एक नई फ़िल्म आने वाली है 'रावण लीला'. उसका ट्रेलर देखा. ट्रेलर के अंत में रावण की भूमिका निभा रहा क़िरदार राम से कहता है, 'एक बात बताइए, माना कि मैंने सीता का हरण किया, लेकिन आपने भी तो मेरी बहन की नाक काटी, इस पूरे युद्ध में मेरे वंश का नाश हुआ, भाई-पुत्र भी मेरे मरे, मैं भी मरा फिर आपकी जय-जयकार क्यों होती है?' इस पर राम का क़िरदार निभा रहा व्यक्ति कहता है, 'क्योंकि मैं भगवान हूं'. जिसने भी यह डायलॉग लिखा है निहायत ही कुंठित व्यक्ति है. अव्वल तो बुद्धिजीवी राम के अस्तित्व को मानते नहीं तो उस हिसाब से यदि राम को मात्र कथा ही मानें तो राम-रावण की हर कथा में बताया गया है कि रावण ने मात्र सीता का हरण नहीं किया बल्कि बलात उसे अपने साथ रखने की कोशिश भी की थी. और सिर्फ सीता नहीं बल्कि उसने अन्य कई राजाओं को जीतने के बाद उनकी स्त्रियों को अपने साथ रखा था.
राम कथा में बताया गया है कि वन में राम-लक्ष्मण जब रहे तो सूर्पणखा राम पर मोहित हो गईं. उसने राम को पाना चाहा और अपनी महानता के गुण गाए. तब राम ने कहा कि उनके जीवन में एक ही स्त्री रह सकती है और वह सीता हैं, वे सिर्फ सीता से प्रेम करते हैं. इसके बाद सूर्पणखा ने लक्ष्मण से कहा कि आप तो अकेले हैं, मैं राम न सही राम के भाई के साथ रहकर उनके निकट तो रह ही सकती हूं.
इस पर लक्ष्मण ने भी उन्हें दुत्कार दिया कि मेरी पत्नी भले अयोध्या में हों लेकिन मैं सिर्फ उन्हीं से प्रेम करता हूं और जब तक उनके साथ नहीं तब तक ब्रह्मचर्य का पालन कर रहा हूं. इससे आहत होकर सूर्पणखा ने न सिर्फ सीता को तुच्छ बताया बल्कि उन्हें मारने की भी कोशिश की, अपनी तरफ़ से हमले भी किए. इसकी प्रतिक्रिया में राम-लक्ष्मण द्वारा सूर्पणखा के नाक काटे...
एक नई फ़िल्म आने वाली है 'रावण लीला'. उसका ट्रेलर देखा. ट्रेलर के अंत में रावण की भूमिका निभा रहा क़िरदार राम से कहता है, 'एक बात बताइए, माना कि मैंने सीता का हरण किया, लेकिन आपने भी तो मेरी बहन की नाक काटी, इस पूरे युद्ध में मेरे वंश का नाश हुआ, भाई-पुत्र भी मेरे मरे, मैं भी मरा फिर आपकी जय-जयकार क्यों होती है?' इस पर राम का क़िरदार निभा रहा व्यक्ति कहता है, 'क्योंकि मैं भगवान हूं'. जिसने भी यह डायलॉग लिखा है निहायत ही कुंठित व्यक्ति है. अव्वल तो बुद्धिजीवी राम के अस्तित्व को मानते नहीं तो उस हिसाब से यदि राम को मात्र कथा ही मानें तो राम-रावण की हर कथा में बताया गया है कि रावण ने मात्र सीता का हरण नहीं किया बल्कि बलात उसे अपने साथ रखने की कोशिश भी की थी. और सिर्फ सीता नहीं बल्कि उसने अन्य कई राजाओं को जीतने के बाद उनकी स्त्रियों को अपने साथ रखा था.
राम कथा में बताया गया है कि वन में राम-लक्ष्मण जब रहे तो सूर्पणखा राम पर मोहित हो गईं. उसने राम को पाना चाहा और अपनी महानता के गुण गाए. तब राम ने कहा कि उनके जीवन में एक ही स्त्री रह सकती है और वह सीता हैं, वे सिर्फ सीता से प्रेम करते हैं. इसके बाद सूर्पणखा ने लक्ष्मण से कहा कि आप तो अकेले हैं, मैं राम न सही राम के भाई के साथ रहकर उनके निकट तो रह ही सकती हूं.
इस पर लक्ष्मण ने भी उन्हें दुत्कार दिया कि मेरी पत्नी भले अयोध्या में हों लेकिन मैं सिर्फ उन्हीं से प्रेम करता हूं और जब तक उनके साथ नहीं तब तक ब्रह्मचर्य का पालन कर रहा हूं. इससे आहत होकर सूर्पणखा ने न सिर्फ सीता को तुच्छ बताया बल्कि उन्हें मारने की भी कोशिश की, अपनी तरफ़ से हमले भी किए. इसकी प्रतिक्रिया में राम-लक्ष्मण द्वारा सूर्पणखा के नाक काटे जाने की बात आती है.
हालांकि कुछ जगहों पर यह भी उद्धरित है कि सूर्पणखा ने राम-लक्ष्मण द्वारा प्रणय प्रस्ताव को ठुकराए जाने को अपना अपमान समझा और अपमान के लिए 'नाक कट गई' की लोकोक्ति आज भी प्रचलित है. राम या लक्ष्मण ने वास्तव में सूर्पणखा की नाक नहीं काटी थी जैसा कि नाटकीय रूप में दिखाकर यह छवि बनाई गई.
रावण या उसका वंश सिर्फ इसलिए ख़तम नहीं हुआ कि उसने सीता का हरण किया था. सीता के हरण के बाद भी जब राम के दूत जब शांति से सीता को वापस लेने पहुंचे तो रावण ने अहंकार दिखाया कि दो वनवासी उसका क्या उखाड़ लेंगे? वह सीता को कभी वापस नहीं करेगा. तब युद्ध हुआ जिसमें भी रावण का अहंकार उसे ले डूबा न कि राम का भगवान होना. राम सिर्फ अपनी पत्नी को सुरक्षित वापस लौटाने गए थे.
यदि रावण पहले ही सीता को वापस कर देता तो युद्ध क्यों होता? राम की छोड़िए यदि आज के युग में किसी की बहन आपके पीछे पड़ जाए और उसका प्रणय निवेदन अस्वीकार करने पर उसका भाई आपकी पत्नी को उठाकर ले जाए तो आप क्या करेंगे? अपनी पत्नी को मरने छोड़ देंगे?
या तो आप गाथाओं को मानिए मत और यदि मानते हैं तो थोड़ा अध्ययन करके उन्हें सही रूप में दिखाइए न कि रावण जैसे आततायी को बक़वास डायलॉग लिखकर महान बताने की कोशिश कीजिए. ग़लत उदाहरण प्रस्तुत मत कीजिए. किसी की पत्नी का अपहरण करने वाला और उसे बलात अपनी पत्नी बनाने की इच्छा रखने वाला कभी दया का पात्र नहीं हो सकता फिर चाहे उससे लड़ने वाला कोई भगवान हो या मनुष्य.
राक्षस प्रवर्ति के लोग राक्षसों को सही बताने पर तुले हुए हैं. कुछ कहो तो कहेंगे सब सब्जेक्टिव है. और अधिक कहो तो हम संघी, धर्मांध आदि आदि घोषित कर दिए जाते हैं. ये लोग अच्छे-बुरे का अंतर मिटाना चाहते हैं और कुछ नहीं. ताकि ख़ुद अपने राक्षसी कामों को जस्टिफाय कर सकें.
आप राम को मनुष्य मानें या भगवान, काल्पनिक मानें या सत्य यह आपका निजी मामला है, कोई आपको जबरै राम की पूजा करने नहीं कहेगा किंतु आप उन चरित्रों को लेकर ग़लत उदाहरण प्रस्तुत करें, आपराधिक मानसिकता को चाशनी में लपेटकर सही साबित करने की कोशिश करें तो यह सामाजिक रूप से अनुचित होगा.
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