देश के प्रथम विश्वकप क्रिकेट जीत की भव्य कहानी "83" बनकर तैयार है. कोरोना महामारी की दो लहरों ने फिल्म की रिलीज पर बुरा असर डाला. इस बीच ओटीटी पर एक्सक्लूसिव स्ट्रीमिंग की चर्चाएं तक हुईं. हालांकि मेकर्स ने इसे सिनेमाघरों में ही रिलीज करने का फैसला लिया. टीम इंडिया के पहले विश्वकप जीत के शिल्पकार कप्तान कपिल देव की कहानी जादुई कहानी क्रिसमस वीक में 24 दिसंबर कपो रिलीज हो रही है. यह एक प्रेरक कहानी नजर आ रही है जिसे क्रिकेट पसंद और नापसंद करने वाले दोनों तरह के दर्शक देखना चाहेंगे. कबीर खान के निर्देशन में बनी 83 में बहुत सारी यूएसपी हैं. पहली बार दर्शक एक ऐतिहासिक क्षण से सिनेमाई परदे के जरिए रूबरू होंगे.
आइए फिल्म की पांच बड़ी चीजों पर बात करते हैं:-
#1. कपिल देव की रिकॉर्डतोड़ कप्तानी पारी
कपिलदेव को भारतीय टीम का पहला शुद्ध तेज गेंदबाज माना जाता है. एक सीमर के साथ ही उम्दा बल्लेबाज के रूप में भी उनकी गिनती होती थी. 1983 के क्रिकेट विश्वकप में जब कपिल देव को कप्तानी दी गई थी तब उनकी उम्र बहुत ज्यादा नहीं थी. उस विश्वकप में कपिल देव ने कप्तान से अलग एक खिलाड़ी के तौर पर भी गेंद और बैट से उम्दा प्रदर्शन किया था. इसी टूर्नामेंट में उन्होंने दिवसीय मैचों में ना सिर्फ अपने जीवन बल्कि क्रिकेट के इतिहास की भी एक सर्वश्रेष्ठ पारी खेली थी. कपिल देव ने बेहद मुश्किल हालात में टीम इंडिया का मोर्चा संभाला था. इग्लैंड के टेंटब्रिज स्टेडियम जिम्बाब्वे के खिलाफ 17 रनों भारत के 5 विकेट जा चुके थे. टॉप ऑर्डर बुरी तरह ध्वस्त हो चुका था और भारत पर जिम्बाब्वे जैसी टीम के खिलाफ शर्मनाक हार का खतरा मंडरा रहा था. ऐसे ही क्षण में कपिल बैटिंग के लिए उतरे थे. उन्होंने 138 गेंदों में 175 रनों की ताबड़तोड़ पारी खेली थी. वे अंततक आउट नहीं हुए.
देश के प्रथम विश्वकप क्रिकेट जीत की भव्य कहानी "83" बनकर तैयार है. कोरोना महामारी की दो लहरों ने फिल्म की रिलीज पर बुरा असर डाला. इस बीच ओटीटी पर एक्सक्लूसिव स्ट्रीमिंग की चर्चाएं तक हुईं. हालांकि मेकर्स ने इसे सिनेमाघरों में ही रिलीज करने का फैसला लिया. टीम इंडिया के पहले विश्वकप जीत के शिल्पकार कप्तान कपिल देव की कहानी जादुई कहानी क्रिसमस वीक में 24 दिसंबर कपो रिलीज हो रही है. यह एक प्रेरक कहानी नजर आ रही है जिसे क्रिकेट पसंद और नापसंद करने वाले दोनों तरह के दर्शक देखना चाहेंगे. कबीर खान के निर्देशन में बनी 83 में बहुत सारी यूएसपी हैं. पहली बार दर्शक एक ऐतिहासिक क्षण से सिनेमाई परदे के जरिए रूबरू होंगे.
आइए फिल्म की पांच बड़ी चीजों पर बात करते हैं:-
#1. कपिल देव की रिकॉर्डतोड़ कप्तानी पारी
कपिलदेव को भारतीय टीम का पहला शुद्ध तेज गेंदबाज माना जाता है. एक सीमर के साथ ही उम्दा बल्लेबाज के रूप में भी उनकी गिनती होती थी. 1983 के क्रिकेट विश्वकप में जब कपिल देव को कप्तानी दी गई थी तब उनकी उम्र बहुत ज्यादा नहीं थी. उस विश्वकप में कपिल देव ने कप्तान से अलग एक खिलाड़ी के तौर पर भी गेंद और बैट से उम्दा प्रदर्शन किया था. इसी टूर्नामेंट में उन्होंने दिवसीय मैचों में ना सिर्फ अपने जीवन बल्कि क्रिकेट के इतिहास की भी एक सर्वश्रेष्ठ पारी खेली थी. कपिल देव ने बेहद मुश्किल हालात में टीम इंडिया का मोर्चा संभाला था. इग्लैंड के टेंटब्रिज स्टेडियम जिम्बाब्वे के खिलाफ 17 रनों भारत के 5 विकेट जा चुके थे. टॉप ऑर्डर बुरी तरह ध्वस्त हो चुका था और भारत पर जिम्बाब्वे जैसी टीम के खिलाफ शर्मनाक हार का खतरा मंडरा रहा था. ऐसे ही क्षण में कपिल बैटिंग के लिए उतरे थे. उन्होंने 138 गेंदों में 175 रनों की ताबड़तोड़ पारी खेली थी. वे अंततक आउट नहीं हुए.
दुर्भाग्य से इस मैच का फुटेज रिकॉर्ड नहीं हो पाया और महानतम बल्लेबाजी का नमूना देखने से मरहूम रह गई. कपिल की यह व्यक्तिगत पारी कई सालों तक क्रिकेट की रिकॉर्डबुक में चमचमाती रही. चूंकि 83 भारत की विश्वकप जीत के साथ साथ कपिल की जादुई कहानी भी है ऐसे में जिम्बाब्वे के खिलाफ उनकी पारी को फिल्म में प्रमुखता से दिखाया गया है. क्रिकेट प्रशंसकों के लिए 83 फिल्म मैच के रीकैप की तरह हो सकता है. जादुई पारी के अहम लम्हों को परदे पर देखने का रोमांच दिलचस्प होगा.
#2. फिसड्डी रहे भारत ने सबसे दिग्गज टीम को हराया कैसे?
83 जिस दौर की कहानी है उसमें टीम लेवल पर भारतीय क्रिकेट की बहुत बड़ी उपलब्धियां नजर नहीं आतीं. ये दूसरी बात है कि अलग अलग दौर में तमाम खिलाड़ियों की व्यक्तिगत उपलब्धियां जरूर ऐसी थीं कि विश्व क्रिकेट उसे नजरअंदाज नहीं कर सकता था. विदेशी मैदानों पर रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं था. एक दिवसीय क्रिकेट में टीम इंडिया की हालत और खराब थी. विश्व क्रिकेट में वेस्टइंडीज, इग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमों का सिक्का था. यहां तक कि पाकिस्तान भी भारतीय टीम से मजबूत नजर आती थी. पाकिस्तान का पेस अटैक लाजवाब था.
1983 से पहले तक दो बार विश्वकप हो चुके थे. दोनों बार वेस्टइंडीज चैम्पियन बना था. भारत की हालत का पता ऐसे भी लगा सकते हैं कि पहले के दोनों विश्वकप में छह मैच खेल कर टीम ने सिर्फ एक में जीत हासिल की थी. ग्रुप स्टेज से ही शर्मिंदा होकर लौटना पड़ा था. 1983 वेस्टइंडीज के पास खतरनाक तेज गेंदबाजों की फ़ौज थी जिसके आगे दुनियाभर के नामी बल्लेबाज पानी भरते थे. किसी भी गेंदबाज की धज्जियां उड़ाने में सक्षम ताबड़तोड़ बल्लेबाजों का जलवा था. खिताब जीतने की बात तो दूर भारत के प्रदर्शन को देखते कोई यह भी नहीं मान रहा था कि कपिल की ग्रुप स्टेज पार कर क्वार्टर फाइनल तक भी पहुंच पाएगी.
लेकिन 83 में अपेक्षाकृत बेहद युवा टीम ने जो किया वह आज भी करिश्मा और जादू की तरह नजर आता है. टीम ने एक पर एक बाधाओं को पार करते हुए उस वक्त की सबसे खतरनाक और मजबूत टीम को धराशायी कर दिया. उस एक जीत ने भारतीय क्रिकेट की तस्वीर बदल दी और आज की तारीख में भारत क्रिकेट का बादशाह है. 1983 में एक फिसड्डी टीम ने यह करिश्मा कैसे किया था, कबीर खान की फिल्म में देखने को मिल सकता है.
#3. स्पोर्ट्स ड्रामा में पहली बार ऑफ़ स्क्रीन रियल जोड़ी का साथ
निश्चित ही 83 की एक ख़ास बात उसकी स्टारकास्ट में है. रणवीर सिंह ने कपिल देव की भूमिका निभाई है. उनका लुक और टोन आकर्षक दिख रहा है. कपिल की पत्नी की भूमिका में दीपिका पादुकोण हैं. दोनों के रिश्ते रियल लाइफ में भी पति-पत्नी के हैं. स्पोर्ट्स ड्रामा में जोड़ी के काम को देखना बढ़िया अनुभव होगा. रणवीर-दीपिका के अलावा पंकज त्रिपाठी, ताहिर राज भसीन, जीवा, साकिब खान, जतिन सरना, चिराग पाटिल, हार्डी संधू, वोमन ईरानी, एम्मी विर्क जैसे दर्जनों कलाकार अहम भूमिकाओं में हैं. एक ही फिल्म में उम्दा कलाकारों को एक साथ देखना भी अलग अनुभव होगा.
#4. कबीर खान की अपनी स्टाइल
कबीर खान की अपनी स्टाइल है. वे रौ में कहानियां कहने के लिए मशहूर हैं. भावुक करने वाले दृश्य बनाते हैं और दर्शकों को कहानी के साथ जकड कर रखते हैं. न्यूयॉर्क, एक था टाइगर, बजरंगी भाईजान उनकी ब्लॉकबस्टर कहानियां हैं जो अपनी ग्रिपिंग के लिए भी याद की जाती हैं. 83 तो पूरी तरह से इमोशन से भरपूर फिल्म है जिसमें हर क्षण जोश, प्रेम, उन्माद और भावुकता की गुंजाइश बनी रहेगी. 83 में कबीर खान से एक बेहतर मनोरंजक कहानी की उम्मीद कर सकते हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.