अजीब सा नाम... Decoupled सुनकर series के बारे में कोई हायपोथिसिस नहीं बनती. इससे पहले कुछ सोचा जाए 40 क़रीब नायक की खसखसी दाढ़ी-तोंद दिख जाती है. एक बारगी यक़ीन नही होता यह वही 'रहना है तेरे दिल में' वाले लवर बॉय माधवन हैं. पूरी series में डार्क शर्ट/ टी- शर्ट या/और लाईट टी-शर्ट पर डार्क स्वेट शर्ट/जैकेट उनके बढ़े वज़न को कम दिखाने का बहाना लगी है. Decoupled याने जोड़े का अ-जोड़ा होना. श्रुति (सुरवीन चावला) महिला सशक्तिकरण पर मुहर लगाती हुई आर्या (आर माधवन) से तलाक़ के पहल में हैं. वह शादी बचाना चाहता है. बीच में बच्ची से युवा होती एक बेटी है. जिसके लिये दोनों ने एक ही घर में को-परेन्ट बनकर रहने का फैसला लिया है. (दूसरे तलाक के बाद लफ्ज़ 'को-परेन्ट' की सार्वजनिक घोषणा करके आमिर खान ने ब्याह से परेशान बहोतों को बीच का रास्ता सुझाया. डीकपल्ड उसी पर चलने की कोशिश है शायद)
अपने इस कांसेप्ट के ज़रिये मनु जोसेफ लोगों से पूछना चाहते हैं तलाक खुशांत क्यों नहीं हो सकते. Destination weddig हो सकती है तो Divorce क्यों नही. sepration दुखी करता है लेकिन इस दुख को grace के साथ क्यों स्वीकार नहीं किया जा सकता. और बजाय एक दूसरे पर लानते, मलामतें भेजने के; दम्पति क्यों नहीं उल्टे सात फेरे लेतें और अंगूठियां उतार एक दूसरे को वापस कर देते.
ऐसा कहां हुआ? कौन करता है ऐसे भला? लेकिन मनु जोसेफ ने हार्दिक मेहता के साथ इसे सच करते हुए डीकपल्ड के ज़रिये तलाक शुदाओं के लिये समाज को लचीला बनाने की कोशिश की है.
पहले एपिसोड में बेस्ट सेलर चेतन भगत और सैकेण्ड बेस्ट सेलर आर्या अय्यर बने माधवन के बीच टॉम ऐण्ड जैरी टाइप आंख-मिचौली है. कहना गलत ना होगा कि माधवन का रोल पूरी सीरीज में जेरी...
अजीब सा नाम... Decoupled सुनकर series के बारे में कोई हायपोथिसिस नहीं बनती. इससे पहले कुछ सोचा जाए 40 क़रीब नायक की खसखसी दाढ़ी-तोंद दिख जाती है. एक बारगी यक़ीन नही होता यह वही 'रहना है तेरे दिल में' वाले लवर बॉय माधवन हैं. पूरी series में डार्क शर्ट/ टी- शर्ट या/और लाईट टी-शर्ट पर डार्क स्वेट शर्ट/जैकेट उनके बढ़े वज़न को कम दिखाने का बहाना लगी है. Decoupled याने जोड़े का अ-जोड़ा होना. श्रुति (सुरवीन चावला) महिला सशक्तिकरण पर मुहर लगाती हुई आर्या (आर माधवन) से तलाक़ के पहल में हैं. वह शादी बचाना चाहता है. बीच में बच्ची से युवा होती एक बेटी है. जिसके लिये दोनों ने एक ही घर में को-परेन्ट बनकर रहने का फैसला लिया है. (दूसरे तलाक के बाद लफ्ज़ 'को-परेन्ट' की सार्वजनिक घोषणा करके आमिर खान ने ब्याह से परेशान बहोतों को बीच का रास्ता सुझाया. डीकपल्ड उसी पर चलने की कोशिश है शायद)
अपने इस कांसेप्ट के ज़रिये मनु जोसेफ लोगों से पूछना चाहते हैं तलाक खुशांत क्यों नहीं हो सकते. Destination weddig हो सकती है तो Divorce क्यों नही. sepration दुखी करता है लेकिन इस दुख को grace के साथ क्यों स्वीकार नहीं किया जा सकता. और बजाय एक दूसरे पर लानते, मलामतें भेजने के; दम्पति क्यों नहीं उल्टे सात फेरे लेतें और अंगूठियां उतार एक दूसरे को वापस कर देते.
ऐसा कहां हुआ? कौन करता है ऐसे भला? लेकिन मनु जोसेफ ने हार्दिक मेहता के साथ इसे सच करते हुए डीकपल्ड के ज़रिये तलाक शुदाओं के लिये समाज को लचीला बनाने की कोशिश की है.
पहले एपिसोड में बेस्ट सेलर चेतन भगत और सैकेण्ड बेस्ट सेलर आर्या अय्यर बने माधवन के बीच टॉम ऐण्ड जैरी टाइप आंख-मिचौली है. कहना गलत ना होगा कि माधवन का रोल पूरी सीरीज में जेरी चूहे जैसा है और टॉम, वे तमाम परिस्थितियां हैं जो भारतीय समाज के रहन-सहन, संस्कृति, सम्बन्धों (पति-पत्नी, मां-बाप-बच्चा, सास-ससुर-दामाद, मालिक-नौकर) अमीर का गरीबों की कल्याण भावना में छिपा दंभ, पर्यावरण बचाने की झूठी कोशिशों के प्रसंग में अपना बचाव करती नज़र आती हैं.
हार्दिक मेहता ने व्यंग्य को हास्य में लपेटकर 'पेश किया है' कहने के बजाय फेंक कर मारा है कहना ज़्यादा उपयुक्त होगा (जो लगता तेज है मगर बिना आवाज़ के). हरियाणवी ड्राईवर के माध्यम के भारत की जातीय व्यवस्था पर छौंक लगाया गया है. एक गम्भीर मुद्दे को बिना गम्भीर हुए दिखाने की कुशलता लिये डायरेक्टर थोड़ा गंभीर होते हुए ड्राईवर से कहलवा ही देते है, साब जिसकी जात पता ना हो वो हमेशा फॉरवर्ड कास्ट होता है.
एक दूसरा सीन जिसमें वही ड्राईवर अपनी बेटी के एडमिशन की बात आर्टिस्ट मिस्टर बोस से उनकी पेंटिंग की एक्सीबिशन इवेंट मे करता है. साहब सोबर, बुद्धिमान दिखने के लिये खुली आंख से ध्यान मग्न हैं. दो तीन बार सर की पुकार लगाने के बाद भी जवाब ना मिलने पर भरी महफ़िल में तमाचा दरअसल पूंजीवादियों के मुंह पर गरीब के थप्पड़ सा है. या/ और सरकार के मुंह पर जनता का सा.
चेतन भगत कूल लगने की कोशिश में स्क्रीन पर बीच-बीच में फुदकते हुए बिल्कुल फिज़ूल लगे हैं. हार्दिक मेहता के व्यंग्य की झार ऐसी है कि आप हंसते-हंसते खांसने लगते हैं. खांसते- खांसते सीरियस हो जाते हैं. एक सीन अगर ह्यूमरस है तो दूसरा सीन विटी कटाक्ष. बीच बीच में कुछ डायलॉग्स चिकोटी काटकर निकल जाते हैं. जैसे झल्लाकर बच्ची मां से बोलती है आप आर्या को कभी डेफेन्द नहीं करती. आर्या रोकते हुए कहता है, मेरे जैसे आदमी को हमेशा डेफेन्द करना मुश्किल है. और प्यार में कोई मुश्किल नहीं होनी चाहिये. या/और एव्री हैप्पी मैन हैव वेरी लो स्टैंडर्ड वगैरह.
'आज फिर तुमपे प्यार आया है' से हॉट बॉम्ब हुई सुरवीन यहां शालीनता के साथ ग्रेसफुल लगी हैं. उनकी बिना लाइनर वाली न्यूड आंखें एंजेलिना जोलीके होंठ जितनी सेक्सी हैं. पापा आकाश खुराना मज़ेदार लगे हैं. गुरु अग्नि का हर बात में सेक्स ऐंगल ढूंढ़ निकालना मुझे फादर ऑफ़ साइकोलॉजी सिग्मंड फ्रायड की याद दिलाता है. लेकिन सीरीज की जान (तंदरुस्त मर्द वाला शरीर लिये) क्यूट बॉय माधवन ही रहेंगे.
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