Raktanchal Review : एक वक्त था जब बॉलीवुड (Bollywood) अपने लटके झटकों और नाच गाने के लिए मशहूर था. हीरो, हिरोइन के साथ रोमांस करता. उसका विलेन से मुकाबला होता. वो लड़ाई जीतता और हैप्पी एंडिंग के साथ सिनेमा का सफ़ेद पर्दा सियाह हो जाता. ऐसा बॉलीवुड में कई सालों तक चला फिर एक वक्त वो भी आया जब दर्शकों को ये सब नकली लगने लग गया और उसे वो फिल्में पसंद आने लगीं जिन्हें "पैरेलल सिनेमा' के नाम पर बनाया गया. इन फिल्मों में ग्लैमर नाम मात्र का और इनका हीरो हमारे बीच का होता था. दर्शकों का टेस्ट कभी एक जैसा नहीं रहा है. इसलिए बात अगर वर्तमान की हो तो अब दौर क्राइम थ्रिलर का है. दर्शक उन्हीं फिल्मों और वेब सीरीज को पसंद कर रहे हैं जिसमें दो गुट हैं. बाहुबल है. वर्चस्व है. बम, बंदूक, कट्टे हैं. खून खराबा है. मारधाड़ है, मौत है. ध्यान रहे कि, अभी अमेज़न प्राइम (Amazon Prime) पर प्रोड्यूसर अनुष्का शर्मा की वेब सीरीज पाताल लोक (Paatallok) को आए हुए चंद दिन ही हुए हैं. ऐसे में अब एम एक्स प्लेयर (MX Player) पर शुरू हुई नई वेब सीरीज रक्तांचल (Raktanchal) में वही सब दिखाया गया है जो आज का दर्शक देखना चाहता है. 9 एपिसोड या ये कहें कि 4.5 घंटे की इस सीरीज में हर वो एलिमेंट है जिसे अपनी स्क्रीन पर देखकर दर्शकों की आंखें फटी की फटी रह जाएंगी.
एमएक्स प्लेयर पर शुरू हुई डायरेक्टर रिमल श्रीवास्तव द्वारा निर्देशित रक्तांचल, 80 के दशक के उस पूर्वांचल की कहानी है. जहां हमेशा ही लड़ाई बाहुबल के लिए और अपने को दूसरे के सामने श्रेष्ठ साबित करने के लिए लड़ी गई है. सीरीज में दिखाया गया है कि कैसे अपने जुनून के चलते एक साधारण सा क्रिमिनल बाहुबली बनता है. अपनी अपोजिट पार्टी से टक्कर लेता है और शासन प्रशासन...
Raktanchal Review : एक वक्त था जब बॉलीवुड (Bollywood) अपने लटके झटकों और नाच गाने के लिए मशहूर था. हीरो, हिरोइन के साथ रोमांस करता. उसका विलेन से मुकाबला होता. वो लड़ाई जीतता और हैप्पी एंडिंग के साथ सिनेमा का सफ़ेद पर्दा सियाह हो जाता. ऐसा बॉलीवुड में कई सालों तक चला फिर एक वक्त वो भी आया जब दर्शकों को ये सब नकली लगने लग गया और उसे वो फिल्में पसंद आने लगीं जिन्हें "पैरेलल सिनेमा' के नाम पर बनाया गया. इन फिल्मों में ग्लैमर नाम मात्र का और इनका हीरो हमारे बीच का होता था. दर्शकों का टेस्ट कभी एक जैसा नहीं रहा है. इसलिए बात अगर वर्तमान की हो तो अब दौर क्राइम थ्रिलर का है. दर्शक उन्हीं फिल्मों और वेब सीरीज को पसंद कर रहे हैं जिसमें दो गुट हैं. बाहुबल है. वर्चस्व है. बम, बंदूक, कट्टे हैं. खून खराबा है. मारधाड़ है, मौत है. ध्यान रहे कि, अभी अमेज़न प्राइम (Amazon Prime) पर प्रोड्यूसर अनुष्का शर्मा की वेब सीरीज पाताल लोक (Paatallok) को आए हुए चंद दिन ही हुए हैं. ऐसे में अब एम एक्स प्लेयर (MX Player) पर शुरू हुई नई वेब सीरीज रक्तांचल (Raktanchal) में वही सब दिखाया गया है जो आज का दर्शक देखना चाहता है. 9 एपिसोड या ये कहें कि 4.5 घंटे की इस सीरीज में हर वो एलिमेंट है जिसे अपनी स्क्रीन पर देखकर दर्शकों की आंखें फटी की फटी रह जाएंगी.
एमएक्स प्लेयर पर शुरू हुई डायरेक्टर रिमल श्रीवास्तव द्वारा निर्देशित रक्तांचल, 80 के दशक के उस पूर्वांचल की कहानी है. जहां हमेशा ही लड़ाई बाहुबल के लिए और अपने को दूसरे के सामने श्रेष्ठ साबित करने के लिए लड़ी गई है. सीरीज में दिखाया गया है कि कैसे अपने जुनून के चलते एक साधारण सा क्रिमिनल बाहुबली बनता है. अपनी अपोजिट पार्टी से टक्कर लेता है और शासन प्रशासन को कड़ी चुनौती देता है.
गुमनाम कलाकारों का रक्तांचल
जब एक निर्देशक क्राइम थ्रिलर बना रहा हो तो जो सबसे अहम पहलू होता है वो है कलाकारों का चयन. निर्देशक का यही प्रयास रहता है कि वो अपने काम के लिए उन लोगों का चुनाव करे जिन्हें पर्दे पर अपना जलवा बिखेरते कम ही लोगों ने देखा है. इस मामले में रक्तांचल के निर्देशक रिमल श्रीवास्तव को 10 से से 10 तो नहीं आ मगर 10 में से 9 नंबर ज़रूर दिए जा सकते हैं.
अपनी इस सीरीज के लिए रिमल ने निकितिन धीर, क्रांति प्रकाश झा,रंजिनी चक्रबर्ती, प्रमोद पाठक, विक्रम कोच्चर, सौंदर्य शर्मा जैसे लोगों को मौका दिया जिन्होंने उस मौके का पूरा फायदा उठाया.
एम एक्स प्लेयर पर शुरू हुई रक्तांचल 'निकितिन धीर' और क्रांति प्रकाश झा के बीच पूर्वांचल में वर्चस्व की लड़ाई पर आधारित है. इसलिए इन दोनों ही कलाकरों ने भी मेहनत की है और अपनी तरफ से 100 में से 100 नम्बर पाने वाली परफॉरमेंस दी है. बाकी कहा गया है कि सिनेमा में मिथक होते हैं कहीं न कहीं ये बात 'रक्तांचल' भी साबित करती है.
कहानी मुख्तार अंसारी और ब्रजेश सिंह के गैंगवार से मिलती जुलती
जैसा कि बताया जा चुका है वेब सीरीज की कहानी पूर्वांचल के बाहुबलियों के गैंगवार से जुड़ी हुई. लेकिन यह भी बताना जरूरी है कि इसका काफी हिस्सा बाहुुुुबली नेता मुख्तार अंसारी और ब्रजेश सिंह के बीच हुई गैंगवार से काफी कुछ मिलती जुलती है. रक्तांचल का बैकग्राउंड भी वही है, और इलाका भी वही. हर एपिसोड के ओपनिंग सीन के साथ ही लिखा हुआ आ भी जाता है- Inspired by true events (सत्य घटनाओं सेे प्रेरित). इसमें 1980 का पूर्वांचल दिखाया गया है. निकितिन धीर वसीम खान की भूमिका में हैं. जो हर तरह का ठेका हासिल करने के लिए अपनी तरफ से सभी तरह के साम-दाम-दंड-भेद एक करता है.
यहीं एंट्री होती है क्रांति प्रकाश झा की जिसे बाहुबली बनना है और पूरे पूर्वांचल और उसके अपराध जगत पर अपना सिक्का चमकाना है. सीरीज के 9 एपिसोड्स में कट्टा, बम, वर्चस्व, बाहुबल, गैंगवार, राजनीति जैसे वो तमाम एलिमेंट्स हैं. जो एक के बाद दूसरा एपिसोड देखने पर विवश करती है और रोमांच इतना है कि एक दर्शक के रूप में हमें पता ही नहीं चलता कि हमारे 4.5 घंटे कहां गए.
कैसा रहा निर्देशन और एक्टिंग
सीरीज का हर एपिसोड एक नया रोमांच और सिरहन पैदा करता है. इसलिए इस बात की पुष्टि हो जाती है कि निर्देशक की तरफ से मेहनत हुई है और उन्होंने अपना बेस्ट देने की पूरी कोशिश की है.
सीरीज में नीतिकीन धीर और क्रांति प्रकाश झा ने वही काम किया है जिसकी उम्मीद निर्देशक ने उनसे की थी. वहीं जिक्र अगर सपोर्टिंग कास्ट का हो तो ये लोग भी अपने काम के साथ पूरा इंसाफ करते नजर आए हैं.
किसी भी कहानी की जान उसके संवाद होते हैं इसलिए रक्तांचल को यदि हम इस पहलू पर तौलें तो जितने भी संवाद हैं वो प्रभावी हैं और उस पूर्वांचल की झलकियां पर्दे पर दिखाते हैं जो 80 में हुआ करता था.
तकनीकी पहलू ने किया सोने पर सुहागा
एक निर्देशक जब भी क्राइम थ्रिलर बना रहा हो, उसके लिए यह बहुत जरूरी होता है की वह हर उस दृश्य को दिखाए जो कहानी की डिमांड होती है. रक्तांचल के मामले में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला है.
क्योंकि कहानी गैंगवार पर है. माफियाओं पर है और बदलते हुए पूर्वांचल पर है इसलिए इसे जिस तरह शूट किया गया है उसे कहानी की जान माना जा सकता है. चाहे कैमरा वर्क हो या फिर एडिटिंग या फिर दृश्यों का फिल्मांकन रक्तांचल को शूट करते हुए बारीक से बारीक बातों का ख्याल रखा गया है.
इसलिए कहा जा सकता है कि रक्तआंचल का तकनीकी पहलू इसे एक दशक के लिए देखने योग्य बनाता है. जिस तरह से से इसे शूट किया गया है कहीं से भी आपको बोरियत का एहसास नहीं होगा. यानी सीरीज का तकनीकी पहलू आइसिंग ऑन द केक है.
कहां रह गई कमियां
यूं तो निर्देशक ने इस सीरीज को वास्तविक बनाने के लिए सभी बातों पर गौर किया. मगर क्योंकि हर चीज परफेक्ट नहीं होती. ऐसा एम एक्स प्लेयर पर आई इस वेब सीरीज के मामले में भी हुआ है. हिंदी वेब सीरीज की अपनी एक समस्या है.
निर्देशक को लगता है कि संवादों के बीच में आप गालियों का इस्तेमाल कर लीजिए आप हिट हो जाएंगे और आपकी सीरीज वास्तविक दिखेगी लेकिन हकीकत ऐसी नहीं है. तमाम एपिसोड देखते हुएकई ऐसे मौके आएंगे जहां आपको महसूस होगा की दृश्य को प्रभावी दिखाने के लिए गालियों का बेवजह इस्तेमाल किया जा रहा है.
इसके अलावा जैसा कलाकारों का चयन हुआ है और अब तक लोगों ने उन्हें जाना नहीं है, इसे भी एक बड़ी कमी माना जा सकता है. कुल मिलाकर रक्तांचल में मेहमत और हो सकती थी.
तो फिर देखा जाए या नहीं
यह अपने आप में एक मुश्किल सवाल है. जैसा बॉलीवुड या सिनेमा का ट्रेंड रहा है हम अब तक ऐसा बहुत कुछ देख चुके हैं जिसने हमें भरपूर मनोरंजन दिया है. चाहे पाताल लोक हो या फिर मिर्जापुर और गैंग्स ऑफ वासेपुर. हम पूर्वांचल को देख चुके हैं. साथ ही हम यह भी देख चुके हैं कि कैसे वहां दबंगई और बदमाशी होती है. तो अगर आपको अब भी पूर्वांचल को जानना समझना है और क्राइम थ्रिलर में आपका इंटरेस्ट है आपको इसे ज़रूर देखना चाहिए.
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