कहते हैं कि काल के कई रूप होते हैं. वह हर किसी के साथ घुल-मिल जाता है और फिर एक दिन ऐसा होता है कि दुनिया उसे वाकई समझ पाती है कि जो हमारी भाषा बोलता था, हम जैसा ही दिखता था और हमारे साथ रहता था, वह कोई शैतान था, जिसे न मौत की परवाह और न ही जान लेने और देने का ग़म. ऐसा किरदार अगर किसी की जिंदगी में हकीकत बनकर आता है तो मानों वह मौत से रूबरू है. अहमद उमर सईद शेख (Ahmed Omar Saeed Sheikh) भी ऐसा ही शख्स है, जिसे दुनिया कई नामों से जानती है और हजारों लोगों की मौत का गुनहगार मानती है. उमर सईद शेख की कहानी काफी फिल्मी और डरावनी है और इसी से प्रभावित होकर मशहूर निर्देशक हंसल मेहता ने एक फिल्म बनाई है, जिसका नाम है ओमेर्ता. ओमेर्ता इटालियन नाम है, जो सम्मान के तौर पर तब इस्तेमाल किया जाता है, जब कोई आंतकवादी अपनी चुप्पी से खतरनाक मंसूबों की पोल खुलने नहीं देता है. हंसल मेहता की फिल्म ओमेर्ता में राजकुमार राव ने अहमद उमर सईद शेख का किरदार निभाया है, जिसे वह अपने एक्टिंग करियर का सबसे चैलेंजिंग रोल मानते हैं. ओमेर्ता Zee5 पर 25 जुलाई को रिलीज होने वाली है.
किसी आतंकवादी पर फिल्म बनाना बिल्कुल आसान काम नहीं है. आतंकवादियों की तो कोई उपलब्धि होती नहीं, वह तो समाज का दुश्मन होता है, जो सिर्फ जानें ले सकता है और नफरत फैला सकता है. लेकिन पाकिस्तान मूल का ब्रिटिश आतंकवादी उमर सईद शेख एक ऐसा व्यक्तित्व था, जिसमें अच्छाई तो कुछ भी नहीं, पर बुराई इतनी थी और ऐसे-ऐसे रूप में थी कि जो कोई उसके बारे में सुने, वो जरूर बोले कि बंदा कितना टैलेंटेड था, अगर सही जगह इस्तेमाल करता तो बड़ा आदमी बनता. सईद को दुनिया ओसामा बिन लादेन के खास बेटे के रूप में भी जानती है. उमर सईद शेख 6 फूट 2 इंच लंबा कराटेबाज, चेस चैंपियन, शातिर, चालाक, बेहद ज्ञानी, निडर, जिद्दी और मूडी ही नहीं, बल्कि ऐसा व्यक्ति था, जो दुनियाभर में खौफ फैलाना चाहता था. कट्टरपंथ उसमें कूट कूट भरा था. उसे लगता था कि मुस्लिमों को छोड़ गैर मजहबी लोग काफिर होते हैं और उन्हें सजा मिलनी चाहिए. भारत सईद का...
कहते हैं कि काल के कई रूप होते हैं. वह हर किसी के साथ घुल-मिल जाता है और फिर एक दिन ऐसा होता है कि दुनिया उसे वाकई समझ पाती है कि जो हमारी भाषा बोलता था, हम जैसा ही दिखता था और हमारे साथ रहता था, वह कोई शैतान था, जिसे न मौत की परवाह और न ही जान लेने और देने का ग़म. ऐसा किरदार अगर किसी की जिंदगी में हकीकत बनकर आता है तो मानों वह मौत से रूबरू है. अहमद उमर सईद शेख (Ahmed Omar Saeed Sheikh) भी ऐसा ही शख्स है, जिसे दुनिया कई नामों से जानती है और हजारों लोगों की मौत का गुनहगार मानती है. उमर सईद शेख की कहानी काफी फिल्मी और डरावनी है और इसी से प्रभावित होकर मशहूर निर्देशक हंसल मेहता ने एक फिल्म बनाई है, जिसका नाम है ओमेर्ता. ओमेर्ता इटालियन नाम है, जो सम्मान के तौर पर तब इस्तेमाल किया जाता है, जब कोई आंतकवादी अपनी चुप्पी से खतरनाक मंसूबों की पोल खुलने नहीं देता है. हंसल मेहता की फिल्म ओमेर्ता में राजकुमार राव ने अहमद उमर सईद शेख का किरदार निभाया है, जिसे वह अपने एक्टिंग करियर का सबसे चैलेंजिंग रोल मानते हैं. ओमेर्ता Zee5 पर 25 जुलाई को रिलीज होने वाली है.
किसी आतंकवादी पर फिल्म बनाना बिल्कुल आसान काम नहीं है. आतंकवादियों की तो कोई उपलब्धि होती नहीं, वह तो समाज का दुश्मन होता है, जो सिर्फ जानें ले सकता है और नफरत फैला सकता है. लेकिन पाकिस्तान मूल का ब्रिटिश आतंकवादी उमर सईद शेख एक ऐसा व्यक्तित्व था, जिसमें अच्छाई तो कुछ भी नहीं, पर बुराई इतनी थी और ऐसे-ऐसे रूप में थी कि जो कोई उसके बारे में सुने, वो जरूर बोले कि बंदा कितना टैलेंटेड था, अगर सही जगह इस्तेमाल करता तो बड़ा आदमी बनता. सईद को दुनिया ओसामा बिन लादेन के खास बेटे के रूप में भी जानती है. उमर सईद शेख 6 फूट 2 इंच लंबा कराटेबाज, चेस चैंपियन, शातिर, चालाक, बेहद ज्ञानी, निडर, जिद्दी और मूडी ही नहीं, बल्कि ऐसा व्यक्ति था, जो दुनियाभर में खौफ फैलाना चाहता था. कट्टरपंथ उसमें कूट कूट भरा था. उसे लगता था कि मुस्लिमों को छोड़ गैर मजहबी लोग काफिर होते हैं और उन्हें सजा मिलनी चाहिए. भारत सईद का प्राइम टारगेट था और अपने नापाक मंसूबों से उसने भारत के सीने में कई बार खंजर घोंपने की कोशिश की. 47 साल का उमर सईद शेख फिलहाल पाकिस्तान की जेल में कैदी है या कहें सरकारी दामाद बनकर रह रहा है और वहीं से आतंकी गतिविधियों को संचालित करता है.
गुस्सैल, मूडी और तानाशाह जिया उल हक का फैन
अहमद उमर सईद शेख की फैमिली वर्ष 1968 में पाकिस्तान से ब्रिटेन आ गई. वर्ष 1973 में उमर सईद शेख पैदा हुआ. बचपन से ही वह गुस्सैल और हिंसक स्वभाव का था. लंदन के प्रतिष्ठित स्कूल में पला-बढ़ा. स्कूल में भी वह अपने सहपाठियों से झगड़ जाता तो कभी टीचर को पीट देता. 15 साल की उम्र में कुछ समय के लिए वह पाकिस्तान गया और वहां तानाशाह जनरल जिया उल हक का कायल हो गया. यहीं से सईद के मन में इस्लामिक कट्टरता पनपने लगी, जो धीरे-धीरे और बढ़ती गई.
कई भाषाओं का जानकार और शातिर
बाद में सईद लंदन लौटता है और प्रतिष्ठित लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से गणित, सांख्यिकी, अर्थशास्त्र और सामाजिक मनोविज्ञान की शिक्षा आरंभ करता है. अहमद उमर सईद शेख की सबसे खास बात ये थी कि वह हमेशा में पढ़ाई के साथ ही चेस, कराटे और अन्य खेलों में काफी पारंगत था और कई भाषाएं जानता था, जिसमें अंग्रेजी, हिंदी, अरबी, फ्रेंच, उर्दू समेत अन्य हैं. एलएसई में वह कट्टरपंथी समूहों के संपर्क में आता है और वहीं से उसकी जिंदगी बदलती है. वह कट्टरपंथी किताबें पढ़ने लगता है और उसके व्यवहार में भी झलकने लगता है कि वह गैर मुस्लिमों से कितनी नफरत करता है. एक साल के अंदर वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स छोड़कर गायब हो जाता है.
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स छोड़ आतंकवाद के रास्ते
अहमद उमर सईद शेख लंदन छोड़ने के बाद पाकिस्तान जाता है और आतंकी ट्रेनिंग कैंपों में ट्रेनिंग लेने लगता है. इसी दौरान वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के संपर्क में आता है. चूंकि वह ट्रेनिंग के दौरान फील्ड और रणनीति बनाने में भी ज्यादा सक्रिय होता है, इसलिए आकाओं की नजर में जल्दी आ जाता है. अहमद उमर सईद शेख की खास बात ये भी थी कि वह अपने सामने वालों को जल्दी प्रभावित कर लेता था और लोग उसकी जानकारी और रणनीति के कायल हो जाते थे. आतंकी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद अहमद उमर सईद शेख भारत आता है और इससे पहले आईएसआई के अधिकारियों और अपने आकाओं से वादा करता है कि वह भारत को सबक सिखाकर रहेगा. चूंकि भारत और पाकिस्तान के रिश्ते हमेशा से विवादों में रहे हैं, ऐसे में वह भारत को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है.
भारत से आतंकवादी गतिविधि की शुरुआत और अरेस्ट होना
अहमद उमर सईद शेख वर्ष 1993-94 के आसपास भारत आता है और अपने आतंकी मंसूबों को पूरा करने की जुगत में रहता है. वह वर्ष 1994 में भारत में 3 ब्रिटिश नागरिकों और 1 अमेरिकी नागरिक का अपहरण कर लेता है. इससे पहले वह बहुभाषी होने के कारण उनसे दोस्ती करता है और फिर उन्हें किडनैप करता है. हालांकि बाद में वह गाजियाबाद में पकड़ा जाता है और उसे 5 साल कैद की सजा मिलती है. जेल में एक बार तो वह डिप्टी जेलर को ही पीट देता है. जेल में अक्सर वह ऐसी-ऐसी हरकतें करता जैसे कि पागल हो गया हो. मेरठ जेल में वह स्टालिन और हिटलर की बायोग्राफी पढ़ता था और साथी कैदियों के सामने इस्लामिक कट्टरता का गुणगान गाता रहता था. वह अक्सर बोलता रहता था कि गैर मुस्लिम लोगों को जीने का कोई अधिकार नहीं है. जेल में उससे कड़ी पूछताछ हुई, लेकिन उसने कभी मुंह नहीं खोला. अंत में जेलकर्मी भी हार मान गए और उससे जवाब की उम्मीद छोड़ बैठे.
कंधार विमान अपहरण के बाद सईद को छोड़ना पड़ा
साल 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान को आतंकी अगवा कर लेते हैं और उसे लेकर कंधार चले जाते हैं. यात्रियों को छोड़ने के एवज में आतंकी अहमद उमर सईद शेख, मसूद अजहर और मुश्ताक अहमद जरगार को छोड़ने की शर्त रखते हैं. करीब 8 दिन बाद भारत सरकार यात्रियों की जान बचाने की खातिर आतंकियों की शर्त मान जाती है और इन तीनों आतंकी को रिहा कर दिया जाता है. यही तीनों आतंकी आगे चलकर भारत के खिलाफ कई आतंकी साजिश रचते हैं और आतंकी कार्रवाई में सैकड़ों लोगों की जान लेते हैं.
तालिबान की शरण में जाना और ओसामा का खास बनना
भारत से निकलकर अहमद उमर सईद शेख अफगानिस्तान जाता है और उसके बाद पूरी तरह आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हो जाता है. आतंकियों की भर्ती से लेकर प्लानिंग और स्ट्रैटजी के साथ ही हमले को अंजाम देने के अपने तरीके से वह तालिबान के आकाओं को खुश करता जाता है और अंत में ओसामा बिन लादेन का खास बन जाता है. ओसामा बिन लादेन अहमद उमर सईद शेख से काफी प्रभावित होता है और उसे अपने ‘खास बेटे’ की उपाधि देता है. साल 2001 में अमेरिका में हुए सबसे बड़े आतंकी हमले में अहमद उमर सईद शेख बड़ी भूमिका निभाता है और आतंकियों को हरसंभव मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता है. बाद में अमेरिका की नजर अहमद उमर सईद शेख पर पड़ती है और उसकी तलाश शुरू होती है. लेकिन तब तक वह पाकिस्तान आ जाता है और शादी भी कर लेता है. साल 2001 में उसका बेटा पैदा होता है. 9/11 आतंकी हमले जैसा भीषण कृत्य करने के बाद भी वह पाकिस्तान में आराम से घूम रहा होता है.
पाकिस्तान में डेनियल पर्ल की हत्या और सईद की गिरफ्तारी
साल 2002 में आतंकवादी अमेरिका को एक और जख्म देते हैं, जब पाकिस्तान में अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल के जर्नलिस्ट डेनियल पर्ल की गला काटकर हत्या कर दी जाती है. इस मामले में आरोप अहमद उमर सईद शेख पर जाता है और माना जाता है कि उसने ही डेनियल पर्ल की हत्या की. इस घटना के कुछ दिनों बाद अहमद उमर सईद शेख को गिरफ्तार कर लिया जाता है. हालांकि वह दावा करता है कि उसने आईएसआई के सामने सरेंडर किया था. डेनियल पर्ल की हत्या के जुर्म में उसे सजा-ए-मौत मिलती है, लेकिन बाद में पाक की एक अदालत उस फैसले को खारिज कर देती है. फिलहाल अहमद उमर सईद शेख पाकिस्तान की ही जेल में उसका दामाद बनकर बैठा है और अफसरों से खातिरदारी करवा रहा है.
जेल में रहते मुंबई बम धमाकों की प्लानिंग
साल 2008 में मुंबई में सीरियल ब्लास्ट हुए और अजमल कसाब समेत कई आतंकियों ने मुंबई की सड़कों पर लाशें बिछा दी. यह हमला लश्कर-ए-तैयबा समेत अन्य पाकिस्तानी आतंकी संगठनों ने अहमद उमर सईद शेख के साथ प्लान की थी. दरअसल, अहमद उमर सईद शेख भारत में रह चुका था. हालांकि तब से अब तक काफी बदलाव हो चुके थे, लेकिन उसे हमला की योजना बनाने और उसे क्रियान्वित करने में महारत हासिल है. जेल में बैठकर वह आतंकी संगठनों और आईएसआई के साथ मिलकर आतंक का कारोबार करता है.
हंसल मेहता का सईद पर फिल्म बनाना जोखिम भरा फैसला
ऐसे आतंकवादी पर आधारित फिल्म बनाना काफी जोखिम भरा काम है, लेकिन जब हंसल मेहता के पास मुकुल देव यह स्टोरी लेकर गए तो हंसल मेहता ने यह जोखिम उठाने का फैसला किया और राजकुमार राव को लेकर यह फिल्म बना डाली. ओमेर्ता की दुनियाभर के फिल्म फेस्टिवल में काफी सराहना हुई और जब यह साल 2018 में भारत में रिलीज हुई तो बुरी तरह पिट गई. हंसल मेहता को इस फिल्म से काफी नुकसान हुआ, लेकिन उन्होंने एक दुर्दांत आतंकी के ऊपर ऐसी फिल्म बना डाली, जिसमें सिर्फ और सिर्फ ये बताने की कोशिश की गई है कि कट्टरता सिर्फ अनपढ़ लोगों में नहीं पनपती, बल्कि लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स या दुनिया के और प्रतिष्ठित संस्थानों में पढ़ने वाले काबिल छात्र भी कुछ कट्टर लोगों के संपर्क में आकर या किसी धर्म विशेष की गलत व्याख्या करती किताब पढ़कर कट्टरपंथ के रास्ते पर जा सकते हैं. और अपने शातिर दिमाग से दुनिया में आतंकवाद फैलाने के साथ ही मासूमों की जान भी ले सकते हैं. हंसल मेहता की फिल्म ओमेर्ता में कहीं भी अहमद उमर सईद शेख का महिमामंडन नहीं किया गया है और न ही आतंकवादी गतिविधियों को एकतरफा नजरों से देखा गया है. दुनिया इसी अहमद उमर सईद शेख के बारे में अब ओमेर्ता फिल्म में देखेगी, जो कि Zee5 पर 25 जुलाई को रिलीज हो रही है.
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