जिस हिन्दी पट्टी ने बाहुबली के 'जय माहिष्मति' का उदघोष किया था वही इस वक़्त 'पुष्पा' की 'झुकूंगा नहीं मैं' पर वारी जा रही है. नाम पुष्पा सुनकर अगर आप इसे फ्लावर समझ रहे हैं तो बता दें ये फ्लावर नहीं फायर है (ऐसा मैं नहीं फिल्म का नायक कह रहा है)
दक्षिण भारतीय सिनेमा याने मूंछों वाला हीरो, जिसके पैर रखते कांपती ज़मीन. खड़खड़ाते पत्ते. दस दिशाओं में उछल कर गिरते दुश्मन. गदराए बदन की हीरोईन, शरीर के हर अंग से किया गया नृत्य, थोड़े आंसू, ज़्यादा मार-धाड़. अगर आप इसी परिकल्पना के तहत फिल्म देखते हैं, तो पुष्पा आपको निराश नहीं करेगी. हां नायिका hollywood की तर्ज़ पर छरहरी हो गयी है.
एटीट्यूड से भरपूर पुष्पराजन उर्फ पुष्पा लाल चंदन की लकड़ी काटने वाला मजदूर है. अपनी स्मार्टनेस से मजदूर से स्मगलिंग किंग बनने का सफ़र है पुष्पा की कहानी. यह कहानी और अल्लु अर्जुन का लुक चंदन तस्कर वीरप्पन की याद दिलाता है.
टीवी के लगभग सारे मूवी चैनल्स पर आने वाली साउथ इंडियन फिल्मों और पुष्पा में आप पांच अंतर ढूंढ़े, तो शायद ही खोज पाएं. पित्रसत्ता को पोषित करती फिल्म में कोई ऐसा कारक नहीं है जो इसे पिछली फ़िल्मों से अलग बनाता हो.
शूं-शां, हूं-हां मार्का चाईनीज़ मार-धाड़ और मौत को चकमा देने में सिद्धहस्त हीरो का वीक पॉइंट उसका नजाएज़ औलाद होना है. कोई भी दुख्ती रग पे हाथ रखे, हीरो को भड़क उठना है.
इसमें क्या नया है. इससे पहले भी तो बिन ब्याही माओं और उनके सपूतों की इमोशनल ड्रामेटिक स्टोरी से बॉलीवुड जनता के मन में सॉफ़्ट कार्नर बनाता रहा है. फिल्म फिर भी दोनों हाथों से पैसा बटोर रही है. पहली वजह है- सुकुमार का डायरेक्शन. अल्लू अर्जुन,...
जिस हिन्दी पट्टी ने बाहुबली के 'जय माहिष्मति' का उदघोष किया था वही इस वक़्त 'पुष्पा' की 'झुकूंगा नहीं मैं' पर वारी जा रही है. नाम पुष्पा सुनकर अगर आप इसे फ्लावर समझ रहे हैं तो बता दें ये फ्लावर नहीं फायर है (ऐसा मैं नहीं फिल्म का नायक कह रहा है)
दक्षिण भारतीय सिनेमा याने मूंछों वाला हीरो, जिसके पैर रखते कांपती ज़मीन. खड़खड़ाते पत्ते. दस दिशाओं में उछल कर गिरते दुश्मन. गदराए बदन की हीरोईन, शरीर के हर अंग से किया गया नृत्य, थोड़े आंसू, ज़्यादा मार-धाड़. अगर आप इसी परिकल्पना के तहत फिल्म देखते हैं, तो पुष्पा आपको निराश नहीं करेगी. हां नायिका hollywood की तर्ज़ पर छरहरी हो गयी है.
एटीट्यूड से भरपूर पुष्पराजन उर्फ पुष्पा लाल चंदन की लकड़ी काटने वाला मजदूर है. अपनी स्मार्टनेस से मजदूर से स्मगलिंग किंग बनने का सफ़र है पुष्पा की कहानी. यह कहानी और अल्लु अर्जुन का लुक चंदन तस्कर वीरप्पन की याद दिलाता है.
टीवी के लगभग सारे मूवी चैनल्स पर आने वाली साउथ इंडियन फिल्मों और पुष्पा में आप पांच अंतर ढूंढ़े, तो शायद ही खोज पाएं. पित्रसत्ता को पोषित करती फिल्म में कोई ऐसा कारक नहीं है जो इसे पिछली फ़िल्मों से अलग बनाता हो.
शूं-शां, हूं-हां मार्का चाईनीज़ मार-धाड़ और मौत को चकमा देने में सिद्धहस्त हीरो का वीक पॉइंट उसका नजाएज़ औलाद होना है. कोई भी दुख्ती रग पे हाथ रखे, हीरो को भड़क उठना है.
इसमें क्या नया है. इससे पहले भी तो बिन ब्याही माओं और उनके सपूतों की इमोशनल ड्रामेटिक स्टोरी से बॉलीवुड जनता के मन में सॉफ़्ट कार्नर बनाता रहा है. फिल्म फिर भी दोनों हाथों से पैसा बटोर रही है. पहली वजह है- सुकुमार का डायरेक्शन. अल्लू अर्जुन, रश्मिका मन्दाना के साथ बाक़ी सभी की ऐक्टिंग. सामन्था रूथ प्रभु का तराशे हुए बदन में आइटम नबंर. साउथ के फ्रेश लोकेशन्स और बन्दूक के बजाय कटार.
दूसरी वजह शायद एक्सपेरिमेंटल सिनेमा से बोर हो चुके हिन्दी भाषियों को 'पुष्पा' अमिताभ-मिथुन युगीन टशन पूर्ण नायक प्रधान फ़िल्मों की याद दिलाती हो. या पिछले दो अरसे से कोरोना से जूझ रही, महंगाई से मध्य से गरीब वर्ग की तरफ सरक चुकी जनता को मजदूर बने नायक के चेहरे में अपना चेहरा नज़र आता हो. जो बार बार नाम बदल कर पलटकर आने वाले कोरोना से कहना चाहता हो- मैं झुकेगा नहीं.
जावेद अली की आवाज़ और रक़ीब आलम के बोलो से सजा गीत श्रीवल्ली पहले ही फेसबुक की 'रील' पे छा चुका है. आइटम सॉन्ग 'ऊ बोलेगा' का हिन्दी छोड़िये, तमिल वर्ज़न भी हिन्दी भाषियों की ज़बां पर ऐसी सर्दी में मक्खन की तरह पिघल चुका है.
जब बॉलीवुड 90s की फ़िल्मों के रीमेक बनाने में व्यस्त है तब दक्षिणी सिनेमा कभी नये तो कभी पुराने कांसेप्ट को पूरी लगन, मेहनत से निर्देशित कर रहा है. पुष्पा की पार्ट-1 की सफलता ने दूसरे पार्ट के लिये सबकी फिंगर क्रॉस करवा रखी हैं.
ये भी पढ़ें -
पुष्पा की कामयाबी से अतिउत्साहित साऊथ के सिनेमा वाले गलती नहीं करने जा रहे हैं?
Pushpa इतनी कामयाब क्यों? ये क्या हुआ हमारी पसंद को?
Pushpa Effect: फिल्म पुष्पा की सफलता ने इन चार सितारों की लोकप्रियता पर लगाया चार चांद
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.