हिंदी सिनेमा के मशहूर नायक, खलनायक, कॉमेडियन और इन सबसे इतर एक ज़िंदादिल इंसान कादर खान अब इस दुनिया में नहीं हैं. 81 वर्ष की आयु में कनाडा में उनका निधन हो गया. 22 अक्तूबर 1937 में अफगानिस्तान के काबुल में जन्में इंडो कैनेडियन मूल के कादर खान ने हिंदी सिनेमा के हास्य रस को अप्रतिम ऊंचाइयों तक पहुंचाया है. 1970 और 1980 के दशक के जाने माने पटकथा लेखक के तौर पर भी जहां एक ओर उन्हें प्रसिद्धि मिली, वहीं एक बेहतर इंसान के तौर पर भी मुंबई फ़िल्म इंडस्ट्री में वो पहचाने गए. अमिताभ बच्चन हो या फिर गोविन्दा. उनकी सभी के साथ ऐसी रंगत मिलती थी जैसे दूध में पानी.
70 के दशक में अमिताभ बच्चन के लिए सुहाग, मुकद्दर का सिकंदर एवं अमर अकबर एंथोनी, शराबी, कुली, देश प्रेमी, लावारिस, मुकद्दर का सिकंदर, परवरिश, मिस्टर नटवरलाल, खून पसीना जैसी फ़िल्मों के संवाद जबरदस्त हिट हुए जिसे कादर खान ने ही लिखा. कादर खान ने पूरे सिने कैरियर में करीब 350 फिल्मों में काम किया, जिसमें से लगभग 250 से ज्यादा फिल्मों की पटकथा और संवाद उन्होंने खुद लिखे. 70 के दशक के मल्टी टैलेंटेड कादर खान अपनी ख़ुद के द्वारा बनाई पहचान के लिए हमेशा याद किए जाएंगे. मौजूदा सदी के सुपरस्टारों को यह भी समझना होगा कि उनकी इस पहचान के आधे हकदार ख़ुद कादर खान भी हैं.
सन 73 में रिलीज हुई फिल्म दाग से कादर खान ने फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा. लेकिन उनके करियर को ऊंचाई मनमोहन देसाई की 1983 की फिल्म कुली में उनके खलनायकीय चरित्र ज़फ़र खान के किरदार से मिली थी. इसी खलनायक (कादर खान) ने फिल्म की पटकथा भी लिखी थी. फिल्म क़ुली को जितना अमिताभ बच्चन के करियर के लिए याद किया जाता है उतना ही उसकी पटकथा और खलनायकीय...
हिंदी सिनेमा के मशहूर नायक, खलनायक, कॉमेडियन और इन सबसे इतर एक ज़िंदादिल इंसान कादर खान अब इस दुनिया में नहीं हैं. 81 वर्ष की आयु में कनाडा में उनका निधन हो गया. 22 अक्तूबर 1937 में अफगानिस्तान के काबुल में जन्में इंडो कैनेडियन मूल के कादर खान ने हिंदी सिनेमा के हास्य रस को अप्रतिम ऊंचाइयों तक पहुंचाया है. 1970 और 1980 के दशक के जाने माने पटकथा लेखक के तौर पर भी जहां एक ओर उन्हें प्रसिद्धि मिली, वहीं एक बेहतर इंसान के तौर पर भी मुंबई फ़िल्म इंडस्ट्री में वो पहचाने गए. अमिताभ बच्चन हो या फिर गोविन्दा. उनकी सभी के साथ ऐसी रंगत मिलती थी जैसे दूध में पानी.
70 के दशक में अमिताभ बच्चन के लिए सुहाग, मुकद्दर का सिकंदर एवं अमर अकबर एंथोनी, शराबी, कुली, देश प्रेमी, लावारिस, मुकद्दर का सिकंदर, परवरिश, मिस्टर नटवरलाल, खून पसीना जैसी फ़िल्मों के संवाद जबरदस्त हिट हुए जिसे कादर खान ने ही लिखा. कादर खान ने पूरे सिने कैरियर में करीब 350 फिल्मों में काम किया, जिसमें से लगभग 250 से ज्यादा फिल्मों की पटकथा और संवाद उन्होंने खुद लिखे. 70 के दशक के मल्टी टैलेंटेड कादर खान अपनी ख़ुद के द्वारा बनाई पहचान के लिए हमेशा याद किए जाएंगे. मौजूदा सदी के सुपरस्टारों को यह भी समझना होगा कि उनकी इस पहचान के आधे हकदार ख़ुद कादर खान भी हैं.
सन 73 में रिलीज हुई फिल्म दाग से कादर खान ने फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा. लेकिन उनके करियर को ऊंचाई मनमोहन देसाई की 1983 की फिल्म कुली में उनके खलनायकीय चरित्र ज़फ़र खान के किरदार से मिली थी. इसी खलनायक (कादर खान) ने फिल्म की पटकथा भी लिखी थी. फिल्म क़ुली को जितना अमिताभ बच्चन के करियर के लिए याद किया जाता है उतना ही उसकी पटकथा और खलनायकीय चरित्रों के लिए भी. अमिताभ को इसी फिल्म के दौरान चोट भी लगी थी जिसका असर ख़ुद अमिताभ के करियर पर तो पड़ा ही वहीं इसका असर कादर खान की आख़िरी इच्छा पर भी पड़ा. कादर चाहते थे कि अमिताभ बच्चन, जया प्रदा और अमरीश पुरी को लेकर वो फिल्म 'जाहिल' बनाएं और उसका निर्देशन भी करें. लेकिन उनकी यह इच्छा आखिरी समय तक अधूरी रह गई.
एक सीधा साधा सा दिखाने वाला आदमी अपनी आवाज अपनी अदाकारी और लेखनी के साथ साथ अपने व्यवहार से जिस तरह पूरी दुनिया भर में सराहा जाता रहा यह मौका कम लोगों को ही मिलता है. कह सकते हैं कि कादर होना सबके लिए आसान नहीं. चकाचौंध से भरी पूरी इस फिल्म इंडस्ट्री में कादर ने खुद को आखिरी तक जिस ज़िम्मेदाराना तरीके से स्थिर रखा यह बात सिने प्रेमियों को आजीवन याद रह जाएगी. सदाजीवन जीने के आदी कादर मीडिया की हलचलों से काफ़ी दूर ही रहा करते थे.
संवादों में बिना अश्लीलता परोसे उसके मर्म को दर्शकों तक पहुंचाना और उसे समय के साथ पेश करना कादर खान खान को बखूबी आता था. असरानी के साथ की गई ढेरों यादगार फ़िल्मों में उनके हास्य जीवन को आसानी से देखा जा सकता है. हमेशा हंसाने के मूड में दिखने वाले कादर खान का खलनायकीय चरित्र ऐसा कि परदे पर देख रहा दर्शक बस यही कहे कि यह मर क्यों नही जाता. लेकिन असल जिंदगी में उनका ही एक संवाद उन्हें प्रासंगिक बनाता है.
जिंदा हैं वो लोग जो मौत से टकराते हैं
मुर्दों से बदतर हैं वो लोग जो मौत से घबराते हैं.
17-18 हफ़्तों से मौत से लड़ते कादर खान आख़िरकार इस दुनिया को अलविदा कह गए, लेकिन उनका सारा जीवन जिस संजीदगी से उन्होंने हिंदी सिनेमा को दिया वह सिने प्रेमी हमेशा याद करेंगे. उनका असमय हमें छोड़ कर जाना खलेगा. 'तुम्हारी उम्र मेरे तजुर्बे से बहुत कम है, तुमने उतनी दीवालियां नहीं देखीं जितनी मैंने तुम जैसे बिकने वालों की बर्बादियां देखी हैं', 'तुम्हें बख्शीश कहां से दूं. मेरी गरीबी का तो यह हाल है कि किसी फकीर की अर्थी को भी कंधा दूं तो अपनी इंसल्ट मानकर अर्थी से कूद जाता है', 'बचपन से सर पर अल्लाह का हाथ और अल्लाहरख्खा है अपने साथ, बाजू पर 786 का है बिल्ला, 20 नंबर की बीड़ी पीता हूं और नाम है 'इकबाल'' जैसे संवादो को लिखने वाले कादर खान को इनके सामयिक विश्लेषण और कादर के ज़मीनी होने के तथ्य को आसानी से समझा जा सकता है.
हंसने -हंसाने की जो साफ सुथरी परंपरा की शुरुआत कादर खान ने अपनी लेखनी और अदाकारी से शुरू की थी, भले ही उसका वह रूप हमारे सामने सामने नहीं है लेकिन दर्शक मन में जब भी स्वच्छ और स्वस्थ कॉमेडी दृश्य देखने की चाह होगी वह कादर खान को ज़रूर याद करेंगे. उनकी फ़िल्मों के विषय और तत्कालीन समाज की दशा और व्यथा को देखने के साथ ही दर्शक हास्य अनुभूति का जिस मनोभाव में रसास्वादन करते थे वह कादर खान को कभी मरने नही देगी. हंसमुख बाप तो कभी खूंखार विलेन, तो ढीला ढाला पुलिस वाला जैसे तमाम किरदार अब सिनेमा के परदे से उस नूर के साथ नहीं दिखेंगे जिसकी कल्पना हम कादर के होने के साथ कर सकते थे.
हमारी स्मृतियों में कादर खान अभिनीत फिल्म दूल्हे राजा का गीत और उनकी अदाकारी आज भी उसी तरह याद है जब हम पहली पहली बार सिनेमा से रूबरू हुए और परदे के जादू में कहीं खो से गए थे. कादर खान हमें हमेशा हंसाते रहेंगे, अपनी दमदार आवाज़ से बोले गए संवादों से रोमांचित भी करते रहेंगे और साथ ही उनकी लिखी फ़िल्मों को हम बार बार देखते भी रहेंगे. यहीं उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
ये भी पढ़ें -
कादर खान की मौत से शोकाकुल ट्विटर की इस बेजोड़ कलाकार को श्रद्धांजलि
10 साल की सबसे बड़ी क्रिसमस 'फ्लॉप' बनने जा रही है जीरो
GST के हर Rate Cut सिनेमा टिकट वाली खुशी नहीं देते
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.