हिंदुस्तान में आधुनिकता की चाहे जितनी तेज बयार बह रही हो, लेकिन समाज में आज भी संस्कृति और सभ्यता मौजूद है. यहां परिवार की एक अवधारणा है, जिसमें हर रिश्ते की इज्जत है. अपवाद हर जगह होते हैं. ऐसे में यहां भी कुछ लोग अपवाद मिल सकते हैं. लेकिन समवेत रूप में देखा जाए तो रिश्तों की मर्यादा हमारे समाज में बरकरार है. लेकिन कुछ लोग सिनेमा में रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर मनगंढ़त कहानियां पेश कर रहे हैं. विदेशी संस्कृति को भारतीय समाज में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं. जो स्वीकार नहीं होनी चाहिए. इसका विरोध किया जाना चाहिए. ऐसे सिनेमा बनाने वालों को बहिष्कार किया जाना चाहिए. जैसा कि इनदिनों बॉलीवुड का हो रहा है. नेटफ्लिक्स पर इस वक्त एक वेब सीरीज 'राणा नायडू' स्ट्रीम हो रही है. इसमें एक टूटे हुए परिवार के संघर्ष करते रिश्तों की कहानी दिखाई गई है, जिसमें अश्लीलता चरम पर है.
वेब सीरीज 'राणा नायडू' में साउथ सिनेमा के दो बड़े सितारे राणा दग्गुबाती और वेंकटेश लीड रोल में हैं. हिंदी पट्टी के दर्शकों ने वेंकटेश को पहली बार फिल्म 'अनाड़ी' (1993) में देखा था. आज भी उनका नाम आने पर इस फिल्म का सबसे पहले ध्यान आता है. इसमें करिश्मा कपूर के साथ उनके सीधे साधे, शर्माते सकुचाते किरादर को हर किसी ने पसंद किया था. लेकिन लंबे समय बाद जब वो हिंदी दर्शकों को दिखाई दिए, तो अपनी छवि से बिल्कुल उलट किरदार में नजर आए. इस वेब सीरीज में उन्होंने एक गैंगस्टर का किरदार किया है, जो बेहद क्रूर, अय्य़ाश और नशेड़ी है. फिल्म 'बाहुबली' के जरिए अपनी पैन इंडिया पहचान बनाने वाले राणा दग्गुबाती ने उनके बेटे का किरदार किया है. वो बहुत बड़ा फिक्सर है. सियासत से लेकर सिनेमा तक के गलियारों में उसका रसूख है. उसके बारे में कहा जाता है, 'यदि राणा जुड़ा है, तो समझो कि स्कैंडल बड़ा है.'
राणा दग्गुबाती और वेंकटेश की बहुप्रतीक्षित वेब सीरीज 'राणा नायडू' नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है.
इस वेब सीरीज का जब ट्रेलर रिलीज हुआ, तो लगा कि फैमिली ड्रामा होगा, जिसमें क्राइम थ्रिलर का तड़का दिया गया होगा. इसके साथ ही जबरदस्त एक्शन भी देखने को मिला था, लेकिन सीरीज रिलीज होने के बाद तो उम्मीदों पर पानी फिर चुका है. इसे सीरीज के नाम पर सेमी पोर्न फिल्म बना दिया गया है. वो भी ऐसी पोर्न फिल्म जिसमें गे, लेस्बियन से लेकर हर तरह का सेक्स दिखाया गया है. शराब और ड्रग्स लेकर हर तरह का नशा इस तरह पेश किया गया है, जैसे कि लोग खुलेआम करते हुए घूमते हैं. यहां तक कि अच्छे परिवार के छोटे-छोटे बच्चों को भी शराब पीते दिखाया गया है, जिसके बारे में वास्तविक जीवन में कल्पना भी नहीं की जा सकती है. माना कि एक बेटा अपने पिता से और पिता अपने बेटे से किसी वजह से नफरत कर सकता है, लेकिन इस रिश्ते में दोनों में से कोई एक-दूसरे को हर वक्त गाली नहीं दे सकता. इसी तरह एक शख्स अय्याश हो सकता है, लेकिन वो अपनी कैंसर से मरती हुई पत्नी और छोटे बच्चों के सामने वेश्या लाकर शारीरिक संबंध नहीं बना सकता. ऐसा कम से कम भारत में तो नहीं होता.
लॉजिक से परे इस वेब सीरीज में ऐसी बहुत सी चीजें पेश की गई हैं, जो कि भारतीय परिवेश में कहीं से भी संभव नहीं है. चूंकि 'राणा नायडू' अमेरिकी सीरीज 'रे डोनोवन' का इंडियन अडॉप्टेशन है, ऐसे में मेकर्स ने एक विदेशी कहानी को भारतीय पृष्ठभूमि पर स्थापित करने की कोशिश में ये गलतियां की हैं. इस सीरीज के अडॉप्टेशन का काम कर्मण्य आहूजा, अनन्य मोदी, बी वी एस रवि, वैभव विशाल और करण अंशुमान ने किया है, लेकिन इतनी लंबी चौड़ी टीम इसका भारतीयकरण में असफल साबित दिख रही है. सुपर्ण वर्मा और करण अंशुमन ने इस सीरीज का निर्देशन किया है. ये दोनों भी अपने काम को ईमानदारी से अंजाम नहीं दे पाए हैं. ये अच्छी कहानी को ओटीटी का फ्लेवर देने के चक्कर में अश्लीलता, शराब और ड्रग्स की इतनी ओवरडोज दे दी गई है कि सीरीज सुस्त और बेकार बन गई है. इसमें राणा दग्गुबाती और वेंकटेश के साथ सुरवीन चावला, सुशांत सिंह, अभिषेक बनर्जी, सुचित्रा पिल्लई, गौरव चोपड़ा, आशीष विद्यार्थी और राजेश जय अहम रोल में हैं. ये सभी कलाकार बहुत ही प्रतिभाशाली हैं, लेकिन इस सीरीज में उनकी प्रतिभा नजर नहीं आई है.
सबसे ज्यादा हैरानी तो सुशांत सिंह और अभिषेक बनर्जी को देखकर हुई. दोनों को ऐसा किरदार दिया गया है, जिसके लिए ये दोनों बने ही नहीं है. अभिषेक बनर्जी का किरादर जाफा हर वक्त दबा हुआ सा नजर आता है. सही मायने में कहा जाए तो इंजीनियरों की फौज एकत्र करके उनसे मजदूरों का काम लिया गया है. इसके लिए सुपर्ण वर्मा और करण अंशुमन सबसे बड़े दोषी हैं. इसमें यदि कोई चीज अच्छी दिखती है, तो वो इसकी प्रोडक्शन क्वालिटी, सिनेमैटोग्राफी और बैकग्राउंड स्कोर है. जया कृष्णा गुम्मदी की सिनेमैटोग्राफी शानदार है. उन्होंने डार्क और वॉर्म टोन का इस्तेमाल किया है जो कैरेक्टर्स के अंदर चल रहे तनाव को दर्शाता है. जया का साथ निनंद खनोलकर और मनन अश्विन मेहता ने बखूबी दिया है. कुल मिलाकर, एक फैमिली ड्रामा को भारतीय संवेदनाओं के अनुकूल बनाने की पूरी कोशिश की गई है, लेकिन सफलता नहीं मिली है. इसका इंडियन अडॉप्टेशन निराश करता है. इस सीरीज को केवल एडल्ट ही देख सकते हैं, वो भी मोबाइल पर ईयरफोन लगाकर. इस ना देखें तो ज्यादा अच्छा है. क्योंकि ये भारत के लोगों के लिए नहीं है.
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