"राज़ी" को देखने की 5 अहम वजहें-
1) एक जासूस के किरदार में आलिया भट्ट्.
2) "तलवार" जैसी बेहतरीन फिल्म बनाने के बाद मेघना गुलज़ार की अगली फिल्म.
3) पीरियड फिल्म वो भी कश्मीर के बैकड्रॉप पर.
4) रियल लाइफ़ स्टोरी हमेशा अपनी तरफ ध्यान खींचती है.
5) हरिंदर सिक्का की किताब "कॉलिंग सेहमत" पर आधारित है फिल्म.
सबसे पहले बात कहानी की
"राज़ी" एक कश्मीरी मुसलमान लड़की "सेहमत" की जिंदगी बयां करती है, जो अपने पिता के कहने से पाकिस्तान के ख़िलाफ जासूस बनती है और सत्तर के दशक में किस तरह से पाकिस्तान की जबरदस्त साज़िश का भांडा फोड़ती है और उसके सारे इरादे नेस्तनाबूद करती है.
"राज़ी" चूंकि असल जिंदगी पर आधारित है तो इस फिल्म में सिनेमेटिक लिबर्टी बहुत कम ली गई है, तो जिस तरीके से सहमत की ट्रेनिंग दिखाई है और एक मामूली लड़की कैसे जासूस बनती है, वो भी सत्तर के दशक में बेहद हैरान करता है. फिल्म की गति कहानी के मिज़ाज के साथ जाती है. मेघना गुलज़ार के डायलॉग्स, भवानी अय्यर और मेघना का लिखा स्क्रीनप्ले, हरिंदर सिक्का की किताब के साथ इंसाफ करता है.
हर वक्त ऐसा महसूस होता है, अब "सेहमत" पकड़ी जायगी, अब क्या होगा? पूरी फिल्म बांधकर रखती है, साथ ही कहीं कहीं आपको जज़्बाती भी करती है.
एक्टिंग के डिपार्टमेंट में बात सबसे पहले आलिया भट्ट् की
आलिया "राज़ी" की जान हैं, धड़कन हैं. उनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है. चाहे बीस साल की मासूम...
"राज़ी" को देखने की 5 अहम वजहें-
1) एक जासूस के किरदार में आलिया भट्ट्.
2) "तलवार" जैसी बेहतरीन फिल्म बनाने के बाद मेघना गुलज़ार की अगली फिल्म.
3) पीरियड फिल्म वो भी कश्मीर के बैकड्रॉप पर.
4) रियल लाइफ़ स्टोरी हमेशा अपनी तरफ ध्यान खींचती है.
5) हरिंदर सिक्का की किताब "कॉलिंग सेहमत" पर आधारित है फिल्म.
सबसे पहले बात कहानी की
"राज़ी" एक कश्मीरी मुसलमान लड़की "सेहमत" की जिंदगी बयां करती है, जो अपने पिता के कहने से पाकिस्तान के ख़िलाफ जासूस बनती है और सत्तर के दशक में किस तरह से पाकिस्तान की जबरदस्त साज़िश का भांडा फोड़ती है और उसके सारे इरादे नेस्तनाबूद करती है.
"राज़ी" चूंकि असल जिंदगी पर आधारित है तो इस फिल्म में सिनेमेटिक लिबर्टी बहुत कम ली गई है, तो जिस तरीके से सहमत की ट्रेनिंग दिखाई है और एक मामूली लड़की कैसे जासूस बनती है, वो भी सत्तर के दशक में बेहद हैरान करता है. फिल्म की गति कहानी के मिज़ाज के साथ जाती है. मेघना गुलज़ार के डायलॉग्स, भवानी अय्यर और मेघना का लिखा स्क्रीनप्ले, हरिंदर सिक्का की किताब के साथ इंसाफ करता है.
हर वक्त ऐसा महसूस होता है, अब "सेहमत" पकड़ी जायगी, अब क्या होगा? पूरी फिल्म बांधकर रखती है, साथ ही कहीं कहीं आपको जज़्बाती भी करती है.
एक्टिंग के डिपार्टमेंट में बात सबसे पहले आलिया भट्ट् की
आलिया "राज़ी" की जान हैं, धड़कन हैं. उनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है. चाहे बीस साल की मासूम लड़की के तौर पर या फिर एक पत्नी या दुश्मन को मात देती जासूस, आलिया के किरदार में जितने भी शेड्स हैं, उन्होंने हर रंग बखूबी निभाया है. जरा सी बात पर चौंकना हो या फूट-फूट कर रोना, हर जज़्बात को महसूस किया है और यही वजह है जो इतनी कम उम्र में वो एक बेहतरीन अदाकारा हैं.
आलिया के बाद जयदीप एहलावत की, आलिया के गुरू के रोल में वो पावरफुल हैं और अपने रोल को बेहद सहजता से निभाते हैं. रजित कपूर आलिया के पिते बने हैं और शिशर शर्मा उनके ससुर बने हैं. दोनों ही कलाकारों ने बेहद इमानदारी से काम किया है, आलिया के पति के किरदार में विक्की कौशल भी तारीफ के काबिल हैं.
संगीत
शंकर एहसान लॉय का संगीत और गुलज़ार साहब के गाने फिल्म की कहानी के साथ जाते हैं. ख़ासतौर से अरिजीत सिंह की आवाज में "ऐ वतन, वतन मेरे आबाद रहे तू, मैं जहां रहूं जहां में याद रहे तू" दिल को छूता है और गाने सिर्फ महज़ गाने नहीं हैं, बल्कि फिल्म में सीन की तरह कहानी को आगे बढ़ाते हैं.जय पटेल की सिनेमेटोग्राफ़ी और नितिन बेड की एडिंटिंग फिल्म का स्तर बढ़ाती है.
अब बात मेघना गुलज़ार के निर्देशन की
आरुषि मर्डर केस पर फिल्म "तलवार" बनाने के बाद मेघना ने एक बार फिर सच्ची घटना पर फिल्म बनाई और इस बार भी वो कामयाब होती हैं. देशभक्ति और बलिदान की कहानी होने के बाद भी वो घिसेपिटे तौर तरीकों से बचीं और एंटरटेनमेंट के साथ सोचने पर मजबूर भी करती हैं कि देश की ख़ातिर लोगों ने कैसे-कैसे बलिदान दिये. फिल्म खत्म होने के बाद भी आपके साथ रहती है और इसका श्रेय मेघना गुलज़ार को जाता है, तो फिल्म देखिये और सोचिये कि एक लड़की थी जिसने सच में ऐसा कारनामा किया जो असंभव लगता है.
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