Over अमेजन प्राइम की मोस्ट अवेटेड वेब सीरीज पंचायत 2 (Panchayat 2) अपने निर्धारित समय से पहले रिलीज कर दी गयी. मेकर्स घबराए थे. उन्हें डर था कि टेलीग्राम जैसी ऐप पर इसे लीक न कर दिया जाए. चाहे बेंगलुरु का वाइट फील्ड हो या फिर नोएडा की फिल्म सिटी पंचायत का पहला सीजन जिस जिस ने भी देखा था भाव विभोर हो गया. कहा गया कि हां यही गांव है. गांव की चुनौतियां ऐसी ही होती हैं. चाहे वो नीना गुप्ता और रघुबीर यादव हों या फिर फैसल मलिक, चंदन रॉय पहले सीजन में एक्टिंग सबकी बेजोड़ थी मगर वो शख्स जिसने पंचायत में लाइम लाइट बटोरी वो रहे 'पंचायत सचिव' जितेंद्र कुमार. सच बात है. बिना सचिव जी के वाक़ई पंचायत का कोई 'अस्तित्व' नहीं है. फैंस को बड़ी उम्मीदें थीं जितेंद्र से और इन्हीं के चलते पंचायत 2 का इंतजार हो रहा था. अब जबकि पंचायत 2 अमेजन प्राइम पर उपलब्ध है सवाल ये है कि क्या टीवीएफ दर्शकों के भरोसे को कायम रखने में कामयाब हुआ है? क्या पंचायत 2 उसी स्तर का है? हो सकता है ये सवाल फैंस को आहात कर दे लेकिन जवाब न में है.
पंचायत 2 से स्पष्ट हुआ कि भारत में अभी भी OTT के लिए निर्माता निर्देशकों को और अधिक मेहनत की जरूरत है. सवाल होगा कैसे? तो आइये कुछ पॉइंट्स पर नजर डालें और इस बात को समझें.
अपने में एक जल्दबाजी लिए हुए हैं पंचायत 2
पंचायत 2 पर बात करने से पहले हमारे लिए ये बता देना जरूरी है कि जब हम पंचायत 1 को देखते हैं तो मिलता है कि पंचायत 1 में भले ही 7 एपिसोड्स रहे हों लेकिन एक एक कहानी को वक़्त दिया गया था. छोटे-छोटे मुद्दे थे और उन मुद्दों को सुलझाने के लिए जो एक्टिंग हुई वो लाजवाब थी. वहीं जब हम पंचायत 2 को देखें तो मुद्दों को न केवल विस्तार दिया गया बल्कि...
Wait Is Over अमेजन प्राइम की मोस्ट अवेटेड वेब सीरीज पंचायत 2 (Panchayat 2) अपने निर्धारित समय से पहले रिलीज कर दी गयी. मेकर्स घबराए थे. उन्हें डर था कि टेलीग्राम जैसी ऐप पर इसे लीक न कर दिया जाए. चाहे बेंगलुरु का वाइट फील्ड हो या फिर नोएडा की फिल्म सिटी पंचायत का पहला सीजन जिस जिस ने भी देखा था भाव विभोर हो गया. कहा गया कि हां यही गांव है. गांव की चुनौतियां ऐसी ही होती हैं. चाहे वो नीना गुप्ता और रघुबीर यादव हों या फिर फैसल मलिक, चंदन रॉय पहले सीजन में एक्टिंग सबकी बेजोड़ थी मगर वो शख्स जिसने पंचायत में लाइम लाइट बटोरी वो रहे 'पंचायत सचिव' जितेंद्र कुमार. सच बात है. बिना सचिव जी के वाक़ई पंचायत का कोई 'अस्तित्व' नहीं है. फैंस को बड़ी उम्मीदें थीं जितेंद्र से और इन्हीं के चलते पंचायत 2 का इंतजार हो रहा था. अब जबकि पंचायत 2 अमेजन प्राइम पर उपलब्ध है सवाल ये है कि क्या टीवीएफ दर्शकों के भरोसे को कायम रखने में कामयाब हुआ है? क्या पंचायत 2 उसी स्तर का है? हो सकता है ये सवाल फैंस को आहात कर दे लेकिन जवाब न में है.
पंचायत 2 से स्पष्ट हुआ कि भारत में अभी भी OTT के लिए निर्माता निर्देशकों को और अधिक मेहनत की जरूरत है. सवाल होगा कैसे? तो आइये कुछ पॉइंट्स पर नजर डालें और इस बात को समझें.
अपने में एक जल्दबाजी लिए हुए हैं पंचायत 2
पंचायत 2 पर बात करने से पहले हमारे लिए ये बता देना जरूरी है कि जब हम पंचायत 1 को देखते हैं तो मिलता है कि पंचायत 1 में भले ही 7 एपिसोड्स रहे हों लेकिन एक एक कहानी को वक़्त दिया गया था. छोटे-छोटे मुद्दे थे और उन मुद्दों को सुलझाने के लिए जो एक्टिंग हुई वो लाजवाब थी. वहीं जब हम पंचायत 2 को देखें तो मुद्दों को न केवल विस्तार दिया गया बल्कि उन्हें बड़ा बनाने की कोशिश की गयी और यहीं से समस्या का आगाज हुआ. जब आप कई मुद्दों को दिखाना चाहते हैं और आपके पास समय कम होता है तो गड़बड़ का होना स्वाभाविक है. पंचायत 2 के साथ भी कुछ कुछ ऐसा ही हुआ. सीरीज जल्दबाजी में दिखी और उसने अपना मूल त्याग दिया.
सारा फोकस 'सचिव जी' पर छोटे कैरेक्टर्स के लिए स्कोप कम
जैसा कि हम ऊपर ही इस बात को स्पष्ट कर चुके हैं कि पंचायत 2 में मुद्दे उठाए गए और उन्हें बड़ा बनाया गया. ऐसे में हमें तमाम छोटे छोटे कैरेक्टर दिखे जिन्होंने बेमिसाल एक्टिंग की और जिन्हें देखते हुए यही महसूस हुआ कि इन्हें पर्दे पर और ज्यादा स्पेस दिया जा सकता था. इस बात को समझने के लिए हम पंचायत 2 के ही एक पात्र विनोद का जिक्र करना चाहेंगे.
विनोद के जरिये स्वच्छ भारत और खुले में शौच का मुद्दा उठाया गया. जैसी एक्टिंग विनोद ने की महसूस यही हुआ कि उसे स्क्रीन पर और स्पेस मिल सकता था. अब चूंकि मेकर्स ने सारा ध्यान सचिव जी या ये कहें कि जीतेंद्र पर ही रखा, जो छोटे कैरेक्टर्स थे वो सचिव की के बड़े कद के आगे घुटने टेकने पर मजबूर हो गए.
पंचायत 2 का पंचायत 1 से ताल मेल नहीं बैठ पाया
पंचायत 2 पूर्व में ही अमेजन प्राइम पर प्रसारित हो चुकी पंचायत 1 का सीक्वल था. लोग जानना चाह रहे थे कि आगे क्या हुआ? कितना बेहतर होता कि मेकर्स का भी ध्यान उसी बिंदु पर होता लेकिन जिस तरह 8 एपिसोड्स की सीरीज में मेकर्स की तरफ से नित नए एक्सपेरिमेंट्स हुए कहना गलत नहीं है कि टीआरपी की भूख ने एक अच्छी वेब सीरीज का गला घोंट दिया. सीरीज देखते हुए जिस बायत ने सबसे ज्यादा कचोटा और शायद ध्यान भी आकर्षित किया वो ये कि बतौर दर्शक हम बमुश्किल ही पंचायत 2 को पंचायत 1 से रिलेट कर पाए.
पंचायत 2 में गाली गलौज का तड़का...उम्मीद थी की सीरीज फेमिली ओरिएंटेड होगी!
जिस तरह हिंदी पट्टी की अपनी समस्याएं हैं. उसी तरह जब एंटरटेनमेंट हिंदी पट्टी के दर्शकों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है तो भी समस्याएं आती हैं. पंचायत 1 में कुछ मौकों पार गलियां थीं. समझ में आता है. लेकिन जिस तरह पंचायत 2 में बेमौके गालियों का इस्तेमाल किया गया. वो इस लिए भी चकित करने वाला है क्योंकि मेकर्स को इस बात को समझना होगा कि आप व्यर्थ में गालियां डालकर एक अच्छी भली वेब सीरीज का कबाड़ा नहीं कर सकते. साथ ही मेकर्स इस बात को भी समझें कि पंचायत का शुमार उन चुनिंदा वेब सीरीज में था जो परिवार के साथ बैठ कर देखने योग्य थी. ऐसे में मेकर्स ने पंचायत में गालियां डालकर उस भरोसे को तोड़ा है जो कहानी और दर्शकों के बीच था.
पंचायत 3 में पंचायत 2 जैसी गलती न करें मेकर्स
पंचायत को जनता द्वारा क्यों हाथों हाथ लिया गया इसकी एक बड़ी वजह इसकी कहानी तो थी ही साथ ही साथ सादगी भी थी. जब बात पंचायत 2 की आती है तो सादगी के मद्देनजर हमें बड़ी कमी दिखाई देती है. मेकर्स ने पंचायत 2 को जहां लाकर छोड़ा है यक़ीनन इसका तीसरा पार्ट भी आएगा. ऐसे में हम मेकर्स से बस इतना ही कहेंगे कि अब जब वो पंचायत का तीसरा पार्ट बनाएं तो इस बात का पूरा ख्याल रखें कि उसमें जल्दबाजी की संभावनाएं कम हों और अगर किसी मुद्दे को उठाया जा रहा हो तो उसके हर पहलू को उठाया जाए ताकि कहानी और कलाकारों को भी इंसाफ मिले.
मेकर्स इस बात को भी समझें कि ओटीटी कंटेंट टिपिकल मसाला बॉलीवुड नहीं है. ओटीटी पर दर्शक अगर कुछ देख रहा है तो उसका गंभीरता से अवलोकन भी कर रहा है. न तो उसे जल्दबाजी बर्दाश्त है और न ही किसी तरह की कोई मूर्खता.
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